सुबह चार बजे एक ढाबे के आगे बस रुकी। सहयात्री जाग गये और चाय पीने के लिए उतर गए। मैं अपनी सीट पर बैठी बाहर देखती रही। पौने पांच बजे बस चलने लगी तो रानी सिंह ने सबको कहा,’’हरिद्वार पहुंचने वाले हैं। हर की पौढ़ी के पासवाली पार्किंग पर हमारी बसे खड़ी होंगी। हमारी बस का 5 नम्बर है। 11 बजे प्रशाद(भोजन को प्रशाद ही बोला जाता था) तैयार हो जायेगा। 12 बजे यहां से बस शाकुम्बरी देवी के लिए प्रस्थान करेगी।’’ मैं रात को देर से सोने और देर से उठने वाली ने यह सोचा कि शायद अब फिर सब सो जायेंगे। मैं बोली,’’अभी तो 5 भी नहीं बजे।’’ जिन्होंने भी सुना वे बोले,’’हम तो सुबह पांच बजे सोकर उठते हैं।’’और इसके साथ ही भजन, कीर्तन शुरु हो गया। इन भजनों को सुनते हुए मुझे शबरी के बेर याद आने लगे। यहां भजनों को सुनते हुए शब्दों पर तो कोई बेवकूफ ही जायेगा। सरल भोला भाव, सुर ताल ऐसा कि मैं कभी भी नहीं नाचती पर उस समय मेरा दिल कर रहा था कि मैं भी उठ कर नाचूं। खड़ताल, मंजीरा तो मैं ढोलक की थाप के साथ, इस यात्रा में बजाना सीख गई हूं। बालेश्वरी जिन्हें बाले कह रहे थे, एक भजन वो गाती तो उसके ऊपर दूसरा निक्की गाता। अचानक देखा कि हर की पौढ़ी आ गई। उस समय निक्की गा रहा था ’’सुन गौरां तेरे मायके का हाल, तेरी मां कंगाल, तेरा बाप कंगाल।’’ भोले शंकर गौरां के मायके को लेकर ताने मारते ही जा रहें हैं। मायके की बुराई तो कोई महिला नहीं सुनती! आखिर में गौरां ने ’’काढ़ लिया घूंघट, फूला लिए गाल’’ और रुठ गयीं, फिर भोले ने बड़ी मुश्किल से मनाया। कीर्तन सम्पन्न और हम सब गंगा स्नान के लिए हर की पौढ़ी की ओर चल दिए।’’पहले यहां कपड़े बदलने की उचित व्यवस्था नहीं थी इसलिए मैं घर से वही कुर्ता, सलवार पहन कर गई थी जिसमें मुझे गंगा स्नान करना था। हर की पौढ़ी पर जाते ही यह देखकर मेरा मन खुश हो गया, वहां महिलाओं के लिए मैटल के कैबिन बने हुए हैं। जिसमें ऊँचाई पर जाल का फर्श है। कपड़े टांगने की, रखने की व्यवस्था है। अंदर की ओर मजबूत चिटकनियां हैं। गीले कपड़े बदलते समय आपके सूखे कपड़े गीले नहीं होंगे। इस व्यवस्था के लिए तो प्रशासन को साधूवाद।
पहले गुलाब, ओमपाल ने स्नान किया। जब वे सामान के पास आ गए तब सुमित्रा, रानी और मैं गंगा जी के ठंडे ठंडे पानी में डुबकियां लगाने गए।
रानी ओमपाल और उनके दोनो शैतान बेटों केशव और कान्हा ने 11 लोगों को भोजन करवाया। इसी तरह सुमित्रा ने करवाया। जो हलुआ पूरी बेचता है। उसको आप पैसे दो 11 लोग लाइन में लग जायेंगे।
सुमित्रा ने गाय और कुत्ते के लिए दो हलुआ पूरी के दोने लिए। गाय ने पूरी नहीं खाई। वहां खड़े दुकान वाले ने कहा ये पूरी नहीं खाती। सुमित्रा ने होटल वाले से एक रोटी लेकर दो पूरियों में रख कर दी।
गऊ माता ने रोटी खा ली पूरी छोड़ दी। अब कुत्ता मिला उसके आगे दोना रखने लगे तो उसके पास खड़ा लड़का बोला,’’ये पूरी खा लेगा, हलुआ नहीं खायेगा।’’उसके आगे जरा सा हलुआ रखा, उसने नहीं खाया। पूरियां उसे दे दीं वो खा गया। अब हम हर की पौढ़ी से पैदल मनसा देवी की ओर चल दिये। रास्ते में एक कुत्ते के आगे सुमित्रा ने वो हलुआ रखा वो दोना भी चाट गया। इलाके का फर्क था। देश विदेश से आए तीर्थ यात्रियों को, सड़क के दोनो ओर सामान से भरी दुकानों, भोजनालयों को देखते हम पैदल शहर से परिचय करते हुए मनसा देवी की ओर जा रहे थे। क्रमशः
गऊ माता ने रोटी खा ली पूरी छोड़ दी। अब कुत्ता मिला उसके आगे दोना रखने लगे तो उसके पास खड़ा लड़का बोला,’’ये पूरी खा लेगा, हलुआ नहीं खायेगा।’’उसके आगे जरा सा हलुआ रखा, उसने नहीं खाया। पूरियां उसे दे दीं वो खा गया। अब हम हर की पौढ़ी से पैदल मनसा देवी की ओर चल दिये। रास्ते में एक कुत्ते के आगे सुमित्रा ने वो हलुआ रखा वो दोना भी चाट गया। इलाके का फर्क था। देश विदेश से आए तीर्थ यात्रियों को, सड़क के दोनो ओर सामान से भरी दुकानों, भोजनालयों को देखते हम पैदल शहर से परिचय करते हुए मनसा देवी की ओर जा रहे थे। क्रमशः
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