साफ सुथरे रास्ते से चलती हुई मैं मंदिर की सफेद सीढ़ियां चढ़ने लगी। सफाई देख कर मन खुश हो गया। मंदिर का मुख्य द्वार बहुत भव्य और सुन्दर है। मां के ज्योति रुप में दर्शन करने के लिए लाइन में लग गई। लाइन के साथ धीरे धीरे चल रहीं हूं और दिमाग में मंदिर से प्रचलित कथाएं चल रहीं हैं कि इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। मंदिर में भगवती के दर्शन नौ ज्योति रुपों में होते हैं। नौ ज्वालाओं के जलने पर कोई धुआं नहीं। जोतों वाली मां की ज्योतियां हैं जिन्हें महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। और मैं गर्भ ग्रह के चौकोर के पास खड़ी ज्योतियों के दर्शन करने लगती हूं। उस बाउण्ड्री में खड़े पुजारी ने मेरे हाथ से टोकरी ली और पकड़ा दी। मेरी आंखें तो जोतोंवाली मां की जोतों पर थी। आगे बढ़िये सुन कर आगे बढ़ती गई। जब तक दिखी जोत के दर्शन करते हुए बाहर आई।
बिना घी बाती के सदाबहार लौ, मां ज्वाला की अभिव्यक्ति मानी जाती है। नवरात्री उत्सव के दौरान यहां मेले आयोजित होते हैं। ज्वाला जी देवी को समर्पित इस मंदिर में सती की महाजीभ भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कट कर गिरि थी। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रुप में होते हैं। माता ज्वाला देवी शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
अब वहां गई जहां अकबर का चढ़ाया हुआ छतर था। छतर कब चढ़ाया!! जब उसे देवी की शक्ति का एहसास हुआ। मन में बड़े अभिमान से कि वह सोने का छतर चढ़ाने लाया है। पर मां की महिमा देखो! छतर उसके हाथ से गिर कर नई धातु में तब्दील हो गया।
मंदिर के पास ही उपर की ओर बाबा गोरा नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है।
कहते हैं वह मां का बहुत भक्त था। एक बार भूख लगने पर उसने मां से कहा कि पानी चढ़ा कर रखो, मैं अभी भिक्षा लेकर आता हूं, वो नहीं आए मां आज भी ज्वाला जला कर भक्त का इंतजार कर रही है। मां के शयन कक्ष के दर्शन करके, बाहर आकर बैठ गई।
मंदिर को पहले राजा भूमिचंद ने बनवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया। मंदिर अपने सुनहरे गुंबद और आसपास की हरियाली में चमकते हुए चांदी के दरवाजों से बहुत सुंदर दिखता है।
मंदिर गर्मियों में सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुलता है। लेकिन सर्दी में सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक।
कांगड़ा में सबसे प्रसिद्ध ज्वाला जी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी शहर में निचले हिमालय में स्थित है। जो धर्मशाला से 55 किमी. दूर है। गग्गल हवाई अड़डा निकटतम है। जो कांगड़ा से लगभग 14 किमी. दूर है। यहां आकर
मुझे वहां बैठना बहुत अच्छा लग रहा था। श्रद्धालुओं की श्रद्धा के कारण वहां अलग सा भाव था। हमारे साथी यात्री दरबार की ओर से मां की ज्योति से ज्योति लेकर, जयकारे लगाते, वैसे ही बाजे गाजे के साथ नाचते हुए धर्मशाला पहुंच जाते हैं।
सबके बाद मैं भी पहुंच जाती हूं। यहां उल्लास का माहौल है। जहां मां के स्वागत में भक्तजन नाचते हैं, गाते हैं और बड़ी श्रद्धा भक्ति से मां का गुणगान करते हैं।
गर्म पूरी, हलवा, सीताफल और आलू की सब्जी का प्रशाद खाया जा रहा था। जो बहुत ही लजी़ज था। ढोल बज रहा था जिस पर लगातार डांस हो रहा था। जलवाले गुरुजी के आदेश से जब तक बसें नहीं चलीं, तब तक डांस चलता ही रहा। ज्वाला जी से आगे की यात्रा ज्वाला जी की पवित्र ज्योति के साथ होती है। ज्वाला जी से चल कर यह यात्रा सिद्धपीठ बगलामुखी की ओर बढती है। क्रमशः