बाण गंगा पर एक ओर ऑटो लाइन में लगे हुए थे साथ ही घोड़े वाले खड़े थे। यहां से आद्धकवारी तक घोड़े पर जाने का रेट 650रु था। और भवन तक जाने का 1250रु था। अशोक ने सीमा बता कर कहा कि इससे आगे ऑटो नहीं जा सकता। मैं उतर कर पैदल चल दी। बाजू में क्या देखती हूं जो यहां यात्रियों के माथे पर जै माता लिखी हुई पट्टी मेरे ख्याल से सांकेतिक चुन्नी है, वो लोहे की फैसिंग पर बंधी हुई हैं। शायद ही जरा भी जगह बची हो।
अब मैंने नीचे आकर जाली देखी तो वो भी भरने लग गई थी। मैंने अशोक से पूछा,’’यहां किसकी पूजा होती है?’’अशोक ने हाथ जोड़ कर जहां, ’वे टू भवन’ लिखा था और यात्री दर्शन को जा रहे थे और आ रहे थे,
प्रणाम करके बोला,’’बाण गंगा यात्रा का पहला पड़ाव है। ये चुन्नी भी दर्शनों में इनके साथ रही है। इसे जमीन पर कोई श्रद्धालू नहीं रखता और हरवक्त बांध कर घूम भी नहीं सकता। किसी समय कोई गर्मियों में यात्रा करके यहां पहुंचा होगा। ऊपर मौसम ठंडा रहता है। नीचे आते गर्मी लगी और ये तो मां की पवित्र जगह है। उसने चुनरी उतार कर जाली से बांध दी। देखा देखी लौटने वाले भक्तों ने सोचा कि ऐसा करते होंगें। अब यहीं बांध देते हैं। कोरोना न आता तो नीचे की ग्रिल भी भर गई होती। यहां रजीस्ट्रेशन स्लिप से ही जाने दिया जाता है। सड़क के दोनो ओर बाजार हैं। बाण गंगा में दो घाट हैं। यहां कपड़े बदलने और जो बाथरुम में नहाना चाहते हैं, उनके लिए बाथरुम भी है। यहां नहा कर जाने से बहुत ताज़गी आ जाती है और सारी थकावट दूर हो जाती है। मुंडन करवाने के लिए नाई भी बैठे होते हैं। इस नदी को बाणगंगा और बाल गंगा नाम से पुकारने के पीछे भी प्रचलित कथा है।
कटरा के पास हंसली गांव में पंडित श्रीधर नाम के माता के पुजारी रहते थे। निसंतान होने के कारण वे दुखी थे। एक बार नवरात्री पर उन्होंने कन्या पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलाया तो मां वैष्णव भी रुप कन्या का बनाकर उनमें बैठ गईं। पूजन के बाद सब कन्याएं तो चलीं गईं पर मां वैष्णव तो वहीं आसन पर जम गईं और श्रीधर से बोलीं,’’सबको अपने घर में भंडारे का प्रशाद लेने के लिए आमंत्रित करके आओ।’’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान कर आस पास के सब गांवों को भंडारे में आने का संदेश पहुंचा दिया। साथ ही गुरु गोरखनाथ और बाबा भैरवनाथ को भी उनके शिष्यों सहित भंडारे का निमंत्रण दे दिया। सब को बहुत आश्चर्य था कि ऐसी कौन सी कन्या है जो इतने लोगों को भोजन करवा रही है। सब पहुचे। कन्या एक पात्र से सभी को भंडारा परोसने लगी। जब वह भोजन परोसते हुए भैरवनाथ के पास गई, तो उसने कहा कि मैं तो खीर पूड़ी की जगह मांस मदिरा लूंगा। तब दिव्य कन्या ने कहा कि ये ब्राह्मण के घर का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं परोसा जाता। पर भैरवनाथ जानबूझ अपनी बात पर अड़ा रहा। वह तो कन्या को पकड़ना चाहता था। मां उसके कपट को समझ गई और पवन रुप बदल कर त्रिकुटा पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। मां के साथ पवनपुत्र हनुमान भी थे। उन्हें प्यास लगी तो मां ने धनुष से पर्वत पर बाण चलाया तो उसमें से यह पवित्र जलधारा निकली जो बाण गंगा कहलाती है। उस जल से मां ने अपने केश धोए। इसे बाल गंगा भी कहते हैं। मैं कुछ देर यहां घूमती रही। जब लौटने लगी तो अशोक से कहा कि मुझे होटल दूसरे रास्ते से लेकर जाना। उसने ऐसा ही किया। कुछ दूर जाने पर बाण गंगा पर एक और पुल आया। उसने बताया कि ये वही बाण गंगा है जिससे मैं मिल कर आ रही हूं। मैं ऑटो से उतर कर पुल से बाण गंगा को देखती रही जो पथरीले रास्ते पर बह रही थी।
बाजारों से निकाल कर उसने मुझे होटल पर छोडा़ और सुबह 7 बजे मुझे लेने आयेगा, ऐसा कह कर वह चला गया। और मेरे अंदर माता वैष्णव देवी के भवन पर न जा सकने की तकलीफ़ कुछ कम हुई। क्रमशः