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Monday, 25 December 2023

नक्की झील! माउंट आबू की यात्रा भाग 10, Neelam Bhagi

 


प्रवीण भाई बोल लंच के लिए चलते हैं और गाड़ी आकर ज्ञान सरोवर पर रुकी। मैं बोली," लंच टाइम तो निकल गया है।" वे  बोल, "आज भ्रमण का दिन है न यहां खाना जब आएंगे तब मिलेगा।" जब हम हॉल में गए खाना वैसे ही परोसा जा रहा था। सभी लंच करने यहां आ रहे थे और फिर घूमने चल दे रहे थे। लंच के बाद हम लोग ब्रह्माकुमारी द्वारा बनाया हॉस्पिटल देखने गए। अस्पताल के सामने ही  के नाम से "मेजर शैतान सिंह परमवीर चक्र" पार्क है। यहां से नक्की झील के पास पहुंच कर ब्रह्माकुमारी  म्यूजियम देखा। यहां काफी समय हमें लगा। क्योंकि जो दिखा रहे थे, वह बहुत अच्छा डिमॉन्सट्रेशन दे रहे थे। यहां से हम पैदल  नक्की झील की ओर  चल पड़े दोनों ओर  बनी दुकानों से राजस्थानी शिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। यहाँ संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियां और सूती कोटा साड़ियाँ काफी लोकप्रिय है। यहाँ की दुकानों से चाँदी के आभूषणों की खरीददारी भी की जा सकती है। मुझे याद आया 3 साल तक मेरे मुंबई नोएडा बहुत चक्कर लगे। जब भी आबू रोड स्टेशन आता तो आवाज आती "आबू की राबड़ी, आबू की राबड़ी" और मैं रबड़ी जरूर खाती। इतनी शुद्ध रबड़ी होती है कि कभी मेरी तबीयत खराब नहीं हुई। यह याद आते हैं मैंने  रबड़ी खाई। नक्की झील माउंट आबू का एक सुंदर पर्यटन स्थल है।  यह झील, राजस्थान की सबसे ऊंची झील हैं। टॉड रॉक व नन रॉक नक्की झील की मुख्य चट्टाने हैं। यह सर्दियों में अक्सर जम जाती है। कहा जाता है कि एक हिन्दू देवता ने अपने नाखूनों से खोदकर यह झील बनाई थी। इसीलिए इसे नक्की (नख या नाखून) नाम से जाना जाता है। झील से चारों ओर के पहाड़ियों का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखता है। इस झील में नौकायन का भी आनंद लिया जा सकता है। यहां बने पार्क में लोग  पिकनिक मना रहे थे। पर्यटक यहां खूब थे। कहीं गिटार पर गया जा रहा था।https://youtu.be/MG0Gc306Ueg?si=wpO_JGdM2biVgN9q

 यहां भी मुझे श्री गुरु शिखर पर जो फौजी परिवार मिला था, वह पति-पत्नी मिले। अब बाकि परिवार के लोग














अलग घूम रहे थे। श्रद्धा अमित  अलग घूम रहे थे। मैं तो वैसे ही अकेली हो जाती हूं। प्रवीण भाई का फोन आया कि गाड़ी पर आ जाइए।  चारों एक ही समय पर पहुंचे और गाड़ी पर बैठे। प्रवीण जी ने ड्राइवर को पांडव भवन जाने को कहा। क्रमश:

Saturday, 16 December 2023

गुरु शिखर चोटी! माउंट आबू की यात्रा मीडिया महासम्मेलन एवं मेडिटेशन रिट्रीट 2023 भाग 7 नीलम भागी , Neelam Bhagi

 




ज्ञान सरोवर में ही ऑफिस है जो भ्रमण की व्यवस्था करता है। मैंने वहां जाकर कहाकि किसी ग्रुप में एक एडजस्ट हो सकता है तो मुझे कर दीजिए, मैं अपना शेयर दे दूंगी। वहां मध्य प्रदेश से श्रद्धा अमित पति पत्नी से पूछ कर मुझे उनके साथ एडजस्ट कर दिया, भाई प्रवीण जी हमारे गाइड थे। कल 8 मई को सुबह नौ बजे हमारी गाड़ी हमें लेगी। नाश्ते के बाद हम गुरु शिखर की और चल दिए। दत्तात्रेय  त्रिगुण स्वरुप यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का सम्मलित स्वरुप, इसके अलावा भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु के रूप में पूजनीय की जयंती भी मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक हैं और माता अनुसूया को सतीत्व के रूप में जाना जाता है।  ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य सुबह काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका, दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेेलगाम में स्थित है। देशभर में दत्तात्रेय को गुरु के रूप मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। नरसिंहवाडी दत्ता भक्तों की राजधानी के लिए जाना जाता है। कृष्णा और पंचगंगा नदियों के पवित्र संगम पर स्थित, महाराष्ट्रीयन इतिहास के प्रसंगों में इसका व्यापक महत्व है। दक्षिण भारत सहित पूरे देश में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। राजस्थान के माउंट आबू के अरबुदा पहाड़ों की 1722 मी. की गुरु शिखर चोटी पर बना, भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है। और खूबसूरत रास्ते से यहां हम पहुंच गए। अपनी आदत के अनुसार  कुछ क़दम चल कर, मैं बैठ गई। मेरे साथी भी मेरे पास रूक गए। मैंने श्रद्धा से कहा,"आप लोग जाएं, मैं आपको गाड़ी पर मिलूंगी।" मैं देश भर से आए श्रद्धालुओं को देखते रही। थोड़ी सी चढ़ाई के बाद सीढ़ियां थीं। जो चल नहीं सकते उनके लिए डोली भी थी पर उसमें जवान लड़कियां ज्यादा बैठ रही थीं। सीढ़ियां साफ सुथरी थीं, उसके दोनों और हथियारों की भी दुकाने थीं। असली नकली कि मुझे पहचान नहीं है। हां दुकानदार दुकान खोल कर पूजा करके ग्राहक को अटेंड कर रहे थे । बाकि जैसे तीर्थ स्थलों पर दुकान होती हैं, वे थीं मसलन खिलौने और घरेलू सामान के और ढलान से नीचे खाने पीने की चाय वगैरा की थीं। मंदिर के आगे चप्पल उतार सकते हैं। अंदर तस्वीर लेना माना था और मैं कभी भी नियम का उल्लंघन नहीं करती। एक फौजी भाई अपनी पत्नी, भाई और दो बहनों के साथ दर्शन के लिए आए हुए थे। अब मुझे उनका नाम याद नहीं आ रहा क्योंकि एक्सीडेंट के कारण मेरा वह मोबाइल भी नहीं है। सब मैं अपनी मेमोरी से लिख रही हूं। वह परिवार मुझे बहुत अच्छा लगा। उनके साथ मैंने उनके भाई से तस्वीरें खिंचवाई। ऊपर से माउंट आबू बहुत अच्छा लग रहा था। मैंने नीचे आते ही एक टपरी पर बैठकर चाय बनवा कर पी। चाय लाज़वाब  तो देखा, उसने पोदीना का पॉट  अपनी दुकान पर रखा है। उसमें से चाय में ताजा पुदीना डालता है जिससे लाजवाब चाय बनती है। मैं चाय पीकर अपने साथियों का इंतजार करने लगी। क्रमशः