ज्ञान सरोवर में ही ऑफिस है जो भ्रमण की व्यवस्था करता है। मैंने वहां जाकर कहाकि किसी ग्रुप में एक एडजस्ट हो सकता है तो मुझे कर दीजिए, मैं अपना शेयर दे दूंगी। वहां मध्य प्रदेश से श्रद्धा अमित पति पत्नी से पूछ कर मुझे उनके साथ एडजस्ट कर दिया, भाई प्रवीण जी हमारे गाइड थे। कल 8 मई को सुबह नौ बजे हमारी गाड़ी हमें लेगी। नाश्ते के बाद हम गुरु शिखर की और चल दिए। दत्तात्रेय त्रिगुण स्वरुप यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का सम्मलित स्वरुप, इसके अलावा भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु के रूप में पूजनीय की जयंती भी मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक हैं और माता अनुसूया को सतीत्व के रूप में जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य सुबह काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका, दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेेलगाम में स्थित है। देशभर में दत्तात्रेय को गुरु के रूप मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। नरसिंहवाडी दत्ता भक्तों की राजधानी के लिए जाना जाता है। कृष्णा और पंचगंगा नदियों के पवित्र संगम पर स्थित, महाराष्ट्रीयन इतिहास के प्रसंगों में इसका व्यापक महत्व है। दक्षिण भारत सहित पूरे देश में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। राजस्थान के माउंट आबू के अरबुदा पहाड़ों की 1722 मी. की गुरु शिखर चोटी पर बना, भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है। और खूबसूरत रास्ते से यहां हम पहुंच गए। अपनी आदत के अनुसार कुछ क़दम चल कर, मैं बैठ गई। मेरे साथी भी मेरे पास रूक गए। मैंने श्रद्धा से कहा,"आप लोग जाएं, मैं आपको गाड़ी पर मिलूंगी।" मैं देश भर से आए श्रद्धालुओं को देखते रही। थोड़ी सी चढ़ाई के बाद सीढ़ियां थीं। जो चल नहीं सकते उनके लिए डोली भी थी पर उसमें जवान लड़कियां ज्यादा बैठ रही थीं। सीढ़ियां साफ सुथरी थीं, उसके दोनों और हथियारों की भी दुकाने थीं। असली नकली कि मुझे पहचान नहीं है। हां दुकानदार दुकान खोल कर पूजा करके ग्राहक को अटेंड कर रहे थे । बाकि जैसे तीर्थ स्थलों पर दुकान होती हैं, वे थीं मसलन खिलौने और घरेलू सामान के और ढलान से नीचे खाने पीने की चाय वगैरा की थीं। मंदिर के आगे चप्पल उतार सकते हैं। अंदर तस्वीर लेना माना था और मैं कभी भी नियम का उल्लंघन नहीं करती। एक फौजी भाई अपनी पत्नी, भाई और दो बहनों के साथ दर्शन के लिए आए हुए थे। अब मुझे उनका नाम याद नहीं आ रहा क्योंकि एक्सीडेंट के कारण मेरा वह मोबाइल भी नहीं है। सब मैं अपनी मेमोरी से लिख रही हूं। वह परिवार मुझे बहुत अच्छा लगा। उनके साथ मैंने उनके भाई से तस्वीरें खिंचवाई। ऊपर से माउंट आबू बहुत अच्छा लग रहा था। मैंने नीचे आते ही एक टपरी पर बैठकर चाय बनवा कर पी। चाय लाज़वाब तो देखा, उसने पोदीना का पॉट अपनी दुकान पर रखा है। उसमें से चाय में ताजा पुदीना डालता है जिससे लाजवाब चाय बनती है। मैं चाय पीकर अपने साथियों का इंतजार करने लगी। क्रमशः