होटल में कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। सुबह बस कुछ लोग आते दिखे। अब जो भी आता उसे कहा जाता रुम नहीं है। वहां बैठा लड़का उन्हें लेकर दूसरे होटल, रुम दिलवाने चल देता। यहां सारा दिन मैंने एक बात देखी कि कटरा में लोग सामान रखने और स्नान आदि करने के लिए कमरा आदि लेते हैं। बस सीधे भवन के लिए चल देते हैं। 80% लोग पैदल बाकि घोड़े, पालकी और हैलिकॉप्टर से दर्शन को जाते हैं। अगर पहले लौट आए तो आराम किया और शॉपिंग की फिर वापिस। हर शहर की अपनी विशेषता होती है। वहां का खान पान, वहां के दर्शनीय स्थल और उनसे संबंधित दंत कथाएं। ये सोच कर मैंने अशोक शर्मा से कहा था कि कटरा में कोई भी जगह छूटनी नहीं चाहिए। उसने जवाब में कहा,’’ 7 बजे मेरा ऑटो होटल पहुंच जायेगा। बाण गंगा में मैंने देखा कि आप छूकर नहीं आती हो, वहां समय अच्छे से लगाती हो।’’रात दस बजे प्रेरणा, संगीता, पार्थ और धर्मेन्द्र भडाना दर्शन करके आ गए। उषा जी, सुरभि, राची और गौतम बसंल वहीं रुक गए। वे सुबह फिर दर्शन करके लौटेंगे। मुख्य परिसर जिसमें भवन है। यहां मुफ्त और किराए पर रहने की सुविधा मिल जाती है। इसकेे अलावा यहां शाकाहारी रेस्तरां, चिकित्सालय, कंबल स्टोर, क्लॉकरुम, प्रसाद आदि की दुकाने हैं। इन्हें दर्शन बहुत अच्छे से हो गए थे। इसलिए बहुत खुश थे। खाना वे खा कर आए थे। अब यात्रा की बातें चल रहीं थीं। संगीता पार्थ के साथ बाणगंगा से घोड़े पर गई। भवन जो 5200 फीट की ऊंचाई पर है। इसके लिए 12 किमी. का ट्रैक लिया। ये रास्ता सुगम है। खड़ी सीढ़ियां चढ़ने का भी विकल्प है। यदि आप रात में यात्रा शुरु करते हैं तो ऊंचाई पर पहाड़ों की चोटियों के बीच सूर्योदय का नज़ारा देखने को मिलेगा। बीच र्में अद्ध कुवांरी की गुफा भी गए। सांझीछत एक खूबसूरत स्थान है। यहां से भरपूर घाटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द लिया जा सकता है।
प्रेरणा बताने लगी कि ऊंचाई से बहुत ही खूबसूरत नज़ारे देखते हुए, बिना नीचे देखे मैं चल रही थी एक जगह मैं बोली,’’ पापा जन्नत!!!!’’ पापा ने मुझे संभाला क्योंकि सीढ़ी से मेरे पैर को ठोकर लगी। अब मैं ध्यान से भी चलने लगी। रास्ते में खाने पीने की कोई चिंता नहीं थी। भोजनालय, जलपान ग्रह खूब थे। राजमा चावल, पूरी छोले, कढ़ी चावल, पकौड़े, डोसा आदि सब मिलता है।
सुमित्रा घोड़े से गई थी। उसने अद्ध कुवांरी से बैटरी कार की, रानी ओमपाल, बाले, सुधा की टिकट ले ली थी। जब ये लोग पहुंचे तब कुछ समय के लिए काउंटर बंद हो गया था। लोग लाइन में लगे काउंटर खुलने का इंतजार कर रहे थे। अब ये बैटरी कार से गए। बेैटरी कार सीनियर सीटीजन और बच्चों का साथ हो तब टिकट उन्हें पहले मिलती है। भाड़ा 354रु प्रति व्यक्ति है। अब इनकी यात्रा आसान हो गई थी। भवन से आधा किमी. पहले टॉयलेट, बाथरुम आदि बने हैं। यहां दर्शनों से पहले नहा सकते हैं।
वैष्णों देवी के दर्शन के बाद सब 100रु का आने जाने का टिकट लेकर, रोप वे से भैरोंनाथ के मंदिर गए।
पार्थ सो गया तो मैं और संगीता काफी देर बतियाते रहे। संगीता उसकी शैतानी बता रही कि दीदी बांह में बड़ा दर्द हो रहा है। एक बांह में बच्चे का सामान और इसको पकड़ा हुआ, जहां भी रास्ते में ढोल बजे, ये घोड़े पर नाचना शुरु कर दे। फिर इसे भी संभालना। थकी हुई वह बात करते करते सो गई। मैं भी सो गई। कटड़ा के दर्शनीय स्थल देखने की खुशी में सुबह 7 बजे मैं अशोक शर्मा के ऑटो पर बैठ गई और उसे कहा कि रास्ते में जिस चायवाले की चाय तुम्हें अच्छी लगती है, उसकी चाय पियूंगी। मैंने सुबह चाय भी नहीं पी थी। क्रमशः