Search This Blog

Showing posts with label #advantages of tourism. Show all posts
Showing posts with label #advantages of tourism. Show all posts

Thursday 14 October 2021

ज्वाला जी मंदिर की ओर 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 10 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 



मां चिंतपूर्णी की आरती के बाद हमारे कुछ साथी बस में लौटे। सभी सहयात्रियों के आने पर जलवाले गुरुजी ने चलने को कहा। जयकारे लगाते हुए बस ज्वालामुखी शहर की ओर चल पड़ी। आरती भजन कीर्तन चला। अशोक भाटी ने जल और मेवे का सबको प्रशाद दिया। 30 किमी. की दूरी तय करके हम ज्वाला जी के गीता भवन में पहुंचे। बस से लगेज लिया। यहां रुम में मेरे साथ बाले और सुधा थीं। मैं बैड देखते ही कॉटन के बैग पर पैर ऊंचे रख करके लेट गई। ताकि पैरों की सूजन उतर जाए। तुरंत ही प्रशाद के लिए बुलाया गया। बाले ने कहा,’’दीदी मैं आपके लिए यहीं प्रशाद ले आती हूं।’’ और चली गई। थोड़ी देर में बाले बहुत ही स्वादिष्ट कढ़ी चावल लाई और ठंडे पानी की बोतलें भी लाई। खाते ही नींद आने लगी पर सुधा की बातें प्यारी थीं। मैं रात दो बजे तक उनकी बातें, अनुभव सुनती रही। बाले सो गई थी। सुबह दोनों अपने रोज के समय उठीं, नहा कर पूजा पाठ भी कर चुकीं थीं। मेरे पैरों की सूजन भी उतर गई थी। बाले ने पूछा,’’आप दोनों के लिए चाय ले आउं!’’मैंने कहा,’’न न मैं तो वहीं बैठ कर चाय पिउंगी, जहां बनती है। बाहर बाजे बज रहे थे। मैं भी दर्शनों को जाने के लिए तैयार होने लगी। क्योंकि सब पवित्र ज्योति लेने जा रहे थे। पवित्र ज्योति के लिए सजा हुआ ज्योति बक्सा संचालक ने स्वयं सिर पर उठाया। आगे ध्वजा पीछे चंवर डुलाते सेवादार और यात्री मां के जयकारे बोलते। बाजों के साथ यात्रियों का नाचता, गाता, खुशी से झूमता काफिला, मां ज्वाला जी मंदिर की ओर प्रस्थान कर गया।

मैं ये पहली बार देख रही थी। और आज मुझे अपनी देर से सोकर उठने की आदत पर गुस्सा आ रहा था। धर्मशाला मंदिर के पास ही थी। मैं बाजे की आवाज की दिशा में चल पड़ी।
प्रवेश द्वार पर लिखा था ’ज्वाला माता प्रवेश द्वार, 12 वीं बटालियन डोगरा रेजिमेंट’ ये पढ़ते ही मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि मेरठ में मेरे स्कूल का नाम डोगरा रजिमेंट था। स्लोप के दोनों ओर प्रशाद, बच्चों के खिलौनों, खाने की और महिलाओं के श्रंगार के सामान की दुकाने थीं और रास्ते पर फाइबर की छत थी। जिससे श्रद्धालुओं को धूप और बरसात से परेशानी न हो। कुछ अस्थाई दुकानें जड़ी बुटियों और तरह तरह के तेल की शीशियों , पेड़ों की छाल से सजीं थीं। मैं रुक कर देखने लगी। मेरी आदत है कि यदि मैंने कुछ न खरीदना हो तो दुकानदार का समय नहीं खराब करती। पर ये दुकाने मुझे रुकने को मजबूर कर रहीं थीं। मैंने अब तक पढ़ा और देखा है कि पर्यटन से सबको लाभ होता है। मन में प्रश्न उठा कि  इसकी दुकान से दुकानदार और पर्यटकों को कैसे लाभ होता होगा? ऐसी ही एक दुकान के बाजू में एक बैंच था, मैं उस पर बैठ गई। मैंने देखा कि उस दुकानदार के पास हर चीज का इलाज था। यहां तक कि नज़र उतारने की भी किसी पौधे की जड़ थी। भीड़ तो नहीं लग रही थी उसकी दुकान पर, लेकिन जो भी चरक या धनवन्तरी को मानने वाला था वह उसे बिमारी बताता वो वैद्यराज  तुरंत उसे कुछ न कुछ देता। हमारी बस की भी एक महिला ने उसे कमर दर्द बताया, उसने उसे 300रु की शीशी दे दी। मैं फोटो लेने लगी वो बोली,’’इसमेें ऐसा वैसा कुछ नहीं है। जड़ी बूटियों का तेल है। जब भी दर्शन को आतीं हूं लेकर जातीं हूं।’’



वैद्य जी बोले,’’बड़ी मेहनत करनी पड़ती है इन दवाओं को बनाने के लिए जड़ी बूटियां खोजने में।’’ एक छाल तकरीबन हरेक दुकान पर बिक रही थी। वैद्य जी के पास से एक दिल्ली की महिला खरीदने लगी तो मैंने पूछा,’’ये किस काम आती है?’’ उन्होंने बताया कि इससे दांत साफ करने से दांत बहुत सुंदर लगते हैं। होंठों का रंग जैसे कॉफी शेड की लिपिस्टिक लगाने से होता है, वैसा लगता है।’’यानि ये छाल तो थ्री इन वन हो गई। इससे दांत मांजने से न ब्रश, न टूथपेस्ट चाहिए न ही लिपस्टिक लगाने की जरुरत। दिनेश शर्मा बोले,’’ये अखरोट की छाल ही तो है।

महिलाएं घरों में सखियों के साथ बतियाते हुए जो बुनती बनाती हैं। वो बिक रहे थे।

अब मेरे दिमाग में उठा हुआ प्रश्न भी बैठ गया और मैं भवन की ओर चल पड़ी। क्रमशः