जलपान करने के बाद परिसर में लगी प्रदर्शनी देखने चल दी। जिसका प्रवेश द्वार बहुत सुन्दर बनाया गया था।
प्रवेश करते ही होलिका दहन का दृश्य था। होलिका के स्थान पर मैं लकड़ियों में जाकर बैठ गई।
शहर का नाम भी हरि-द्रोही से हरदोई नाम पड़ा अर्थात जो भगवान से द्रोह करता हो। कहते हैं कि हिर्ण्याकश्यप्प ने अपने नगर का नाम हरिद्रोही रखवा दिया। उसके पुत्र प्रह्लाद जो भगवान विष्णु का भक्त था। उसने विद्रोह किया। पुत्र प्रह्लाद को दण्ड देने के लिए उसकी बहिन होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई। उसके पास एक जादुई चुनरी थी जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि में न भस्म होने का वरदान उसे प्राप्त था। ईश्वरीय वरदान के गलत प्रयोग के कारण, चुनरी ने उड़ कर प्रह्लाद को ढक लिया। होलिका जल कर राख हो गई। प्रह्लाद एक बार फिर ईश्वरीय कृपा से बच गया। होलिका के भस्म होने से उसकी राख को उड़ा कर खुशी मनाई। होलिकादहन के बाद अबीर गुलाल उड़ा कर खेले जाने वाली होली इस पौराणिक घटना का स्मृति प्रतीक है। आज भी यहां श्रवण देवी का मंदिर है और प्रहलाद कुण्ड है। एक यज्ञशाला भी है जहां होलिका प्रह्लाद को लेकर बैठी थी। पुराणों में उल्लेख है कि जब हिर्ण्याकश्यप को वरदान मिला था कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। अधिक मास अर्थात परषोतम मास भगवान विष्णु ने मानव के पुण्य के लिए ही बनाया है। प्रदर्शनी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। हरदोई के छोटे से अल्लीपुर में इस भव्य आयोजन में भारत दिखाई दिया। प्रदर्शनी सभी राज्यों के साहित्य परिषद के कार्यों का वैभव पूर्ण प्रदर्शन कर रही थी। सबसे अच्छा आइडिया मुझे पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ लगाने का तरीका लगा। ये मेरी अपनी सोच है कि पेड़ लगा कर उसके चारों ओर एक मीटर का घेरा छोड कर कुर्सी की ऊंचाई तक दीवार बना दी जाये तो यह बाउण्ड्री ट्री गार्ड का भी काम करेगी और बैठने के भी काम आयेगी इससे पेड़ के विकास में भी बाधा नहीं आयेगी। कुछ देर मैंने यहां लगाए केले के पेड़ के नीचे बैठ कर देखा। प्रदर्शनी देखते हुए बाहर आई तो निकास द्वार भी बहुत सुन्दर सजा रखा था।
11 बजे उद्घाटन सत्र था इसलिए सभागार में पहुंची। सभागार करोना को ध्यान में रख कर बनाया था जिसमें क्रास वैटिंलेशन लाजवाब था और सभागार का नाम ’अमर बलिदानी शहीद स्व. मेजर पंकज पाण्डेय’ रखा गया है। अधिवेशन का केन्द्रीय विषय था- ’साहित्य का प्रदेय’। इस अधिवेशन का उद्घाटन कन्नड़ के विख्यात उपन्यासकार पद्म पुरुस्कार से सम्मानित श्री एस. एल. भैरप्पा ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए श्री एस. एल. भैरप्पा ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा रही है। हमारे पास पौराणिक साहित्य का विपुल भण्डार है। रामायण आदि महाकाव्य हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य का उद्देश्य है जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठित करना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री स्वान्त रंजन ने कहा कि अंग्रेजों ने सुनियोजित तरीके से भारत एक राष्ट्र नहीं है और आर्य बाहर से आए हैं इत्यादि मनगढंत बातें फैलाई हैं। आज यह सब बातें असत्य सिद्ध हो चुकी हैं। भारत प्राचीन राष्ट्र है। शहर में रहने वाले, गांव, वनवासी और गिरिवासी सभी मूल निवासी हैं। उन्होंने कहा कि जैसे राष्ट्र और नेशन अलग हैं, उसी तरह धर्म और रिलीजन अलग है। आज आवश्यकता है इन सब बातों को हम साहित्य के विविध माध्यमों से समाज के सामने रखें। श्री रंजन ने साहित्यकारों का आह्वाहन किया कि सभी भारतीय भाषाओं का उन्नयन कैसे हो, इस पर काम करने की आवश्यकता है। दो बजे तक ये सत्र चला और सबको भोजन के लिए आमन्त्रित किया। अगला सत्र तीन बजे से था। क्रमशः