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Saturday 12 March 2022

सुन गौरां तेरे मायके का हाल, तेरी मां है कंगाल, तेरा बाप है कंगाल। नीलम भागी Utsav Manthan Neelam Bhagi

           


  मैं भी बहुत लंबी लाइन जो महाशिवरात्रि को मंदिर में लगी थी, उसमें जाकर लग गई। शिवरात्रि जिसे हमारे यहां बसंत के आने से भी जोड़ा जाता है। लोटे में पानी या दूध, बेलपत्र चावल, बेर आदि फल, धतूरे के फूल लेकर व्रती पूजा की प्रतीक्षा में खड़े थे। धीरे धीरे लाइन चल रही थी और मेरे दिमाग में विचार भी चल रहे थे। बारह ज्योर्तिलिंग जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र स्थल और केन्द्र हैं। वे स्वयंभू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है स्वयं उत्पन्न। इनमें से जहां भी गई, वहां एक वाक्य सुनने को मिला कि शिवरात्रि को यहां बहुत भीड़ रहती है। जहां मैं नहीं जा पाई अब उनके लिए दुखी होने लगी क्योंकि यहां जाना भारत को जानना है। फिर मन को समझाया कि मैं कौन सा मरने वाली हूं!! मुझे दर्शनों को जाना है तभी तो मैं कोराना से जंग जीती हूं। अब मेरी मैमोरी रिवर्स होने लगी। दूसरी लहर का प्रभाव कम हो रहा था और मैं भी स्वस्थ हो रही थी। दो साल से मेरी यात्रा बंद थी। अब व्हाटसअप पर यात्रा का मैसेज देखा, दिए नम्बर पर फोन किया वो बोले,’’हम आपको जानते हैं। मैं चल दी। छ बसे जा रहीं थीं, यहां मैं किसी को नहीं जानती थी। पर कुछ ही समय में ये शिवजी के भक्त मेरे एक बड़े परिवार की तरह हो गए थे।

  यात्रा में मेरा जाने का एक उसूल है ’’एटीटयूड घर में रख कर जाओ, जरुरी सामान ले जाना भूल न जाओ।’’ इस यात्रा में शिवजी का एक ही नाम था ’भोले’  

    शिवखोड़ी पर्वतीय यात्रा का मनमोहक रास्ता समृद्ध प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। कलकल बहते झरने, हर तरह के पेड़ पौधे कोई भी हरे रंग का शेड नहीं बचा था जो इन वनस्पतियों में न हो। सुबह बारिश हो चुकी थी इसलिए पेड़ पौधे नहाए से लग रहे थे। जहां भगवान शंकर जी ने वास किया है वो स्थान क्यों नहीं इतना सुन्दर होगा!! जन्नत ऐसी ही होती होगी!! यहां भोले शिवालिक पर्वतश्रृंखला में परिवार सहित रहे। यही गुफा शिवखोड़ी जम्मू कश्मीर के रयासी जिले में स्थित है। वैसे भी कश्मीर में शिवरात्रि का उत्सव तीन चार दिन पहले से और दो दिन बाद तक मनाया जाता है। मेरी आंखें बस से बाहर गढ़ी हुई थीं। जहां प्रकृति ने इतना सौन्दर्य बिखेर रखा हो!! इन सहयात्रियों को इससे कोई मतलब नही,ं बस भोले की भक्ति में लीन थे। कानों में श्रद्धालुओ के भजन सुनाई दे रहें थे मसलन 

’’सुन गौरां तेरे मायके का हाल, तेरी मां है कंगाल, तेरा बाप है कंगाल।’’ भोले शंकर गौरां के मायके को लेकर ताने मारते ही जा रहें हैं। मायके की बुराई तो कोई महिला नहीं सुनती! आखिर में पार्वती ने ’’काढ़ लिया घूंघट, फूला लिए गाल’’ और रुठ गयीं, फिर भोले ने बड़ी मुश्किल से मनाया।

    यहां भजनों को सुनते हुए शब्दों पर तो कोई बेवकूफ ही जायेगा। सरल भोला भाव, सुर ताल ऐसा कि मैं कभी भी नहीं नाचती पर उस समय मेरा दिल कर रहा था कि मैं भी सबके साथ, चलती बस में उठ कर नाचंू। खड़ताल, मंजीरा, तो मैं ढोलक की थाप के साथ इस यात्रा में बजाना सीख गई थी। मैं जानतीं थी कि ये मेरे सहयात्री, न कवि हैं, न गीतकार हैं, न ही साहित्यिक हैं। जो भी सरल शब्दों में भक्तिभाव से गाते हैं वोे इनके मन के उद्गार थे। जिसमें सबकी श्रद्धा से कोरस मिलने सेे बस के अन्दर अलग सा समां बंध जाता था। हां यदि श्रद्धा मापने का कोई यंत्र होता तो सबका माप एक ही आता। दक्षिण भारत आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं की लाइने लगी रहती हैं। उज्जैन में महाकालेश्वर और जबलपुर तिलवाड़ा में जाना अपना सौभाग्य समझा जाता है। भगवान शिव की जटाओं से उनकी पुत्री माँ नर्मदा की उत्पत्ति हुई है। अमरकंटक में घूमते हुए माँ की कहीं भी जलधारा मिल जातीं थीं इसीलिये कहते हैं ’नर्मदा के कंकर सब शिवशंकर।

    ब्ंागलादेश के चंद्रनाथ धाम जो चिटगांव के नाम से प्रसिद्ध है। वहां कहते हैं इस दिन अभिषेक करने से सुयोग्य पति पत्नी मिलते हैं। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में देश दुनिया से श्रद्धालू पहुंचते हैं।

’शिवरात्रि’ का अर्थ है भगवान शिव की महान रात्रि सभी हमारे हिन्दू उत्सव दिन में मनाये जाते हैं। पर इस पर्व में रात्रि के चारों पहर अभिषेक होता है। एक साधारण इनसान शिव के 28 अवतार, शिवपुराण नहीं जानता, उसे बस ये पता है कि भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए जैसा सुनता देखता है, वही उसकी पूजा की विधि बन जाती है। जिसे वह श्रद्धा से करता है और श्रद्धा से बुद्धि को बल मिलता है। तुलसीदास ने भी लिखा है 

शिवद्रोही मम दास कहावा सो नर सपनेहु मोहि नहिं पावा।

   1921 से पूरी दुनिया में 8 मार्च महिला दिवस उत्सव के रुप में मनाया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति प्रेम प्रकट करते हुए महिलाओं के कठिनाइयों के सापेक्ष उपलब्धियों को स्लोगन, भाषण, संदेश, लेखन, शायरी और निबंध द्धारा नागरिकों तक पहुंचाया जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा ’आट्टुकल पोंगाला’ महिला उत्सव अट्टुकल भवानी मंदिर तिरुअनंतपुरम केरल में मनाया जाता है। इन्हीं दिनों मलयालम महिना पंचाग के अनुसार तिथि निकलने पर दस दिन का केरल और तमिलनाडु में उत्सव आट्टुकल पोंगाला मनाया जाता है। ये अपना नाम दुनिया में महिलाओं का सबसे बड़ा जमावड़ा होने के कारण 2009 में गिन्नी बुक ऑफ वर्ड रिकार्ड में दर्ज करवा चुका है। जिसमें 25 लाख महिलाओं ने गुड़, नारियल, केले से पायसम बनाया। इसमें पुरुषों का प्रवेश मना है। कहते हैं ये 1000 साल पहले से मनाया जा रहा है। तमिल महाकाव्य ’सिलप्पथी कारम’ की मुख्य पात्र कन्नकी का यहां अवतार हुआ था। मुख्यदेवी कन्नकी को भद्रकाली के रुप में जाना जाता है। इनका एक नाम ंअटुकलाम्मा है। ऐसी मान्यता है दस दिवसीय उत्सव में देवी अटुकल मंदिर में रहती हैं। इनका जन्म भगवान शिव के तीसरे नेत्र से हुआ है। राजा पांडया पर कन्नकी की जीत का जश्न पोंगाला उत्सव है। इन दिनो तिरुवनंतपुरम उत्सव के रंग में रंग जाता है। श्रद्धा से देवी को आट्टुकाल अम्मा कहते हैं। महिलाएं वहीं पर उनको खीर बना कर अर्पित करती हैं। मंदिर के चारों ओर चूल्हे बने होते हैं। पुजारी मंदिर के गर्भग्रह से पवित्र अग्नि देता है। एक से दूसरा चूल्हा जलता है और वह सब पर फूल और पवित्र जल छिड़क कर आर्शीवाद देता है। यह फसल का पर्व है और इस दस दिवसीय उत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते हैं। जिसमें बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।    

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा से शुरू होने वाली विश्व प्रसिद्ध 84 कोसी(252किमी)  नैमिषारण्य परिक्रमा चक्रतीर्थ या गोमती नदी में स्नान करके गजानन को लडडू का भोग लगा कर यात्रा शुरु करते हैं। रोज आठ कोस पैदल चलते हैं। 15 दिन तक ये यात्रा चलती है। महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियां दान देने से पहले तीर्थो का दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी। इंद्र ने सभी तीर्थों को नैमिषारण्य में 5 कोस की परिधी में आमंत्रित कर स्थापित किया। महर्षि दधीचि ने सबके दर्शन करके शरीर का त्याग किया था। दूर दूर से श्रद्धालू परिक्रमा करने आते हैं। यात्रा में लोगों का प्यार और सहयोग बहुत मिलता है। भंडारा, चाय और पीने के पानी की व्यवस्था रहती है। बागों में रुकते हैं। कुछ यात्री अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। परिक्रमा में वे पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते, न लड़ते झगड़ते, न ही किसी की निंदा करते हैं। भजन कीर्तन चलता रहता है। मैं जब नैमिषारण्य गई तो कड़ाके की सर्दी थी। मंदिरों में दर्शन करते हुए जरा थकान होने लगती तो मुझे कल्पना में 84 कोसी नैमिषारण्य परिक्रमा करते श्रद्धालु दिखते और मेरी थकान उतर जाती। रामचरितमानस में भी लिखा है


तीरथ वर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिद्धि दाता। 

फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यात्रा सम्पन्न होती है। और....


बैर उत्पीड़न की प्रतीक होलिका मुहूर्त पर जलाई जाती है और प्रहलाद यानि आनन्द बचता है जिसे बहुत हर्षोलास से शिव के गण बने, एक दूसरे को शिव के बराती बनाते हैं। शिव की बारात(होली का जुलूस) निकालने के बाद सब नए कपड़े पहन कर एक दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं। जिसके लिए महिलाएं तीन चार दिन पहले से मीठे, नमकीन बनाकर तैयारी करती हैं। 18 अगस्त 1982 में जब मैं नौएडा में शिफ्ट हुई, तब हमारा ब्लॉक में पांचवा घर था और सभी अलग अलग प्रदेश से थे। हम सबने एक दूसरे के घर जाकर गुजिया, नमकीन, कांजी बड़े और जिसके यहां जो बनता था, बनवाने में मदद की और बनाना सीखा। साथ में इतना बतियाये कि आज हम सब बारह सेक्टर छोड़ चुके हैं पर होली ने हमें ऐसा जोड़ा कि हमारे बच्चों के परिवार भी एक दूसरे से मिलते हैं। मुंबई से लेकर कई राज्यों की होली देखी पर इस होली ने तो भारत एक जगह कर दिया था।  

यहां की पहली होली में सुबह उत्तराखंड की टोली के मधुर गीत से नींद खुली और बाहर आकर देखा सबके सिरों पर टोपियां थी एक हाथ में ढपली थी और स्लोमोशन में नाचते हुए गा रहे थे

’बेड़ू पाको बारह मासा, नरेली काफल पाके चैता मेरी छैला’

  सब उनका स्वागत व्यंजनों से करते और टोली में शामिल होते गए। जिस भी ब्लॉक या पास के सेक्टरों में गए, सबका चेहरा खुशी से खिल जाता था। अब ये टोली बड़े से टोले में तब्दील हो गई और एक बड़े पार्क में बैठ गई, कहीं से ढोलक भी आ गई थी। नौकरी के कारण अलग अलग राज्यों से आए नगरवासियों ने उसी पार्क में बरसाने की लठ्मार होली, कुमांऊ की बैठकी, हरियाणा की धुलैंडी जिसमें देवर भाभी को सताता है और भाभी धुलाई करती है। बंगाल में चैतन्य महाप्रभु का जन्मदिन जुलूस निकाल कर मनाते हैं वह भी मनाया। नवरंग और झनक झनक पायल बाजे, वी शान्ताराम की फिल्म के गीत और सिलसिला का लोकगीत रंग बरसे गीत, रसिया और जोगीरा सारा.. रा.. रा.. के सवाल जवाब से तो सांझी होली ने जीवन में रंग भर दिए। दक्षिण भारतीयों ने होलिका दहन की राख माथे पर लगाई तो सबने उन्हें सूखे रंगो से रंग दिया। नार्थ ईस्ट में मणिपुर की दंत कथा के अनुसार रुक्मणी को भगवान कृष्ण, आम भाषा में कहते हैं भगाकर ले गए थे। ज्यादातर इसी से संबंधित लोकगीत होते हैं और जहां कन्हैया हों वहां होली न हो ऐसा हो नहीं सकता!! वहां छ दिन पारंपरिक नृत्य लोक कथाओं पर चलते हैं। मणिपुरी नृत्य का कॉस्ट्यूम विश्व प्रसिद्ध है। इसलिए नार्थइस्ट वाले तालियों से साथ दे रहे थे।    

जिस उत्साह से हम उत्सव मनाते हैं, उसी तरह 20 मार्च विश्व गौरैया दिवस को आंगन में फुदकने वाली गौरैया को बचाने के लिए, महानगरों में रहने वाले आर्टीफिशियल घोंसला लगाते हैं।  

22 मार्च विश्व जल दिवस पर प्रण करना होगा ’न जल बरबाद करेंगे और न करने देंगे।’ इस माह का अंतिम उत्सव शीतला अष्टमी है, मौसम बदलता है इसमें ताजा प्रशाद नहीं बनता एक दिन पहले बनता है उसे बसोड़ा कहते हैं। वही देवी को भोग लगता है और दिनभर खाया जाता है। देवी से प्रार्थना की जाती है कि चेचक, खसरा आदि से बचाये। जल बचाएं, गौरेया बचाएं क्योंकि उत्सवों के रंग तो पर्यावरण के संग ही हैं।

नीलम भागी(लेखिका, पत्रकार, ब्लॉगर)

केशव संवाद के मार्च अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है


 



Thursday 17 February 2022

हरि-द्रोही से हरदोई भाग 3 नीलम भागी अखिल भारतीय साहित्य परिषद का त्रैवार्षिक अधिवेशन

 


जलपान करने के बाद परिसर में लगी प्रदर्शनी देखने चल दी। जिसका प्रवेश द्वार बहुत सुन्दर बनाया गया था।


प्रवेश करते ही होलिका दहन का दृश्य था। होलिका के स्थान पर मैं लकड़ियों में जाकर बैठ गई।

शहर का नाम भी हरि-द्रोही से हरदोई नाम पड़ा अर्थात जो भगवान से द्रोह करता हो। कहते हैं कि हिर्ण्याकश्यप्प ने अपने नगर का नाम हरिद्रोही रखवा दिया। उसके पुत्र प्रह्लाद जो भगवान विष्णु का भक्त था। उसने विद्रोह किया। पुत्र प्रह्लाद को दण्ड देने के लिए उसकी बहिन होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई। उसके पास एक जादुई चुनरी थी जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि में न भस्म होने का वरदान उसे प्राप्त था। ईश्वरीय वरदान के गलत प्रयोग के कारण, चुनरी ने उड़ कर प्रह्लाद को ढक लिया। होलिका जल कर राख हो गई। प्रह्लाद एक बार फिर ईश्वरीय कृपा से बच गया। होलिका के भस्म होने से उसकी राख को उड़ा कर खुशी मनाई। होलिकादहन के बाद अबीर गुलाल उड़ा कर खेले जाने वाली होली इस पौराणिक घटना का स्मृति प्रतीक है। आज भी यहां श्रवण देवी का मंदिर है और प्रहलाद कुण्ड है। एक यज्ञशाला भी है जहां होलिका प्रह्लाद को लेकर बैठी थी। पुराणों में उल्लेख है कि जब हिर्ण्याकश्यप को वरदान मिला था कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। अधिक मास अर्थात परषोतम मास भगवान विष्णु ने मानव के पुण्य के लिए ही बनाया है। प्रदर्शनी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। हरदोई के छोटे से अल्लीपुर में इस भव्य आयोजन में भारत दिखाई दिया। प्रदर्शनी सभी राज्यों के साहित्य परिषद के कार्यों का वैभव पूर्ण प्रदर्शन कर रही थी। सबसे अच्छा आइडिया मुझे पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ लगाने का तरीका लगा। ये मेरी अपनी सोच है कि पेड़ लगा कर उसके चारों ओर एक मीटर का घेरा छोड कर कुर्सी की ऊंचाई तक दीवार बना दी जाये तो यह बाउण्ड्री ट्री गार्ड का भी काम करेगी और बैठने के भी काम आयेगी इससे पेड़ के विकास में भी बाधा नहीं आयेगी। कुछ देर मैंने यहां लगाए केले के पेड़ के नीचे बैठ कर देखा। प्रदर्शनी देखते हुए बाहर आई तो निकास द्वार भी बहुत सुन्दर सजा रखा था।  

   11 बजे उद्घाटन सत्र था इसलिए सभागार में पहुंची। सभागार करोना को ध्यान में रख कर बनाया था जिसमें क्रास वैटिंलेशन लाजवाब था और सभागार का नाम ’अमर बलिदानी शहीद स्व. मेजर पंकज पाण्डेय’ रखा गया है।  अधिवेशन का केन्द्रीय विषय था- ’साहित्य का प्रदेय’। इस अधिवेशन का उद्घाटन कन्नड़ के विख्यात उपन्यासकार पद्म पुरुस्कार से सम्मानित श्री एस. एल. भैरप्पा ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए श्री एस. एल. भैरप्पा ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा रही है। हमारे पास पौराणिक साहित्य का विपुल भण्डार है। रामायण आदि महाकाव्य हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य का उद्देश्य है जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठित करना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री स्वान्त रंजन ने कहा कि अंग्रेजों ने सुनियोजित तरीके से भारत एक राष्ट्र नहीं है और आर्य बाहर से आए हैं इत्यादि मनगढंत बातें फैलाई हैं। आज यह सब बातें असत्य सिद्ध हो चुकी हैं। भारत प्राचीन राष्ट्र है। शहर में रहने वाले, गांव, वनवासी और गिरिवासी सभी मूल निवासी हैं। उन्होंने कहा कि जैसे राष्ट्र और नेशन अलग हैं, उसी तरह धर्म और रिलीजन अलग है। आज आवश्यकता है इन सब बातों को हम साहित्य के विविध माध्यमों से समाज के सामने रखें। श्री रंजन ने साहित्यकारों का आह्वाहन किया कि सभी भारतीय भाषाओं का उन्नयन कैसे हो, इस पर काम करने की आवश्यकता है। दो बजे तक ये सत्र चला और सबको भोजन के लिए आमन्त्रित किया। अगला सत्र तीन बजे से था। क्रमशः