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Monday 12 July 2021

टी. वी., मोबाइल के बिना जिंदगी नीलम भागी No Screen Day Neelam Bhagi

शाश्वत ने मुझसे पूछा,’’नीनो जब आप छोटी थीं, तब आपके मम्मी पापा भी आपको टी.वी. और मोबाइल आपकी मर्जी से नहीं देखने देते थे?’’मैंने जवाब दिया,’’तब मोबाइल नहीं, लैंडलाइन फोन होता था और ब्लैक एंड व्हाइट टी.वी था। जिसमें संडे को एक पिक्चर आती थी और बुद्धवार को आधे घण्टे का चित्रहार आता था।’’ये सुनते ही छोटे से अदम्य ने पूछा,’’आप पुअर थे, आपके पास इंटरनेट भी नहीं था!!’’जवाब में मैंने उसके मुंह पर हाथ फेर कर अपनी गोदी में बिठा लिया। शाश्वत का अगला प्रश्न,’’तब टाइम पास कैसे करते थे?’’मैंने बताया कि हमारी दादी का कहना था कि लड़कियों को खाली नहीं बैठना चाहिए इसलिए हम पढ़ने के साथ साथ सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, कुकिंग करते थे और समय निकाल कर किताबें पढ़ने का शौ़क़ पूरा करते थे। श्वेता काम करते हुए हमारी बातें सुन रही थी। इस शनिवार उसके बैंक की छुट्टी थी। सुबह उसने घोषणा कर दी कि आज नो स्क्रीन डे है। टी.वी., मोबाइल नहीं देखना, फोन सुन सकते हैं और गाने सुन सकते हैं। दिन तो बहुत बड़ा हो गया। जो सामने नहीं दिखता बच्चे उसकी जासूसी करने जाते कि वो छिप कर मोबाइल तो नहीं देख रहा है। बच्चों में एनर्जी बहुत ज्यादा होती है। वे शैतानियां कर रहे थे साथ ही, हे गुगल बोल के गाने सुन रहे थे। श्वेता उनके सामने फेंकने वाली प्लास्टिक की बोतलों से प्लांटर बनाने का सामान रख कर, उनसे सलाह मांगने लगी कि कैसे हम इन प्लास्टिक की बोतलों को रीयूज़ करके सुन्दर प्लांटर बना सकते हैं ताकि उसमें वाटर प्लांट लगा कर, एयर पॉल्यूशन कम करें। बच्चों को अपना आइडिया बताया। उन्होंने भी घ्यान से सुना। अब सिरैमिक पाउडर में ग्लू मिलाने का काम अदम्य करने लगा तो शाश्वत बोतल को पेंट करने लगा। एक बोतल पर पेंट होने पर श्वेता ने उस पर सिंपल पर बहुत प्यारा डिजाइन बना दिया, जिसे देख कर बच्चे बना सकते थे।


अब तो अदम्य और शाश्वत ने मोर्चा सम्भाल लिया। उन्हें तो खाने पीने, मोबाइल टी.वी किसी की याद भी नहीं रही। म्यूजिक सुनते हुए काम में मस्त। उन्होंने कबाड़ बोतलों को खूबसूरत प्लांटर में बदल दिया।




अब श्वेता ने उनमें छेद करके प्लास्टिक की मजबूत डोरी से बांध दिया और सब में आधा लीटर पानी भर दिया। अंकुर ने उनमें मनी प्लांट लगा कर लटका दिया। मजबूती का पूरा घ्यान रखते हुए, फिर भी ऐसी जगह लटकाया जहां कोई बैठता नहीं है। छोटे छोटे पौधे लगते ही ड्रॉइंगरूम अलग सा लगने लगा। और मुझे भी लगने लगा कि ’नो स्क्रीन डे सम्भव है।’