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Sunday 16 October 2016

पाण्डी करी, बैम्बूशूट करी, योद्धा संस्कृति, अतुलनीय प्राकृतिक सौंदर्य और विश्व स्तर की कॉफी का कूर्गCoorg यात्रा भाग 9 नीलम भागी यात्रा भाग 9 नीलम भागी

                                                                                                                                   
                                                                                                                             



डिनर के लिय तैयार हुए बग्गी आ गई। हल्की बरसात तो चल ही रही थी। फर्न ट्री रैस्टोरैंट मैन्यू का ध्यान से अध्ययन किया कि कूर्ग स्पेशल में कुछ छूटा तो नहीं, वही आर्डर किया। वेज़ में बैम्बू शूट करी रह गई थी, उसे भी आर्डर किया और पाण्डी करी तो प्रत्येक मील के साथ लाज़मी थी। इसमें काचमपुली का रस या उसका सिरका पड़ता है, जो केवल कूर्ग में ही उगता है और घने जंगलों के कारण जंगली सूअर भी यहाँ मिलता है। बैम्बू शूट डिश पहली बार सुनी, देखी थी इसलिये इसे सबने चखा। कहते हैं कि बैंबू 60-70 साल में केवल एक बार खिलता है। खूब स्वाद ले कर खाया। पुट्टु के बारे में बहुत मजेदार वाकया है। मुझे मीठा बहुत पसंद है। मैंने सफेद रसगुल्ला समझ कर पुट्टु को मुंह में डाला। लेकिन ये फीका था। बाद में पता चला कि इसे घी, मक्खन, शहद के साथ भी खा सकते। पुट्टु चपटे नूडल की तरह नूल पुट्टु, चावल के आटे से ये कई तरह के आकार में बनाये जाते हैं, जो मटन करी, पाण्डी करी के साथ खाये जाते हैं। सबसे आखिर में हम वहाँ से निकले। विला पहुँचे। 12 बजे केक काटा, खाया और उत्तकर्शिनी को बधाई दी। मैंने कहा,’’आज तो गंगा दशहरा है।’’इलाहाबाद में थे तो गंगा जी में नहाने जाते थे। नौएडा में गढ़मुक्तेश्वर या हरिद्वार मौका मिलने पर चल देते हैं। यहाँ तो पास में ही हमारे देश की पाँच पवित्र नदियों में शुमार दक्षिण की गंगा, कावेरी का उदगम स्थल, ताल कावेरी है, लक्ष्मणातीर्थ नदी के तट इरुप्पू फॉल्स है। यहाँ का तो कण कण पवित्र है। वीरों की भूमि है, जो श्रद्धेय होती है। राजीव बोले,’’ गंगा दशहरा का स्नान करके ही सोयेंगे।’’गीता तो चौबीस घण्टे तैयार रहती है। ये तीनों पूल में उतर गये। मैं तो सो गई। सुबह जल्दी निकलना था और आस पास के दर्शनीय स्थलों के दर्शन करने थे। यहाँ के रहन सहन, खान पान की अपनी पहचान है। साधारण देसी स्वादिश्ट मिठाइयाँ हैं। कच्चे केले के कटलेट आपको जगह जगह मिलेंगे। स्थानीय लोग मानसून में मांसाहार नहीं करते। उनका मानना है कि ये जानवरों का ब्रीडिंग सीज़न है। बारिश ज्यादा होने से कटहल आदि सब्ज़ियाँ खूब होती हैं। वे इनसे काम चलाते हैं। यहाँ का शहद उम्दा और कई तरह का है। अलग अलग सीज़न के फूलों के अनुसार। मसलन कॉफी के फूलों का शहद भी, कॉफी के फूल एक साथ चार से छ दिन रहते हैं। सोचों मक्खियाँ कितनी फुर्ती से पराग इक्ठ्ठा करती होंगी।    
मेडिकेरी महल, किला इसकी प्राचीर से मेडिकेरी शहर की शोभा निराली है। किले में एक पुरानी जेल, मंदिर और संग्राहालय है। ज्यादातर हिस्से में ऑफिस वगैरह हैं।  ओमकारेश्वर मंदिर राजा लिंगाराजेन्द्रा द्वारा बनाया 1820 में खूबसूरत मीनारों और गुम्बद वाला मंदिर है। , राजा की सीट यह नाम इसलिये पड़ा क्योंकि कोडगू के राजा अपनी शाम यहाँ बिताते थे। कॉफी बगानों से पतला संकरा बेहद खूबसूरत रास्ता यहाँ जाता है। यहाँ से हरी भरी घाटी और धुंध में छिपे पहाड़ों की सुन्दरता तो देखते ही बनती है।
इर्पू फाल्स दक्षिण कूर्ग में लक्ष्मणातीर्थ नदी जिस स्थान पर गिरती है उसका नाम है। सीता जी की खोज में भटकते हुए भगवान राम को प्यास लगी तो लक्ष्मण जी के तीर से इस तीर्थ का उद्गम हुआ। यहाँ का स्नान पाप नाशक है। शिवरात्री को श्रद्धालुओं की भीड बहुत़ होती है।      
  मेडिकेरी के बाजार में कॉफी, शहद, ंअंजीर मसाले, इलायची, काली मिर्च, अन्नानास के पापड़ और संतरे के भण्डार थे। कुर्गी सिल्क साड़ियाँ भी आर्कशण का केन्द्र थीं। ब्रहमगिरि की पहाड़ियों में भागमंडला मंदिर है। यहाँ से आठ किलामीटर की दूरी पर तालकावेरी है, कावेरी का उद्गम स्थल, मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुण्डिका है, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं। 17 अक्टूबर को कावेरी संक्रमणा का त्यौहार मनाया जाता है। जीवनदायिनी माता कावेरी ने दूर दूर तक कैसा अतुलनीय प्राकृतिक सौंदर्य बिखेरा है।  मैं लौट रहीं हूँ लेकिन कूर्ग तो दिल पर छा गया, मेरे साथ ही आ गया।