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Monday 6 June 2016

मुझे काले घोड़े ने ठगा!



मैं गेट के सामने बैठी अखबार पढ़ रही थी। इतने में मेरे कानों में तड़बक तड़बक की आवाज आने लगी। सामने देखा एक शानदार काला घोड़ा आकर रुका। उसके काले बाल ऐसे चमक रहे थे जैसे किसी हसीना के शैंपू और कंडीशनर किए हुए काले बाल हों। मेरे ज़हन में कविताओं में पढ़ा महाराणा प्रताप का चेतक घोड़ा आया। लेकिन इस चमकदार काले स्वस्थ घोड़ें पर तो एक मरियल सा लड़का सवार था। मैं हैरान होकर उसे देख ही रही थी कि उसने अपने हाथ में पकड़ें यू U शेप के लोहे के टुकड़ें को दिखा कर मुझसे पूछा,’’चाहिए।’’मैंने पूछा,’’ये क्या है?’’ उसने जवाब दिया,’’घोड़े की नाल।’’मैं बोली,’’लेकिन मेरे पास तो घोड़ा नहीं हैं।’’

उसने मुझे काले घोड़ें की नाल पर एक लैक्चर दे दिया। इस नाल का संबंध घोड़े से न होकर मुझसे था। मसलन मेरा शनि ग्रह खराब होगा, तो मेरे जीवन में क्या क्या संभावित दुर्घटनाएँ घटेंगी। जिसे सुनकर मैं डर गई। डर को मेरी शक्ल से टपकता देख, वह नाल दिखा कर बोला,’’इसकी अंगूठी पहनने से शनिदेव खुश हो जाते हैं।’’ अब वह शनिदेव की मुझ पर कृपा के फायदे बताने लगा। मुझे लगता है, जरूर उस समय मेरे चेहरे से खुशी टपक रही होगी। मैंने पूछा,’’नाल कितने की है।’’ वो बोला,’’चार हजार की।’’ जरा से लोहे के टुकड़ें की इतनी कीमत सुन कर मुझें बहुत जोर से झटका लगा। उसने मुझे समझाया कि ये आम घोड़ें की नाल नहीं है। ये है काले घोड़े की नाल। मुंबई में तो काला घोड़ा नाम का मेला भी लगता है। काला घोड़ा फैस्टिवल सुन कर मैं उसके जनरल नालिज़ से भी प्रभावित होने लगी। उसने बताया कि पहले नई चमचमाती नाल घोड़ें के पाँव में ठोकी गई। कई महीनों ये दौड़ा तब ये घिसी फिर नई नाल ठोकी तो ये पुरानी नाल मिली। मुझें चुप देख कर उसने अपने मैले कुर्ते की जे़ब से काले काले लोहे के छल्ले निकाल कर एक छल्ला  मुझे देकर बोला,’’ये अंगुठी आपको फिट बैठेगी। पाँच सौ की है। काले घोड़े की नाल से बनी है। जल्दी करो बारिश आने वाली है।’’ शनि महाराज की प्रसन्नता से होने वाले फायदों  के आगे तो पाँच सौ रुपयें कुछ भी नहीं है। मैं बदल बदल कर अपने नाप की अंगुठियाँ पहन कर देखने लगी। वो बारिश आने वाली है, का शोर मचा रहा था। मैं गुस्से से बोली,’’भीगने से तेरे घोड़ें को निमोनिया हो जायेगा क्या?।’’ इतने में बारिश तेज होने लगी। वो चेतक को ढकता हुआ गुस्से से बोला,’’लेना है तो लो वरना मैं चला।’’ जल्दी से मैंने उसे रुपयें दिये और अपना एक हाथ काले घोड़ें के गीले माथे पर और दूसरा हाथ उसकी गर्दन पर फेरा। झट से उसने रुपये जेब के हवाले किये और वो तेजी से ये जा वो जा । मैंने अपने हाथ को देखा हथलियाँ हल्की सी काली थी। मैं समझ गई कि उस पर रंग या सस्ती डाई की गई थी। जब तक चल जाये काला घोड़ा, जब रंग उतर जाये तो शादियों का घोड़ा। वो तो पाँच के पाँच सौ बना कर चला गया और मैं उसकी तस्वीर भी नहीं ले पाई। अब मैं अपनी काली हथेलियाँ देखते हुए सोच रहीं हूँ कि मैं ऐसी क्यूँ हूँ!
ये डाई वाला घोड़ा नहीं है।Add caption