Search This Blog

Thursday, 11 January 2018

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा आयोजित शोभा यात्रा और संस्कारधानी जबलपुर से परिचय, मसालेदार लज़ीज छाछ Akhil Bharatiy Sahitya Parishad dwara aayojit Shobha Yatra Jabalpur part 6

  शोभा यात्रा और संस्कारधानी जबलपुर से परिचय, मसालेदार लज़ीज छाछ   भाग 6
                                                             नीलम भागी
कचनार सिटी में शिवजी के दर्शन करके हम पैदल अधिवेशन स्थल की ओर चल पड़े। सड़क में छोटे से गड्डे के कारण मैं गिर पड़ी। पर कहीं चोट नहीं आई। अधिवेशन स्थल पर सभी साहित्यकार केसरिया पगड़ियों में नज़र आये। हमें भी पहनाई गई। लाइन में बसे और गाड़ियाँ खड़ीं थीं। कुछ साहित्यकार अपनी प्रादेशिक वेशभूषा में भी थे। बसों गाड़ियों ने यात्रा स्थल पर पहुँचा दिया। जहाँ अन्य बैण्ड बाजों के साथ जबलपुर की शान श्याम बैण्ड भी था। लोक कलाकार देशभक्ति के गीतों की धुनों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे। बग्गियों पर वरिष्ठ साहित्यकार थे। इस पद यात्रा में ही मुझे समझ आ गया कि विनोबा भावे जी ने जबलपुर को संस्कारधानी क्यों कहा! सड़क के दोनो ओर शहरवासी साहित्यकारों के सम्मान में खड़े थे। अविस्मरणीय यात्रा की शोभा अपने मोबाइल में कैद कर रहे थे। अपने अनमोल ग्रंथों को देख श्रद्धा से नमन कर रहे थे। हमारे प्राचीन कवि लेखक के रुप में बच्चे बैठे थे। महिलायें शंखनाद कर रहीं थीं। जगह जगह साहित्यकारों पर पुष्पवर्षा हो रही थी। ठण्डा पानी हर जगह उपलब्ध था। कहीं आइसक्रीम, समोसे आदि इतना सब कुछ खिला रहे थे कि अघा गये थे। पुराना घना बाजार, सामान से भरी हुई दुकाने थीं, जहाँ हर तरह का सामान बिक रहा था। पान की दुकाने थीं और पान के पत्तों को अलग बेचा जा रहा था। गुड़ की बहुत बड़ी बड़ी भेलियाँ थीं, जिन्हें टुकड़ों में करने के लिये बड़ा सुआ था। जिसे बहुत बड़े साफ सुथरे थाल पर सजा रक्खा था और उस पर मक्खी नहीं थी। पक्षियों के पिंजरे की भी दुकान थी। दुकानों में पीतल के भी बड़े बड़े बर्तन सजे हुए थे। ताजे फल सब्जियों की भी भरमार थी जिसे महिलायें भी बेच रहीं थी। अगले दिन करवाचौथ थी इसलिये करवे सजे हुए थे। रंगोली का सामान बिक रहा था। देसी मिठाइयाँ तिलपट्टी, मूँगफलीपट्टी, फेनी आदि भी बिक रहीं थी। मुझे घूमना बहुत अच्छा लग रहा था, मैं लोकनर्तकों के साथ उनका नृत्य देखती आगे चल रही थी। जहाँ वे रुकते मैं किसी भी दुकान के आगे खड़ी होकर देखने लगती, वे झट से मुझे बैठने को स्टूल दे देते। सायं छ बजे सब को गाड़ियों बसों द्वारा अधिवेशन स्थल पर पहुँचाया गया। जहाँ चाय नाश्ता और स्वादिष्ट छाछ थी। छाछ में गजब का स्वाद। मेरे घर में गाय पलती थी। मट्ठे में मैं तरह तरह के मसाले मिला कर, उसमें स्वाद देती थी, पर ऐसा स्वाद छाछ मैंने कभी नहीं पिया था। जब सब सैटल होने लगे, तब मैं छाछ को बघार देने वाले के पास पहुँची और उनसे इस स्वाद का राज जाना। मैं धीरे धीरे एक एक घ्ूँट पीती जा रही थी और उनकी बताई चीजों का स्वाद ले रही थी। उन्होंने बताया कि घी में सरसों डालें जब सरसों फूटफूट कर रोने लगे तब उसमें करी पत्ता, अक्खा लाल मिर्च डालो और इस बघार को छाछ में डाल कर काला नमक मिला दो। मैंने पूछा,’’और कुछ तो नहीं।’’ उन्होंने जवाब दिया,’’न न।’’इतने में मेरे मुँह में पतला सा हरी मिर्च का टुकड़ा आ गया। मैंने उसी समय मुँह से निकाल कर उन्हें दिखाकर उनसे पूछा,’’ये क्या है?’’वे बोले,’’हरी मिर्च’’ और हंसने लगे। मैं बोली कि हरी मिर्च डालनी क्यों नहीं बताई। वो बोले,’’भूल गये।’’मसाले वाली कुरकुरी लइया तो मुझे बहुत ही पसंद आई। सब थके हुए थे इसलिये बैठ कर सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने लगे। आदिवासियों का एक नृत्य था जिसके गाने के बोल में माँ नर्मदा का वर्णन था मुझे जो समझ आया वो ये कि नर्मदा जी में ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। श्याम बैण्ड की धुनों ने माहौल बदल दिया। कल जो कवि कविता पाठ नहीं कर पाये थे, आज उनको समय दिया गया। कविता पाठ शुरु हो गया। 120 कवियों ने कविता पाठ किया। 30 कवियों को सुन कर थकान से हमसे बैठा नहीं जा रहा था इसलिये भोजन करके हम डेरे आकर सो गये। क्रमशः