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Saturday, 4 May 2019

जूनागढ़ महिला आर्टस एवं कॉर्मस कॉलेज एवं श्री स्वामिनारायण गुरूकुल ज्ञानबाग गुजरात यात्रा भाग 6 नीलम भागी


जूनागढ़  महिला आर्टस एवं कॉर्मस कॉलेज एवं श्री स्वामिनारायण गुरूकुल ज्ञानबाग Junagarh Gujratगुजरात यात्रा भाग 6
नीलम भागी
राजकोट से साढ़े सात बजे हम बस से जूनागढ़ के लिए चल दिए। रास्ते में कपास की खेती नज़र आ रही थी। 102 कि.मी. की दूरी लगभग लगभग तीन घण्टे में पूरी कर हम महिला आर्टस एवं कॉर्मस कॉलेज पहुंचे। छात्राओं ने तिलक लगा कर स्वागत किया गया। हमने सरदार पटेल और संस्थापक की मूर्तियों पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये। पानी चाय कॉफी पीने के बाद हम हॉल में बैठे। सबका शॉल, हाथ से कते सूत की माला पहना कर और स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया। छात्राओं ने सराहनीय सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। संगोष्ठी के समापन पर हमें भोजन के लिये विशाल भोजनालय में ले जाया गया। यहाँ पता चला भोजन छात्राएं हीं बनाती हैं। वे ही परोस रहीं थीं। यहाँ छाछ में भूना पिसा धनिया और नमक डाल कर पिया जाता है। अति स्वादिष्ट खाना था। ढोकला बहुत ही स्पंजी था। इतना बड़ा कॉलिज परिसर था पर कहीं भी एक कतरा कूड़ा नहीं दिखा। यहाँ से बस में बैठे और श्री नाथ अतिथी गृह में पहुँचे। अपने कमरे में सामान रक्खा और थोड़ा आराम किया और बस द्वारा श्री स्वामिनारायण गुरूकुल ज्ञानबाग की ओर चल पड़े। विंडो सीट पर बैठी मैं शहर से परिचय करती जा रही थी। यहाँ कुछ भवन बहुत पुराने हैं। यहाँ हिन्दु, बौद्ध, जैन और मुस्लिम रहते हैं। इसलिये यहाँ बहुमूल्य  संस्कृृति और अनोखी स्थापत्य कला है। जूनागढ़ को दो भागों में देख सकते हैं। मुख्य शहर किले बंदी में है और अपरकोट ऊंचाई में प्राचीन दुर्ग है। मुस्लिम शासक बाबी नवाब के कई वंशों ने यहाँ पर राज किया है। ज्यादातर पुराने मकान छोटी ईंटो के बने थे। पहाड़ियां भी नजर आ रहीं थीं। गुरूकुल बहुत बड़े भू भाग में फैला हुआ था। आसपास खूब पेड़ थे वे जंगल का आभास दे रहे थे। नाम गुरूकुल है लेकिन किसी भी नामी पब्लिक स्कूल से भवन और सुविधाओं में कम नहीं है। स्वस्थ अनुशाषित बच्चे जो बहुत खुश लग रहे थे। हमने पूरा परिसर घूमा। प्रदूषण का तो नामोनिशान नहीं था। एक हाल में बहुत बड़ा छत का पंखा था। इतना बड़ा पंखा मैंने पहली बार देखा। आप भी तस्वीर में देख सकते हैं। बेसमेंट के विशाल हॉल में हम संगोष्ठी के लिये बैठे। छात्रों ने हमें गुलाब के फूल भेंट किये। जिस मोहने से बच्चे ने मुझे दिया, मैंने उस गुलाब को अपनी सूत की माला से बांध लिया। मैंने उससे पूछा कि उसे घर की याद आती है। उसने जवाब में कहाकि घर जाने पर गुरूकुल के साथी याद आते हैं। महिलाओं को कहा कि आप जलपान के लिये आएं। हम ऊपर के हॉल में गये। मैंने पूछा हमारे पुरूष साथी जलपान नहीं करेंगे। जवाब मिला कि स्वामी जी महिलाओं से दूर रहते हैं। हमें बहुत स्वाद फाफड़े और बेसन के लड्डू और चाय पिलाई। वैसे लड्डू सिर्फ वहीं खाने को मिले या राजकोट के श्री स्वामिनारायण मंदिर के प्रशाद के डिब्बे से निकले थे। मैंने हरी र्मिच के साथ फाफड़ा और साथ में मसाला चाय का आनन्द उठाया। अब हमारे साथी भी आ गये। वे जलपान करने लगे। हम वहाँ आस पास के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखते रहे। सबके आते ही बस में बैठे और गोरक्षनाथ आश्रम की ओर चल दिये। क्रमशः













Thursday, 11 January 2018

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा आयोजित शोभा यात्रा और संस्कारधानी जबलपुर से परिचय, मसालेदार लज़ीज छाछ Akhil Bharatiy Sahitya Parishad dwara aayojit Shobha Yatra Jabalpur part 6

  शोभा यात्रा और संस्कारधानी जबलपुर से परिचय, मसालेदार लज़ीज छाछ   भाग 6
                                                             नीलम भागी
कचनार सिटी में शिवजी के दर्शन करके हम पैदल अधिवेशन स्थल की ओर चल पड़े। सड़क में छोटे से गड्डे के कारण मैं गिर पड़ी। पर कहीं चोट नहीं आई। अधिवेशन स्थल पर सभी साहित्यकार केसरिया पगड़ियों में नज़र आये। हमें भी पहनाई गई। लाइन में बसे और गाड़ियाँ खड़ीं थीं। कुछ साहित्यकार अपनी प्रादेशिक वेशभूषा में भी थे। बसों गाड़ियों ने यात्रा स्थल पर पहुँचा दिया। जहाँ अन्य बैण्ड बाजों के साथ जबलपुर की शान श्याम बैण्ड भी था। लोक कलाकार देशभक्ति के गीतों की धुनों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे। बग्गियों पर वरिष्ठ साहित्यकार थे। इस पद यात्रा में ही मुझे समझ आ गया कि विनोबा भावे जी ने जबलपुर को संस्कारधानी क्यों कहा! सड़क के दोनो ओर शहरवासी साहित्यकारों के सम्मान में खड़े थे। अविस्मरणीय यात्रा की शोभा अपने मोबाइल में कैद कर रहे थे। अपने अनमोल ग्रंथों को देख श्रद्धा से नमन कर रहे थे। हमारे प्राचीन कवि लेखक के रुप में बच्चे बैठे थे। महिलायें शंखनाद कर रहीं थीं। जगह जगह साहित्यकारों पर पुष्पवर्षा हो रही थी। ठण्डा पानी हर जगह उपलब्ध था। कहीं आइसक्रीम, समोसे आदि इतना सब कुछ खिला रहे थे कि अघा गये थे। पुराना घना बाजार, सामान से भरी हुई दुकाने थीं, जहाँ हर तरह का सामान बिक रहा था। पान की दुकाने थीं और पान के पत्तों को अलग बेचा जा रहा था। गुड़ की बहुत बड़ी बड़ी भेलियाँ थीं, जिन्हें टुकड़ों में करने के लिये बड़ा सुआ था। जिसे बहुत बड़े साफ सुथरे थाल पर सजा रक्खा था और उस पर मक्खी नहीं थी। पक्षियों के पिंजरे की भी दुकान थी। दुकानों में पीतल के भी बड़े बड़े बर्तन सजे हुए थे। ताजे फल सब्जियों की भी भरमार थी जिसे महिलायें भी बेच रहीं थी। अगले दिन करवाचौथ थी इसलिये करवे सजे हुए थे। रंगोली का सामान बिक रहा था। देसी मिठाइयाँ तिलपट्टी, मूँगफलीपट्टी, फेनी आदि भी बिक रहीं थी। मुझे घूमना बहुत अच्छा लग रहा था, मैं लोकनर्तकों के साथ उनका नृत्य देखती आगे चल रही थी। जहाँ वे रुकते मैं किसी भी दुकान के आगे खड़ी होकर देखने लगती, वे झट से मुझे बैठने को स्टूल दे देते। सायं छ बजे सब को गाड़ियों बसों द्वारा अधिवेशन स्थल पर पहुँचाया गया। जहाँ चाय नाश्ता और स्वादिष्ट छाछ थी। छाछ में गजब का स्वाद। मेरे घर में गाय पलती थी। मट्ठे में मैं तरह तरह के मसाले मिला कर, उसमें स्वाद देती थी, पर ऐसा स्वाद छाछ मैंने कभी नहीं पिया था। जब सब सैटल होने लगे, तब मैं छाछ को बघार देने वाले के पास पहुँची और उनसे इस स्वाद का राज जाना। मैं धीरे धीरे एक एक घ्ूँट पीती जा रही थी और उनकी बताई चीजों का स्वाद ले रही थी। उन्होंने बताया कि घी में सरसों डालें जब सरसों फूटफूट कर रोने लगे तब उसमें करी पत्ता, अक्खा लाल मिर्च डालो और इस बघार को छाछ में डाल कर काला नमक मिला दो। मैंने पूछा,’’और कुछ तो नहीं।’’ उन्होंने जवाब दिया,’’न न।’’इतने में मेरे मुँह में पतला सा हरी मिर्च का टुकड़ा आ गया। मैंने उसी समय मुँह से निकाल कर उन्हें दिखाकर उनसे पूछा,’’ये क्या है?’’वे बोले,’’हरी मिर्च’’ और हंसने लगे। मैं बोली कि हरी मिर्च डालनी क्यों नहीं बताई। वो बोले,’’भूल गये।’’मसाले वाली कुरकुरी लइया तो मुझे बहुत ही पसंद आई। सब थके हुए थे इसलिये बैठ कर सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने लगे। आदिवासियों का एक नृत्य था जिसके गाने के बोल में माँ नर्मदा का वर्णन था मुझे जो समझ आया वो ये कि नर्मदा जी में ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। श्याम बैण्ड की धुनों ने माहौल बदल दिया। कल जो कवि कविता पाठ नहीं कर पाये थे, आज उनको समय दिया गया। कविता पाठ शुरु हो गया। 120 कवियों ने कविता पाठ किया। 30 कवियों को सुन कर थकान से हमसे बैठा नहीं जा रहा था इसलिये भोजन करके हम डेरे आकर सो गये। क्रमशः