एक परिवार अपने रेस्टोरेन्ट में नाष्ते की तैयारी कर रहा था। हमने उनसे नाष्ते के लिये कहा। जवाब में उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी तो चाय और पोहा बन सकता है। हमने कहा,’’चलेगा।’’ उन्होनें झटपट बनाना षुरू किया। जितनी देर में हमने पोहा खाया और चाय पी उस घर की महिलाओं ने बटाटा और कांधा की भजिया तल दी। हम भजिया का स्वाद ले ही रहे थे कि साथ ही एक साँड का हृदय विदारक विलाप शुरू हो गया। मैं बोली,’’ लगता है साँड आपस में लड़ रहे हैं। कोई इन पर पानी डाल दे तो ये भाग जायेंगे।’’मेरी सलाह सुनते ही, रैस्टोरैंट मालिक बोला,’’ये न गाड़ी के जाते ही यह चुप हो जायेगा।’’मैंने पूछा,’’गाड़ी से इसके रोने का क्या संबंध है?’’उसने बताया कि इसकी माँ यहीं बिजली के खंभे से सींग खुजला रही थी। करंट लगा और वह मर गई। रात भर यह उसकी डैड बॉडी के पास बैठा रहा। सुबह यह कूड़ा उठाने वाली गाड़ी आई और इसकी माँ को ले गई। तब से रोज जब यह गाड़ी यहाँ डस्टबिन से कूड़ा लेने आती है। ये कहीं भी हो गाड़ी के पास आकर ऐसे ही रोता है। जैसे दूध पीता बछड़ा हो। हम नाष्ता कर चुके थे। पेमैंट करके बाहर आये। थोड़ी दूरी पर देखा सफाई कर्मचारी कूड़ा भर रहे थे। साँड की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे और वह गले से विलाप कर रहा था। बार बार गाड़ी से मुँह लगा रहा था, मानों पूछा रहा हो," मेरी माँ को कहाँ छोड़ आये?" माँ तो माँ ही होती है। बछड़े से साँड होने पर भी जिसे वह भूला नहीं पाया था।