नीलम भागी
हमें अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ जाना था। ड्राइवर ने बताया कि ये दूरी 430 किमी. है और कम से कम आठ घण्टे का समय लगेगा। बस में बैठ कर, मेरा तो एक ही काम रहता है, खिड़की से बाहर देखते रहना और वो मैं देखती ही रही। सब आपस में बतियाते रहे फिर बस में शांति हो गई। इतने में देवेन्द्र वशिष्ठ उठे और उन्होंने बस में सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूवात कर दी और संचालन अंजना अंजुम को सौंप दिया। अंजना अंजुम ने सबसे पहले देवेन्द्र वशिष्ठ को कुछ सुनाने के लिये आमंत्रित किया। उन्होंने लक्ष्मण मूर्छा के संदर्भ में भजन गाया और एक देवी का गाया। पूनम माटिया ने शेर सुनाये। मनोज शर्मा ’मन’ ने अपनी रचनाएं सुनाईं। बाबा कानपुरी ने छंद सुनाये। अंजना अंजुम ने कवितायें और ब्रज की शैली में भजन गाये। सब ताली बजा कर उनके साथ गाने लगे। के.के. दीक्षित जी ने कब्ज और हाज़त रफा पर किसी शायर के शेर सुना कर हंसने पर मजबूर कर दिया। बीच बीच में जे. पी. गौड़ और त्यागी जी सबको कुछ न कुछ खाने को देते रहे। अंजना को कुछ सुनाने के लिये बुलाया, उसे लगा कि भजनों की कुछ ओवरडोज़ हो गई है। इसलिये उसने अपने जन्म से पहले के फिल्मी गीत गाने शुरू किये मसलन जवां है मौहब्वत, हंसी है ज़माना, शोला जो भड़के, दिल मेरा धड़के आदि। गाने के शौकीनों ने साथ दिया। मैं और अन्य साथी बहुत अच्छे श्रोता रहे। अंजना अंजुम ने कुशल संचालन किया। समापन के कुछ समय बाद ड्राइवर ने गाड़ी परफैक्ट परोंठा हाउस नेशनल हाइवे गोनडल पर रोक दी। सबने अपने मोबाइल चार्जिंग के लिये दिये। पता नहीं वो कितने प्वाइंट लगा कर बैठा था, सबके लगा दिये। देवेन्द्र वशिष्ठ ने सबसे पूछा कि लंच में क्या होना चाहिये। सबने गुजराती थाली की डिमाण्ड की। कई तरह की रोटियां, मक्का, बाजरा, बाजरी रोटलो, पूरी, भाखरी, परांठे, पूरन पोली, थेपला, रिंगना मेथी नो शाक, खट्टी मीठी दाल, उंधयू, भिंडी सांभरिया, बटेटा रसीला, स्टीम्ड बासमती राइस, बादशाही खिचड़ी, पुलाव, बटेटा सूखी भाजी, ढोकला, समोसा , सेव भाजी, कचूंबर सलाद, कढ़ी, पापड़, कई तरह की चटनियां, छास, पनीर भाजी और फ्रूट क्रीम। सब अनलिमिटिड। मैं अंजना एक टेबल पर खाने बैठे, जूठा हम छोड़ते नहीं हैं इसलिये हमने खाली थाल और कटोरियां ली। इतनी वैरायटी थोड़ा थोड़ा लेने पर ही पेट बुरी तरह भर गया। सब कुछ स्वाद था। लेटने को तो था नहीं आगे फिर सफ़र। अब सब बस में उंघ रहे थे। मुझे तो बिस्तर पर ही नींद आती है। मैं फिर बाहर देखती रही। सायं पांच बजे एक रैस्टोरैंट पर बस रूकी। मैं चाय लेकर बाहर आ गई। सामने हाइवे था। दोनो चौड़ी सड़को के बीच में थोड़ी सी कच्ची जगह थी। वहाँ एक परिवार बैठा कुछ कर रहा था। फिर सब खड़े हो गये। मैंने एक आदमी से पूछा कि ये लोग वहाँ क्या कर रहें हैं? उस आदमी ने बताया कि यहाँ पर इस परिवार के कुल देवता थे। हाइवे बनने पर यह जगह छोड़ दी गई है। कोई भी शुभ काम होने पर ये यहाँ पूजा करने आते हैं और मैं इनका ड्राइवर हूं। तेजी से गुजरते वाहनो वाली सड़क को उन लोगो ने बड़ी मुश्किल से पार किया। तब तक साथी बस में आ गये, बस चल पड़ी अहमदाबाद की ओर।