नीलम भागी
आज डी. टी. सी की बस में टिकट लेने लगी तो कण्डक्टर ने गुलाबी टिकट दी। मैंने पूछा,’’कितने की?’’ उसने कहा कि आज से महिलायें मुफ्त यात्रा करेंगी। अब मैं सीट के लिए देखने लगी तो कोई सीट खाली नहीं थी। लगभग सभी सीटो पर महिलायें और छोटे बच्चे थे और कुछ महिलायें बच्चों के साथ खड़ीं भीं थी। मुझे महिलायें चहकती हुई नज़र आ रहीं थीं। लेकिन बच्चे फुदक रहे थे। बस के अंदर अजीब सा शोर था। जोर जोर से वे बतिया रहीं थीं। बीच बीच में शोर के कारण वे बच्चों को चीख कर कहतीं,’’नीचे मत उतर जाना, बस के अंदर ही रहना’’ फिर बातों में मशगूल हो जातीं। किसी स्टैण्ड पर एक दो पुरुष सवारी उतरती, साथ ही तीन चार महिलायें चढ़ जातीं। कुछ शैतान लड़के आपस में बोलते,’’स्टाफ बहुत बढ़ गया है।’’ मुझे याद आया कि जब कोई सवारी टिकट नहीं लेती तो कनडक्टर उसे टिकट लेने को कहता तो वो एक शब्द में जवाब देता ’स्टाफ’ फिर कण्डक्टर कुछ नहीं कहता। सवारियां समझ जातीं कि फ्री का सवार स्टाफ है। मैं बीच में खड़ी महिलाओं की बातों का आनन्द ले रही थी। अब उनकी सारी प्लानिंग इधर से उधर और उधर से इधर जाने के बारे में थी। अचानक एक अधेड़ महिला अपनी सखियों से बोली,’’अगर सरकार कुम्भ के मेले में रेल की टिकट हमारे लिए मुफ्त कर देती तो हम भी कुम्भ नहा आतीं।’’ अब सब ऐसे दुखी हो गईं जैसे उनसे कुछ छीन लिया गया हो। मैं भी सोचने लगी कि अगर सरकार कुम्भ के मेले में महिलाओं के लिए यात्रा मुफ्त कर देती तो देश की लगभग सारी महिलायें तीर्थयात्री हो जातीं। अचानक देखा, मेरा स्टॉपेज़ कब का पीछे छूट गया था!! कोई परवाह नहीं। कौन सा मेरी जेब से पैसा लगा है? अगले स्टॉप पर उतर कर दूसरी बस से वापिस आ जाउंगी। फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन।