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Thursday, 23 July 2020

ऐसे तो न देखो!! नीलम भागी Aise Toh Na Dekho Neelam Bhagi


शाम के समय मैं अकसर अपने गेट के सामने कुर्सी पर बैठ जाती हूं। मेरे घर के आगे से जो भी गुजरता है वो मुझे बड़ी हिकारत से देखता हुआ निकलता है। मैंने बड़ा इसका कारण खोजा। काफी माथा पच्ची करने के बाद भी न समझ सकी। अचानक सामने रहने वाली भाभी जी मुंह पर मास्क लगाये आई और दो मीटर की दूरी रख कर 91वें वर्ष में मेरी अम्मा को झाड़ू लगाते देख कर बोलीं,’’दीदी, हम तो अम्मा जी के कारण बहुत मोटीवेट होते हैं। जिस दिन लॉकडाउन शुरु हुआ था, हमें तो चिंता हो गई थी कि मेड के बिना कैसे काम चलेगा? अब काम तो करना ही था। अचानक मुझे याद आया जनता कर्फ्यू के दिन 22 मार्च को शाम 5 बजे आप सब बर्तन पीट रहे थे और अम्मा जी सबसे बेख़बर, आंगन में झाड़ू लगा कर पेड़ के पत्तों का ढेर लगा रहीं थीं। ढेर लगा कर वे अंदर चली गईं। आपने हमेशा की तरह कूड़ा डस्टबिन में डाल दिया। ये याद करके मैं भी अपने काम में लग गई।" हम दोनों घरों ने मिल कर तीन पार्ट टाइम मेड रक्खी हैं। जब भी कोई नहीं आती तो दोनों उसका काम कर देती हैं। हमें कभी मेड की परेशानी नहीं हुई। उनके जाते ही मुझे लोगों के देखने का नज़रिया समझ आ गया कि मैं कुर्सी पर बैठी होती हूं और मेरी बूढ़ी मां झाड़ू लगा रही होती है। अम्मा कभी खाली नहीं बैठती थीं। न किसी को काम कहतीं थीं। मंदिर उन्होंने सबसे ऊपर छत पर बना रखा था। वे भाभियों के स्कूल से आने के बाद खाना पानी और अमर उजाला अखबार और मेरी साहित्य एकेडमी से लाई किताब लेकर छत पर चलीं जातीं। वहीं वे पूजा पाठ करके शाम को उतरतीं। नीचे जो फालतू सामान होता, उसे तुरंत ऊपर रख आती। जब किसी को जरुरत होती तुरंत ले आती। चार साल पहले उन्हें चिकनगुनिया हो गया। बड़ी मुश्किल से बचीं। जरा सी हिम्मत आते ही सहारे से आंगन में आकर पेड के नीचे लेट गई। अब टी.वी. देखना, दूसरी किताबें पढ़ना बंद कर दिया है। बाल खुद से नहीं संभलते इसलिये एक मीटर लम्बी चोटी कटवा दी। सुबह दस बजे तक धार्मिक किताबें पढ़ कर बाहर पेड़ के नीचे लेटी, बैठी रहती हैं। जब से अमर उजाला अखबार शुरु हुआ तब से उसे ही पढ़ती हैं। कभी वैण्डर दूसरा अखबार दे जाये तो उनका मूड ख़राब हो जाता है। फिर मैं बाजार से उन्हें अमर उजाला लाकर देती हूं। धीरे धीरे नाश्ता करती हैं। ग्यारह बजे से अखबार उनकी हो जाती है। शाम तक वे उसकी एक भी लाइन पढ़े बिना नहीं छोड़ती। बांहे दुख जाती हैं। तो रैस्ट कर लेतीं हैं। लॉकडाउन में जब अमर उजाला नहीं आया तो दुखीं थीं। टी. वी. में खबरें सुन कर, देख कर कहती,’’ अखबार पढ़ने का स्वाद अलग होता।’’ लाल सिंह ने अमर उजाला अखबार पहुंचाई। पढ़कर बहुत खुश हुईं। ढेरों आर्शीवाद देकर बोलीं,’जो भी अखबार देने आता है। उसे मना कर दे। कोरोना पूछ कर नहीं आयेगा। मुझे अपने जीवन के अंतिम चरण में ऐसा महामारी काल देखना है तो बिना अखबार के भी रह लूंगी।’’हमने मना कर दिया। एक हाथ में डण्डी और दूसरे में झाड़ू लेकर शाम को आंगन जरुर बुहारती हैं। शुरु में मेड ने उनके हाथ से झाड़ू लेने की कोशिश की। उसे कहा,’’बेटी बैठे रहने से मेरे हाथ पैर बिल्कुल रह जायेंगे।’’डॉक्टर ने मुझे कहा कि ये इनकी बोनस उम्र है, जैसे करती हैं करने दो। अब वे धुले कपड़े जैसे जैसे सूखते जायेंगे, उन्हें उतार कर तह लगा देतीं हैं। कहीं से उधड़ा हो या बटन टूटा हो तो अपने आप सुई में धागा डाल कर रिपेयर कर देतीं हैं। वैण्डर अखबार रैगुलर लाने लगा है। उनकी दिनचर्या पहले जैसी हो गई है। जो घर के आगे से गुजरते हुए, अम्मा को शाम को झाड़ू लगाते और मुझे कुर्सी पर बैठे देखता है। उसका ऐसे देखना लाज़मी है।