अपने हाथ से उगाई सब्ज़ी से बहुत मोह हो जाता है। जैसे मेरे उगाये करले, मुझे कड़वे नहीं लगते। उन्हें मैं छिलती भी नहीं, बिना छीले बनाती हूं। बागवानी की शुरुवात तो मैंने गमले में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां उगाने से की थी। मेरे पास एक 20’’ का गमला था। पहली बार तोरई उगा रही थी इसलिये इसमें मैंने कोई प्रयोग नहीं किया था। 70% मिट्टी में 30% गोबर की खाद और थोड़ी सी नीम की खली मिला कर, गमले के छेद पर ठिकरा इस तरह रखा कि फालतू पानी निकल जाए। फिर गमले में ये बनाई हुई मिट्टी भर दी। उसमें एक इंच गहरा अंगुली से गड्ढा करके हाइब्रिड तोरई के बीज हल्के हाथ से अलग अलग 5 जगह दबा दिए और पानी छिड़क दिया। गमले को ऐसी जगह रखा, जहां कम से कम पांच घण्टे धूप आए। सात दिन बाद बीजों का अंकूरण हो गया। एक महीने बाद उसमें से धागे निकलने लगे तो मैंने ग्रिल से डोरी लटका दी और बेल के साथ छोटी सी डण्डी गाड़ दी और उससे डोरी लपेट दी। बेल उससे लिपट कर दीवार पर चढ़ गई। सफेद दीवार पर हरी बेले बहुत सुन्दर लग रहीं थीं।
एक दिन मेरी बेलों से पत्ते गायब थे। हमारे ब्लॉक में पशु आ ही नहीं सकता र्गाड जो है। पार्क में बाइयां बतिया रहीं थीं। मैंने उनसे तोरई के पत्तों के पत्तों के बारे में तफतीश की।
उन्होंने बताया कि अमुक देश की कामवालियां लौकी, तोरी, कद्दू सबके पत्तों की सब्जी बना लेतीं हैं। जिस देश का उन्हों ने नाम लिया मैंने गार्ड से पता लगाया कि वे कौन से घरों में उस देशवालियां काम करती थीं, पता चला कि वे पांच घरों में काम करतीं थी। मैं उसे मिली और उन्हें कहा कि तुम इस ब्लॉक में नई आई हो और मेरी बेलों से पत्ते गायब हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अब वे नहीं तोड़ेंगी। मैं पंद्रह दिन में उनकी गुड़ाई करती, खाद लगाती। जरा सा पत्तें में छेद देखते ही, नीम के तेल का स्प्रे करती। दो महीने दस दिन बाद उसमें पीले फूल आ गये। साथ ही तरह तरह के कीट, मधुमक्खियां आने लगी। मेल फीमेल दोनों तरह के फूल मैं देखती। तोरियां भी लगने लगी। पहली बार दो बेलों से बहुूत प्यारी सात तोरियां उतारीं।
इन तोरियों को धोकर जब मैं छील रही थी तो इनके मुलायम छिलके भी मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे। मैंने छिलके रख लिए। सब्जी़ जैसे तोरी की बनाती हूं बनाई। प्रेशर कूकर में प्रेशर बनने पर आंच बिल्कुल धीमी कर दी। पांच मिनट के बाद गैस बंद कर दी। पै्रशर खत्म होने पर खोला। तोरई में तो पानी डालते ही नहीं हैं। ये मोह से उगाई तोरई की तो मैंने भाप भी कूकर की सीटी से नहीं निकलने दी। वो भी ग्रेवी में बदल गई। अच्छी तरह कलछी चलाई। छिलकों में मैंने काट कर दो प्याज डाले, स्वादनुसार नमक, अजवाइन और सौंफ पाउडर डाल कर मिक्सी में बारीक पीस लिया और परात में निकाल लिया। इसमें आटा डालती जा रही थी और जैसा पूरी के लिए लगाते हैं वैसा सख्त लगाया। क्योंकि नमक के कारण ताजी मोह की तोरी और प्याज पानी छोड़ेंगे। इसलिए पानी बिल्कुल नहीं डाला। हरी हरी फूली फूली मोह से उगाईं ताजी तोरियों के छिलकों की पूरियों के साथ तोरी की सब्जी का साथ, बहुत ही लाजवाब था। बाजार से खरीदी तोरी के छिलके तो कम्पोस्ट में जाते हैं। उनसे मोह जो नहीं होता। अब किचन वेस्ट के ऊपर तैयार की गई मिट्टी डालकर उगाती हूं।