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Monday 5 October 2020

सब मैनेज हो जाता है! जीने की कला भाग 2 नीलम भागी The Art Of Living Neelam Bhagi


 चीनू वहीं सोती बैठती, बहुत ही आज्ञाकारी है, सरोज के बुलाने पर तुरंत नीचे आती। अब शाम को संजीव दुकान पर जाते तभी बेटू चीनू को घुमाने ले जा पाता। संजीव रिटायर हो गए। उन्हें तो समय से ऑफिस जाने की आदत है। अब वे दुकान समय से खोलते हैं। सरोज को बाइयों से काम लेने की आदत है, वही  उनसे काम लेती। चीनू ने भी उन्हें पोता पोती दिए। सरोज भी रिटायर हो चुकी थी। उसे भी 9 से 5 सीट पर बैठने की आदत थी। चीनू ने उनकी आदत नहीं बिगड़ने दी। पहले दिन ही सरोज को कहा कि मम्मी जी आपको दोपहर में कोई काम तो होता नहीं हैं। आप शॉप पर चले जाया करो तो पापा जी घर में रैस्ट कर जाया करेंगें। सरोज चली गई। संजीव आ गए। शाम को संजीव चाय पी कर जाने लगे तो चीनू ने संजीव को चाय और इवनिंग स्नैक्स देते हुए कहा,’’पापा जी, मम्मा जी को जाते ही गर्म गर्म खिला पिला देना।’’संजीव ने जाते ही सरोज को चाय नाश्ता दिया। सरोज लौटी नहीं कि दोनों साथ जायेंगे।  अब बेटू किसी काम से जाए तो लौटने की उसे कोई जल्दी नहीं होती थी। उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य चीनू और बच्चों को समय देना होता था। अब सरोज और संजीव दुकान बढ़ा कर ही रात को आते। दोनों बच्चे पोता पोती रात को उपर ही सोते थे। अब यही उनकी दिनचर्या हो गई थी। मंगल की छुट्टी होती है। उस दिन वे घर पर आराम करते थे। एक दिन मंगल को फैमली लंच कर रही थी। संजीव किसी बात पर वैसे ही बोले,’’कभी कभी मैं सोचता हूं कि अगर हम दोनो को कुछ हो गया तो बेटू अकेला सब कैसे संभालेगा!!’’सरोज सोच रही थी कि दोनो चिल्लायेंगे पापा नहीं, ऐसे नहीं बोलो। पर चीनू तुरंत बोली,’’सब मैनेज हो जाता है।’’ इस जवाब के बाद दोनो ने चुपचाप खाना निगला। पर कहीं दोनो बुरी तरह आहत हुए। लंच के बाद बेटू परिवार को लेकर बाहर चल दिए और जाते हुए बोल गए कि वे डिनर बाहर करके आयेंगे। उनके जाते ही सरोजा ने मुझे फोन किया कि तुरंत आ। मेरे घर से  उसके घर का पांच मिनट पैदल का रास्ता है। मैं पहुंची सरोज ने मुझे ये बात बताई। सुन कर क्या जवाब देती!!अब तक ये दीन दुनिया से अलग बेटू की गृहस्थी संभालने में खुश थे। आज ये सकते में हैं। मैंने पूछा,’’आप कहते थे, न  कि हमारा देश बहुत सुन्दर है, जितना एल.टी.सी. नौकरी में घूमा जायेगा, घूम लेंगे बाकि बचा रिटायरमेंट के बाद देखेंगे। तब छुट्टियों की भी चिंता नहीं होगी।’’दोनों कोरस में बोले,’’कहां हमें तो फुरसत ही नहीं मिली।!’’ मैंने समझाया कि व्यस्त रहो, मस्त रहो, अच्छी बात है पर कुछ समय अपने लिए भी जियो। 35 साल समयबद्ध नौकरी की है न। अब अपने इस समयबद्ध रिटायरमैंट कार्यक्रम से थोड़ा बाहर आओ। बेटू के बिजनेस में बैठने जाओ पर अपनी इच्छा से। वेे आपके बाद मैनेज करेंगे। थोड़ा उन्हें अभी मैनेज करने दो। कभी पैकेज पर, टूर पर जाओ। दोनों को पेंशन मिलती है। आज से शुरुवात करो। घर में सहयोग दो, घर का महौल अपनी तरफ से अच्छा रखो। पिक्चर देखने जाया करो।’’ अब दोनों बतियाने लगे कि हमारे कितने शौक थे जो हमने रिटायरमेंट के बाद पूरे करने थे। कुछ याद ही नहीं रहा था। मैंने कहा,’’चीनू का धन्यवाद करो जिसने आज आपको रास्ता दिखाया। क्रमशः