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Saturday, 10 October 2020

जो दिखता है वो बिकता है, मुझसे शादी करोगी!! भाग 5 नीलम भागी jo Dikhta Hai Vo Bikta Hai, Mujh Se Shadi Karogi!! Part 5

      


छोटी दिवाली को हम सुबह दुकान खोलने आए, देखा मार्किट ग्राउण्ड में बड़ा टैंट लगा हुआ है और मिठाइयां सजी हुई हैं। आंटी गल्ले पर बैठी हैं। चाचा सेल पर, लवली टैंट और दुकान के बीच में मैसेंजर का काम कर रहा हैं। सोनू कारीगरों पर और दुकान देख रहा है। राधे पुराना और पहला कारीगर है इसलिए वह परिवार की तरह काम कर रहा है और वह दुकान के पीछे काम भी कर रहा है और सबसे काम भी ले रहा है। इंडस्ट्रियल एरिया है। सभी ने कर्मचारियों को मिठाई देनी है इसलिए वहां से भी खूर्ब आडर मिला। सबके लिए अब खाना चाय घर से आ रही थी। जो बेटी खाना या चाय लाती, आंटी उसे कैश थमा देती। साथ के साथ गल्ला भी खाली होता जाता। दिवाली के दिन राधे और रामू भी टैंट में मदद के लिए आ गए। मिठाई बनानी बंद कर दी गई क्योंकि तैयार मिठाइयां बिकनी जरुरी थी। सब दुकान से टैंट में राधे के ऑडर पर मिठाई की ट्रे सजा कर लाते थे। राधे उसे टैंट में सजाता। साथ में रामू को समझाता ’’जो दिखता है वो बिकता है’’ टैंट से बाहर एक लड़का डिब्बों की पैकिंग के लिए बिठा रखा था। मार्किट की दूसरी दुकानें दिखें इसलिए कनाते नहीं लगाई गई थीं। पूजा के समय सेल में थोड़ा ठहराव आया और अब उनकी अपनी दुकान में साथ के साथ मिठाइयां सजने लगी और धीरे धीरे टैंट खाली होने लगा। जो वैराइटी नहीं होती, उसके लिये चाचा ग्राहक को दुकान दिखाते। दुकान सजने पर चाचा दुकान के गल्ले पर आ गए। चाचा की तो फेस वैल्यू थी जहां चाचा वहां ग्राहक, आंटी घर चली गई क्योंकि सब कुछ दुकान में जो सिमट गया था। अगले दिन से समोसे बनने शुरु हो गए। भाईदूज तक इन्होंने खूब काम किया। मुनाफे ने इनकी थकान सारी सोख ली थी। सबकी देनदारी निपटाई। किश्त का चालान आ चुका था। बैंक खुलते ही इन्होंने पहली किश्त भरी। अब अगली किश्त की तैयारी में जुट गए। दिवाली का बहुत सहारा मिला। चारों कारीगरों को लेबर और इनाम देकर विदा किया। अब तो दिवाली एक साल बाद आयेगी। सब कुछ पहले की तरह चलने लगा। बस एक बदलाव आया। लवली ने पढ़ना छोड़ दिया। चाचा ने भी जोर नहीं दिया। अब ये छोटी छोटी केटरिंग लेने लगे, जिसमें कोई खाना बनाने घर नहीं जायेगा। यहीं से खाना बन कर जायेगा। आबादी अभी इतनी नहीं थी। ये काम रैगुलर भी नहीं था। इसलिये कारीगरों को बिठाकर रखने की गुनजाइश भी नहीं थी। जैसे भी करके मकसद सिर्फ किश्त निकालना था , स्वीटी को पढ़ाना था और बड़ी दोनों बेटियों की शादी करना था।

दिवाली के बाद सोनू के रिश्ते आने लगे। चाचा का एक ही जवाब होता कि पहले दोनो बेटियों की शादी करुंगा फिर सोनू की शादी होगी। नियम कायदे के पक्के चाचा से मैंने एक दिन पूछा कि दुकान की किश्तें भी देनी हैं, इसके साथ बेटियों की शादी भी करनी हैं कैसे होगा सब!! सुन कर जवाब आंटी ने दिया,’’बेटियाँ तो कल ब्याही जाएं, इनका लड़के वालों से इतना साफ बोलना बात बिगाड़ देता है। मैंने पूछा,’’कैसे?’’ क्रमशः