हुआ यूं कि मैं अंकुर के घर जा रही थी। अचानक मुझे एक गन्नेवाला दिख गया। मैंने उससेे गन्ने खरीद लिए और चल दी।
अब रास्ते में मेरे दिमाग में कई प्रश्न उठ खड़े हुए। और मैं उनक जवाब भी खुद ही सोचने लगी। मसलन मैंने गन्ने क्यों लिए हैं? क्योंकि हम बचपन में बड़े शौक से धूप में बैठ कर गन्ने खाते थे। दांतों से एक गनेरी के साथ अगली दो पोरी के छिलके उतार लेते थे। पर ये बच्चे भला गन्ना चूपेंगे!! मन में ये भी था कि आपस में अंग्रेजी में बात करने वाले अदम्य और शाश्वत मैगी, पिज्जा, नूडलस और बर्गर खाने के बहुत शौकीन हैं। लेकिन श्वेता ये सब कभी कभी देती है। फल गुड़िया उन्हें काट कर देती है, जिसे वे फॉक से खाते हैं। पर मेरी अपनी सोच थी कि इन्हें भी तो गन्ने खाने आने चाहिए। और अपनी सोच को जबरदस्ती लादना भी नहीं चाहिए। फिर मैंने सोचा कि बच्चो के सामने बैठ कर मैं खाउंगी। मुझे देख कर शायद वे भी खाने लगें क्योंकि गुड़ वे खाते हैं और इन्हें गन्ने से गुड़ बनाने की कहानी भी सुनाउंगी। घर पहुंचते ही हाथ में गन्ने देख कर अंकुर पूछने लगा,’’यहां आपको गन्ने कैसे मिल गए!!’’ एक गन्ना मैं चूपने लगी और एक गन्ना अंकुर चूपने लगा। हमें देख कर शाश्वत ने मांगा, आधा उसे दे दिया।
अंकुर उसे गन्ना चूपना सिखाने लगा। अचानक शाश्वत का दांत निकल आया थोड़ा खून भी। ये देख कर मैं घबरा गई। अंकुर और शाश्वत हंसने लगे। शाश्वत बोला,’’पापा मेरे टूटे दांत की फोटो लेकर मम्मी को भेजो।’’
अंकुर बताने लगा कि शाश्वत के दूध के पीछे के दांत गिर नहीं रहे थे। इससे परमानेंट दांत कैसे बाहर आये? ये दांत हिल रहा था
इसलिए इसको निकलवाने के लिए डैन्टिस से डेट ली हुई थी। मैंने शाश्वत से पूछा कि दर्द हो रहा है!! उसने जवाब दिया,’’बिल्कुल नहीं।’’मुझे याद आया कि मेरे दूध के दांत गन्ने चूपते हुए, सख्त अमरुद, सेब साबूत खाते हुए अपने आप निकल जाते थे। फल तो अब भी मैं घर पर बिना काटे ही खाती हूं। ये आठ दांत हैं जिनमें से एक गन्ना चूपने से निकल गया है। मैं हसंते हुए अंकुर से बोली,’’गन्ना चूपो, हज़ारो रुपए बचाओ।’’