हुआ यूं कि हमारी छत पर कुछ छोटे पॉट एलोवेरा के थे। हमारा सालों पुराना राधे हम सबके घरों में रिपेयर करता है। कलर पेंट के लिए उसने अपना एक विश्वसनीय साथी लगा दिया। हमें एक ही कलर ऑफ व्हाइट करवाना होता है। वो 20 लीटर की बालटी लाता और और पुताई करता रहता। खाली बाल्टियों में और पेंट के डिब्बों में वह एलोवेरा लगा देता। उसकी रुख़्सत के बाद जो भी छत पर जाता एलोवेरा में पानी डाल देता। सर्दी में मैं धूप के लिए छत पर गई। सब में एलोवेरा इतना भरा हुआ था कि पॉट छोटे पड़ गए थे। कोरोना के कारण बाहर जाना नहीं था। छत पर जाती, जब भी छत से उतरती जो पॉट उठा सकती थी, उठा लाती। ग्रुप में भी डाल दिया जिसको एलोवेरा चाहिए ले जाओ। यहां सभी के घर में लगा है तो कौन लेता भला!! बराबर के घर का रिनोवेशन हो रहा था। उनकी छत पर पुरानी किचन कैबनेट, बेकार लकड़ियों का ढेर लगा था। दिन भर कड़ाके की ठंड में काम करने वाली लेबर लंच में लकड़ियां जलाकर आग तापती थी। मैंने पड़ोसी सतीश जी से पूछा कि ये लकड़ियां उनके काम की तो नहीं हैं। कुछ ले लूं। उन्होंनेें जवाब दिया,’’नहीं, जब बाद में मलवा उठेगा तो ये उठ जायेंगी। आपको जो चाहिए ले लो।" अब मेरा मुफ्त में एक्सपेरिमेंट शुरु हो गया। बस लेबर को उठाने के पैसे देती थी। वे लंच में हमारी छत पर मुंडेर टाप कर रख देते थे। 24 दिसम्बर से मैंने काम शुरु किया था। बाल्टियां इतनी एलोवेरा से भारी हो गईं थीं कि उन्हें पलटने में मेरी कमर में प्राब्लम हो गई। फिर दुखी होकर एलोवेरा काट काट कर इनमें भरती जाती। पूरा एलोवेरा से भरने पर अच्छी तरह दबाती। 60% मिट्टी और 40 वर्मी कम्पोस्ट मिक्स और दो मुट्ठी नीम की खली मिलाकर इस पॉटिंग मिक्स को, एलोवेरा पर 6’’ भर दिया। अब इस पर मेथी के बीज फैला कर, इन्हें मिट्टी से ढक देती। अगले दिन पानी डालती क्योंकि तुरंत पानी डालने से एलोवेरा का जैल बह जाता अब वह मिट्टी सोख लेती। 3 दिन बाद मेथी में अंकुरण हो जाता। धीरे धीरे मिट्टी दबती जाती मेथी बाहर आती जाती। अब तक कुछ नहीं डाला सिवाय पानी के। मेथी का मौसम जा रहा है। पर मेरे यहां हरी-भरी मेथी है।
मोटे मोटे पत्तों वाली एलोवेरा मेथी को देख कर मन खुश हो जाता है। सरदी जा रही है। सुखाने की बजाय मैं उस को जड़ से काट रही हूं और पत्ते सूखा रही हूं। डंडिया फिर इसी मिट्टी में दबा रही हूं।