ये पर्वतीय यात्रा तो बड़ी मनमोहक है। रास्ता समृद्ध प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। कलकल बहते झरने, हर तरह के पेड़ पौधे कोई भी हरे रंग का शेड नहीं बचा था जो इन वनस्पतियों न हो।
बरसात लगभग जा चुकी थी इसलिए पेड़ पौधे नहाए से लग रहे थे। जहां भगवान शिव ने वास किया है वो स्थान क्यों नहीं इतना सुन्दर होगा!! जन्नत
दंत कथाओं के अनुसार भस्मासुर ने भोलेनाथ की घोर तपस्या की। जिससे शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। उसने वरदान मांगा कि वह जिसके सर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाए। शंकर जी ने कह दिया कि ऐसा ही हो। वरदान मिलते ही वह तो अहंकारी हो गया और शिवजी के पीछे लग गया वह उनके ही सिर पर हाथ रखना चाहता था। रणसू जिसे रनसू भी कहते हैं यहां दोनों का भयंकर युद्ध हुआ वह उन्हें भस्म करना चाहता है। तब भोलेनाथ ने शिवालिक पर्वतश्रंखला में यहां गुफा बनाई और परिवार सहित यहां छिप कर रहने लगे। यही गुफा शिवखोड़ी हैं। यह गुफा जम्मू कश्मीर के रयासी जिले में स्थित है। बाद में भगवान शंकर ने मनमोहनी का रुप धारण करके भस्मासुर को मोहित किया। सुन्दरी के साथ नृत्य करते हुए वह वरदान भूल गया। नृत्य के दौरान जैसे ही शिवजी ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा तो भस्मासुर ने उनका अनुसरण करते हुए उसने भी अपने ही सर पर हाथ रखा और भस्म हो गया।
शिवखोड़ी गुफा में शिव के साथ पार्वती, गणेश, कार्तिकेय नंदी पिण्डियों के दर्शन होते हैं। पीण्डियों का जलाभिषेक गुफा की छत से प्रकति करती है यानि जल की बूंदें स्वयं गिरती हैं। गुफा दो भागों में बंट जाती हैं। कहते हैं जिसका एक रास्ता अमरनाथ गुफा में निकलता है। शिवखोड़ी धाम की अलौकिक और गुफाओं का दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु आधार शिविर रनसू पर, जम्मू, कटरा, उधमपुर या फिर अन्य किसी भी स्थान से किसी भी वाहन के जरिए पहुंचते हैं। आधार शिविर से गुफा तक पौने चार किमी. तक सरल चढ़ाई है। इसके अलावा घोड़ा, पालकी की भी सेवा ली जा सकती है। पहले शिवद्वार के पास बने काउंटर से यात्रा पर्ची बनवाते हैं। 500रु में घोड़ा आने जाने का लेता है।
गुफा में जाने को बनी सीढ़ियों से से थोड़ा पहले मोबाइल कैमरा आदि जमा कर लिए जाते हैं।
पैदल ट्रैक पर सभी सुविधाएं हैं मसलन पीने का पानी, शौचालय आदि।
पैरों की सूजन कम होते ही मैं बाहर निकली थोड़ा सा सड़क पर आते ही मुझे शेयरिंग ऑटो मिल गया। 20 रु में उसने मुझे शिवद्वार पर उतार दिया यहां घोड़े वालों ने मुझे घेर लिया। पता नहीं कहां से कोरोना के समय सांस ठीक से न ले सकने की तकलीफ़ याद आ गई। यहां गुफा में प्रवेश था। मैंने वहीं से भोलेनाथ को दिल से प्रार्थना की कि यहां भी रोपवे शुरु करवा दो ताकि मेरे जैसों को आपके द्वार से वापिस न जाना पड़े। मैं सोच में डूबी हुई थी और एक घोड़े वाला तो 400रु आना जाना बताने लगा। पर मैं लौट आई। क्रमशः