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Wednesday, 13 April 2022

वीरगंज से पोखरा को प्रस्थान, मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 5 नीलम भागी Nepal Yatra Part 5 Neelam Bhagi

 

डिनर करने के बाद बाहर आकर देखा, महिलाओं के ग्रुप बने हुए थे जो बड़बड़ा रहीं थीं कि कैसी औरत है! हमारा सामान नीचे फैंक कर बैठ गई। अंग्रेजी बोले जा रही है। हिन्दी बोलें तो हम अभी इसकी बोलती बंद कर दें। मैंने अपना और मैम का लगेज़ छत पर रखवाया। बस में चढ़ी। मुझे देखते ही मैम ने प्रश्न दागा,’’लगेज़ ऊपर चढ़वा दिया?’’मैंने जवाब दिया, ’’हां।’’ उन्होंने अपने बराबर सीट पर बैठने का इशारा किया। किसी का सामान फैंक कर, खिड़की की सीट पर मैम बैठी है और अपने बराबर में मेरा बैग रखा हुआ है। सब सीटों पर कुछ न कुछ रख कर सीट घेरी हुई थीं। आखिरी सीट खाली थी। मैंने  अपना बैग उठाया और सबसे पीछे विंडों सीट पर जाकर बैठ गई। अब मेरे दिमाग में प्रश्न उठने लगे कि गुप्ता जी(66 वर्षीय) पहली बार मुकितनाथ और नेपाल का दस दिवसीय 60 लोगों का टूर लेकर जा रहें हैं। अकेले मैनेज़ कर लेंगे! अब तक मैं परिवार या विद्वानों के ग्रुप के साथ गई हंूु यानि ’ए टूर ऑफ लाइक मांइडेड पीपुल’। कई बार तो ऐसा भी हुआ था कि किसी टूर पर गए। अचानक सबसे उच्चपद पर आसीन विद्वान ने किसी ग्रन्थ में लिखी कोई जगह पढ़ी। वहीं मार्ग बदल गया। वह जगह दिखाने के लिए हमें लगातार 2 दिन गाड़ियों में घूमाते रहे। जिसमें रात 3 बजे से सुबह पांच बजे तक होटल में सोए। सोने से पहले उस वास्कोडिगामा उच्च अधिकारी ने घोषणा कर दी थी कि वे सुबह 5.30 बजे गाड़ियां लेकर ’कखग’ देखने चले जायेंगे। और वहीं से पटना जायेंगे। जो उनके साथ नहीं जायेंगे, वे अपने आप पटना पहुंचें क्योंकि हमारी शाम 7 बजे से पटना से राजधानी गाड़ी में रिजर्वेशन थी। जी सर करते सब सुबह तैयार थे। ये वास्कोडिगामा गूगल देखकर हमें सड़कों पर ही भटकाते रहे। अब लौटने का समय हो गया था। ’कखग’ पर जाये बिना हमारा पटना पहुंचना जरुरी था। मैने कह दिया,’’सर अगर हम रात को दो घण्टे रैस्ट न करते तो ’कखग’ पहुंच जाते।’’ उन्होंने गाड़ी रुकवाई और गुस्से से जाकर दूसरी गाड़ी में बैठ गए। किसी और को यहां भेज दिया। ख़ैर हमने पटना से हिलती हुई राजधानी ट्रेन बड़ी मुश्किल से पकडी। वास्कोडिगामा सर और उनके लाइक मांइडेड पीपुल यानि दोनों गाड़ियों की सवारियों की राजधानी ट्रेन छूट गई क्योंकि वे इवनिंग टी और स्नैक्स के लिए रुके थे। कोरोना के बाद मेरी पहली यात्रा जल वाले गुरु की 6 बसों के साथ आठ दिन का टूर था और विभिन्न तरह के लोगों के साथ थी। यहां गुरु जी की श्रद्धा से कोई ऊंची आवाज में भी नहीं बोलता था। अचानक बाहर हंगामा देख कर, मैं बस से उतरी और एक कुर्सी लेकर बैठ गई और मसला समझने लगी। दो 2by 2 की 2 बसें थीं। रसोइयों और किचन के सामान के लिए एक सुम्मों थीं। पैकेज़ में भी लिखा था कि यात्रा नेपाल में 2by 2 बसेां द्वारा होगी। यहां कुछ सहयात्रियों को देख कर अंदाज हो गया कि ये टूर बहुत मजेदार रहेगा। गुप्ता जी के पास कई ग्रुप से केस आए। शिकायत के  बाद में सब यही बोलते कि हम वापिस जा रहें हैं, हमारे पैसे वापिस दो। उनके तेवर देख कर, मुझे यकीन था कि अब तो एक ही बस जायेगी। गुप्ता जी इनके पैसे मुंह पर मार देंगे क्योंकि इनकी किच किच कौन सुनेगा? 

       पहले मोटी सवारियों ने गुप्ता जी को घेरा कि सीटें छोटी हैं। दो सीटों पर एक सवारी बैठेगी! दूसरा ग्रुप बोला,’’ए.सी. वाली बस मंगाओ। हमने तो ए.सी. के बिना कभी सफ़र ही नहीं किया।’’कुछ सवारियों ने ही समझाया कि पहाड़ों पर इसी साइज़ की बसें चढ़ती हैं। आप पोखरा तक जाओ। जरा भी ए.सी. की जरुरत होगी तो बसें बदल देंगे। एक महिलाओं का ग्रुप आया उन्होंने कहाकि हम सुम्मों का जो भी खर्च होगा दे देंगे, आप हमारे लिए मंगा दीजिएगा। ट्रांसर्पोटर ने कहा कि मुक्तिनाथ ड्राइवर को मिला कर जीप में सिर्फ 6 लोग ही बैठेंगे। 5 सहेलियों ने हां कर दिया। इसके बाद तो बस की सीट का साइज़ भी ठीक हो गया। बस में भी 5 सीट खाली। एक महिला के पैर में कुछ था वह डण्डे के सहारे आई कि बस में उसे परेशानी होगी। गुप्ता जी ने कह दिया,’’बहन जी ऐसे में आपको आना नहीं चाहिए था।’’यह सुनते ही वह नाराज हो गई। उसके पति के साथ, उनके ग्रुप को भी बहुत बुरा लगा, उनमें से एक, गुप्ता जी को ऐसे पकड़ने दौड़ा जैसे वह उन्हें जान से खत्म कर देगा, दूसरा उसको दोनों बाहों में कस कर रोकते हुए कह रहा था,’’ जाने दे, जाने दे।’’ जिसे पकड़ा हुआ है वो बोल रहा है,’’ तूने मुझे रोक रखा है, नहीं तो आज कुछ हो जायेगा।’’गुप्ता जी वैसे ही शांत रहे। अब इन्हें सुम्मों में बिठा दिया गया और सुम्मो वाले रसोइए, सामान सब बस में आ गया। पैसे किसी को नहीं वापिस मिले। अब कोई भी सवारी नीचे नहीं थी। इसलिए मैं भी बस में आकर बैठ गई। गुप्ता जी ने जयकारा लगाया,’’बोलो, मुक्तिनाथ धाम की।’’और हमारी बसें और दोनों सुम्मों चल पड़ीं।  क्रमशः