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Thursday, 26 May 2022

धनुष धाम नेपाल यात्रा भाग 40 नीलम भागी Dhanush Dham Nepal Yatra Part 40 Neelam Bhagi

 


 सुबह तैयार होकर पैकिंग करके नाश्ता किया और मैं रूम से बाहर आकर अपना लगेज़ बाहर बैठे गुप्ता जी के पास रख कर मारवाड़ी धर्मशाला के प्रांगण में घूमने चल दी। हमारे ग्रुप ने अभी चैकआउट नहीं किया है। महाराष्ट्र से एक ग्रुप आया है, वे बड़ी इत्मीनान से कॉमन हॉल में चमकदार साफ सुथरे फर्श पर अपने संगी साथियों से आपस में बतिया रहे हैं। मेज पर चाय और अल्पाहार रखा है। उनके कुक नाश्ता बनाने में किचन में लग गए हैं। वे कोई हाय तोबा नहीं मचा रहें हैं कि रूम कब मिलेगा! देखने में सादा पर बहुत ही सभ्य पर्यटक हैं।


बाहर आती हूं। आसपास बहुमंजिले घर, किसी की छत पर तो हवाईजहाज भी लैंड किया हुआ है।

ये मैदानी इलाका है इसलिए एक बड़ी बस आ गई। वही पहले मैं! वाली भगदड़ मच गई। जब सब सैटल हो गए तो मैं जाकर ड्राइवर का कैबिन खाली हैे। उसके पीछे की सीट पर बैठ गई। नाज़िर कहने लगा इधर ए.सी. नहीं है आप अंदर बैठ जाइये न। मैंने मन में सोचा कि यह खाली सीट है। यहां गर्मी ही तो लगेगी और खुली खिड़कियों से हवा के कारण बाल उलझेंगे और उनमें धूल मिट्टी पड़ेगी न। कोई बात नहीं तीर्थ यात्रा पर हूं।

साफ बढ़िया बनी सड़क पर बस दौड़ने लगी। बीच में वृक्षारोपण किया गया हैं। कहीं कहीं तो लकड़ी के ट्री र्गाड हैं। सड़कों पर शहीद द्वार बने हैं तो किसी चौराहे पर राजा जनक हल जोत रहें हैं की मूर्ति है।

अब सड़क के दोनों ओर सुनहरी गेहूं की बालें झूम रहीं हैं। एक जगह बस रोकी गई। क्लीनर चार बोतलें ले जाकर, उनका पानी पलट कर वहां लगे बोरिंग वाले नल से बोतलें भरने लगा। ये देखकर हेमंत तिवारी ने ड्राइवर से पूछा,’’इस पानी में कोई खासियत है!’’उसने जवाब दिया,’’ हां जी बहुत खासियत है।’’ चारों बोतलें भरते ही बस चल पड़ी।

अचानक रेखा गुप्ता ने बताया कि सुनीता अग्रवाल का फोन चार्जिंग पर लगा था वो उतारना भूल गई है। गुप्ता जी ने कहा कि धनुषा धाम के दर्शन कर लो फिर छोटी गाड़ी से धर्मशाला जाते हैं। 18 किमी. की दूरी 45 मिनट में पूरी करके बस मंदिर पहुंच गई। बस से उतरते ही मेरी नज़र एक मिठाई की दुकान पर सजी डिजाइनर मिठाई पर पड़ी जिसे महिला ने बनाया है। जलेबी की कारीगरी बहुत सुंदर है। मां बना रही है और तीनों बेटियां वहीं बैठी पढ़ रहीं हैं।


सामने दीवार पर बहुत अच्छे स्लोगन लिखे हुए हैं। मसलन 

पहिले करु शिक्षादान

तब करु कन्यादान।


   एक फास्टफूड का ठेला भी है। उसकी बोतलों में भरे रंगीन घोल आकर्षित कर रहे हैं। मैं उसके साथ फोटो खिंचवाने लगी। वह बोला,’’मैं तो जी अभी नहाया भी नहीं हूं। बाल बना लूं जरा!’’ मैं बोली,’’कोई बात नहीं मेरे बालों में तो इतनी धूल भर गई है कि कंघी भी नहीं चल रही।


ख़ैर 

 जूते उतार कर मंदिर में प्रवेश किया।      


   यह जगह जनकपुर से 18 किमी दूर है। लोकमान्यता के अनुसार दधीचि की अस्थियों से वज्र, सारंग तथा पिनाक नामक तीन धनुष रूपी अमोघ अस्त्रों का निर्माण हुआ। वज्र इंद्र को मिला था। सारंग विष्णुजी को मिला था और पिनाक शिवजी का था जो धरोहर के रूप में जनक जी के पूर्वज देवरात के पास रखा हुआ था।

 इस धनुष को उठाना और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाना, जनक जी के वंश में किसी के वश की बात नहीं। इसका कभी प्रयोग ही नहीं हुआ इसलिए यह पूजा घर में रखा गया है। उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ जब सीता जी ने पूजाघर की सफाई करते समय पिनाक को इधर से उधर कर दिया। उनका यह गुण देख कर मिथिला नरेश ने घोषणा की कि जानकी का विवाह उन्होंने उस व्यक्ति से करने का निश्चय किया है जो पिनाक की प्रत्यंचा चढ़ाने में समर्थ हो।

  जनक के यज्ञ स्थल यानि वर्तमान जनकपुर के जानकी मंदिर के निकट यह समारोह हुआ।

यहां पंडित जी श्रद्धालुओं को चित्र दिखाते हुए बताते हैं कि जब पिनाक धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था और एक भाग श्रीराम मंदिर के सामने तालाब में गिरा और दूसरा धनुषकोटी तमिलनाडु में गिरा और मध्य भाग यहां गिरा। धनुषा धाम के निवासियों ने इसके अवशेष को सुरक्षित रखा। जिसकी पूजा अनवरत चल रही है और मेरा सौभाग्य है कि मैं भी यहां दर्शन कर रहीं हूं। 550 साल से अधिक पुराना पेड़ है, जिसकी जड़ में पताल गंगा है। 





 हर साल मकर संक्राति के अवसर पर यहां त्योहार होता है। दर्शन करके बस में बैठे और बस सीतामढ़ी की ओर चल दिए। क्रमशः