जाते समय तो ध्यान नहीं दिया क्योंकि तब बाबाधाम में इतनी भीड़ में दर्शन के लिए पहुंचने की चिंता में थी। लौटते समय मार्ग में थूकने वालों पर बहुत गुस्सा आ रहा है। देवघर में भी तो कई घण्टे थूक रोके, खूब घुमावदार लाइनों में दर्शनों के लिए बिना थूके खड़े रहें हैं।
पर बाहर आते ही रास्ता थूक कर गंदा करना! बहुत बुरा लग रहा है। होटल पहुंच कर पहले पैर धोये फिर चप्पल पहनी। सबके आते ही गलियों से बाहर आए। वहां लाइन से ई रिक्शा खड़ीं हैं और पानी की बोतलों के कार्टून रखे हैं। इस टूर में भी पानी की जितनी मर्जी बोतल लो। ई रिक्शा का यह फ़ायदा है कि विंडो सीट का क्लेश नहीं होता। सबको सब कुछ दिखता है। पतली पतली गलियां वाले घने बाजारों में से आराम से यह रिक्शा निकल सकती है और हम शहर से परिचित हो सकते हैं। देश भर से तीर्थयात्री आएं हैं, उनकी जरुरत का सामान, प्रशादी, उपहार आदि ले जाने के लिए भी दुकानों में खूब सामान है और खरीदारी भी खूब हो रही है।
अब शहर से बाहर घनी हरियाली में हम हरिला जोड़ी की ओर जा रहें हैं। जो देवघर से 8 किमी. की दूरी पर है। और मेरे ज़हन में बैद्यनाथ धाम की कहानी चल रही है।
परम शिव भक्त लंकेश्वर रावण ने शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। पर लंकेश शिव को प्रसन्न नहीं कर सके क्योंकि भगवान भी अपने भक्त की परीक्षा ले रहे थे। अति कठिन तपस्या के बाद भी जब शंकर जी प्रसन्न नहीं हुए तब उसने गर्मी में पंचाग्नि के बीच बैठकर, वर्षा में भूमि पर बैठ कर, सर्दी में पानी के अन्दर रह कर शिवभक्त रावण ने अति कठिन तपस्या की। इतनी कठिन तपस्या के बाद भी जब भगवान प्रसन्न नहीं हुए तब लंकेश ने अपने आपको धिक्कारा कि उसकी तपस्या में ही कोई कसर रह गई है जो उसके ईस्ट देव उससे प्रसन्न नहीं हुए हैं। दशानन ने विधिपूर्वक शिव पूजन के बाद एक एक सिर काट कर शिव को अर्पित किए ज्योंहि दसवां सिर काटने लगे उसी समय भक्त वत्सल भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने कुशल वैद्य की तरह अपने हाथों से उसके नौ सिरों को फिर से जोड़ दिया। फिर रुद्र ने उससे वर मांगने को कहा। रावण को मनोवांछित फल और उत्तम बल भगवान शिव ने प्रदान किया। मनचाहा वर पाने के बाद रावण ने भगवान से विनती की कि वे उसके साथ चल कर लंका में निवास करें। ये प्रस्ताव सुन कर भगवान शंकर भारी दुविधा में फंस गए पर अपने परम भक्त रावण की बात को भी नहीं ठुकरा सकते थे। उन्होंने रावण को कहा कि वह उनके लिंग स्वरुप को ले जाए लेकिन इसे धरती पर नहीं रखना क्योंकि ऐसा करने पर वह वहीं स्थापित हो जायेगा फिर कोई शक्ति उसे वहां से उठा नहीं पायेगीं। ये जानकर देवताओं में हाहाकार मच गया। देवता और ़ऋषिगण मिलकर भगवान विष्णु जी के पास जाकर उनकी स्तुति करने लगे। विष्णुजी ने उनके आने का कारण पूछा तो वे सब विनती करने लगे,’हे प्रभु! यदि शिवजी लंका में स्थापित हो गए तो देवता और ़ऋपि विरोधी रावण सर्वशक्तिमान हो जायेगा और तीनों लोकों में अर्नथ हो जायेगा।’ अब योजना बनी जिसमें भक्त और भगवान दोनों की बात रह जाये। महाज्ञानी रावण ने पूरे विधिविधान से शिवलिंग उठाने हेतू संकल्प लेने के लिए आचमन किया। तभी वरुण रावण के मुंह से आचपन द्वारा उदर में प्रविष्ट कर गए। रावण वैद्यनाथ शिवलिंग को लिए पुष्पक विमान में सवार होकर लंका की ओर प्रस्थान कर गया। रास्ते में उसे बहुत जोर से लघुशंका लगी। और इधर हमारे ई रिक्शा चालक कांग्रेस यादव ने पूछा,’’आप वो तालाब देखेंगी, जो रावण के सू सू करने से बना है।’’मैं तो यहां का चप्पा चप्पा देखने ही आई हूँ। मेरे हां करते ही वह आगे की दो ई रिक्शा को रुकने का कहता रहा पर वो तो ये जा वो जा। हमारी रिक्शा दाईं ओर मुड़ी, उसके पीछे बाकि रिक्शा भी मुड़ी। क्रमशः