अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा हरिद्वार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'नदी साहित्य' पर 24 और 25 सितंबर को थी जिसमें मैं भी आमंत्रित थी। एक्सीडेंट के बाद पहली बार यात्रा में जाने का आत्मविश्वास जुटा रही थी। आमंत्रण न होता तो शायद यात्रा पर निकले को और समय लगता। अंकुर ने शताब्दी एक्सप्रेस में टिकट बुक करवाई । गाजियाबाद से गाड़ी पकड़नी थी और मैंने पहली बार गाजियाबाद स्टेशन देखना था। वहां गाड़ी से गुजरी तो कई बार हूं पर पहली बार गाड़ी पकड़ रही हूं। अंकुर रात को मुझे अपने घर ले गया। मैंने उससे कहा, " चिंता मत कर, हरिद्वार में स्टेशन से पिकअप है।" सुबह 7.23 की गाड़ी थी। छोटा अदम्य साथ में गया। हमेशा की तरह समय से बहुत पहले स्टेशन पहुंचे। जैसे स्टेशन से बाहर कुछ शहरों में गंदगी होती है, वैसे यहां भी थी और स्टेशन भी गंदा था। अदम्य कभी गाड़ी में नहीं बैठा है। उसको प्लेटफॉर्म टिकट लेना दिखाया। गाड़ी आई अदम्य को बता रखा था की बोगी नंबर c1 है। वह बड़े ध्यान से एक एक डिब्बा पढ़ रहा था। यहां गाड़ी सिर्फ 2 मिनट रूकती है। मुझे चढ़ा कर अंकुर जल्दी से लगेज उठाकर मेरी सीट नंबर की ओर चलने लगा। मैंने कहा," तू उतर जा अब मैं बैठ जाऊंगी। वह नहीं माना, पीछे पीछे अदम्य भी। सीट पर लगेज रख, जल्दी से अंकुर ने पैर छुए। कॉपी पेस्ट अदम्य यह देख कर एकदम वापस मुड़ के पैर छूए। अंकुर जल्दी से उसे लेकर उतरा और गाड़ी चल पड़ी। विंडो सीट थी। बैठते ही पानी आ गया। कुछ समय बाद जलपान लग गया। यहां शोध पत्र हमें देखकर नहीं पढ़ना था, वैसे ही बोलना था इसलिए थोड़ा पढ़ने लगी। पर गाड़ी में मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता। अपनी आदत के अनुसार मैं बाहर देखती रही और एक डिब्बे का चक्कर लगा आई। आमने-सामने सीट नहीं थी इसलिए बतियाने का भी सवाल नहीं था। बाजू का लड़का कानों में इयरफोन ठूंस कर बैठा था। टॉयलेट की पाश्चात्य और भारतीय दोनों सीट में पानी भरा हुआ था। एक बात बहुत अच्छी लगी पूरे रास्ते हरियाली थी। रेल की पटरी के पास तक खेती की गई थी। सहारनपुर में गाड़ी 25 मिनट तक रुकी रही, जिन्होंने गाड़ी में नाश्ता नहीं किया था, वे प्लेटफार्म पर कर रहे थे। यहां मैंने डॉ. जगदीश पंत जी प्रदेश महामंत्री को फोन किया और बताया कि मैं 11:33 पर पहुंच रही हूं। उन्होंने जवाब दिया," स्वागत है, वहां गाड़ी से उतरते ही फोन कीजिएगा, हम आपको ले लेंगे।" अब मेरी बाजू में एक फौजी भाई आ गए। उन्हें देहरादून जाना था। मैंने उनसे पूछा, "आप मेरी हरिद्वार में उतरने में मदद कर देंगे।" उन्होंने जवाब दिया," जरूर।" हरिद्वार स्टेशन आने से पहले ही उन्होंने मेरा लगेज उठाया, गाड़ी रुकते ही पहले उतर कर, मुझे उतारने में मदद की और पूछा," गेट तक छोड़ दूं ।"मैंने धन्यवाद करते हुए मना किया। अब मैंने डॉ. जगदीश पंत जी को पहुंचने की सूचना दी। उन्होंने कहा," आप वहीं रहिए, हम आ रहे हैं।" और कुछ ही देर में वे आ गए। मैंने घर में पहुंचने की सूचना दे दी। गाड़ी में बैठते ही हमारे प्रवीण आर्य जी (राष्ट्रीय मंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद) का फोन आ गया। यह जानने के लिए कि मेरा पिकअप हो गया है। अब हम संगोष्ठी स्थल की ओर जा रहे हैं। मैं कई बार हरिद्वार आने पर भी हरिद्वार से ऐसे परिचय कर रही हूं, जैसे पहली बार आई हूं। जो मेरे साथी बाहर से आए हैं ,उनसे परिचय भी कर रही हूं। क्रमशः
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