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Monday 1 January 2024

उद्घाटन सत्र अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'नदी साहित्य' हरिद्वार में, भाग 3 नीलम भागी Neelam Bhagi

 



“साहित्य में नदी संस्कृति” संगोष्ठी का उद्घाटन मा. त्रिवेंद्र रावत जी ने किया
कुम्भनगरी हरिद्वार में अखिलभारतीय साहित्य परिषद् के द्वारा साहित्य में नदी संस्कृति विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का श्री गणेश पूर्व मुख्यमंत्री माननीय त्रिवेंद सिंह रावत जी ने मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलन के साथ किया। दिनांक 24 सितम्बर 2023 को श्री पवनपुत्र बादल के निर्देशन में प्रातः 10.00 बजे से पाँच चर्चा सत्र सफल संपन्न हुए।
इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में माननीय त्रिवेन्द्र सिंह रावत (पूर्व मुख्यमन्त्री, उत्तराखण्ड) तथा मुख्य वक्ता के रूप में श्रीयुत श्रीधर पराड़कर (राष्ट्रीय संगठन मन्त्री, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्) एवं स्वागत भाषण डॉ. सुनील पाठक (उत्तराखण्ड प्रदेश अध्यक्ष- अखिल भारतीय साहित्य परिषद्) द्वारा किया गया।
माननीय रावत जी ने नदियों के संरक्षण  हेतु पर्यावरण, वृक्ष संरक्षण, मुख्य रूप से पीपल, बरगद जैसे वृक्षों के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए, परिषद के द्वारा संकल्पित संगोष्ठी की कुशल संचालन की शुभकामनाएं और बधाई दी। श्री श्रीधर पराड़कर जी ने नदियों के जल को स्थानीय भूमि के स्वाभाविक प्रसिद्धि से जोड़ने का सफल प्रक्षेपण उद्बोधन प्रस्तुत किया। परिषद् के प्रांतीय अध्यक्ष श्री पाठक जी ने संगोष्ठी के बीजवपन स्वरूप संकल्प को स्पष्ट किया।
संगोष्ठी के प्रथम 5 सत्रों में कुल लगभग 24 शोधपत्रों का वाचन किया गया, जिससे नदी संस्कृति की विशेषताओं से श्रोता गण लाभान्वित हुए।
उद्घाटन सत्र के संचालक डा. जगदीश पंत कुमुद तथा अन्य सत्र संचालकों की भूमिका डा. अरविंद मौर्य , डा. अर्चना डिमरी, डा धर्मेंद्र पांडे ने निभाई तथा विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता डा. भगवान त्रिपाठी, डा. नीलम राठी, श्री शिव मंगल जी ने की।
अवगत हो कि संगोष्ठी में परिषद् के हरिद्वार जनपद अध्यक्ष श्री सचिन प्रधान, महामंत्री डा. विजय त्यागी, सचिव श्री अभिनंदन गुप्ता, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. अशोक गिरी तथा समस्त भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों से आशा वर्मा(उ.प्र.), ज्योत्सना सिंह(उ.प्र.), इंदुशेखर तत्पुरुष(राजस्थान), कृष्णलाल विश्नोई(राजस्थान), श्री सुभाष विश्नोई(राजस्थान), डॉ. मीनाक्षी मीनल(बिहार), डॉ. रवीन्द्र शाहाबादी(बिहार), डॉ. नन्द जी दुबे(बिहार), डॉ. नीता सक्सेना(भोपाल), डॉ. राजेश्वर राजू(जम्मू), श्रीरामगोपाल तिवारी(मध्यप्रदेश), डॉ. रतन मनेरिया(राजस्थान), शीतल कोकाटे(महाराष्ट्र), मंजू रेढु(हरियाणा), शिवनीत सिंह(हरियाणा), स्नेहलता शर्मा (राजस्थान), डॉ. भगवान त्रिपाठी(उड़ीसा), स्वाति (दिल्ली), डॉ. रामानुज पाठक(मध्यप्रदेश), चन्द्रिका प्रसाद मिश्रा(महाराष्ट्र), सपना जायसवाल(हिमाचल), रचना शर्मा(हिमाचल), शिव मंगल मंगल(उ.प्र.), रवीन्द्रनाथ तिवारी(उ.प्र.), नीलम राठी और नीलम भागी (दिल्ली), ज्योति भूषण जोशी (गोवा), आदित्य कुमार गुप्ता (राजस्थान), डॉ. बलदेव मोरी (गुजरात), डॉ. दिलीप के. जोगल (गुजरात), डॉ. बलजीत श्रीवास्तव(उ.प्र.),डॉ. विपिन चन्द्र(राजस्थान) जैसे अखिल भारतीय ख्यातिप्राप्त विद्वानों के विचारों से श्रोतागण तथा समाज लाभान्वित होगा। साथ ही लब्धप्रतिष्ठित स्थानीय विद्वान् साहित्यकारों में रेखा खत्री(श्रीनगर), लोकेषणा मिश्रा (हल्द्वानी), डॉ. शान्तिचन्द (खटीमा), अनुपमा बलूनी(श्रीनगर), डॉ. ऋतुध्वज(हरिद्वार), डॉ. अर्चना डिमरी (देहरादून), डॉ. नीरज नैथानी (श्रीनगर), डॉ. पुष्पा खण्डूरी (देहरादून), डॉ. केतकी तारा(अल्मोड़ा), पुष्पलता जोशी (हल्द्वानी), आरती पुण्डीर(श्रीनगर), डॉ. सुमन पाण्डे(लोहाघाट), डॉ. वन्दना (लोहाघाट), डॉ. अनीता टम्टा (लोहाघाट), डॉ. रोमा (खटीमा), डॉ. सोनिका (खटीमा), डॉ. दिनेश राम(लोहाघाट) आदि विद्वानो की उपस्थित गरिमामय रही।
डॉ. विजय त्यागी
संगोष्ठी सूचना प्रभारी एवं जिला महामन्त्री (अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरिद्वार)
संगोष्ठी में पर्चे  पढ़ने की अनुमति नहीं थी। 15 मिनट का सबको समय दिया गया। विद्वान वक्ताओं से कुछ ऐसा सुनने को मिला जो मैंने अब तक पढ़ा सुना नहीं था। मसलन बिहार की  कर्मनाशा नदी और उस पर विद्वान वक्ता ने उस नदी पर लिखी, पुस्तक का नाम भी बताया 'कर्मनाशा की हार'। जिसे मैं पढ़ूंगी। मेरी यह पहली शोध पत्र पर गोष्ठी थी। इसमें मुझे बहुत अच्छा लगा। इतने विद्वानों को एक ही स्थान पर सुनना। समय का बहुत पालन किया गया। जिससे सबने संक्षिप्त में  अपने  मौलिक और स्थापनाओं पर आधारित विचार व्यक्त किए। टीवी डिबेट में, मैं किसी पर भी दो लाइन का काउंटर प्रश्न कर लेती हूं। पर यहां मुझे पहली बार 15 मिनट बोलना था। मैंने जो तैयारी की थी, लिखा था। उससे अलग बोली। सत्र के समापन पर प्रोफेसर नीलम राठी (राष्ट्रीय मंत्री) ने मेरे पास आकर मुझे कहा, "आप तो बहुत अच्छा बोली।"  सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरे लिए यह अनूठा अनुभव था।  रात्रि में भोजन के पश्चात कवि सम्मेलन हुआ।क्रमशः