Search This Blog

Tuesday 26 September 2017

भोजन प्रशाद और अन्न बर्बाद, 20 प्रतिशत खाना सामाजिक एवं धार्मिक समारोह में फेंका जाता है नीलम भागी

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस पर शुभकामनाएं
                                          
तुम  तो दुनिया में निन्दा करने के लिए ही तशरीफ लाई हो, गीता उत्कर्षनी  का मेरे बारे में ये कहना है। अब देखिए न, हमारा देश उत्सवों और त्यौहारों का देश है।  मंदिरों  के हॉल और प्रांगण में, आए दिन  विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा और मंदिर समिति द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम के समापन पर प्रशाद वितरण किया जाता है और कभी-कभी भोजन प्रशाद की भी व्यवस्था होती है। सभी सभ्य लोग होते हैं, वे उतना ही लेते हैं, जितना वे खा सकते हैं। पीने के पानी की व्यवस्था के पास ही, पहिये वाले बड़े-बड़े कूड़ेदान रख दिये जाते हैं । जिसमें श्रद्धालु भोजन के बाद अपनी डिस्पोजेबल प्लेट डालते हैं।
मैं अपनी निन्दा करने की आदत से मजबूर होकर डस्टबिन के पास खड़ी होकर देखती रहती हूँ कि कौन भोजन प्रशाद फेंक रहा है? पर मुझे निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि ये लोगो की श्रद्धा ही है कि वे मंदिर में मिलने वाले भोजन को प्रशाद के रुप में लेते हैं, उसे कूड़े में नहीं फेंकते। मंदिर के बाहर बैठने वाले भिखारी भी आते हैं, क्षमता से अधिक लेते है, जब खाया नहीं जाता तो बचे हुए को साथ ले जाते हैं। ये भी ठीक है।
नवरात्रों, कन्यापूजन, रामनवमीं, हनुमान जयंती और अन्य त्यौहारों और विशेष दिनों में  जगह-जगह भण्डारे लगते हैं पर सबसे ज्यादा मंदिरों के आगे। इन दिनो मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुलता है। आप हर समय पूजा कर सकते हैं। मैं प्रतिदिन अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग समय पर मंदिर जाती हूँ। जितना मंदिर अंदर से साफ होता है, उतना ही बाहर। पर बाहर बार-बार सफाई करवाने पर भी गन्दा हो जाता है। कारण वहाँ श्रद्धालु गाड़ियों में खाने का सामान लाते हैं और भण्डार शुरु कर देते। दिन में कई बार भण्डारा वितरण होता है। खाने वाले अघाये हुए होते हैं। कूड़े कचरे से या सड़क पर जैसी भी पॉलिथिन की थैली मिलती, उसमें खाना ले लेकर भरते जाते हैं और जहाँ सुविधा होती है, वहाँ टाँग देते हैं। अगर मंदिर के आस पास कोई पार्क है, तो उसकी ग्रिल पर खाने से भरी थैलियाँ टाँगी हुई होती हैं। जिस पर लगातार धूप पड़ रही होती है। जिसे कुत्ते भी सूंघ जाते हैं। घर ले जाकर जिसे भी खिलाते होंगे, पता नहीं वो कैसे पचाते होंगे? या इन शुभ दिनों में जगह-जगह लगने वाले भण्डारों में खा कर, उनके घर वालों में भी खाने की क्षमता ही नहीं बचती होगी। खाने से भरी थैलियाँ कूड़े में ही फैंकी जाती होंगी।
एक परिवार थैलियों और प्लेटों में भर कर खा रहा था। इतने में कुछ भक्त आये, वे भी खाना बाँटने लगे। अब ये परिवार वहाँ से भी लेने लगा। दूसरे वाला खाना सूंघ कर, पहले वाला खाना छोड़ कर, वे दूसरा खाना खाने लगे क्योंकि ये खाना देसी घी का था। अब बचा हुआ खाना भीड़ के कारण, लोगों के पैरों के नीचे आकर गन्दगी फैला रहा था। जबकि पास ही कूड़ेदान पड़ा था, जिसका प्रयोग ये लोग करना ही नहीं जानते। या नुकसान की वजह से ये कूड़ेदान में प्लेट फेंकने नहीं जा रहे थे क्योंकि कुछ लड़के-लड़कियाँ कभी भी दस के नोट बाँटना शुरु कर देते थे।
   किसी संस्था ने जब पहला विशाल कार्यक्रम किया तो उत्तम व्यवस्था के कारण हजारों लोगों के भण्डारा खाने के बाद भी राशन बच गया। बचा हुआ राशन 



न उन युवकों ने मंदिर की रसोई को दे दिया। मैं वहाँ उस समय उपस्थित थी। जिसका उचित उपयोग हुआ। क्या श्रद्धालु ऐसा नहीं कर सकते? वे अपना अन्न, धन मंदिर को दे।ं जिससे मंदिर की ओर से चलने वाली प्रशाद व्यवस्था में उसका उपयोग हो। प्रशाद तो यहाँ से राजा और रंक दोनों को मिलता है। हाँ, प्रशाद कूड़े और पैरों में नहीं जाता, न ही समारोह के बाद बाल्टियाँ भर-भर के अन्न कूड़े में फैंका जाता है।

Monday 18 September 2017

स्वाद काजू की सब्जी का राज, अगौड़ा किला गोवा यात्रा Gao Yatra 7 नीलम भागी




















                               
थका हुआ चुम्मू गहरी नींद सो रहा था। मैं भी सो गई। उसके उठते ही श्वेता ने मुझे चाय बनाकर जगाया। चाय खत्म होते ही हम डिनर के लिये चल दिये। परसों सुबह नौ बजे की राजधानी से हमें वापिस लौटना था। बेहद स्वाद काजू की सब्जी का राज जानने के लिये मैं उसी रैस्टोरैंट में खाने आई और काजू की सब्जी धीरे धीरे स्वाद लेकर खाई। उसमें हल्का सा मिठास समझ नहीं आ रहा था। अमृतसर की ड्राईफ्रुट्स की सब्जी की मिठास तो किशमिश के कारण होती है। इसमें तो किशमिश का दाना भी नही तो फिर कैसे!! मैं कुक के पास गई उसे कहा कि मुझे सिर्फ ये सब्जी सीखनी है, रैस्टोरैंट नहीं खोलना। उसने कहा कि अब तो रैस्टोरैंट के बंद होने का समय है, कल आ जाना आपका आर्डर आपके सामने बना दूंगा। अंकूर ने कहा,’’माँ मुंह खोलना।’’ मैंने खोला, उसने मेरे मुंह में एक भर के चम्मच ग्रेवी का डाल दिया। उसे निगल कर मैंने पूछा,’’ये क्या था।’’ बोला चिकन जकौटी की ग्रेवी थी। मैं बोली,’’शाकाहारी ब्राह्मणी को तूने क्यों खिलाया?’’ वह बोला कि आपको ग्रेवी का स्वाद पता होगा, तो आप वैसी बना कर किचन से बाहर आ जाओगी, तो मैं उसमें चिकन डाल दूंगा। अब मैं उसका स्वाद सोचने लगी पर दोबारा चखने की इजा़ज़त मेरे संस्कारों ने नहीं दी। लंच के समय मैं रैस्टोरैंट की किचन में पहुँच गई। कुक ने कहाकि  मात्रा आप अपने सदस्यों के हिसाब से कर लेना। उसने कड़ाही में थोड़ा सा कुकिंग ऑयल डाल कर, उसमें साबूत काजू गोल्डन होने तक तल कर निकाल लिये। उसी तेल में थोड़ा सा जीरा डाला, जो तुरंत लाल हो गया। फिर उसमें प्याज का पेस्ट डाला। अब मिक्सी के चटनी पीसने वाले जार में भीगे काजू के टुकड़े और थोड़ी भीगी खसखस और टैण्डर कोकोनट का पेस्ट बनाया। जब प्याज ने घी छोड़ दिया, तो उसमें बारीक कटा टमाटर डाल दिया। इसने जब घी छोड़ा तब इसमें काजू पेस्ट डालकर साथ ही हल्दी, मिर्च और धनिया पाउडर डालकर थोड़ा सा भूना, घी छोडने का इंतजार नहीं किया। ग्रेवी तो शाही पनीर की तरह होती है। अब इसमें थोड़ा सा पानी और गरम मसाला डाल कर, ढककर उबलने रख दिया। मैंने पूछा गरम मसाले में क्या क्या था? उसने मेरे आगे खड़े मसाले का डिब्बा कर दिया सभी वही मसाले थे जो मैं इस्तेमाल करती हूँ, बस उसमें फुलचक्री थी। उबलते ही गैस बंद कर दी गई। अब उसमें अमूल क्रीम और तले साबूत काजू  मिला कर, प्लेट में डालकर कुछ काजू और धनिया पत्ती से सजा दिया। मिठास का राज अमूल क्रीम था। लौटे तो बेटी उत्तकर्षिनी का फोन आ गया कि उसने परसों मेरी फ्लाइट मुंबई की करा दी है। अंकूर श्वेता की छुट्टियाँ नहीं थी। अंकूर मेरी रिर्जवेशन कैसिंल करवाने में लग गया।
कैंडोलिम बीच से कुछ दूरी पर अगौड़ा किला और अगौड़ा बीच है। ये हमारे देश की सबसे उचित रखरखाव वाली धरोवरों में से एक है। 1609 में यह बनना शुरू हुआ और 1612 में तैयार हुआ। पुर्तगाली वास्तुकला, घुमावदार दीवारें, जेल और इसका लाईटहाउस जहाँ से अरब सागर का खूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है। झरना जो यहाँ पानी की जरूरत पूरी करता था। पुर्तगालियों ने वीर मराठाओं और डच उपनिवेशवादियों के हमलों से बचने के लिये इसका निर्माण किया था। अगौड़ा किला गोवा के इतिहास का सबसे विशाल प्रतिनिधि है। यह विशाल किला पुर्तगालियों के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का केन्द्र था। इसके आसपास की गलियों, रास्तों में शाम को बाजार लगता है, जहाँ एथनिक सामान और कपड़े मिलते हैं। जूट, नारियल, लकड़ी, पत्थर, बांस, मिट्टी, सीप और पत्थर के हस्तशिल्प पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अब जो दिखता है वो बिकता है। देखने पर तो आप खरीदकर कर ही आयेंगे न। 

Thursday 14 September 2017

लोग जो समाज की सेवा करते हैं, सफाईवाली दीदी !!! नो...नो...नो.... लो कर लो बात! नीलम भागी

लोग जो समाज की सेवा करते हैं, सफाईवाली दीदी !!!
नो...नो...नो....       लो कर लो बात!
                                                नीलम भागी
गीता के प्ले स्कूल की डायरी में लिखा था कि कल पेरैंटस अपने बच्चों को फैंसी ड्रेस के लिये तैयार करके भेजेगें, थीम है ’लोग जो समाज की सेवा करते हैं’। मेरे घर के सदस्यों ने तो ढाई साल की गीता के लिये कमीशन बिठा दिया, जिसका एजेंडा था ’गीता को क्या बनाया जाये।’ डॉक्टर, पुलिस, नर्स आदि के नाम सबने सुझाये, पर किसी ने भी सफाईवाली दीदी और पोस्टमैन का ज़िक्र भी नहीं किया, ये भी तो आवश्यक सेवक हैं। पर मेरे दिमाग में तो स्वच्छ भारत अभियान छाया हुआ है। अगले दिन मैं गीता को सफाईवाली दीदी बना कर ले गई। छोटी बच्ची है, इतना बड़ा झाड़ू कैसे उठायेगी इसलिये मैंने उसे सफाईवाली दीदी की पहचान के लिये डस्टिंग ब्रुश पकड़ा दिया। जिसे पकड़ते ही गीता बहुत खुश हुई। रास्ते भर वह गाड़ी के अंदर मंगला बाई की तरह डस्टिंग करती गई। स्कूल जाकर मैं हैरान रह गई। वहाँ तो होल सेल में सभी थे यानि कई डॉक्टर, ढेरो पुलिस आदि। मेरी सफाईवाली दीदी इकलौती थी। सभी पेरैंट्स ने उसे हिकारत से देखा, सिवाय उसकी टीचर्स के। डॉर्क्टस ने अपनी मैडिकल किट, पुलिस ने अपनी खिलौना पिस्टल सब छोड़ दी। सबको गीता का रंगबिरंगा डस्टिंगब्रुश चाहिये था। ये बच्चे देसी विदेशी सब तरह के खिलौने अफोर्ड करते हैं लेकिन पचास रूपये का डस्टिंगब्रुश, इन्हें छूने को भी नहीं मिलता। आज गीता के हाथ में देख कर, सबको वही चाहिये था। सबके साथ शेयरिंग करने वाली गीता, उसे आज किसी को छूने भी नहीं दे रही थी क्योंकि उनकी तरह के खिलौने तो गीता के भी पास हैं पर डस्टिंगब्रुश तो उसे आज ही मिला है न। वह उसे भला क्यों देगी!! अब गीता ने अपने डसि्ंटगब्रुश को बंदूक की तरह कंधे पर तान लिया। इसी तरह स्टेज पर वह गई। किसी ने भी ताली नहीं बजाई। पर गीता ने अपने पूरे दाँत निकाल रखे थे।😃 वह सबको देख रही थी, शायद सोच भी रही हो कि उसके लिये क्लैंपंग क्यों नहीं!! अंत में गीता को फर्स्ट प्राइज़ देते हुए प्रिंसिपल ने कहा,’’जहाँ स्वच्छता होगी, वहाँ बिमारी नहीं होगी। गीता ने हमें यह संदेश दिया है।’’

Monday 11 September 2017

मेरी कॉटन की साड़ियाँ और ये ऊपर, नीचेे वालियां! नीलम भागी Meri Cotton Ke Saria aur ye niche wale नीलम भागी

                               
मुझे स्टार्च लगी कॉटन की साड़ियाँ पहनना बहुत पसंद है। अपने शौक़ के कारण मेरी पहले तो धोबी से  हमेशा लड़ाई होती रहती है। कारण यह है कि मैं साड़ियों में कड़क कलफ लगा कर सुखाकर उसे प्रेस के लिये देती हूँ। जब प्रेस होकर साड़ियाँ आती तो उनमें मामूली सा कलफ और चमक भी फीकी होती है। क्योंकि धोबी मेरी साड़ियों को एक ही बाल्टी पानी में भिगो कर निचोड़ कर सारा स्टार्च निकाल देता है। मैं उससे लड़ने जाती हूँ और उसे चेतावनी  देती हूँ कि आगे से वह ऐसी हरकत न करे वर्ना(क्या कर लेती, सिवाय धोबी बदलने के)। पर वह फिर वैसे ही करता है। इलाके के सारे धोबी मैंने बदल कर देख लिए ,पहली बार वे मुझे मेरी पसंद की कड़क साड़ियाँ देते, लेकिन दूसरी बार से वही हरकत करते, मेहनत से दी गई स्टार्च निकालने की। धोबी के कारण मैं कॉटन की साड़ियाँ पहनने का मोह तो नहीं छोड़ सकती न। चरख चढ़वाती तो उसमें भी मेरी पसंद का कड़कपन नहीं मिलता। तंग आकर मैंने सैकेण्ड फ्लोर में शिफ्ट किया।
    अब मैं बहुत खुश थी कारण, मैं अपनी कॉटन की साड़ियों में मनचाहा कलफ लगा कर ग्रिल से लटका देती। हवा में फरफर करती, सीधी साड़ियाँ सूखने पर मैं उन्हें तह करके प्रेस कर लेती। लेकिन मेरी खुशी को ग्रहण लग गया। हुआ यूँ कि फर्स्ट फ्लोर वालों ने अपनी बालकोनी में शेड डलवा दिया। जब मैंने साप्ताहिक स्टार्च लगाकर साड़ियों को फैलाया तो वे आधी हवा में और बाकि शेड की छत पर इक्ट्ठी हो गई। सूखने पर जब मैंने उन्हें उठाया तो जो हिस्सा शेड पर था, उस पर धूल मिट्टी और लग गई। फिर से नीचे वालों को कोसते हुए, मैंने साड़ियों को धोया और कलफ लगाया। अब मैंने साड़ियों को दोहरी तह लगा कर लटकाया। वे देर से सूखी। सूखने पर प्रेस करके मैंने अपनी वार्डरोब में सजा दी। जब मैं पहनने लगती तो उनकी तह आपस में चिपकी रहती। जब मैं उसे खींच कर तह खोलती तो कई बार साड़ी फट जाती और मैं नीचे वालों पर क्रोधित होती। एक बार मैं उनसे लड़ने पहुँच गई कि उन्होंने बालकोनी पर शेड क्यों डाला? उन्होंने एक लाइन में जवाब दिया,’’ हम अपने घर में जो मरज़ी करें, आपको क्या?’’ मैं अपना सा मुहँ लेकर आ गई।
  मेरे ऊपर के फ्लोर में एक परिवार रहने आया है। आते ही उस परिवार की महिला रमा से मेरी दोस्ती हो गई। इस दोस्ती का श्रेय कॉटन की साड़ियों को जाता है। रमा तो साड़ियों में चरक चढ़वाती थी। मेरी साड़ियों की कड़क का उसने राज पूछा, तो मैंने उसको माण्ड लगाना बताया और नीचे वालों का बालकोनी ढकने की घटना से मेरी साड़ियों की कलफ लगाने की प्रक्रिया में आने वाली परेशानियों का भी ज़िक्र किया। मेरी तरह रमा को भी नीचे वालों पर बहुत गुस्सा आया। उसने भी मेरा समर्थन किया कि बहुत गन्दे पड़ोसी हैं। सण्डे की सुबह मैं अपनी बालकोनी में बैठी चाय पी रही थी और गमले में लगे पौधों को निहार रही थी। रमा ने अपनी बॉलकोनी से खूब कलफ लगाकर साड़ियाँ फैला दी। हवा में फैहरती हुई साड़ियाँ मेरे मुँह, सिर को पोंछने लगी। जहाँ भी साड़ी टकराती, वहाँ माण्ड से चिपचिपाहट होने लगती। मैं चाय उठा कर अन्दर आ गई। थोड़ी देर में मेरी बालकोनी मक्खियों से भर गई। माण्ड जहाँ-जहाँ टपका वहाँ मक्खी-मक्खी हो गई। अब मैं क्या करूँ? सोच रहीं हूँ कि बालकोनी कवर करुँ या सहेली से लड़ूँ।


Friday 8 September 2017

कितनी सीटी आ गई!!! न न न, गैस बचाओ, Save Fuel Neelam Bhagi नीलम भागी



  मैं कभी कूकर की सीटी गिन कर खाना नहीं बनाती क्योंकि इससे गैस का खर्च दुगुना ही होगा, यदि प्रेशर कूकर में सीटियाँ गिन कर खाना बनायेंगे तो जब आँच तेज होगी और कूकर का साइज़ छोटा होगा फिर तो सीटियाँ  जल्दी जल्दी बजेंगी। तेज आंच पर पानी भाप बनकर सीटी से निकलता जायेगा, पानी का अंदाज बिगड़ जायेगा। 5-6 घण्टे भीगी साबूत दालें, राजमा, छोले, मटर मैं टाइम से बनाती हूँ। इस तरीके से पकाने से कुछ समय बाद समझ आ जाता हैं कि कौन सी दाल, सब्जी कितना समय लेती है| पकाने का समय इस तरह शुरू होता है|  पहले बंद कूकर को तेज आँच पर रख दिया। जैसे ही सीटी बजने वाली होती है। गैस बिल्कुल धीमी कर देती हूँ। वीडियो में सीटी की आवाज और नाचने का अंदाज देख लें। बिना किसी में सोडा डाले मसलन  राजमा, छोले, मटर,   10 से 25 मिनट बाद गैस बंद कर देती हूँ। ये समय सीटी के नाचने पर गैस कम करने से शुरू होता है|  कूकर की भाप नहीं निकालती। भाप खत्म होने पर कूकर खोलती हूँ। भीगी धुली दालें तो जब सीटी बजने लगे, तुरंत गैस भी बंद, सीटी भी बंद। नार्मल भाप खत्म होने का इंतजार करती हूँ। प्रेशर ख़त्म होने पर कूकर खोलती हूँ| आदत हो गई हैं, प्रेशर बनते ही गैस बिल्कुल धीमी कर देती हूँ। हर दाल सब्जी को बनाते बनाते समय का आपको अंदाज हो जायेगा। इस विधि को शुरू करने से पहले आप अपने गैस सिलेंडर पर तारीख डाल लें। परिणाम आपको बचत और स्वाद समय के रूप में मिलेगा।
1 कटोरी धुले भीगे चावल, कूकर में 2 कटोरी पानी डाल कर कूकर को तेज आंच पर उबलने रख दिए| जैसे ही सीटी बजने वाली हो गैस बंद कर दो| प्रेशर ख़त्म होने पर कूकर खोलो| अगर चावल बैठ गये तो अगली बार सीटी बजते ही गैस बंद करके भाप निकाल दो, खड़ा राइस मिलेगा| राइस अलग अलग किस्म का होता है इसलिए इसका उदाहरण लिया|


     

Wednesday 6 September 2017

पणजी मीरामार बीच, डोना पाउला, बिग फुट, मंगेशी टैम्पल, चर्च, गोवा वैक्स म्यूजियमGoa Yatra गोवा यात्रा भाग 6 नीलम भागी

 पणजी मीरामार बीच, डोना पाउला अधूरी प्रेम कहानी, बिग फुट, कोकम शर्बत, मंगेशी टैम्पल, चर्च, गोवा वैक्स म्यूजियम  गोवा यात्रा भाग 6
                                         
 नीलम भागी
़5 मिनट पहले हम अपनी बस की ओर चल पड़े, हमारे सहयात्रियों में कॉलिज के छात्र छात्राएँ भी थे। सब चुम्मू से दोस्ती करना चाहते थे। नये लोग थे इसलिये ये संकोच कर रहा था। अगर कोई उसे चुम्मू कहता तो तुरंत उसे समझाता कि उसका नाम शाश्वत है, सिर्फ नीनों का चूम्मू है। बस में जैसे ही हम अपनी अपनी सीटों पर बैठे। गाइड ने बताया अब हम फिश संग्राहलय जा रहे हैं। वहाँ पहुँचते ही हमने टिकट लिया और समुद्री जीवों को देखना शुरू किया। ये जीवित थे। सबके साथ उनके नाम लिखे हुए थे। चुम्मू की हैरान शक्ल को देख कर सब खुश हो रहे थे। जहाँ कुछ ऊँचा होता, कोई भी चुम्मू को उठा कर दिखाता। बाहर आते ही गाइड ने मेरे हाथ में दो टिकट देखते ही एक टिकट लेकर चला गया, कुछ देर बाद लौटा तो मेरे हाथ में एक टिकट के रूपये रख कर बोला,’’बताओ भला बच्चे से टिकट ले ली।’’
उन दिनों यहाँ फिल्म फैस्टिवल लगा हुआ था। चौड़ी साफ सड़के, वैसे ही फुटपाथ  जिनके दोनो ओर विशाल पेड़ और अब सजावट भी की गई थी। एक किमी. की दूरी पर मीरामार बीच था। यहाँ का पानी ठण्डा था और दूर तक सिल्वर रेत फैली हुई थी। अब बस यहाँ से  तीन किलोमीटर दूर डोना पाउला की ओर जा रही थी, जिसे आशिकों का स्वर्ग भी कहा जाता है। अन्दर गाइड हमें उनकी प्रेम कथा सुना रहा था और हम सब मंत्र मुग्ध सुन रहे थे।  वायसराय डी. मेनजस की बेटी डोना और एक मछुआरे में प्यार हो गया। जिसका बहुत विरोध हुआ पर अत्यंत सुन्दरी डोना ने धनवान की बेटी होते हुए भी, निर्धन मछुआरे का साथ नहीं छोड़ा। प्रेमी जोड़े ने ऊँचाई से कूद कर जान दे दी। इक दूजे फिल्म की शूटिंग भी यहाँ पर हुई थी। बस रूकते ही सब डोना पाउला की मूर्तियाँ छूने चल दिये। यहाँ पर तो प्रेमी प्रेमिकायें बहुतायत में थे। यहाँ एक बाजार भी लगा हुआ था। यहाँ घूमने के बाद हमारी बस बिग फुट ले गई। अंदर जाते ही मध्यम वॉल्यूम में गोवन म्यूजिक बज रहा था। कहते हैं कि गोअन संगीत की समझ से पैदा होता है। यहाँ आकर मुझे लगा कि गोअन संगीत सबकी पसंद बन जाता है। हल्की धुन में गोवन संगीत चल रहा था, हम चल रहे थे और साथ में गाइड का वर्णन चल रहा था। खेती, मछली पालन, लघु उद्योग, नमक बनाने से लेकर औजार बनाने तक को दर्शाया था। कभी कुछ सीढ़ियाँ चढ़ते कभी उतरते। मिठाई की दुकान ऐसी कि चुम्मू ने खाने की जिद पकड़ ली। सबने समझाया कि इनको मिट्टी से बनाकर, कलर किया है। यहाँ मैंने पहली बार कोकम का शरबत पिया, मीठे, नमक और खट्टे का गज़ब का मेल था। मैंने तुरंत कोकम के कंसनट्रेट शरबत का एक जार खरीद लिया। वहाँ से लोकल खाने के जल्दी न खराब होने वाले छोटे छोटे पैकेट ले लिए। हमारी बस के साथी गोवा के नहीं थे। सभी जी भर के कोकम शरबत पर रहे थे। पहला गिलास तो मुफ्त का था। उसके बाद पे करना था। चुम्मू ने कहीं भी कुछ नहीं चखा। मैंने कोकम शर्ब्ात पीने के लिये बहुत कहा तो बोला,’’नीनो, आपने अमुक हीरो की बॉडी देखी है, वो तमुक कोल्ड ड्रिंक पीता है। मैं भी वैसा स्ट्रांग बनूंगा।’’ मेरी आँखों के सामने वह विज्ञापन आ गया, जिसमें बोतल में बंद चुल्लू भर रंगीन पानी पी कर बड़े बड़े करतब करता, अमुक हीरो था। संग्राहलयों में घूमते पसीना आता जगह जगह ताजा नारियल पानी बिकता था, मैं पीती पर उसने कोल्डड्रिंक, कुरकुरे, चिप्स और आइसक्रीम के सिवाय कुछ नहीं खाया। मैं सोच रही थी कि बच्चों के खानपान पर बाजारवाद का कितना असर पड़ चुका है। अब बस मंगेशी मंदिर की ओर जा रही थी। रास्ते में एक रैस्टोरैंट पर खाने के लिये बस रूकी। चुम्मू ने फ्रैंच फ्राइस, मैंने चावली(लोबिया), सोरक करी और रोटी आर्डर की। अब हम मंगेशी मंदिर गए। इसकी वास्तुशैली शांतादुर्गा मंदिर जैसी है। प्रत्येक सोमवार यहाँ से शिवजी की यात्रा निकाली जाती है। अब हम बासिलिका ऑफ बोम जीसस चर्च गए। जिसमें से. जेवियर की पार्थिव देह रक्खी है।  यह 400 साल पुराना है। इसके सामने से. कैथेड्रल चर्च है। इस पुर्तगाली शैली की चर्च को बनाने में 75 वर्ष लगे थे। अंदरूनी सजावट व भव्यता दर्शकों का मन मोहती है। यहाँ से बाहर कुछ लोग टैटू बनवा रहे थे। चुम्मू ने तो रोना शुरू कर दिया कि मुझे तो टैटू बनवाना है। किसी तरह माने नहीं। एक छात्र ने टैटू बनाने वाले को समझा दिया। मैं चुम्मू को लेकर उसके पास गई और बोली,’’ इसकी बाँह पर टैटू बना दो।’’ टैटू वाला बोला,’’आपको पुलिस पकड़ लेगी, जो बच्चों के टैटू बनवाता है। उसे पुलिस पकड़ लेती है।’’चुम्मू मेरा हाथ पकड़ कर बस की ओर भागने लगा। यहाँ से हम ’वैक्स डी गोवा’’ आर्ट गैलरी एण्ड म्यूजियम गए। यहाँ इतिहासिक , महापुरूषों और सैलिब्रिटीज़ की हूबहू मोम में बनी आकृतिया थीं। चुम्मू को गांधी जी के तीन बंदर बहुत पसंद आये। सीढ़ियों से उतरे तो नीचे बाजार लगा हुआ था। बस में बैठते ही चुम्मू सो गया, हम लौट रहे थे। जो लोग सामान ले कर आये थे। वे होटल से चैक आउट कर के आये थे। गाइड ने उन लोगो से पूछ लिया था। जहाँ जिसको बस अड्डा या स्टेशन हमारे रास्ते के पास पड़ता उसे उतारता, सामान उतारने में मदद करता। मुझसे भी पूछा कि हम कहाँ ठहरे हैं? मैंने बताया तो मुझे भी कहा कि बेटे को बोल दो, सवा सात बजे अमुक जगह पहुँच जाये। जब हमारी बस वहाँ से निकली, तो अंकूर श्वेता वहाँ खड़े थे। पास ही हमारा अर्पाटमेंट था।