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Tuesday 16 April 2019

चुम्मू बंद हो गया नीलम भागी Unlocking Chummu Neelam Bhagi


                   

             
      ऑफिस से लौटते समय चूम्मू को मैं क्रैच से साथ ही ले आती हूँ। चौथी मंजिल के अर्पाटमैंट में लॉक खोलने से पहले मैं चुम्मू को अपने स्टॉल या  दुपट्टे के साथ अपनी टाँगों से बाँध लेती हूँ क्योंकि मेरा डेढ़ साल का चुम्मू बहुत शैतान है। ताला खोलने के लिए मैं जैसे ही उसका हाथ छोड़ती हूं, वह भाग कर सीढ़ियां चढ़ने लगता है या उतरने। इसलिए बांधना मेरी मजबूरी है। सबसे पहले लोहे के दरवाजे का इंटरलॉक खुलता है, चुम्मू चाबी झपटने की ताक में लगा रहता है। दूसरे लकड़ी के दरवाजे का लॉक खुलते ही चुम्मू बंधन मुक्त। मैं अपना और चुम्मू का बैग उठा कर, हम दोनो घर में प्रवेश करते हैं। टी.वी. ऑन करते ही वह नाचने लगता है और मैं जल्दी से उसके लिए दूध की बोतल तैयार कर लेती हूँ।
आज लॉक खुलते ही जितनी देर में मैं बैग उठाती, चुम्मू झट से अन्दर गया और लकड़ी का दरवाजा बंद कर दिया। दरवाजा बंद होते ही ऑटोमैटिक लॉक लग गया। चाबी वह पता नहीं कैसे अन्दर ले गया। इतनी देर में मैने पड़ोसियों को बुला लिया। तीनो कमरों की बालकोनी पर, अपनी बालकोनी से पड़ोसी, पड़ोसन कूदे। कोई बढ़ई को फोन लगा रहा था, तो कोई बढ़ई लेने चल दिया, कोई डुपलिकेट चाबी बनाने वाले को, पर सभी दरवाजे, खिड़कियों पर ग्रिल, शीशे, जाली के दरवाजे, और उस पर परदे लगे थे। अंदर से वे अच्छी तरह बंद थे।
भूखा-प्यासा मेरा चुम्मू ,अन्दर हलक फाड़ के, चीख-चीख कर रो रहा था। मैंने उसके पापा को चुम्मू के बन्द होने की सूचना दी। एक सैट चाबियों का उनके पास रहता है। वे बोले, ’’इस समय मैं मीटिंग में गुड़गाँव में हूँ। गाड़ी छोड़कर ,मैं मैट्रो से जल्दी आ रहा हूँ।’’
रोते-रोते चुम्मू की घिग्गी बंध गई। मैं पड़ोसियों की बालकोनी से कूद कर, अपने ड्राइंग रूम की बालकोनी पर बैठकर मैं उसे आवाजें देती रही। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ समय बाद मेरी आवाज सुनकर, उसने ड्राइंग रुम की खिड़की का परदा हटाया, मुझे देखते ही बाँह पसार कर बोला, ’’मम्मा गोदी ले लू।’’ मैं टाइम पास के लिए उसे बहलाते हुए, “पापा आ रहे हैं,” का जाप करने लगी। पता नहीं मजबूरी समझकर या रो रो के थक कर ,चुम्मू भी चुप बैठ गया। मैंने पडोसन  को धन्यवाद देते हुए कहा, ’’मैं तो बैठी हूँ। आप अब चली जाओ।’’ उसने नीचे झाँका, अब उसकी वापिस कूदने की हिम्मत नहीं थी। वह भी मेरे साथ इन्तजार करने लगी। और मैं सोचने लगी कि मैं ऐसी क्यूँ हूँ!
यह हादसा किसी भी बच्चे या परिवार के वृद्ध सदस्य के साथ हो सकता है। इसके पापा मुझे हमेशा कहते हैं कि एक चाबी हमें कहीं और रखनी चाहिये। अब मैं सोच रही थी कि बेहतर होगा कि हम घर की एक चाबी अपने किसी भरोसेमंद पड़ोसी परिवार के पास रख छोड़े, जिससे कोई दुष्परिणाम न भुगतना पड़े। 

4 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

आपकी बात पर एक और मीठी की याद आ गयी मेरी पड़ोस में रहने वाली दोस्त के बेटे मीठी ने अपने को लोक कर लिया कितनी कठिनाई का सामना उस परिवार को करना पड़ा था अब उस परिवार की एक चाबी मेरे पास रहती है

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Unknown said...

जय श्री राम

Neelam Bhagi said...

🙏