नीलम भागी

गाइड पण्डित जी ने हमें बताना शुरू किया। बेट द्वारका ओखा से 3 किमी. दूर है। इसकी लम्बाई लगभग 13किमी और चौड़ाई 4किमी. है। भारत की आखिरी बस्ती है। 160 किमी. तक समुद्र फैला है। यह कच्छ की खाड़ी में स्थित द्वीप है। आगे पाक करांची है। यहां जाये बिना द्वारका जी की ये यात्रा पूरी नहीं मानी जाती यानि पूरा फल नहीं मिलता। यह द्वारका से 30 किमी. दूर है और पाँच किमी समुद्री रास्ता है। बेट द्वारका का वह स्थान है जहां पर भगवान ने नरसी भगत की हुण्डी भरी थी। (तब पैदल यात्रा करते थे। धन चोर न चुरा लें इसलिये भरोसेमंद व्यक्ति के पास धन जमा कर, उससे दूसरे शहर के व्यक्ति के नाम धनादेश यानि हुण्डी लिखवा लेते थे।) नरसी मेहता की गरीबी का मज़ाक उड़ाने के लिये कुछ खुरा़फाती लोगों ने द्वारका जाने वाले तीर्थयात्रियों से उनके नाम हुण्डी लिखवा ली पर जब यात्री द्वारका पहुंचे तो भगवान ने नरसी की लाज रखने के लिए श्यामल सेठ का वेश बना कर नरसी की हुंडी भर दी।
इस हुण्डी का धन तीर्थ यात्रियों को दे दिया।भगवान Krishna आराम कर रहे थे। एक द्वारपाल ने आकर उनसे कहाकि एक भिखारी आप से मिलना चाहता है। पहले तो भगवान को गुस्सा आया कि उनके राज्य में भिखारी !! फिर उन्होंने कहा कि जो मांग रहा है उसे दे दो। उसने कहा कि वो कुछ मांग नहीं रहा है। किसी गुरू सानदीपानी का नाम ले रहा है। सुनते ही भगवान नंगे पावं दौड़े। ये वो जगह है, जहां भगवान के मित्र सुदामा, पोरबंदर जिसे सुदामापुरी कहते हैं वहाँ से पैदल भगवान से मिलने गये थे। दोनो की भेंट का मतलब, मुलाकात और उपहार भी होता है, भेंट भी हुई थी और वे भेंट में भी चावल लाये थे। इसलिये इसका नाम भेट द्वारका पड़ा। गुजराती में यह बेट हो गया। यहाँ 10,000 परिवार रहते है, जिसमें से 2000 परिवार हिन्दु हैंं जिनकी जीविका मंदिरों से जुड़ी है। 8000 परिवार मुसलमान है उनकी मुख्य आजीविका मछली पकड़ना है। अब खाली वीरान शुष्क मैदान थे। बीच में टाटा कैमिकल्स का कारखाना था। पण्डित जी ने कहा कि बस जहाँ आपको उतारेगी। वहीं मिलेगी। सायं 6 बजे यहाँ से चल देगी। उतरने पर पैदल आपको जेट्टी तक जाना है। उसका किराया बीस रूपये है। मैं आपके साथ चलूंगा। जब आप दर्शन करके लौटोगे तब भी मैं आपको वहीं खड़ा मिलूंगा। वे इतने सुन्दर ढंग से हमें तीर्थों की कहानियां सुनाते हुए यात्रा करवा रहे थे। सबने अपनी श्रद्वा अनुसार उन्हें रूपये दिये। बस से उतर कर हम पण्डित जी के साथ जैट्टी के लिये चल दिये। बस की सब सवारियों को जेट्टी पर चढ़ाया। एक जेट्टी पर 200 सवारियां बिठाने की अनुमति थी।
जेट़टी चलते ही समुद्री पक्षी उपर उड़ने लगे। वे हाथों से भी खाना ले रहे थे। जिधर देखो मछली पकड़ने वाली नाव ही नाव थीं।
30 मिनट में हम बेट द्वारका पहुंच गये। उतर कर एक पुल से पैदल किनारे की ओर चल पड़े। यहाँ चार पहिए के ठेले लिये, आदमी मंदिर तक 50रू में सवारियां ढो रहे थे और लोग भी बैठ रहे थे। पुल पार करते ही सड़क के दोनो ओर सामान की दुकाने थीं जहां प्रशाद और कई तरह का सामान था।
यहाँ भी कैमरा मोबाइल ले जाना मना था। हमें यहाँ भी सिक्योरिटी जाँच के बाद जाने को मिला, बहुत भीड़ थी। कोई मंडली कीर्तन भी कर रही थी जिससे और आनन्द आ रहा था। यहाँ भगवान के सब परिवार जनों के मंदिर हैं। रूक्मणी जी का मंदिर नहीें है। श्रीकृष्ण सुदामा जी के मंदिर में पैरों में चावल बहुत चुभ रहे थे। ये श्रीकृष्ण का निवास स्थान था इसलिये यहां मंदिर में भी शिखर नहीं है। अन्य घरों की तरह छत सपाट है।
अब हम वापिस जैट्टी के लिये चल पड़े। धूप ढल रही थी। हवा बहुत सुहानी थी। जैट्टी में बैठे। जाते समय तो धूप तेज थी, इस समय यह छोटी सी यात्रा बहुत आनन्दायक थी। किनारे लगते ही सब उतरने लगे। मुझे धक्का मुक्की की आदत नहीं है। ये जेट्टी किनारे से बहुत नीची थी। मैं नाव में ही रह गई, सब बताते हुए निकल गए। मेरे सब साथी बस पर पहुंच गये। पंण्डित जी ने मेरे लिये शोर मचा दिया। जे.पी. गौड़ मुझे लेने आये। पण्डित जी बस रूकवाये , खड़े रहे। मेरे बैठते ही बस चली। भद्रकाली चौक उतरते ही जो चाय की दुकान देखी, सबसे पहले चाय पी फिर होटल गये सामान लेने। होटल के रिसैप्शन के सोफों पर पसर गये। वहाँ बस बैड टी बनती थी। उसे कहा स्टील के बड़े बड़े गिलास भर के चाय बना दो। स्टाफ ने हंसते हुए बना कर दी। थेपले, खाकरे, फाफडे, ढोकला हरि मिर्च के आचार के साथ खाया, उस समय तेज मीठे की चाय ने स्स्वाद दुगना किया। हमने तय किया कि डिनर रास्ते में करेंगे। अब सामान लेकर वॉल्वो की ओर चल दिए। अपने कैबिन में , मैंने लेटते ही कह दिया अगर मैं सो गई तो मुझे डिनर के लिये नहीं जगाना और मैं सो गई। क्रमशः क्रमशः
बस अगले दर्शनीय स्थल नागेश्वर के लिये चल दी। यह स्थान द्वारका से 17 किमी. दूर है। पण्डित जी ने बताया कि ये हमारे बारह ज्योर्तिलिंगो में है। यहाँ भी फोटोग्राफी मना है। और जहाँ फोटो लेना मना होता है, वहाँ मैं कभी नियम नहीं तोड़ती। उन्होंने कथा सुनाई कि सुप्रिय नामक धर्मात्मा, सदाचारी एक वैश्य शिव भक्त था। वह अपनी सभी उपलब्धियों को शिव का आर्शीवाद मानता था। दारूक नामक राक्षस को शिव भक्ति करना पसंद नहीं था इसलिये उसे सुप्रिय फूटी आँख नहीं भाता था। एक बार वह नौका पर सवार अपने साथियों के साथ जा रहा था। दारूक ने उन पर आक्रमण करके, सबको कैद कर जेल में डाल दिया। सुप्रिय जेल में भी शिव भक्ति करता औरों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करता। एक दिन दारूक जेल में उसकी गतिविधि देखने आया। उसने देखा कि सुप्रिय आँखें बंद किये ध्यान में लीन है। यह देख दारूक तो गुस्से से पागल हो गया। वह गरज कर बोला,’’दुष्ट तूं क्या षडयंत्र और कुचालों की योजना पर विचार कर रहा है।’’ तब भी उसकी समाधि भंग नहीं हुई। अब वह उन पर अत्याचार करने लगा। और उसने सुप्रिय का वध करने का आदेश दिया। वह जरा भी भयभीत नहीं हुआ। सुप्रिय का रोम रोम अपने आराध्य शिव को पुकारने लगा और अपने साथियों की मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगा। भक्त की प्रार्थना सुन कर शिव का दर्शन के साथ, चमकते सिंहासन पर र्ज्योिर्तलिंग रूप प्रकट हुआ। प्रकट ही नहीं हुए साथ ही उसे पाशुपतास्त्र अस्त्र दिया। जिससे दुष्टों का नाश हुआ। शिव के आदेशानुसार इस ज्योर्तिलिंग का नाम नागेश्वर रक्खा। यह प्रसिद्ध मंदिर द्वारका के बाहरी क्षेत्र में है। हिंदु र्धम के अनुसार नागेश्वर अर्थात नागों का ईश्वर होता है। यह विष आदि से बचाव का सांकेतिक है। रूद्र संहिता में इन भगवान को दारूकावने नागेशं कहा गया है।




अंजना ने तो ’जय नंदलाला, जय गोपाला’ भजन गाना शुरू कर दिया और हम सब कोरस करने लगे। वहाँ जो मैं महसूस कर रही थी, उसे लिखने में असमर्थ हूं। माया शर्मा ने बताया कि उनका परिवार तो सुबह बिना नहाये दर्शन के लिये आ गया था तब द्वारकाधीश का श्रृंगार नहीं था। वे दक्षिण प्रवेश द्वार से, 56 सीढ़ियां से गोमती द्वारका की ओर गये। जिसे निष्पाप कुण्ड कहते हैं। यहाँ स्नान करते हैं। फिर अपनी श्रद्धा से तुलादान और गऊ दान करते हैं। उसने कहा कि गोमती दर्शन जरूर करना चाहिये क्योंकि गोमती सागर से मिलने से पहले भगवान से प्रार्थना करती हुई कहने लगी कि भगवान आपके बिना मेरे दिन कैसे कटेंगे?
ये सुनकर भगवान ने कहा कि मैं प्रतिदिन यहाँ दो समय आऊंगा और जो व्यक्ति द्वारकानाथ के दर्शन करेगा तो उसको आधी यात्रा का फल मिलेगा।
हम बाहर आये, बाजार से निकल कर सागर की ओर गये। समय कम था गोमती जी के दर्शन किये । सजे हुए ऊँट थे उन पर सवारी कर सकते हैं। सागर दर्शन किये। सागर तट की हवा का आनन्द उठाया।
धूप तीखी लगने लगी। रात दो ढाई घण्टे की नींद ली थी और सुबह खाली चाय पी थी। मन में था कि पहले दर्शन फिर जलपान। अब एक रैस्टोरैंट में गये। जे. पी. गौड़ आलू का परांठा, भाजी और लस्सी का आर्डर कर आये। मुझसे सलाह करते तो मैं नया गुजराती खाना ढूंढती। पर फिर मैं कैसे जान पाती कि यहाँ पंजाब जैसा परांठा मिला, खूब मसाला भरा हुआ कि कई जगह से कवर से मसाला बाहर आ जाता है, जो बनाने में मुश्किल होता है पर स्वाद लाजवाज!!क्योंकि जहां से मसाला तवे पर डायरेक्ट सिकता है तो वो आलू टिक्की का स्वाद देता है। लस्सी ने तो मुझे गाय पालने के दिन याद करवा दिये। हमारी जर्सी और साहिवाल गाय बहुत दूध देती थीं। हम दहीं में तेज चीनी डाल कर , मथा हुआ फ्रिज में रख देते। ठंडा होने पर पीते। वैसी लस्सी यहाँ मिली। अब पैदल बाजार घूमने लगे।
गुजराती रंगों में हाथ के काम की सिंधी कढ़ाई की, शीशे के काम के अनगिनत सामान, बैग और दुप्पट्टे आदि। पूनम माटिया तो एक दुप्पट्टे पर बुरी तरह रीझ गई। तुरंत खरीद कर जिंस र्शट पर शॉल की तरह ओढ़ कर चल दी।
द्वारका पुरी में कहीं भी कूड़े के ढेर नहीं दिखे। एक टैर्क्टर रूक रूक कर निकल रहा था। लोग उसमें कूड़ा डाल रहे थे। लोगों से पूछने पर पता चला कि भद्रकाली चौक पर टूर एण्ड टैर्वल्स की दुकाने हैं। वहाँ से वॉल्वो बुक होती है। जिसे आराम करना था , वह होटल चल पड़े। मुझे तो शहर से परिचित होना था। मैं बुकिंग के लिये साथ चल दी। दुकान पर और हैरान हुए, यहाँ से 100रू में एक बजे बस चलती है बेट द्वारका के लिये, रास्ते में रूक्मणी मंदिर, नागेश्वर, गोपी तालाब दर्शन करवाती ले जाती है। अहमदाबाद के लिए ए.सी. स्लिीपर वॉल्वो 550रू में रात 9 बजे की टिकट ले ली और बेट द्वारका की भी। 12 बजे होटल से चैक आउट करना था। पैकिंग तो मैंं सुबह कर आई थी। त्यागी जी को होटल का हिसाब करना था,’’ मैं बोली,"मैं आती हूँ।’’ और मैं अकेली इधर उधर डोलती रही। एक टाँगा देख कर मैंने उसमें भी चक्कर लगाया।
मैंने होटल आकर सीरियसली सबसे से कहा कि इकोफैंडली टाँगा ,यातायात का बहुत अच्छा साधन है। सब हंसते हुए बोल,’’अगर तुम घोड़े का चारा लाने और घोड़े की लीद उठा कर, ठिकाने लगाने की ड्यूटी ले लो, तो हम पॉल्यूशन फैलाने वाली गाड़ी हटा कर, इकोफैंडली टांगा रख लेंगे। जिस पर तुम घुड़सवारी भी कर लेना| क्रमशः 

वहाँ पहुंच कर पहले बाहर से मंदिर की वास्तुकला देखती रही।
छैनी हथौड़ी का पत्थरों पर कमाल! न बिजली थी, न ड्रिल मशीन तब भी इतना भव्य। यहाँ भी न कैमरा, न मोबाइल, कुछ भी इलैक्ट्रानिक नहीं ले जा सकते, सब कुछ जमा करवा लिया, अच्छा लगा। अब भगवान के दर्शन मन की आँखों से करेंगे और दिल में बसायेंगे। बाहर तुलसी की माला बिक रही थी।
अंदर जाते ही दाहिने हाथ पर कई मंदिर थे। सबके दर्शन करके द्वारकाधीश के मंदिर के सामने श्रद्धालुओं की भीड़ में लाइन में खडे हो गये। महिलाओं की लाइन अलग थी। इस समय मेरी लाइन थोड़ी ऊंची थी। पुजारी परदा हटाते और एक झलक भगवान की दिखाते। साथ ही दर्शनार्थी जय जयकार करने लगते। अब मैं ऊंचे में सबसे आगे थी ,मेरे आगे से परिक्रमा वाले निकलते। सबसे आगे पण्डा बोलता,’’द्वारका में कौन छे।’’ पीछे परिवार का मुखिया, फूलों से सजी टोकरी सिर पर रक्खे चल रहा होता, साथ के लोग परिक्रमा करते बोलते,’’ राजा रणछोड़ छे।’’ मेरे बराबर पुरूषों की लाइन थी। वहाँ तो सभी भावविभोर थे। साथ वाले ने भरे गले से पूछा,’’ ये मेरे द्वारकाधीश को रणछोड़ क्यों कह रहें हैं?’’ मैंने अपनी दादी से जो सुना था सुनाने लगी कि मगधपति जरासंध की दोनो बेटियां कंस से ब्याही थीं। जब भगवान ने कंस का वध किया तो जरासंध अपने दामाद की मौत का बदला लेने के लिये बार बार मथुरा पर चढ़ाई करता। प्रजा को कष्ट न हो एक बार श्री कृष्ण अपने भाई बलराम के साथ युद्ध से भाग गये। जरासंध के सैनिकों ने उनका पीछा किया और जरासंध उन्हें रणछोड़ कह कर अपने सैनिकों के साथ हंसते हुए उनका मज़ाक बनाने लगा। दोनों भाई थकान से चूर प्रर्वशक पर्वत पर आराम के लिए चढ़ गये। यहाँ वर्षा बहुत होती थी। जरासंध ने दोनो को बहुत ढूंढा पर वे नहीं मिले। उसने अपने सैनिकों से पर्वत के चारों ओर आग लगवा दी। लेकिन दोनों भाइयों ने पर्वत से छलांग लगा दीं और समुद्र से घिरी द्वारका पुरी में पहुंच गये। वे संदेश देना चाहते थे। जब अपने से ज्यादा शक्तिशाली शत्रु से जान का खतरा हो तो जान बचा कर उससे दूर होकर, अपनी शक्ति का संचय करो। मुकाबला तब करो, जब अपने बल पर यकीन हो। जरासंध उन्हें मरा समझ कर खुशी खुशी लौट गया और अपने को बहुत शक्तिशाली समझ घमण्ड में चूर होकर, श्रीकृष्ण के लिये रणछोड़ नाम फैला दिया। लाइन भी धीरे धीरे खिसक रही थी। मैं भी द्वारकाधीश के सामने पहुंच गई। अच्छे से दर्शन हो गए। अब मंदिर में जितने भी हमारे देवी देवता प्रतिष्ठित थे, मैंने सबके दर्शन किए, जैसी भी मुझे पूजा आती है की। अब मैं बैठ कर देश के कोने कोन से आये श्रद्धालुओं को देखती रही। भीड़ में मुझे वो पण्डा दिख गया जो बोल रहा था ’’द्वारका में कौन छे, राजा रणछोड़ छे ’’ मैंने उसके पास जाकर पूछा कि आपके पीछे एक आदमी सजा टोकरा लेकर जा रहा था, उसके पीछे लोग चल रहे थे। ये सब क्या था? पण्डित जी ने बताया कि टोकरे में पताका होती है। इसे चढ़ाने के लिए दो साल की वेटिंग है। वो सगे संबंधियों मित्रों और बैण्ड बाजे के साथ आते हैं। बैण्ड बाजा मंदिर परिसर में नहीं आने देते। मंदिर के अंदर तो द्वारकाधीश के नामों के जयकारे लगते हैं। और मैं मन में इनका एक भजन दोहराने लग गई। इनके तो अनेक नाम हैं ’’कोई कहे गोविंदा, कोई कहे गोपाला, मैं तो कहूं सांवरिया बांसुरी वाला।’’ मैं चल दी। हम सब चप्पल काउंटर पर मिले। मोबाइल लिये। बैण्ड की आवाज सुनते ही वहाँ पहुंची, कोई झण्डा ला रहा था। "ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों' का इस धुन पर परिवार नाच रहा था। मेरे साथियों के साथ एक सन्यासी भी उठ कर नाचने लगा।



लेडिज़ वेटिंग रूम में चार्जिंग के प्वाइंट बहुत थे। जो भी महिला आती, वह सबसे पहले चार्जर लगाती। मैंने भी लगा दिया। पूनम माटिया टिकट ले आई और उन्होंने बताया कि गाड़ी प्लेटर्फाम नम्बर दो पर आयेगी। त्यागी जी ने कहा,’’ चलो लंच कर आते हैं।’’ सब सामान उठाकर चल दिये। मैं पीछे रह गई। जब तक मैं चार्जर उतार कर, सामान लेकर बाहर आई। मुझे कोई दिखा ही नहीं। मैं लगेज़ उठा कर सीढ़ियों से प्लेटर्फाम नम्बर दो पर आ गई। वडोदरा स्टेशन पर कॉफी और दाल के पकौड़े बहुत स्वाद मिलते हैं।
हरी मिर्च के साथ मैं पकौड़े और कॉफी का आनन्द उठा ही रही थी कि अंजना का फोन आया कि मैं अब तक क्यों नहीं आई? मैंने बता दिया कि मैं नहीं आ रही दोबारा सीढ़ियां चढ़ कर, यहीं खा रहीं हूं फिर मैंने एक वड़ा पाव भी खाया। थोड़ी देर में सब आ गये। गर्मी थी लस्सी के पैकेट ले लिये। गाड़ी में सवार हो, हम द्वारका जी चल पड़े। अब त्यागी जी द्वारका के होटल में कमरों की बुकिंग में लग गये। स्लीपर डिब्बा था, खिड़कियां खुली थीं। आस पास ऊपर जिसको जहाँ जगह मिली वो लेट गया। जब सब सोकर उठे तो त्यागी जी ने बताया कि गाड़ी रात सवा बारह बजे द्वारका पहुंचेगी। रूम बुक हो गये हैं, जाते ही सो जाना है। सुबह से लेकर रात तक द्वारका घूमना है। रात को वॉल्वो में स्लीपर में सोते हुए अहमदाबाद आना है। अहमदाबाद घूम कर फिर शाम 4.30 की फ्लाइट से दिल्ली लौटना है। अब हमने लोगों को रिक्वेस्ट करके, सब सीट आसपास कर ली, बतियाते खाते ,छाछ, चाय पीते रास्ता काट रहे थे। और खुश थे कि हमें रिर्जवेशन मिल गया और हमारी एक धाम की यात्रा हो रही थी। गाड़ी कहीं भी खड़ी हो जाती थी। खाने का ऑर्डर लेने आये। सबने डिनर ऑर्डर किया। मैंने नहीं किया। मैं तो स्टेशन में खाने के स्टॉल को घूर घूर कर देखती, अगर गाड़ी 5 मिनट रूकती तो जाकर ले आती जैसे खाकरे, थेपले, इडली, वड़ा, सिंगदाना आदि। बारह बजे के बाद गाड़ी में ठंड लगने लगी। हवा के साथ मिट्टी बहुत आ रही थी। हमारे बालों, कपड़ों, मुंह पर मिट्टी की परत जम गई थी। मैं जिंस और फुल स्लीव कुर्ते में थी, दुप्पटा होता तो सिर से पांव तक ढाप के सो जाती। पैरों में ठंड लग रही थी। मैंने पर्स में पैर डाल लिये और बालों से मुंह ढक लिया और सो गई। सागर जी ने स्टेशन आने से पहले आवाज लगाई। सब सामान समेट कर तैयार हो गये। रात ढाई बजे हम स्टेशन पर उतरे। होटल से फोन आया था। हमने बताया कि गाड़ी लेट है। उसने कहा कि होटल स्टेशन के पास है। 50रू ऑटो वाला लेगा। ऑटो से पूछा, वह बोला 200 रू। हममे से कोई गुस्से से बोल गया कि तीर्थ स्थानों पर यही प्राब्लम है, बाहर से आने वालो को लूटना। किसी ने सुन लिया। अब तो ऑटो आते जा रहे, लोग बैठते जा रहे। हमें कोई मना भी नहीं कर रहा, न ही बैठा रहा था। मैं सामान के पास खड़ी थी। बाकि ऑटो के लिये कोशिश कर रहे थे। मैं यहां अलग अलग प्रांतों से आये श्रद्धालुओं को देखने में मस्त थी। मैंने देखा एक आदमी फोन करता था। सामने आता हुआ ऑटो एक ग्रुप के आगे खड़ा होता, वह उसमें चढ़ जाता। मैंने उससे पूछा कि ये हमें क्यों नहीं बिठा रहे हैं। वो बोला,’’इन लोगो के होटल र्धमशाला दूर हैं। आज गाड़ी बहुत लेट थी ,सब आटो वाले चले गये थे। मैं फोन करके बुला रहा हूं। वो देखो आपके लिये भी आ गया। दस लोग बैठ सकते हैं। 20रू सवारी यानि 200 रू। रात में बीस रूपये सवारी, मैं हैरान!! उसने छत पर हमारा सामान रक्खा, हमें बिठाकर वह होटल पहुंचा गया। क्रमशः 

नर्मदा जी के दोनों ओर सतपुड़ा और विंध्याचल की पहाड़ियाँ हैं। सामने हरियाली से ढकी पहाड़ियां दिख रहीं थीं नीचे नर्मदा जी बह रहीं हैं और सरदार पटेल का चेहरा, सरदार सरोवर की ओर है।
हम बस से उतर कर लाइन में लग गये। गाइड केे साथ देवेन्द्र वशिष्ठ टिकट लेने गये। ये 9 बजे सेे सायं 6 बजे तक खुलता है। 3 साल से कम बच्चे निशुल्क है और 3 साल से 15 साल तक का किराया 60रू है। 350रू के टिकट में डेक व्यू, इसमें ऑब्जर्वेशन, डेक में एंट्री के साथ वैली ऑफ फ्लावर, सरदार पटेल मेमोरियल म्यूजियम, ऑडियोविजुअल गैलरी के साथ एसओयू साइट के साथ विहंगम दृश्य और सरदार सरोवर डैम घूम सकेंगे। टिकट आते ही हमारी एंट्री हुई। सफाई व्यवस्था अति उत्तम, टॉयलेट ऐसे जैसे अभी बने हों। अब हम सब गाइड को घेर कर चल रहे थे। वो हमें बता रहे थे कि सरदार पटेल के जन्मदिवस 31 अक्टूबर 2018 यानि उनकी 143वीं जयंती को माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्टैचू ऑफ यूनटी का उद्घाटन किया था।
नौका विहार, 360डिग्री व्यू गैलरी, जाली से सरदार सरोवर बांध देखना, ये आकर्षण हैं। नदी से पाँच सौ फीट ऊंचा आब्जर्वर डेक का भी निर्माण किया गया है। जिसमें एक ही समय दो सौ लोग मूर्ति का निरीक्षण कर सकते हैं। सूरज की किरणे भी मूर्ति की छटा को आर्कषक बनाती हैं। गुजरात का पर्यटन सोमनाथ, द्वारका जी और गिर वनों के कारण 17 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। अब सरदार पटेल की मूर्ति को देखने तो आना ही है। स्टेच्यू आफ यूनिटी के बारे में





अब फिर खूबसूरत रास्तों से हमारी बस चल पड़ी। रास्तें में चाय के लिये रूके। वहाँ का आर्कषण था ’चारपाइयाँ, खरगोश और बत्तखें’।
हम तस्वीरें लेने में लग गये। कमरे सब बुक थे। हमें एक बडा हॉल 45 गद्दे और 45 तकिये मिल गये।
जगह मिलते ही सबने चैन की सांस ली। अब बस से सामान उतार कर, साफ सुथरे हॉल में रख कर हम मंदिर घूमने चल दिये क्योंकि रात 9.30 पर मंदिर के द्वार बंद हो जाते हैं। इसे तो धाम के साथ पिकनिक स्पॉट भी कह सकते हैं। देवेन्द्र वशिष्ठ सबसे पहले सबको फूड र्कोट लेकर गये। कई तरह के खाने के स्टॉल थे। मसलन साउथ इण्डियन, र्नाथ इण्डियन, पंजाबी, गुजराती, फास्ट फूड आदि। रेट लिस्ट लगी थी। कूपन एक ही जगह मिल रहे थे। पैसा दो कूपन लो। स्टॉल से खाने को लो। सैल्फ सर्विस। सफाई की उत्तम व्यवस्था, सब डस्टबिन का प्रयोग कर रहे थे। डिनर के बाद सब घूमने लगे। बच्चे वहाँ बहुत खुश नज़र आ रहे थे। कई तरह के जोन थे। र्पाक, बच्चों के खेल, प्रदर्शनी हॉल, हारर हाउस, मिरर हाउस, एम्यूजमैंट र्पाक, साइंस सिटी और मनपसंद साफ सुथरा खाना। भजन कीर्तन तो चल ही रहा था। बहुत खूबसूरत धाम है, तीर्थ यात्रा भी और पिकनिक भी। घूम कर थक गये तो हॉल में आ गये। सबने लाइन से गद्दे तकिये लगा लिये। मैं नीचे नहीं बैठ सकती इसलिये दीवार के साथ पाँच गद्दे रक्खे थे। मैं उन पर लेट गई। बराबर में अंजना ने अपना सिंगल गद्दा लगा कर कहा कि बेफिक्र होकर सो। नींद में गिरोगी तो मेरे गद्दे पर। मैं आराम से सोई। सुबह 6 बजे स्टैचू ऑफ यूनिटी के लिये निकलना था। 4 बजे से सब एक दूसरे से पहले स्नान, ध्यान, योगा में लग गये । हम दोनो सोती रहीें और आँख खोल कर देख भी लेंती कि हमें स्नान का मौका मिलेगा कि नहीं, फिर सो जातीं। बस लग गई। हम कल वाले कपड़ों में सोई थीं, वैसे ही उठ कर लगेज़ उठाया और बस में बैठ गईं। क्रमशः