नीलम भागी

गाइड पण्डित जी ने हमें बताना शुरू किया। बेट द्वारका ओखा से 3 किमी. दूर है। इसकी लम्बाई लगभग 13किमी और चौड़ाई 4किमी. है। भारत की आखिरी बस्ती है। 160 किमी. तक समुद्र फैला है। यह कच्छ की खाड़ी में स्थित द्वीप है। आगे पाक करांची है। यहां जाये बिना द्वारका जी की ये यात्रा पूरी नहीं मानी जाती यानि पूरा फल नहीं मिलता। यह द्वारका से 30 किमी. दूर है और पाँच किमी समुद्री रास्ता है। बेट द्वारका का वह स्थान है जहां पर भगवान ने नरसी भगत की हुण्डी भरी थी। (तब पैदल यात्रा करते थे। धन चोर न चुरा लें इसलिये भरोसेमंद व्यक्ति के पास धन जमा कर, उससे दूसरे शहर के व्यक्ति के नाम धनादेश यानि हुण्डी लिखवा लेते थे।) नरसी मेहता की गरीबी का मज़ाक उड़ाने के लिये कुछ खुरा़फाती लोगों ने द्वारका जाने वाले तीर्थयात्रियों से उनके नाम हुण्डी लिखवा ली पर जब यात्री द्वारका पहुंचे तो भगवान ने नरसी की लाज रखने के लिए श्यामल सेठ का वेश बना कर नरसी की हुंडी भर दी।

भगवान Krishna आराम कर रहे थे। एक द्वारपाल ने आकर उनसे कहाकि एक भिखारी आप से मिलना चाहता है। पहले तो भगवान को गुस्सा आया कि उनके राज्य में भिखारी !! फिर उन्होंने कहा कि जो मांग रहा है उसे दे दो। उसने कहा कि वो कुछ मांग नहीं रहा है। किसी गुरू सानदीपानी का नाम ले रहा है। सुनते ही भगवान नंगे पावं दौड़े। ये वो जगह है, जहां भगवान के मित्र सुदामा, पोरबंदर जिसे सुदामापुरी कहते हैं वहाँ से पैदल भगवान से मिलने गये थे। दोनो की भेंट का मतलब, मुलाकात और उपहार भी होता है, भेंट भी हुई थी और वे भेंट में भी चावल लाये थे। इसलिये इसका नाम भेट द्वारका पड़ा। गुजराती में यह बेट हो गया। यहाँ 10,000 परिवार रहते है, जिसमें से 2000 परिवार हिन्दु हैंं जिनकी जीविका मंदिरों से जुड़ी है। 8000 परिवार मुसलमान है उनकी मुख्य आजीविका मछली पकड़ना है। अब खाली वीरान शुष्क मैदान थे। बीच में टाटा कैमिकल्स का कारखाना था। पण्डित जी ने कहा कि बस जहाँ आपको उतारेगी। वहीं मिलेगी। सायं 6 बजे यहाँ से चल देगी। उतरने पर पैदल आपको जेट्टी तक जाना है। उसका किराया बीस रूपये है। मैं आपके साथ चलूंगा। जब आप दर्शन करके लौटोगे तब भी मैं आपको वहीं खड़ा मिलूंगा। वे इतने सुन्दर ढंग से हमें तीर्थों की कहानियां सुनाते हुए यात्रा करवा रहे थे। सबने अपनी श्रद्वा अनुसार उन्हें रूपये दिये। बस से उतर कर हम पण्डित जी के साथ जैट्टी के लिये चल दिये। बस की सब सवारियों को जेट्टी पर चढ़ाया। एक जेट्टी पर 200 सवारियां बिठाने की अनुमति थी।



