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Thursday 16 May 2019

सोमनाथ, भालका तीर्थ गुजरात यात्रा 12 नीलम भागी Somnath, Bhalka Tirth, Gujrat yatra

सोमनाथ, भालका तीर्थ गुजरात यात्रा 12
नीलम भागी
सुबह नींद खुलते ही मैसेज देखा, हमें यहाँ से 9.30 बजे चैक आउट करना था। हम फटाफट बाहर आयें, एक शेयरिंग आटो जा रहा था, हम भी उसमें बैठ कर मंदिर चल दिये। दर्शन तो रात में अच्छे से हो गये थे। लाइन में लगने का तो समय नहीं था। अब हम विश्व प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर को दिन में देखने आये थे । हमारे तीर्थ स्थानों से सम्बंधित कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में होती हैं। उन्हें पढ़ती हूं पर वहाँ गाइड या पंडों से सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि उनका सुनाने का तरीका बहुत रोचक होता है। यहाँ भी कुछ तीर्थ यात्रियों के साथ एक पण्डित जी कथा सुना रहे थे। कथा सुनने की शौकीन, मैं भी उनमें शामिल हो गई। कथा इस प्रकार है कि चंद्रदेव ने दक्षप्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था। लेकिन उनमें से रोहिणी सबसे सुन्दर थी इसलिए उस पत्नी को सबसे अधिक प्यार और सम्मान देते थे। बाकि बहनों ने इस अन्याय की अपने पिता को शिकायत की। यह सुन कर क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्रदेव को शाप दे दिया कि अब से हर रोज तुम्हारा तेज घटता जायेगा। ऐसा होने लगा। यह देख इंद्रा आदि देवता ब्रहमा जी के पास गये। ब्रहमा जी ने कहा कि चंद्रमा अपने शाप मोचन के लिये पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाकर मृत्युजंय भगवान शिव की आराधना करें। शाप से विचलित और दुखी चंद्रदेव ने शिव जी की आराधना की ।   
भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर दिया और कहा कि इस वर से तुम्हारा शाप मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक एक कला क्षीण होगी और इसी तरह बढ़ेगी और पूर्णिमा को पहले की तरह चंद्रत्व प्राप्त होगा। चंद्रदेव ने सबके साथ प्रसन्न होकर मृत्युंजय भगवान से प्रार्थना की कि वे माता पार्वती के साथ यहाँ निवास करें। उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ज्योतिर्र्लिंंग के रूप में पार्वती के साथ यहाँ रहने लगे। इसे आज भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिगों में माना और जाना जाता है क्योंकि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को अपना नाथ मान कर अराधना की इसलिए इसका नाम सोमनाथ कहा गया है। जिसका ज़िक्र ऋग्वेद, स्कन्द पुराण और महाभारत में भी है।
  अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतांत्र में सोमनाथ के वैभव का वर्णन किया। जिससे प्रभावित होकर महमूद ग़ज़नवी ने सन् 1025 में पाँच हजार साथियों के साथ सोमनाथ की संपत्ति लूटी और मंदिर को नष्ट किया। उस समय हजारो श्रद्धालू मंदिर में पूजा कर रहे थे उनका कत्लेआम किया गया। अत्यंत  वैभवशाली होने के कारण मंदिर कई बार तोड़ा गया और कई बार पुन र्निमाण किया गया। आज हम जिस सोमनाथ का वैभव देख रहें थे। इसका आरंभ भारत की स्वतंत्रता के बाद लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने  करवाया। क्रमशः सोमनाथ मंदिर में एक घण्टे चलने वाले शो में मंदिर के इतिहास का बहुत सुंदर सचित्र वर्णन किया गया था। मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के आधीन है। मंदिर घूम कर, सागर दर्शन करके बाहर आये। सुबह कोई फेरी या फुटपाथ वाला रात की तरह नहीं था। अब आस पास दुकानें सजीं थीं। गैस्ट हाउस आते ही, देवेंद्र वशिष्ठ जी ने कहा,"आप नाश्ता कर आइए।' वे सबका बहुत ध्यान रख रहे थे। चाय, ढोकला हरि मिर्च के आचार के साथ स्वाद लेकर खाया। फिर
सामान रख कर बस में बैठ कर भालका तीर्थ आये।
यह सोमनाथ मंदिर से 4 किमी. दूर है। कथा है कि यहाँ श्रीकृष्ण पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान मुद्रा में लेटे हुए थे। तभी एक जरा नाम के शिकारी, ने उनके लगी मणि को हिरण की आँख समझ कर तीर चला दिया जो उनके पैर में लगा और भगवान अपने धाम को चले गये। मंदिर बहुत सुन्दर है। यहाँ मोबाइल ले जा सकते थे। अब हम अहमदाबाद के लिये चल पड़े। क्रमशः






6 comments:

Chandra bhushan tyagi said...

एतिहासिक ,सामाजिक,धार्मिक ज्ञान से परिपूर्ण बहुत सुन्दर वर्णन।

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Unknown said...

सोमनाथ मन्दिर कथा और भालका तीर्थ स्थल की जानकारी सहित लेख बहुत उत्तम । "मेरी यात्रा " एक पुस्तक रुप मे प्रकाशित करे । सबको लाभ होगा । धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद