मैंने कहा कि
पहले मैं चाय बना कर लाती हूं। तेरे इन्तज़ार में मैंने भी नहीं पी। कहकर मैंने
लाइट जलाई। एक तरफ चाय चढ़ाई साथ ही दो बेसन के चीले बना लिये। चाय नाश्ता लेकर आई
तो वो वैसे ही लेटी थी। मुझे देखते ही उठ बैठी। चाय का पहला घूंट भरते ही मैंने
कहा कि तूं काम नहीं करना चाहती तो मत कर। अब वह बोली कि लवली पोते के पैदा होने के तीन
महीने बाद मैं आई तो सोनी ने मेरी बड़ी आवभगत की। मेरे लिये उषा को रोटी नहीं सेकने
देती खुद सेकती, साथ में कहती
मुझे कुछ तो आपके लिए करने दो। शाम को सोनी दारुबाजी के लिये टेबल ऑरगनाइज़ करती
फिर चारों पीते। मुझे भी साथ देने को कहते। मैं तो पीती नहीं। उषा डिनर कराके अपने
क्वाटर में चली जाती। परिवार में हमेशा की तरह आते जाते कोई मेरे गले में बांह डाल
देता तो कोई किस कर देता। अपनों का ये प्यार ही तो मुझे यहाँ लाता था, जी भी नहीं भरता था और जाने का समय आ जाता था।
पहले मैं आती थी तो जैसे फाइनैंशियल इयर में सब अपना हिसाब किताब करते हैं। वैसे
ही आने पर शशि कपूर मुझे दिखाते कि तूने इतना भेजा मैंने इस तरह लगाया आज की तारीख
में सम्पत्ति की कीमत ये हो गई है। सब जान कर ऐसा लगता जैसे मैंने न जाने क्या
विशेष कर लिया हो। अपने परिवार के सुखद भविष्य के लिये मेहनत करने में मुझे जरा
आलस नहीं आता था। अब बिजनेस भी जम गया। किसी का कुछ देना नहीं। वहाँ इस बार मेरे
दिमाग में प्रश्न आ गया कि मेरे में और उषा में क्या फर्क है? वह रात आठ बजे अपने
पति, बच्चे के साथ होती हैं। दिन भर अपने परिवार के आस पास होती है। अपने देश में
अपने लोगों में है। एक मैं हूं अकेली। अपनो की अपनी बातें करने वाला कोई नहीं है। लौटते
ही अगली छुट्टियों का दिन गिन गिन कर इंतजार करतीं हूं। वे कमा भी रहें हैं। रहन
सहन अच्छा हो गया। घर में सब कुछ है। बड़े लोगो के शौक भी पाल लिये हैं। अब मैं
यहाँ क्यों कमा रहीं हूं? इस बार मैं आई तो
मैंने ब्रेकिंग न्यूज की तरह सबके बीच में ये ऐलान किया कि अब मैं वापिस नहीं जा
रही हूं। यहाँ तो जैसे बम फटा हो। मैं सोच रही थी कि सैलीब्रेशन होगा। सब एकदम चुप
हो गये। सबने चुपचाप खाना निगला और अपने अपने कमरे में चले गये। मैं अपने कमरे में
आई तो पति ने खूब कसके हग किया और पूछा कि क्या इस फैसले के पीछे यहाँ की चिन्ता
है? मैं चुप!! फिर स्वयं ही
जवाब दिया कि मुझे यहाँ की चिन्ता नहीं करनी चाहिये। यहाँ सब कुछ व्यवस्थित है।
सेहत तुम्हारी माशाअल्लाह फिफ्टी प्लस हो पर थर्टी प्लस लगती हो। तुम्हारे जैसी
पत्नी बड़े पुण्य से मिलती है। करवाचौथ पर पत्नियां कहती हैं, हमें साथ जन्म तक यही पति मिले। तुम अमेरिका
में करवाचौथ का व्रत करके स्काइप पर मेरी शक्ल देख कर पानी पीती हो तो मैं रोते
हुए भगवान से प्रार्थना करता हूं कि जितने भी मेरे जन्म हों मुझे राजो ही पत्नी के
रुप में मिले। आमदनी के अनुसार परिवार के खर्चे बढ़ जाते हैं। अब उनकी आवाज बदल गई।
तुम्हारे न जाने का मतलब जो लक्ष्मी आ रही है उसको रोकना यानि लक्ष्मी जी से बैर। तुमने जो भेजा है, मैंने भी तो उसे बढ़ाया है। रिश्तेदारों में
हमारी अलग इज्जत है। बंटी की शादी करनी है। अब जो गाड़ी हम ले रहें हैं, उसकी छ महीने की वेटिंग है। तुम्हारी वाइट मनी
का कितना सहारा है! मैंने कहा कि आप भी मेरे साथ चलो न। सुनते ही एकदम उठ कर बैठ गये
और पंजाबी कहावत बोले,’’एथे दा शाह ओथे
दा स्वाह।’’यानि यहाँ का राजा वहाँ
पर राख। सुनते ही पूरी रात मेरी आँखों से पानी बहता रहा। सुबह ये बोले कि बंटी की
शादी के बाद तुम मत जाना। लेकिन व्यवहार अजीब। अचानक सोनी की मम्मी की तबीयत खराब हो गई।
वो लवली को लेकर मायके चली गई। बंटी तो बहुत ही काम में व्यस्त हो गया। उषा मेरे
लिये समय से खाना चाय पानी करती रही। शशि कपूर घर पर ही रहे। मेरे आस पास पर काम की
बात की, नो फालतू बात। तीन दिन
बाद सोनी लवली को लेकर आ गई। मैं लवली को लेने लगी तो सोनी बोली,’’मम्मी इसे गले का इन्फैक्शन है आपको भी लग
जायेगा फिर आपको जाना भी हैं।’’ मैं वहीं रुक गई।
अपने ही घर में अजनबियों की तरह रह रही थी। सोनी हर समय अच्छे भले लवली के साथ
रहती लेकिन मैं सुन लूं, उषा से मेरे खाने
पीने का ऊँची आवाज में पूछ कर, ये जताती कि उसे मेरा कितना ख़्याल है! बीमार बच्चे
के कारण वह मजबूर है। बीमार बच्चे को लेकर बीमार माँ को भी सुबह देखने जाती शाम को
आती। आज सुबह मैंने नाश्ते के समय कह दिया कि मैं दुबई जा रहीं हूं। मेरी बॉस आ
रही है। दो दिन बाद वहाँ से अमेरिका। मैं अकेली जाउंगी, सब लवली का ध्यान रखना। कोई
बीमार बच्चे को छोड़ कर मेरे साथ नहीं जायेगा। जाते समय सामान मेरे साथ कुछ होता ही
नहीं। तैयारी मैंने पहले से कर रखी थी। बाहर कैब बुला रक्खी थी। बैग पर्स लेकर
जल्दी से उसमें बैठी और बोली,’’चलो’’। तेजी से सब आकर कोरस में बोले,’’ऐसे कैसे अकेले जाने देंगे?’’गाड़ी तो चल ही पड़ी थी। अब मैं तेरे सामने
हूं।
ग़ज़ब की सुन्दर राजो का इस मानसिक कष्ट में भी
उसका भोला सा चेहरा अलग सा लावण्यमय लग रहा था। मैंने कहा कि जीवन संध्या में
बच्चे बाहर बहुत अच्छे से कमा खा रहें हैं। तूं इसे अपना ही घर समझ कर मेरे साथ
रह। बता डिनर में क्या खायेगी। वो बोली,’’पुलाव बना लेते हैं। बस तूं मेरे साथ रह। मेरे साथ ही वह किचन में गई। वहां
मेरा मोबाइल पड़ा था जो मुझे याद ही नहीं था। देखा शशिकपूर की कई कॉल। राजो बोली कि
उसने फॉन ऑफ कर रक्खा है। राजो ने कहा कि कॉल बैक करलो। क्या पता कि ज़मीर जाग जाए
और ये यहाँ न आ जाये। मैंने कॉल बैक करके माफी मांगी कि मोबाइल रख कर भूल गई थी।
उसने मुझसे माफी मांगी कि राजो को अचानक जाना पड़ा, वे मुझे मिलने नहीं आ सके।
मैंने नाराज़गी दिखाई और कहा कि मेरी एक ही सहेली, मुझे फोन करती तो मैं एयरपोर्ट पहुंच जाती। आप भी लौटते हुए
नहीं आये। अब उसने माफी मांग ली। माफी का आदान प्रदान हो गया। अब राजो के चेहरे पर
हल्की सी मुस्कान आई। हमने डिनर किया। मैंने राजो से पूछा,’’तूं क्यों वापिस जा रही है? उसने जवाब दिया कि मैं सारा पैसे घर भेजती थी। मेरे पास कुछ
नहीं है। घर में मंहगी वाइन से सजा बार देखती हूं। इनके और शौक हैं, करें जितनी
इनकी कमाई है, उससे। अब मैं
इनके शौक के लिए काम करने नहीं जा रही हूँ। अपने लिये काम करुंगी, खु़द के लिए जिऊंगी और हो सकता है, मैं न भी आऊँ। जो मुझे
अपने लिए ठीक लगेगा, वह करुंगी। अपना बैंक बैलेंस लेकर हो सकता है। इनकी छाती पर
रहूं। मैंने उसका गुस्सा शांत किया। कितने साल से तो वह मुझसे अलग है। कहते हैं कि
पुरानी बातों को कहने और सुनने का एक नशा होता है। आज पहली बार हमने बचपन की मेरठ
की बातें करनी शुरु की और खूब हंसे। अगले दिन हमने मेरठ जाने का प्रोग्राम बना
लिया। अपने मौहल्ले में घूमेंगे। बचपन की
उन्हीं दुकानों की चाट पकौड़ी, जलेबी, कचौडी, मिठाई खायेंगे, लस्सी पियेंगें।
उसे खुश देख कर मैं बोली,’’तेरे वो राकेश और
लुच्चे मुरारी को भी देखेंगे।’’ वो ठहाके मार कर
हंसने लगी। जब कभी कहीं जाना हो तो प्यारे लाल को बुला लेते हैं। राजो ने मना कर
दिया कि वो हमारी बचपन की बेवकूफियों की बातें सुनेगा। दोनो बस से जायेंगे। सुबह
हल्का सा नाश्ता करके हम चल दीं। पहले हम काली पल्टन के मंदिर गये। हम दोनो तीस
साल बाद इस शहर में आये थे। शहर बहुत बदल गया था पर खाने पीने की चीज़ों का स्वाद
वैसा ही लाजवाब था। पेट भर गया था पर मन नहीं भरा था। अब हम अपने मौहल्ले गए सभी
ने बहुत तरक्की की। नई बसी कालोनियों में मकान फ्लैट खरीद कर चले गये। राजो बोली,’’अरे मेरे राकेश और मुरारी न दुकान बेच कर कहीं
चले गये हों।’’मैंने उसे समझाया
कि दुकान जितनी पुरानी होती है, उतनी अधिक चलती है। वो दोनों वहीं होंगे। पहले
हम मुरारी की दुकान पर गये। राजो दूर से देखते ही बोली,’’इसका बाप अब तक जिन्दा है!’’पर पास जाने पर देखा वो मुरारी ही था। मैंने कहा,’’ दो मीठे पान देना, तम्बाकू नहीं डालना।’’उसने पान लगाते हुए राजो को ताड़ते हुए मुझसे पूछा,’’आप पण्डित जी की लड़की हो न, घर में सब ठीक हैं।’’मैंने हां में सिर हिलाया। राजो से गंदे पान से रंगे दांत दिखा
कर पूछा,’’ और कैसे हो जी?’’ राजो हंस दी। मैंने पैसे दिए तो ले नहीं रहा था। हमने पान रख दिए। उसकी दुकान पर एक सुलगती सूतली की रस्सी सिगरेट पीने वालों के
लिये थी। हम बात कर रहे सिगरेट सुलगाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी। ये देख
उसने पैसे काटे। मैंने पूछा,’’बच्चे क्या कर
रहें हैं?’’ उसने कहाकि पाँच
लड़कियां हैं। तीन की शादी कर दी। घर चलो, खाना खा कर जाना। हमने कहा कि अगली बार। उसकी दुकान से दूर जा कर, हम पता नहीं
क्यों खूब हंसे! मैंने कहा राकेश भी ऐसा ही होगा। वो बोली,’’आयें हैं तो देख कर ही जायेंगे न।’’ राकेश बनियान और लुंगी पहने दुकानदारी कर रहा था। गर्भवती
महिला की तरह उसका पेट लटक रहा था। हम दुकान में गये। मैंने कहा,’’एक किलो बादाम गिरी और एक किलो काजू देना। उसने बैंच खाली
करवा कर हमें बैठने को कहा और नौकर से बोला,’’तीन चाय लेकर आ मलाई मार के, साथ में प्याज की पकौड़ी। राजो
से बोला,’’ आप तो बिल्कुल बदल गये हो
जी।’’राजो मुस्कुरा दी। मेरा
सामान तोला पैसे नहीं ले रहा था। पर जबरदस्ती दिए। कोई न कोई ग्राहक आ जाता था।
फिर नौकर को उसने इमरती लेने भेजा। उसने पूछा,’’आज मेरठ कैसे जी?’’ राजो ने कहा कि ये किसी काम से आई थी, मैं साथ आ गई। उसने रिक्शा बुला कर हमें
बस अड्डडे भेजा। उसकी राजो बैठी थी इसलिये उसने रिक्शावाले को पैसे पहले दिए। पूरे
रास्ते हम बेमतलब हंसते रहे। बस में बैठते ही मैंने राजो से कहाकि प्रेमी मिलन से
खुशी मिली। वो हैरान होकर मुझसे पूछती है,’’इन्हें देख कर मुझे यकीन नहीं आ रहा है कि मैंने कभी इनसे
प्यार किया था पर किया तो था न। कितने भले से हैं ये। अपने सीमित साधनों में खुश।
राकेश को अब तक याद है कि मुझे प्याज के पकौड़ और गर्म गर्म इमरती पसंद है। घर आकर
सो गए। अगले दिन रात एक बजे की उसकी फ्लाइट थी। दिन भर हम पकाती, खाती, बतियाती रही।
मैं उसे एयरपोर्ट छोड़ने गई। अंदर जाने से पहले मैंने उसे फिर कहा कि मेरे घर को
हमेशा अपना घर समझ कर आना। जब बात करनी हो मैसेज कर देना। तेरे लिये मैं हरवक्त
हाज़िर हूं। मुझे कसके गले लगा कर वह चल दी। शीशों से जब तक वह मुझे दिखती रही .मैं
उसे देखती रही। फिर घर लौट आई।
8 comments:
लेखन ऐसा आँखों के आगे रील चलने लगी उत्तम लेखन
धन्यवाद
कहानी पढकर एक गीत याद आ रहा है जो सटीक बैठता है
"पैसे की पहचान यहाँ, इन्सान की कीमत कुछ भी नहीं ।
बच के निकल जा इस बस्ती से,करता मोहब्बत कोई नही ।।
धन्यवाद, सत्य
ब्लॉग अनुसरणकर्ता बटन (ब्लोग फौलौवर्स) उपलब्ध करवाइये ताकि छपने की सूचना प्राप्त हो सके। आप लगातार लिख रही हैं एक अच्छा ब्लॉग है पाठकों तक पहुँचना चाहिये। शुभकामनाएं।
धन्यवाद् जोशी जी
बहुत कमाल लिखती हैं आप पढ़ कर अंतर्मन तक संतृप्त हो गया☺️
धन्यवाद प्रिय सीमा
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