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Saturday, 30 November 2019

सांस लेता सोना, हाय! मेरी इज्ज़त का रखवाला भाग 4 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 4 Neelam Bhagi नीलम भागी


राजरानी हर महीने मुझे कहती कि मैं सरोजा को समझाऊं कि वह अपना प्लॉट उसे बेच दे। एक दिन आराधना के घर सरोजा से मैंने प्लॉट न बेचने का कारण पूछा, तो बदले में उसने मुझे इस प्रकार कहानी सुनाई कि आराधना और उनके सामने के अर्पाटमैंट में जो हिसाब के मास्टर जी(मैथ लेक्चरर मि. कुमार) रहते हैं न, दोनों के घर की एक चाबी मेरे पास रहती है। मैं इनके कॉलिज से लौटने से पहले दोनो घरों के काम निपटा देती हूँ। एक दिन मुझे बुखार आ गया। मास्टर साहब घर पता करने आये कि मैं बिना बताये घर क्यों बैठ गई? मुझे बुखार में देख कर पहले डॉक्टर से दवा दिलवा कर आये। फिर फल, दूध और अण्डा लाकर पड़ोसन संतोषी को जैसे डॉक्टर ने कहा वैसे मेरा ध्यान रखने को समझाया। जब मैं ठीक होकर काम पर गई तो उस दिन छुट्टी थी। साहब ने कहा,’’सरोजा मेरी बात ध्यान से सुन। तेरा घर बहुत मौके का है। कितनी भी मुसीबत आये इसे बेचियो और बदलियो मत। ये सांस लेता सोना है। राजरानी का होलसेल का काम बहुत फैल रहा है। जितना उसके बाहर के प्लाट का रेट होगा उतना ही तेरे प्लॅाट का, तेरा उसके साथ जो मिला हुआ है। और अगर ऊपर बनायेगी तो भी पैसा ज्यादा नहीं लगेगा। नींव खोदनी नहीं, भरनी नहीं। बराबर में तीनों ओर बीम, पिलर वाले मजबूत स्टोर हैं। तीन ओर की इनकी दिवारों से चिपका कर एक  ईंट की दीवार बना सामने की नौ इंच की। ज्यादा कीमत वाली तेरी ग्राहक राजरानी है। जब भी तूं बेचेगी। वो तो अपने बिजनैस के हिसाब से तोड़ेगी ही। तूं इतनी देर किराया खा लियो। तूं समझदार है, समझ गई न। दीदी उनका हिसाब मुझे समझ आ गया। दीदी समझदार तो मैं कुछ हूं ही न। अब देखो न परशोतम के बाबू बंसी दारु तो पहले भी पीते थे। पर कभी कभी थोड़ा बहुत काम कर लेते थे, अपनी दारु और चखने लायक, थोड़ा बहुत घर में भी मदद कर देते थे। जब पता चला परशोतम देख नहीं सकता है तो दिन भर घर पर रहना , पीना और मुझे पीटना। मैंने अपनी समझदारी दिखाईं। काम से लौटते समय उसके लिए एक थैली ले आती थी। उसे पीकर पड़ा रहता था। सुबह मैं काम पर निकल जाती, बंसी परशोतम को संभालता और थैली के लिए मेरा इंतजार करता। पहले तो पैसे छीन कर भाग जाता था। जी भर के पीता था। जब नहीं मिलती तो मुझे पीटता था। आराधना गुस्से में बोली,’’अपना कमाती थी, अपना खाती थी। तूने उसे घर से निकाला क्यों नहीं?’’ सरोजा हैरान होकर बोली,’’दीदी, कैसी बांतां करती! उसके कारण माथे पर कुमकुम लगाती, गले में मंगलसूत्र पहनती न! एक थैली लाकर पिटाई से बचती। सुबह मैं काम पर आ जाती। दोपहर बाद घर जाती वो थैली देखते ही खुश हो जाता। है न मेरी समझदारी।’’आराधना बोली,’’ कुमकुम न लगाने से और मंगलसूत्र न पहनने से तूं क्या मर जाती?’’ सुन कर वो बड़े भोलेपन से बोली,’’दीदी, कुमकुम लगाने से और मंगलसूत्र पहनने से मैं दूसरे आदमियों की बुरी नज़रां से बची रहती।’’ मुझे डर था कि मुंहफट आराधना बोल न पड़े कि अब कुमकुम और मंगलसूत्र के बिना कैसे बुरी नज़रों से बची हुई है। शायद वो भी यही सोच कर चुप लगा गई होगी कि चालीस साल से कम उम्र में अपनी इस जीवन यात्रा में साठ साल की लग रही है। .’दीदी यहाँ आने से पहले बंसी मर गया। अब उसका भी खर्च बच गया है। पहली मंजिल बनानी मुश्किल पड़ी फिर तो किराये से दूसरी तीसरी चौथी बन गई। अब अपनी जिंदगी में तो मैं इसे बेचूंगी नहीं।’क्रमशः
 

3 comments:

Neelam Bhagi said...

आपके हर ब्लॉग को मैं पढ़ती हूँ और आश्चर्य करती हूँ आपकी लेखन शैली पर🌹🌹

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद वंदना श्रीवास्तव जी

Amit Narang Neuro linguistic programmer said...

Very nicely written mam