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Friday 14 February 2020

दबंग दादी !! भारतीय दृष्टिकोण और ज्ञान परंपरा भाग 4 नीलम भागी Dabang Dadi Bhartiye Drishtikon Aur Gyan ke Parampera part 4 Neelam Bhagi




दादी के उपदेश साथ साथ चलते थे, जो रामायण की चौपाई के अनुसार कभी नहीं होते थे। अम्मा बोलीं,’’माता जी कहतीं है कि भगवान राम साधारण इनसान बन कर, हमें रास्ता दिखाने आये थे। जितनी मरजी परेशानी आये, हमें जीवन से हार नहीं माननी है। जब आयोध्या से परिवार उन्हें वन में मिलने आया था तो लक्ष्मण केकई को देख कर भला बुरा कहने लगे। उनका साथ भरत और शत्रुघ्न देने लगे पर श्रीराम ने उन्हे ऐसा करने से रोका क्योंकि वे परिवार में समरसता चाहते थे। निशादराज को गले लगा कर सामाजिक समरसता चाहते थे। शबरी के झूठे बेर खाकर, उन्होंने संसार को ये संदेश दिया कि सब मनुष्य मेरे बनाये हुए हैं, कोई छोटा बड़ा नहीं है। केवट की नाव से पार हुए तो उसे मेहनताना दिया, मतलब किसी की मेहनत का हक न मारो ताकि समाज में समरसता बनी रहे। बालि का वध सामाजिक समरसता के लिये किया और इस पर कहा कि बालि वध न्याय संगत है क्योंकि छोटे भाई की पत्नी पुत्रवधु के सामान होती है। शरणागत विभीषण को भी अपनाया। राजधर्म, मित्रधर्म और प्रतिज्ञा सबके बारे में साधारण बोलचाल की भाषा में महिलाओं को उनकी जरुरत के अनुसार समझाती हैं। रामराज्य की कामना करतीं हैं। मौहल्लेदारी करतीं हैं। बहुएं इनसे अपना दुख बांटती हेैं। जब ये संस्कृत का श्लोक बोल कर वेदो या गीता का हवाला देती हैं तो मैं समझ जाती हूं कि आज ये किसी को लक्ष्य करके अपनी मर्जी की कहानी कहेंगी। जिसका श्लोक से कोई लेना देना नहीं होगा। दादी के श्लोकों का अर्थ उनकी जरुरत के अनुसार होता है। जो सबके हित में होता है। ये साधारण महिला नहीं हैं।’’
   हमारी त़ख्ती पोतना, स्याही बनाना, कलम की नोक बनाना, दादी ने अपने हाथ में ले रक्खा था। अम्मा को आदेश था कि जो भी किताब पढ़नी है, रात को बच्चों के पढ़ते समय पढ़ो और इनका ध्यान रखो कि ये समय र्बबाद न करें। किताब में रख कर कहानियों की किताब न पढ़ें। इसलिए बहू, शादी के समय मैंने तेरी पढ़ाई देखी थी, तेरा काला रंग नजरअंदाज कर दिया था। दादी द्वारा शुरु की गई परिवार में ज्ञान परंपरा के परिणाम दिखने लगे थे। एम.ए. में पढ़ने वाली बड़ी बहन के लिए कोई रिश्ता आता तो दबंग दादी का जवाब होता,’’अभी पढ़ रही है।’’रिश्तेदार अम्मा को समझाते की पिताजी की रिटायरमैंट तक चारों बेटियों की शादी करक,े गंगा नहाओ। पर दादी का तर्क था कि बहु पढ़ती हुई आई थी, मुझे इसे आगे पढ़ाना चाहिए था, तो ये टीचर बनती। दीदी ने बी.एड में प्रवेश लिया साथ ही पालमपुर में कॉलिज में एप्लाई कियां था। पिता जी के साथ जाकर इंटरव्यू दिया था। नौकरी मिल गई पर दादी ने जाने नहीं दिया। उनका तर्क था कि इक्कीस साल की लड़की को अकेले नहीं छोड़ना है। कोई साथ रहेगा तो मेरे बेटे को दो दो घर देखने पड़ेंगे और पोती को बी.एड. पढ़ाई छोड़नी पढ़ेगी। बी.एड. के बाद घर के पास ही नौकरी करेगी। दीदी को डिग्री कॉलिज की नौकरी न ज्वाइन करने का दुख होता था। क्रमशः

4 comments:

Anonymous said...

प्रशंसनीय

yosom.rajnesh@gmail.com said...

अति सुंदर
भारतीय दृष्टिकोण एवम ज्ञान परम्परा के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए धन्यवाद माता जी

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार आदरणीय

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार