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Monday, 17 February 2020

किताबों की दुनिया, भारतीय दृष्टिकोण और ज्ञान परंपरा भाग 7 नीलम भागी Bhartiye Drishtikon Aur Gyan ke Parampera part 7 Neelam Bhagi

  उत्कर्षिनी के चालीस दिन की होने पर उसे अपने मंदिर में माथा टिकाया, उसके  बाद मैं उसे बड़ेे मामा के कमरे में लेकर गई। उसे किताबे दिखाईं, वो टुकर टुकर किताबों को देख रही थी और मुझे लग रहा था कि वह उस  जगह से परिचित है। उसके जन्म से पहले मेरा सारा दिन उन किताबों में ही व्यतीत होता था। मुझे पंजाब मे टीचर की नौकरी के लिए दसवीं का पंजाबी का इम्तहान देना था। अब मैं पंजाबी पढ़ने लगी और परीक्षा की तैयारी करने लगी। मैं पढ़ती, ये उसी कमरे में शांति से सोती रहती। आठ महीने की बेटी लेकर मैं दिल्ली आ गई। बच्चों को पढ़ाती, उनके साथ ये पता नहीं कब पढ़ना सीख गई। मेरी मजबूरी समझकर, ये किताबों की दुनिया में मस्त हो गई। पहले बी.सी.रॉय. फिर ब्रिटिश और अमेरिकन लाइब्रेरी की मेम्बरशिप ली हुई थी। मैं साहित्य एकाडमी से दो किताबें लाती। दिन भर मैं व्यस्त रहती ,उन्हें अम्मा पढ़ती। रात को उत्कर्षिनी पढ़ते हुए सो न जाये, उन किताबों को मैं पढ़ती। दिन भर की थकी, मैं ही पढ़ते हुए सो जाती। अब हंसते हुए  उत्कर्शिनी बताती है कि आपके सोने के बाद वह उनको भी पढ़ जाती थी। मेरी बेटी क्या पढेगी? ये निश्चित मैंने किया, बेटी की रूचि नहीं देखी। बारहवीं तक उसे मैथ और बायोलॉजी दोनों सब्जेक्ट लेकर दिए, ये सोच कर कि मेडिकल में आ गई तो डॉक्टर बन जायेगी। इंजीनियरिंग के एंट्रेंस में आ गई तो इंजिनियर बन जायेगी। मैं इन प्रतियोगिता परीक्षाओं के आसपास से गुजरीं होती तो मुझे पता होता कि दो जगह तैेयारी करना कितना मुश्किल था!!  बेटी है न, आज्ञा दे दी। पढ़ने की उसे आदत थी, वो मेहनत करने लगी। आज लगता है कि मैं कितनी गलत थी!!  उसने मेरी इच्छानुसार इंजीनियरिंग की, एमबीए  किया। वहाँ जी़ नेट वर्क मीडिल ईस्ट में उसका कैंपस सलैक्शन हो गया था। सारे गामा पा मीडिल ईस्ट और पाकिस्तान सीजन टू में सीनियर मैनेज़र प्रोग्रामिंग, नॉर्थ अफ्रीका एंड पाकिस्तान , बीबीसी का माई बिग डीसीजन की स्क्रिप्ट राइटरं, पाँच साल में चार नामी शो दिए। फिर सब छोड़ कर फिल्म मेकिंग का र्कोस करने एन.वाई. एफ..ए. लॉस एजिंल्स अमेरिका चली गई। जो अब तक कमाया था, सब लगा दिया। वापिस आने पर जी़ ने जॉब कन्टीन्यू करने को कहा। पर ये मुंबई आ गई। संजय लीला भंसाली 2010 में फ्रीमैंटल इण्डिया के शो एक्सफैक्ट में दस महीने तक जज बने थे। वहाँ पर  उत्तकर्षिणी एसोसिएट क्रियेटिव डायरेक्टर थी।संजय लीला भंसाली ने प्रतिभागियों को जज करने के साथ उत्तकर्षिणी को भी जज कर लिया और उससे कहा कि इस शो के समापन के बाद तुम मुझसे मिलोगी। उत्तकर्षिणी का इण्डिया गौट टेलैंट के साथ कांट्रैक्ट था। उस शो के खत्म होते ही उसने संजय लीला भंसाली को फोन किया। उन्होंने उसे तुरंत बुलाया, भंसाली प्रोडक्शन में नियुक्त किया। संजय लीला भंसाली को वह अपना गुरु मानती है क्योंकि उन्होंने  उसे समझाया कि तुम अपने विचारों और शब्दों को लेखन में उतारो। लिखते समय ये मत सोचो कि तुम्हारा लेखन कैसा बिजनैस करता है। और ’गोलियों की रासलीला रामलीला में उत्तकर्षिणी इस फिल्म की एसोसियेट डायरेक्टर थी। अत्यंत सफल, बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न फिल्म निर्माता सुभाष घई की मुक्ता आट्स प्राइवेट लिमिटेड में उत्तकर्षिणी हैड स्टोरी डवलपमैंट के पद पर रही। नामी प्रॉडक्शन के शो में स्क्रिप्ट राइटिंग, स्क्रिप्ट कंसल्टैंट रही। फिर ये अमेरिका चली गई। अब हॉलीवुड में बहुत व्यस्त लेखिका है।
     उत्कर्षिनी की बेटी के जन्म पर मैं बहुत खुश थी और उस साल गीता की 5151वीं जयंती भी थी। हमने उसका नाम गीता रख दिया। क्योंकि हमारी भावना है कि  भारतीय दृष्टिकोण और ज्ञान की परंपरा को हमारी बेटियां आगे बढायेंगी। निरंतर संघर्ष से जीवन को उचाइयों पर ले जाना, यही धर्म है। यही सच्चा कर्म है। हमें हमारे पूर्वजों ने बेटी बेटे में फर्क करना नहीं सिखाया। समाप्त   

2 comments:

Neelam Bhagi said...

Utkarshini ke Janam ki itni sunder aur sateek vivran, Nani dwara poetic Namkaran, Mami dwara Tea making me Mama ki kitabo ka jalana, apki lekhani ki kala darshati hai!! Badhai Ho !!!

Neelam Bhagi said...

फेसबुक, व्हाट्सएप, लिंक पर कुछ कमेंट बहुत अच्छे-अच्छे मुझे मिलते हैं सभी को तो नहीं मैं कॉपी पेस्ट नहीं कर सकती, धन्यवाद डॉक्टर पांडे