21 दिन के लॉकडाउन की खबर सुनते ही अंकुर ने गाड़ी की चाबी उठाई और जरुरी सामान लेने घर से चल पड़ा कुछ दूर जाने पर उसे एक सब्जी का ठेला दिखा। उसे सबसे जरुरी तो सब्जियां ही लगी। श्वेता से सलाह करके तो आया नहीं था। ये सोच कर कि फोन पर कर लूंगा, वो बैंक से आते ही खाना बनाने में लगी हुई थी। अंकुर घर से काम कर रहा था। पांचवीं में पढ़ने वाला शाश्वत, केजी में पढ़ने वाले छोटे भाई एडी को भी संभालता था। क्योंकि जनता र्कफ्यू के दिन से दोनों मेड को भी आने से मना कर दिया था। श्वेता को बैंक तो शायद जाना ही होगा, ये सोच कर वो जरुरत का सामान लेनेे तुुुरंत चला गया। ग्रोसरी की लिस्ट श्वेता वाट्सअप कर देगी। एक सब्जी के ठेले पर सब्जी़ लेने लगा, देखा तो फोन घर भूल आया था। सब्जीवाला बोला,’’आप सब लेलो, मैं तो गांव जा रहा हूं।’’ अंकूर के हम उम्र तीनों दोस्तों की गृहस्थी भी उसकी तरह है। उसने सोचा चारों बांट लेंगे। घर जाते ही उनको फोन कर दूंगा कि सब्जी न खरीदें। इसमें जुकनी, ब्रोकली, मशरुम आदि सब कुछ है। सात हजार में सौदा तय हो गया। सब्जी़वाले ने मण्डी से माल लाने वाले बोरों में पैक करके, गाडी में रखवा भी दिया। पेटीएम से पेमैंट हो गई। घर आते ही इतनी सब्जी देखकर श्वेता का माथा गर्म होने लगा। अंकुर उससे कुछ भी बोले बिना दोस्तों को फोन करने लगा कि उनके लिए सब्जी ले ली हैं, आकर ले जाओ। ज्यादातर का जवाब था कि संडे को हमने काफी ले ली थी। अभी तो फ्रिज में जगह नहीं है। अभी आप रख लो फ्रिज में जगह बनते ही हम ले जायेंगे। मतलब इतनी सब्जी़ को संभालना!! जल्दी जल्दी दोनो ने सब्ज़ियां खोली। आलू, प्याज को छोड़ कर उसमें सब वैराइटी की सब्जियां थी। अंकुर ने अपने ज़िगरी दोस्त अमन को कहा कि तूं जल्दी से मेरे घर आ। दोनो बच्चों को टी.वी. बंद करके कहा कि अब घर में टी. वी. तब चलेगा, जब सब मटर के दाने निकल जायेंगे।, चाहे जितने दिन मर्जी लगें। हमें कोई जल्दी नहीं है। वो सब्जियों से खेलना छोड़ कर, शांति से मटर छिलने लगे। श्वेता उनकी छटाई करके फ्रिज में पैक करने लगी। इतने में अमन आ गया। अंकुर ने उसे कहा,’’जरा भी सब्जी बरबाद नहीं होनी चाहिए। पालक, मेथी, बथुआ और धनिया पौदीना तू ले जा, बचे तो बाकि दोनो को भी दे देना। श्वेता का तो बैंक में मार्च में बहुत काम होता है। मेड भी नहीं है। हम इस समय इन हरी सब्ज़ियों पर मेहनत अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। उसके ले जाने से जगह खाली हुई। कुछ के आचार डाले। कचरे छिलकों से कम्पोस्ट किट की बाल्टी पूरी भर गई। बच्चों को बाहर कोरोना के कारण खेलने नहीं जाना है। टी.वी. बंद था। उन्होंने तीन दिन में मटर छील दिए। उसे वे साथ साथ फ्रीज़र में पैक करते रहे। अब वे वही सब्जी़ खा रहे थे, जिसका जल्दी खराब होने का डर था। हरी ब्रोकली का रंग पीले में न तब्दील हो जाये। उसे खाना मजबूरी है। सारा दिन मास्क लगाये, उचित दाम पर सब्जी़ बेचने वाले आते हैं। पर इनकी मजबूरी है जु़कनी और मटर मशरुम खाना। पर अमन के सहयोग से इन्होंने भी जरा भी सब्जी़ बरबाद नहीं होने दी।
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Tuesday, 31 March 2020
कर भला, पर हो..........!! Lockdown नीलम भागी Ker Bhala Per ho..... Neelam Bhagi
21 दिन के लॉकडाउन की खबर सुनते ही अंकुर ने गाड़ी की चाबी उठाई और जरुरी सामान लेने घर से चल पड़ा कुछ दूर जाने पर उसे एक सब्जी का ठेला दिखा। उसे सबसे जरुरी तो सब्जियां ही लगी। श्वेता से सलाह करके तो आया नहीं था। ये सोच कर कि फोन पर कर लूंगा, वो बैंक से आते ही खाना बनाने में लगी हुई थी। अंकुर घर से काम कर रहा था। पांचवीं में पढ़ने वाला शाश्वत, केजी में पढ़ने वाले छोटे भाई एडी को भी संभालता था। क्योंकि जनता र्कफ्यू के दिन से दोनों मेड को भी आने से मना कर दिया था। श्वेता को बैंक तो शायद जाना ही होगा, ये सोच कर वो जरुरत का सामान लेनेे तुुुरंत चला गया। ग्रोसरी की लिस्ट श्वेता वाट्सअप कर देगी। एक सब्जी के ठेले पर सब्जी़ लेने लगा, देखा तो फोन घर भूल आया था। सब्जीवाला बोला,’’आप सब लेलो, मैं तो गांव जा रहा हूं।’’ अंकूर के हम उम्र तीनों दोस्तों की गृहस्थी भी उसकी तरह है। उसने सोचा चारों बांट लेंगे। घर जाते ही उनको फोन कर दूंगा कि सब्जी न खरीदें। इसमें जुकनी, ब्रोकली, मशरुम आदि सब कुछ है। सात हजार में सौदा तय हो गया। सब्जी़वाले ने मण्डी से माल लाने वाले बोरों में पैक करके, गाडी में रखवा भी दिया। पेटीएम से पेमैंट हो गई। घर आते ही इतनी सब्जी देखकर श्वेता का माथा गर्म होने लगा। अंकुर उससे कुछ भी बोले बिना दोस्तों को फोन करने लगा कि उनके लिए सब्जी ले ली हैं, आकर ले जाओ। ज्यादातर का जवाब था कि संडे को हमने काफी ले ली थी। अभी तो फ्रिज में जगह नहीं है। अभी आप रख लो फ्रिज में जगह बनते ही हम ले जायेंगे। मतलब इतनी सब्जी़ को संभालना!! जल्दी जल्दी दोनो ने सब्ज़ियां खोली। आलू, प्याज को छोड़ कर उसमें सब वैराइटी की सब्जियां थी। अंकुर ने अपने ज़िगरी दोस्त अमन को कहा कि तूं जल्दी से मेरे घर आ। दोनो बच्चों को टी.वी. बंद करके कहा कि अब घर में टी. वी. तब चलेगा, जब सब मटर के दाने निकल जायेंगे।, चाहे जितने दिन मर्जी लगें। हमें कोई जल्दी नहीं है। वो सब्जियों से खेलना छोड़ कर, शांति से मटर छिलने लगे। श्वेता उनकी छटाई करके फ्रिज में पैक करने लगी। इतने में अमन आ गया। अंकुर ने उसे कहा,’’जरा भी सब्जी बरबाद नहीं होनी चाहिए। पालक, मेथी, बथुआ और धनिया पौदीना तू ले जा, बचे तो बाकि दोनो को भी दे देना। श्वेता का तो बैंक में मार्च में बहुत काम होता है। मेड भी नहीं है। हम इस समय इन हरी सब्ज़ियों पर मेहनत अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। उसके ले जाने से जगह खाली हुई। कुछ के आचार डाले। कचरे छिलकों से कम्पोस्ट किट की बाल्टी पूरी भर गई। बच्चों को बाहर कोरोना के कारण खेलने नहीं जाना है। टी.वी. बंद था। उन्होंने तीन दिन में मटर छील दिए। उसे वे साथ साथ फ्रीज़र में पैक करते रहे। अब वे वही सब्जी़ खा रहे थे, जिसका जल्दी खराब होने का डर था। हरी ब्रोकली का रंग पीले में न तब्दील हो जाये। उसे खाना मजबूरी है। सारा दिन मास्क लगाये, उचित दाम पर सब्जी़ बेचने वाले आते हैं। पर इनकी मजबूरी है जु़कनी और मटर मशरुम खाना। पर अमन के सहयोग से इन्होंने भी जरा भी सब्जी़ बरबाद नहीं होने दी।
Saturday, 28 March 2020
परपल पत्तागोभी के अप्पम लॉकडाउन का तीसरा दिन नीलम भागी Purpal Patta Gobhi ke Appam Neelam Bhagi
सबका ख़्याल जो सब्जी़वाला, मुझे अनजाने में नसीहत दे गया था, उसको ध्यान में रखते हुए मैं खाने पीने की वस्तुओं को न तो जरा भी बरबाद होने दे रहीं हूं और न ही बहुत ज्यादा खरीद रहीं हूं। जो गेट पर ठेला आ जाता है वो ले लेती हूं। इसी पद्धति से आज ये व्यंजन बन गया है। आप भी परिवार के सदस्यों की संख्या के अनुसार मात्रा कम ज्यादा कर सकते हैं। वैसे तैयारी मैंने इडली बनाने की, की थी।
एक कटोरी धुली उड़द की दाल और एक कटोरी टुकड़ा चावल मिला कर, अच्छी तरह धो कर, भिगो कर रख दिया। चार घण्टे के बाद मिक्सी में बारीक पीस लिया। और इसे रख दिया। सुबह देखा ये दुगुना हो गया था। एक परपल पत्तागोभी फ्रिज में पहले की रक्खी हुई थी। अपने मिर्च के पौधे से चार मिर्च तोड़ी, करी पत्ता तोड़ा। तीनों को धोकर बहुत बारीक काटकर इडली के घोल में डाल दिया। स्वादानुसार नमक मिलाकर सोचने लगी कि इसका क्या क्या बन सकता है? जिससे बरतन कम घिसने पड़े। अप्पम बनाने के बर्तन पर नज़र पड़ी। उसे ही गैस पर गर्म होने रख दिया। एक एक खांचे में जरा जरा सा तेल डाला और एक एक चम्मच घोल डाल दिया। कुछ देर बाद उसे पलट दिया। पलटने पर तेल नहीं डाला। दूसरी ओर सिकने पर निकाल कर, सीधे प्लेट में डालती गई क्योंकि टिशू पेपर को पिलाने के लिए मैंने फालतू तेल तो डाला ही नहीं था। इसी तरह और घोल डाल दिया। नवरात्र हैं जो हम खा रहें हैं, वही देवी माता को भोग लगा रहें है। उन्हें भी भोग लगा दिया। सबको ये व्यंजन बहुत पसंद आया। कल फिर बनाने की र्फमाइश हुई है कि यही बनाना। कल देखती हूं क्या चेंज करती हूं!! पत्तागोभी तो नहीं है। देखती हूं कल ’यही’ कैसा बनता है।
Friday, 27 March 2020
लॉक डाउन दूसरा दिन नीलम भागी Lock Down Ka Doosara Din Neelam Bhagi
हमने एक जूट का थैला गेट पर टांगा हुआ है। उसे लेकर ही बाहर से जरुरी सामान लेते हैं। कल मैं दूध लेने के लिए घर से पीछे वाले स्टोर के लिए निकली। हमारे घर के बाजू वाला गेट पहले रात 9.30 से सुबह 5.30 तक बंद रहता था। इस गेट से स्टोर बहुत ही पास है। कोरोना के कारण हुए लॉक डाउन होने पर इसे भी लॉक कर दिया गया है। अब मुझे बहुत लंबा चक्कर काट कर स्टोर जाना था। मेन गेट इतना खुला है कि उसे बिना छुए आप आराम से निकल सकते हैं। रास्ते में मुझे सिर्फ आवारा कुत्ते या गाय, सांड दिखे। मेरे हाथ में झोला लटका देख कर मेरे पास आने लगे तो मैंने झोला मोड़ कर पेट से लगा लिया। स्टोर के आगे एक पुलिसमैन खड़ा था, लाइन में लगे लोग मास्क लगाये हुए चूने से बने घेरे में खड़े थे और अपनी बारी की शांति से प्रतीक्षा कर रहे थे। एक समय में एक व्यक्ति को अंदर जाने दिया जा रहा था। एवरेज पंद्रह मिनट का समय प्रति व्यक्ति का लग रहा था। लाइन में ज्यादातर युवा थे। मैं लाइन में आखिर में लगने जा रही थी। नौंवां और दसवां घेरा खाली देख, मैंने हैरान होकर पूछा,’’यहां कोई नहीं खड़ा!! 11 नम्बरवाला बोला,’’ आप खड़ी हो जाइये।’’पीछे लम्बी लाइन देखकर मैं खुशी से खड़ी हो गई। इतने में मेरे आगे खड़ी लड़की ने पीछे मुड़ कर देखा, तो मुझे तुरंत समझ आ गया कि इसके पीछे दो घेरे क्यों खाली थे? वो शायद नॉर्थ इस्ट की थी उसे चाइनीज़ समझ कर उससे दो घेरे की दूरी बना कर खड़े थे। कोई भी आपस में बात नहीं कर रहा था। इतने लोगों के होते हुए भी एकदम सन्नाटा था। आम दिनों में बिल पेमेन्ट के पांच काउन्टर होने पर भी कुछ लोग तो ऐसे आते थे। जिन्हें एक मिनट भी इंतजार करना पसंद नहीं था। वे चिल्लाने लगते कि काउन्टर और होने चाहिए और आज चुपचाप लंबी प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसे ही आगे की लड़की का नम्बर आया। उसके हाथ सैनेटाइज़ किए गए। मैं बिना मास्क के थी। बिना मास्क के अंदर जाने की मनाही थी। ये सब सावधानियां देखकर अच्छा लगा। मैंने कहाकि कोई बात नहीं, मैं बाहर खड़ी रहती हूं। मुझे चार लीटर दूध और एक टाटा नमक की थैली बाहर ही दे दो। इससे जयादा सामान मैं उठा कर ले जा भी नहीं सकती थी और पैसे पकड़ा दिए। इतने में उस लड़के ने कहा कि टाटा का नमक नहीं है। फलां नमक है, वो भी बस 3 थैली ही हैं। मैंने कहा कि वही दे दो। सुनते ही चाइनीज दिखने वाली लड़की बोली,’’दो किलो मेरी ट्रॉली में डालिए।’’सुनकर मैं सोच में पड़ गई कि ये रैस्टोरैंट या पीजी चलाती है क्या।’’
Thursday, 26 March 2020
सबका साथ, सबका विकास, सबका ख़्याल नीलम भागी Sab ka Sath, Sab ka Vikas, Sab ka khyal Neelam Bhagi
आज पहला दिन था। घर से बाहर 21 दिन तक नहीं जाना है। दोपहर में एक सब्जी़वाला ब्लॉक के अंदर आया। मेरा घर कोने का है। उसकी आवाज सुनते ही मैं खुशी से बाहर आई। अड़ोस पड़ोस में रहने वाली भाभियां भी आ गईं। उसके पास कम वैराइटी की थोड़ी थोड़ी सब्ज़ियां थी। एक साबूत, ताजा हरा कद्दू(सीताफल, भोपला) और एक छोटा टुकड़ा भी था। टुकड़ा एक भाभी ने खरीद लिया। मैं हमेशा छोटा सीताफल साबूत ही खरीदती हूं। उसका रायता और तीखी खट्टी मीठी सब्जी बनाती हूं। मैंने कहा,’’भइया कद्दू तोल दो।’’उसने पूछा,’’कितना?’’मैंने कहा,’’साबूत पूरा?’’वो बोला,’’चालीस रुपए किलो है। एक किलो ही मिलेगा।’’रेट भी ठीक है। जनता र्कफ्यू से पहले मैं फिटमारा सा पका हुआ पीला सा भोपला इसी रेट में लाई थी, जिसे काटने में मेरा चक्कू भी हैंडिल से निकल गया था। मैंने कद्दू के साइज़ का अंदाज लगा कर कहा,’’भइया, आपको बेचने से मतलब है। आपका भोपला चाहे मैं 3 किलो खरीदूं या तीन लोग खरीदें। रुपये तो आपको 120 ही मिलेंगे न।’’उसने जवाब दिया,’’पता नहीं, मेरे बाद और कोई भाजी वाला आए या न आए, मैं तो एक दिन की सब्जी़ ज्यादा से ज्यादा लोगों को ही दूंगा।’’मैं बोली,’’अच्छा आपकी सोच तो बहुत ही अच्छी है। ये सोचकर कि मेरे गमलों में खूब धनिया, पोदीना, करी पत्ता और पालक लगी है। सब्जी नहीं मिली तो जरुरत के समय चटनी और पालक के परांठे तो बन ही सकते हैं। मैं बोली,’ चलो, एक किलों निम्बू दे दो।’’उसने जवाब दिया,’’एक किलो तो मेरे पास कुल होंगे! आप चार ले लो।’’ कोई फालतू रेट नहीं। एक भाभी मटर छांटते हुए दूसरी से बोली,’’मटर तो अभी घर में रक्खीं हैं। मैंने सोचा और लेलूं, टी.वी. देखते देखते दाने निकाल लूंगी।’’सब्जीवाला रुखी आवाज में बोला,’’जब घर में रक्खें हैं तो क्यों ले रही हो? कल आउंगा, तब ले लेना।’’वो गुस्से में पैर पटकती चली गई। एक किलो सब्जी और चार नींबू और उसकी तस्वीर लेकर मैं अपने गमलों के पास बैठ कर सोचने लगी कि जनता र्कफ्यू से पहले मैं, अपने घर के पीछे के स्टोर में गई थी। देखा कि लोग कई कई ट्रॉली भर भर के सामान ले जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि कोरॉना के प्रकोप ये ही बचेंगे बस। और एक ये सब्जी़ वाला! चाहता तो जल्दी से ठेला खाली कर, घर जाकर आराम करता। पर उसे सबका ख्याल था। उसके बाद और भी सब्जी़वाले आ रहें हैं। कुछ लोग बद्गम्नी के कारण भर रहें हैं। वो भी दे रहें हैं। पर वो सब्जीवाला तो जाते हुए नसीहत दे गया कि जितना जरुरत हो उतना बनाओ। ’खाओ मन भर, फैंको न कण भर’। ऐसी अच्छी सोच के लोगों के कारण कोरोना को तो समाप्त होना ही होगा।
Saturday, 7 March 2020
महिला दिवस की शुभकामनाएं Happy Woman's dayनीलम भागी Mahila Divas ke Shubhkamnaye Neelam Bhagi
वे हाथों से भी खाना ले रहे थे।
जिधर देखो मछली पकड़ने वाली नाव ही नाव थीं। इतने लोगों को यात्रा करते देख, मेरा डर पता नहीं कहां गया! धूप बहुत तेज थी लेकिन हवा बहुत प्यारी थी। पर मेरा ध्यान तो देश के कोने कोने से आये तीर्थयात्रियों, समुद्र और पक्षियों पर था। 30 मिनट में हम बेट द्वारका पहुंच गये। लौटने पर सूरज डूबने को था। मौसम बहुत प्यारा था। अब जेट्टी में पहली सवारी मैं थी। अपनी पसंद की सीट पर बैठी।
ये क्या! मेरी सामने की सीट पर पांच महिलायें घूघंट में, उनके साथ एक बुर्जुग महिला बिना सिर पर पल्लू के आकर बैठ गई।
सवारियां तेजी से भर रहीं थी। सब सागर की सुन्दरता निहारने, आस पास के नजारे देखने में मस्त थे। उस परिवार के मर्द कुछ देर में आकर, उनकी ओर पीठ करके बैठ गये, शायद ये सोच कर की ये भी कुछ देख लें। पर पूरी यात्रा में उनका घूंघट ऊपर नहीं हुआ। जेट्टी चल रही थी लोग समुद्री पक्षियों से खेल रहे थे। उनके साथ की बुर्जुग महिला आस पास से बेखबर नज़ारों का आनन्द उठा रही थी। उसने साथ की महिलाओं से एक बार भी नहीं कहा कि 30 मिनट के लिए वे भी घूंघट ऊपर करलें। बल्कि एक महिला तो उसके आगे ऐसे खड़ी होकर, एंजॉय कर रही थी कि जैसे वह घूघटवाली महिला, महिला न होकर दीवार हो।
जेट्टी के रुकते ही मेरे साथी बोले,’’अरे! पलक झपकते ही किनारा आ गया। धूप न होने से कितना अच्छा लग रहा था।’’ पर मेरा ध्यान तो उन महिलाओं पर ही था जो घूंघट में परिवार के पीछे पीछे जा रहीं थीं।
सवारियां तेजी से भर रहीं थी। सब सागर की सुन्दरता निहारने, आस पास के नजारे देखने में मस्त थे। उस परिवार के मर्द कुछ देर में आकर, उनकी ओर पीठ करके बैठ गये, शायद ये सोच कर की ये भी कुछ देख लें। पर पूरी यात्रा में उनका घूंघट ऊपर नहीं हुआ। जेट्टी चल रही थी लोग समुद्री पक्षियों से खेल रहे थे। उनके साथ की बुर्जुग महिला आस पास से बेखबर नज़ारों का आनन्द उठा रही थी। उसने साथ की महिलाओं से एक बार भी नहीं कहा कि 30 मिनट के लिए वे भी घूंघट ऊपर करलें। बल्कि एक महिला तो उसके आगे ऐसे खड़ी होकर, एंजॉय कर रही थी कि जैसे वह घूघटवाली महिला, महिला न होकर दीवार हो।
जेट्टी के रुकते ही मेरे साथी बोले,’’अरे! पलक झपकते ही किनारा आ गया। धूप न होने से कितना अच्छा लग रहा था।’’ पर मेरा ध्यान तो उन महिलाओं पर ही था जो घूंघट में परिवार के पीछे पीछे जा रहीं थीं।
Friday, 6 March 2020
ये तो महिला दिवस पर डी.टी.सी का हमारे लिए गिफ्ट है!! नीलम भागी Ye toh Mahila Divas Per DTC ka hamare liye Gift hai Neelam Bhagi
हुआ यूं कि आज मेरी तीन बजे किताब खत्म हो गई। मैं साहित्य अकादमी लाइब्रेरी के लिए मण्डी हाउस चल दी। बस का इंतजार नहीं करती, बदल बदल के चली जाती हूं। दिल्ली सचिवालय से जैसे ही दूसरी बस में बैठी, ड्राइवर बस से गायब! थोड़ी देर में आकर बोला,’’सब सवारियां दूसरी बस में बिठा रहा हूं।’’इतने में झमाझम बारिश शुरु हो गई। ख़ैर उसने हमें आई.टी.ओ. तक पहुंचा दिया। वहां दूसरा ड्राइवर आ गया। यहां से बारिश और जाम के कारण दूसरा स्टॉप मंडी हाउस तक पहुंचने में चालीस मिनट लगे। स्टॉप पर खड़ी सोचने लगी की घर वापिस जाने के लिए सड़क पार कर, सामने स्टॉप पर जाने में ठंड में भीग जाउंगी और लाइब्रेरी जाने में भी भीग जाती। मेरे सामने दो नीली फूल मालाओं से सजी हुई 378 नम्बर की जे.बी.एम. बस निकली। वर्षा रुकने के कोई आसार न देख कर, ये सोच कर तीसरी 378 में मैं चढ़ गई कि इसी में बैठी रहूंगी। ये वापिस सेक्ट्रियेट से मयूर विहार 3 लौटेगी। उसके बराबर में नौएडा है। बहुत ही खूबसूरत बस, अंदर भी मालाओं से सजी, मैं आगे की सिंगल सीट पर बैठ गई। ड्राइवर कण्डक्टर दोनों ही इस बस के उद्घाटन के बाद पहली बार ही इस रुट पर आये थे। बरसात और जाम के कारण रुट बदल दिया। पर लिस्ट से स्टॉप मिला मिला कर वे सेक्ट्रियेट पहुंच गये। वहां से डेली जाने वाली सवारियां बड़ी खुशी से बस में बैंठी। कुछ लड़कियां चढ़ीं ,शायद लंबी चौड़ी बस देख कर चहकने लगी। चालक ने अपनी स्क्रीन पर देख कर घोषणा की’’महिलाएं देख कर पहले अपनी सीटें भरे, बाद में रार न मचे।’’लड़कियां खी खी खी खी हंसतीं हुई, गुलाबी सीटों पर बैठ गईं। लड़कियां बस में सेल्फी लेने लगीं। चालक ने शायद माइक था इसलिए उसमें बोला,’’ कोई इस बस में फोटोग्राफी नहीं करेगा क्योंकि आज इस बस का पहला दिन है।’’ वो माइक उपयोग करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा था। हर स्टैण्ड पर बस रुकती। इतने में कण्डक्टर ने कहा कि इस बस में कोई भी पास नहीं चलेगा। एक लड़का बोला,’’महिलाओं की भी टिकट होगी।’’जबाब हंसी में एक महिला ने ही दिया,’’नहीं, ये महिलाओं को महिला दिवस का गिफ्ट है तभी तो पिंक सीटें, फूल मालाओं से सजा कर गाड़ी को भेजा है।’’फिर ट्रैफिक पुलिस ने जाम के कारण रुट डाइर्वट कर दिया। इधर भी जाम लग गया। इस रुट पर हमारी बस का कोई स्टॉप नहीं था। लेकिन मौसम खराब देख कर स्टाप पर चालक सवारियां चढ़ा लेता। जाम भूल कर सवारियां इस 36 सीटों वाली, कैमरों वाली, लो फ्लोर बस की मीमांसा करते रहे। इतने में किसी बस के टायर फटने की आवाज आई। चालक, कण्डक्टर कुछ सवारियां कूद कर नीचे उतरे और उन्होंने टायरों का मुआयना किया। अपनी गाड़ी के टायर ठीक देख कर बहुत खुश हुए और लो फ्लोर के कारण चिंतित हुए की सड़क के गढ्डे इन्हें खराब कर देंगे। इतने में बस के अंदर भारी भरकम घण्टे जैसी आवाज़ आई। सब चौंक गये। अब बार बार बस में घण्टे बजने लगे और मुझे मंदिर की फीलिंग होने लगी। चालक ने कहा,’’कौन बार बार दबा रहा है? मैं कैमरे से सब देख रहा हूं। बस साइड में लगा कर दबाने वाले को नीचे उतार दूंगा।’’ कुछ सवारियां बोलीं,’’हमें क्या पता! क्या दबाने से घण्टे बज रहें हैं। पर घंटे बजते ही रहे।’’एक स्टाप पर बस रुकी सवारियां आगे से उतरी, बस चल पड़़ी। एक महिला पीछे से बोली,’’पीछे का गेट खोलो, मुझे उतरना है।’’ चालक ने कहाकि आगे से उतरो। जब वो आगे पहुंची तो बोली,’’उतारो।’’चालक ने कहा कि स्टाप पर ही उतारुंगा, स्टाप पर ही चढ़ाउंगा। स्टॅाप पर उतरते हुए वह बोली,’नई बस चला रहे हो न, तुम्हें इसका घमण्ड है।’’नौ बजे मैं भी अपने स्टाप पर उतरी।
Sunday, 1 March 2020
महिलायें कुछ भी बर्बाद नहीं करतीं , यात्रा में समय भी!! नीलम भागी Mahilai Kutch Bhi Barbad nahi Kertee Yatra Mein Samay Bhi Neelam Bhagi
मैं डी.टी.सी. की ए.सी.बस में चढ़ी। खाली सीट देख कर उस पर बैठने लगी तो क्या देखतीं हूं कि उस सीट की सवारी ने अधलेटी पोजीशन में अपनी मां की गोद में सिर रक्खा हुआ है और मां उसके सिर से जुएं बिन रही है। मैं ये देखने के लिए खड़ी हो गई कि वह जुएं निकाल कर फैंक तो नहीं रही। अगर फेंक रही होगी तो मुझ पर, उसे उपदेश देने का दोरा पड़ जायेगा क्यूंकि उसकी फैंकी जूं, दूसरी सवारी पर चढ़ेगी| न न न वो भली औरत जुएं दोनों अंगूठों के नाखूनों में दबा कर मारती जा रही थी। इसलिए सवारियों पर जुएं चढ़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता। पता नहीं क्यों? मुझे ये सीन बहुत अच्छा लगा। मैंने जुओं की शिकारी महिला को पट पट जुएं मारते देख कर कहा कि इसके बालों में जुएं कैसे पड़ी हैं? उसने मेरी तरफ देखे बिना जुएं चुगते हुए जवाब दिया,’’स्कूल से दीदी, मैं तो इसकी जुएं दो दिन में साफ कर दूं। घर पे येे निकलवाती न। बच्चों में खेलने भाग जाये। जब से लेडीज़ का टिकट फ्री हुआ है। इसकी छुट्टी के दिन इसे कहीं न कहीं ले जाउं औेर रास्ते में इसकी जूं बिनती रहूं। बस से ये कहां खेलने जायेंगी बताओ भला!! और टाइम भी पास हो जावे।’’
बस सर्विस अच्छी है। सीट आराम से मिल जाती है। इसलिए महिलाएं अब बस में स्वेटर बुनती, क्रोशिया बुनती और पढ़ती नज़र आती हैं।
बस में कोई महिलाओं के साथ छेड़छाड़ नहीं है क्योंकि बस में मार्शल है। वो बस भरी होने पर महिला को अपनी सीट भी दे देते हैं। सर्दी में मंगते मंगतियां ए.सी बस में चढ़ जाते हैं। मांगने का काम वे अपने इलाके में ही करते हैं। बस में उनके बच्चे खेल लेते हैं।
ए. सी. बस उनके लिए रजाई कंबल का काम करती है। कथड़ी वो लपेट कर सामान रखने की जगह पर रख कर बेफिक्र आराम से बैठे रहते हैं। उनकी कथड़ी तो कोई ले जायेगा ही नहीं।
कभी कभी चलती बस में वो एकदम चिल्लायेंगी,’’अरे रोको रोको।’’बस में तुरंत ब्रेक लगता है और सवारियों को झटका। चालक और कण्डक्टर एकदम पूछेंगे,’’क्या हुआ!! इतने में उल्टी हो जायेगी या उनका जी मचल रहा होगा। वो कहेंगे उतर के नीचे कर लो, बस गंदी मत करो तो उतरेंगीे नहीं। कहेंगी अब ठीक हो गया। मैंने कण्डक्टर से पूछा कि ये ऐसे ही करतीं हैं। उसने कहा कि ठंड के कारण साधारण बस में ये बैठती नहीें हैं। खुले में ये रहती हैं न| ए.सी. बस बंद होती है। इन्हें बचैनी होने लगती है। ये पलटी(vomating) कर देती हैं। धीरे धीरे इन्हें ए.सी बस की आदत हो जायेगी।
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