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Wednesday 6 May 2020

मथुरा संग्रहालय, भांग छानना मथुरा जी की यात्राMathura Yatra भाग 9 Mathura Sanghralaya, Bhang Channa Neelam Bhagi नीलम भागी

             



 लंच तक हमने खामन, ढोकला, पोहे खाये। पचास रुपये में नौका विहार भी कर लिया। जहां उसने उतारा वहां घाट पर सिलबट्टे पर, जर्बदस्त लगन से कुछ पीसा जा रहा था। मिक्सी आने के पहले इतनी मेहनत से तो मैंने कभी सब्जी के लिए मसाला भी नहीं पीसा था, सिलबट्टे पर। कुछ देर बैठ कर मैंने नोटिस यह किया कि जो पीस रहें हैं। उनके हाथ तो सिल पर बट्टा चला रहें हैं और मुंह से कुछ छंद से बुदबुदाये जा रहें हैं। मैं अपनी जिज्ञासा शांत करने पहुंच गई। जाते ही मैंने पूछा,’’आप लोग क्या पीस रहे हो?’’सिलबट्टे वाले का हाथ नहीं रुका, वो वैसे ही लगन से पीसता रहा। जो तख़्त पर बैठे थे, वे ज्ञानी लग रहे थे। उन्होंने मुंह में पान भर रखा  था  पहले पान की पीक को बांए गाल से दांए गाल में शिफ्ट किया फिर कुछ सोचा और उठ कर पच से थूका और मुंह को अंगोछे से पोंछ कर जवाब दिया,’’भांग  यानि   शिव बूटी।’’मैंने अपना ज्ञान बघारते हुए कहा,’’ मिक्सी में पीसा करो न, दो मिनट में पिसेगी।’’ ज्ञानी जी ने मुझे समझाते हुए कहा,’’इसको पीसना नहीं,   भांग  छानना कहते हैं।
। ये इस पर ही बढ़िया पिसती है और आज भंग रबड़ी में छनेगी।’’मैंने ज्ञानी जी से पूछा,’’ये शिव बूटी छानते हुए, कोई जाप कर रहे हैं!’’ सिलबट्टे वाले को इस वार्तालाप से कोई मतलब नहीं था। उसके हाथ एक ही स्पीड से चलते रहे। उसकी लगन देख कर लग रहा था, जैसे संसार का सबसे जरुरी काम, वह इस समय कर रहा है। ज्ञानी जी ने छंद पढ़ा,
’’छान छान छान, किसी की न मान।
जब न रहेगी जान, तो कौन कहेगा छान।
 उनके चेले चामुण्डों ने समवेत स्वर में सिलबट्टे की ताल पर इस कवित्त को दोहराया। मैं सोचने लगी कि इन्होंने कौन सा अमेरिका, लंदन जाना है। इनका एनटरटेनमैंट तो खाना है और उसके बाद बड़ी बड़ी बातें बनाना है। जो शिव बूटी के बाद होती ही होंगी क्योंकि आसपास कहीं टी.वी. भी नहीं नजर आ रहा था। जिसमें रामायण, महाभारत देखकर ये उस पर ही चर्चा कर लें। इतनी बड़ी सिल मैंने जीवन में कभी नहीं देखी थी, यहां देख ली।  किसी सिल पर तो दो लोग मिल कर शिव बूटी छान रहे थे। होली गेट पर शिवजी के मंदिर की बड़ी मान्यता है। वहां भी दर्शन कर आये। हम बारह बजे होटल में पहुंच गये थे। हमारे साथी घूमते कम थे, विश्राम ज्यादा करते थे। अब भी वे कहीं से दर्शन करके आये थे और आराम कर रहे थे। हमने बिना जानकारी के कहा कि एक बजे म्यूजियम में लंच हो जायेगा। सब तुरत फुरत गाड़ियों में बैठ गये। शहर के बीचो बीच स्थित मथुरा संग्राहलय बादामी पत्थर से बना है। मथुरा और इसके आस पास में हुई खुदाई में मिले अवशेष यहां पर रखे हैं। यह एतिहासिक खजाना है। यह प्राचीन और आलीशान दौर को देखने का मौका देता है। यहां रखे धर्मग्रंथ और रखी मूर्तियां भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाती हैं। साहित्यकारों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। अचानक मेरी तंद्रा टूटी। बस में सभी छात्र छात्राएं और उनके अध्यापक बैठ चुके थे। विद्यार्थियों ने फिल्मी गानों पर अंताक्षरी शुरु कर दी थी। बस नौएडा की ओर चल पड़ी थी। मैं वही सिंगल सीट पर बैठी, अपनी  याद  में मथुरा संग्राहालय से गोकुल की ओर जा रही थी। क्रमशः 








6 comments:

kulkarni said...

bahut bhadia hai , jai ho.

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

KnowledgeAlya said...

मैड़म बहुत बहुत बधाई।

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad

डॉ शोभा भारद्वाज said...

Nice

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद