भगवान अयप्पा के जन्म की कथा है। मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध किया। उसकी बहन महिषी भाई का बदला लेना चाहती थी। उसे ब्रह्मा से वर मिला हुआ थां इसलिए वह अविनाशी थी। पर उसका वध हरिहर पुत्र से होगा। विष्णु ने जब सागर मंथन के समय मोहिनी का रुप धारण किया तो भगवान शिव उसके रुप पर मोहित हो गए। और अयप्पा का जन्म हो गया। अयप्पा शिव और मोहिनी से उन्पन्न भगवान शिव के तीसरे पुत्र हैं। उन्होंने इस पुत्र को पंपा नदी के किनारे छोड़ दिया। एक किंवदंति यह भी है कि उनकी गर्दन के चारों ओर घंटी बांध कर छोड़ा था। पांडलस राजवंश केे राजा राज शेखर संतानहीन थे। उन्होंने अयप्पा को गोद ले लिया। कुछ समय बाद उनको भी पुत्र पैदा हो गया। दोनो राजकुमार एक साथ पले बढ़े। अयप्पा मार्शल आर्ट में निपुण और शास्त्रों के बहुत ज्ञानी थे। राजकुमारों ने जब प्रशिक्षण और अध्ययन समाप्त किया तो राजा अयप्पा की योग्यता देखते हुए, उसे राजा बनाना चाहते थे। रानी स्वयं के पुत्र को बनाना चाहती थी। इसलिए वह अयप्पा के लिए एक के बाद एक मुसीबतों के पहाड़ खड़े रखती थी। एक बार उसने अपनी बिमारी का इलाज बाघिन के दूध ही बताया। अयप्पा चले गए। वहां उन्होंने राक्षसी महिषी का वध किया। वह मोक्ष को प्राप्त हुई। और अयप्पा शेर पर सवार होकर महल लौटे। यह देख सब हैरान रह गए। राजा रानी को समझ आ गया कि यह साधारण बच्चा नहीं है। उन्होंने सिंहासन स्वीकार करने का अयप्पा से अनुरोध किया, वह नहीं माने और महल छोड़ कर स्वर्ग चले गए।
राजा राजशेखर ने अयप्पा को देव अवतार मान कर सबरीमालई में देवताओं के वास्तुकार विश्कर्मा से डिजाइन करवा कर अयप्पा का मंदिर बनवाया। ऋषि परशुराम ने उनकी मूर्ति की रचना की ओर मकर संक्रांति को स्थापित की। आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अयप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर तीन दिन में सबरीमाला पहुंचती है। मलयालम और कोडवा में उनके जीवन चरित्र का वर्णन, उनकी कहानियां और गीत प्रसिद्ध हैं।
नौएडा का मशहूर अयप्पा मंदिर सी 47, सी ब्लॉक, सेक्टर 62 में जाना बहुत आसान है। कुछ ही दूरी पर मैट्रो स्टेशन है। वैसे भी शेयरिंग ऑटो एक एक मिनट में वहां से गुजरते हैं। यहां महत्वपूर्ण त्यौहार प्रतिष्ठा दिवस, र्कककीदकम, विनायक चतुर्थी, कन्नी आयिल्या पूजा, नवरात्रि उत्सव, मंडला पूजा बहुत हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। आधुनिक ऑडिटोरियम है। मंदिर में एक झलक दक्षिण के तीर्थ सबरीमाला की भी दिखती है। सबरीमाला उस शबरी के नाम पर है, जिसने भगवान राम को जूठे बेर खिलाए थे और राम ने उसे नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। मैं जब भी यहां आई हूँ श्रद्धालुओं को बहुत अनुशासित देखा है। जूता चप्पल के स्थान पर सब बिना कहे वहीं उतारते हैं। भोजन प्रसाद के लिए सब शांति से लाइन में लगे होते हैं। दो हॉल में प्रसाद खिलाया जाता है। एक में पुरुष खिलाते हैं,ं एक में महिलाएं। जहां मरजी हो खाएं। कोई जूठा नहीं छोड़ता। खाने के बाद अपना केले का पत्ता मोड़ देते हैं। श्रद्धालुओं की श्रद्धा से वहां अलग सा भाव था। हमारा सौभाग्य है कि हमारे शहर में अयप्पा मंदिर है।
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