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Tuesday, 12 May 2020

अन्नकूट, गोवर्धन पूजा, गिरिराज परिक्रमा मथुरा यात्रा भाग 14Mathura Yatra Part 14 नीलम भागी



कुछ लोग गोवर्धन की दण्डौती परिक्रमा कर रहे थे। इसमें जो दण्डवत लेटता है, जहां उसके हाथ धरती को छूते हैं, वहां लकीर खीच दी जाती है फिर लकीर से अगला दण्डवत किया जाता है। ये वो ही लोग करते हैं जिन्होंने मनोकामना के लिए मन्नत मानी होती है। मनोकामना पूरी होने पर वे दण्डवत परिक्रमा करते हैं। ये परिक्रमा पूरी होने में एक या दो हफ्ते लगते हैं। रास्ते में श्रद्धालु सखिभाव से राधा बने नाचते जा रहे थे। कहीं बिना होली के ही सूखा रंग खेल रहे थे। पहले   इक्कीस किलोमीटर का रास्ता नंगे पांव चलना बहुत मुश्किल लग रहा था!! पर अब बड़ा  मनोरंजक था। यहां लीलाएं कन्हैया ने रचाई पर श्रद्धालु राधे राधे करते चल रहे थे।
   जन मानस से जुड़ी लीला तो गोवर्धन पूजा है जिसे दुनिया के किसी भी देश में रहने वाला कृष्ण प्रेमी मनाता है। जो पर्यावरण और समतावाद का संदेश भी देता है। कन्हैया बड़े हो रहें हैं। अब वे बात बात पर प्रश्न और तर्क करते हैं। हर वर्ष की तरह इस बार भी घरो में दिवाली के अगले दिन पूजा की तैयारी और पकवान बन रहे थे। बाल कृष्ण मां से प्रश्न पूछने लगे,’’किसकी पूजा, क्यों पूजा?’’ मां ने कहा,’’ मुझे काम करने दे, जाकर बाबा से पूछ।’’वही प्रश्न कन्हैया ने नंद से पूछे। नंद ने कहा,’’ये पूजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। वह वर्षा करता है।’’ कन्हैया ने  सुन कर जवाब दिया कि हरे भरे गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। उस पर गौए चरती हैं। जब बहुत वर्षा होती है। तो हम सब अपना गोधन लेकर गोवर्धन की कंदराओं में शरण लेते हैं। इसकी पेड़ों की जड़े वर्षा का पानी सोख कर हरा भरा रखती हैं। बादलों को रोकता है। अपनी कंदराओं में जल संचित कर, झरनों के रूप में देता  है। इस बार पूजा गोवर्धन की करनी चाहिए। सबको कन्हैया की बात ठीक लगी। प्रकृति ने ग्रामीणों को जो दिया था सब लाए। बाजरा की भी उन्हीं दिनों फसल आई थी, उसकी भी खिचड़ी बनी। दूध दहीं मक्खन मिश्री से बने पकवान, जिसके पास जो भी था वह उसे लेकर गोवर्धन पूजा के सामूहिक भोज में अपना योगदान देने पहुंचा। पूजा में अग्रज गोवर्धन को बनाया, बीच में कन्हैया रहे। गोधन, गिरिराज जी की पूजा की। प्रकृति की गोद में सबने मिलकर भोजन प्रशाद खाया और गीत संगीत के बिना उत्सव कैसा!! इसलिए  कन्हैया ने बंसी बजाई। इस तरह हर्षोल्लास से पूजा संपन्न हुई। इंद्र को अपना बहुत अपमान लगा। उसने भीषण वर्षा शुरु कर दी। पूरा क्षेत्र डूबाने लगा। कन्हैया ने सब ब्रजवासियों को गोधन के साथ गिरिराज पर आने को कहा और कनिष्ठ अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठा कर सबको सुरक्षित किया। प्रलय के समान वर्षा देख, कुछ तो कान्हा को कोसने लगे। उन्होंने सुदर्शन से पर्वत पर वर्षा की गति को नियंत्रित करने को कहा। शेषनाग से मेड़ बन कर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकने को कहा। इंद्र सात दिन तक अपना प्रकोप दिखा कर, ब्रहाा जी के पास कृष्ण की शिकायत करने पहुंचा। ब्रह्मा जी ने सुन कर जवाब दिया कि कृष्ण, विष्णु के अंश पूर्ण पुरुषोत्तम नारायण हैं। इंद्र ने कृष्ण से क्षमा मांगी। तब से अन्नकूट में कृष्ण की पूजा की जाती है। और हमें भी संदेश मिलता है कि वन पर्वत नहीं, तो वर्षा नहीं। हम अपने घरों में अन्नकूट का त्यौहार बड़ी भावना से बनाते हैं। पूरी कोशिश रहती है कि 56 भोग ही बने। बनाते समय सबका ध्यान मिर्च पर रहता है कि ज्यादा मिर्च हो गई तो कन्हैया को मिर्च लग जायेगी।  मिक्स वैजीटेबल भी मुझे लगता है कन्हैया के समय से चली है। गिरिराज जी की पूजा में उस समय कई वैराइटी की सब्जियां आई होंगी। कोई थोड़ी भी ला पाया होगा। लीलाधर ने सब मिला कर एक बनवा दी होगी। मिक्स सब्जी और सब कुछ बिना लहसून प्याज का अन्नकूट में बहुत स्वाद बनता है। अन्नकूट का प्रशाद ही शायद बाहर नौकरी कर रहे बच्चों को घर लाता है। इस खाने को कोई जूठा नहीं छोड़ता। क्रमशः 
 *पर्यावरण संरक्षण* — प्रकृति के प्रति संवेदनशील होकर सतत जीवन जीना। 🌱🌎

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3 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

अति सुंदर सजीव वर्णन

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad