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Wednesday, 13 May 2020

कह कर तो गए आउंगा परसों, पर आए न बरसों। गिरिराज जी परिक्रमा मथुरा यात्राMathura yatra part 15 भाग 15 नीलम भागी



कोई कहे गोविंदा, कोई कहे गोपाला, मैं तो कहूं सांवरिया बांसुरी वाला। एक टोली लोक धुन में भगवान को कौन किस नाम से पुकारता है, कन्हैया को पुकारे जाने वाले नामों को इतना सुंदर गाते हुए जा रहे थे कि उनकी धुन पर लोग नाचते हुए चल रहे थे। 21 किमी के परिक्रमा मार्ग पर शायद 21 ही पूजनीय स्थल हैं सब का अपना महात्म है,अपना इतिहास है। एक के बाद एक कुछ न कुछ दिखता है। एक आदमी साइकिल से जा रहा था, साइकिल से दूध के डिब्बे लटके हुए थें एक डिब्बे से पतली दूध की धार रास्ते में गिरती जा रही थी। ये देखकर मैं जोर से चिल्लाई,’’भैया दूध लीक हो रहा है। सुन कर बिना रुके जवाब में उसने कहा,’’राधे राधे।’’मुझे राह चलते श्रद्धालुओं ने समझाया कि ये दूध की धार से परिक्रमा कर रहा है। जतीपुरा में मुखारविंद की पूजा हैं। यह वल्लभ संप्रदाय का मुख्य केन्द्र है। उनके मंदिर हैं। श्रीवल्लभाचार्य एवं विटठलनाथ की यहां बैठकें हैं। अष्टछाप के कवि सूरदास यहां कीर्तन किया करते थे। ये स्थान प्राचीनता, ऐतिहासिकता जताती है।
 पूंछरी का लौठा यहां तो हाजरी न लगाई तो यात्रा अधूरी मानी जायेगी। कसं के कारण कन्हैया को ग्वालों की तरह पाल रहे थे। वे भी विद्याध्ययन के लिए किसी आचार्य के आश्रम में न जाकर, गौए चरा रहे थे और बंसी बजा रहे थे। लौठा का मतलब पहलवान होता है। ये गोपाल का सखा था जब वे जाने लगे तो उसे गोपाल कह गये कि मैं परसों आ जाउंगा पर बरसों बीत गए वे न आए। वो तो द्वारकाधीश बन गए। ये उनके इंतजार में खड़ा रहा। ये स्थान राजस्थान के भरतपुर इलाके में आता है। दिन में यहां बंदरों का जमावड़ा रहता है। हनुमान जी का विग्रह स्थापित है।
 कुसुम सरोवर गोवर्धन और राधाकुण्ड के बीच में स्थित है। यहां बलुआ पत्थर से बनी स्मारक है। स्मारक के पास ही नारद कुण्ड है। यहां नारद जी ने भक्ति सूत्र छंद लिखे थे। राधा वाना बिहारी मंदिर भी है। इस खूबसूरत स्थान पर गोपाल राधा से मिला करते थे।
मनसा देवी यहां एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है।
मानसी गंगा की भी अलग कोई परिक्रमा करता है। कंस का असुर कन्हैया की गौउओं में बैल के वेश में चरने लगा। कन्हैया ने उसका वध कर दिया। राधा ने उन्हें कहा कि गौ वंश की हत्या के पाप की मुक्ति के लिए तुम्हें गंगा नहाना चाहिए। कान्हा ने मन से वहां गंगा उत्पन्न कर दी। यहां आषाढ़ी पूर्णिमा और कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है।
हरजी कुंड यहां नंदकिशोर गाय चराते थे। बड़ी परिक्रमा के बाद चूतर टेका है। सीताराम ,लक्ष्मण और राधाकृष्ण का मंदिर है। विटठल कुण्ड, राधाकुंड है। श्यामकुण्ड में नहाने से सब पाप कट जाते हैं। यहां सभी तीर्थों को विराजमान किया है। कहते हैं इस मार्ग पर पहले 108 कुण्ड थे। दानघाटी में वे दूध दहीं का दान लेते थे। चलते हुए हम अपने गैस्ट हाउस में पहंुच गए। रास्ता पता ही नहीं चला। अब बुरी तरह थकान होने लगी। खाना तैयार था। ये पहला खाना हमने ब्रज भूमि में खाया। अब तक खाने को छोड़ कर सब कुछ खाया। सादा खाना बेहद स्वाद। गिलास में बूंदी का रायता साथ में। खाना खाते ही थकान के मारे अपने कमरे में जाना मुश्किल हो गया। कमरे में पहुंचते ही कर्मचारी ने र्गम पानी की बाल्टी और तौलिया बैड के पास रख कर कहा कि पैर इसमें डूबो कर बैठ जाइए। आराम मिलेगा। दरवाजा बंद करकें टांगे र्गम पानी में डाल दीं। पानी गुनगुना होते ही रजाई में। पैरों का दर्द गायब। सुबह धूप निकलने पर ही नींद खुली। क्रमशः   

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4 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

यह ऐसी धरती है जिस पर कान्हा के कदम पड़े थे धन्य है ब्रिज धाम

Unknown said...

जानकारी बढानेवाल लेख

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद