Search This Blog

Friday 24 July 2020

कौन हुआ दीवाना!! मैं ऐसी क्यों हूं!!!!Kaun Hua Deewana Main Aisi Kyun Hoon Neelam Bhagi Part 2नीलम भागी भाग 2


  घर जाकर शायद वह रात भर सोचती रही, क्योंकि अगले दिन से ही उसमें परिवर्तन दिखाई देने लगा। उसमें लगातार चेंज आ रहा था। मसलन वह सलवार कमीज़ भी पहनने लगी। लप लप काजल लगाती, कुमकुम बिंदी, मांग भरना यानि सुहाग चिन्ह छोड़ कर, जितना बन पड़ता, उतना फैशन उसने करना शुरु कर दिया। अब दोपहर में घर जाती ,शाम को सिर्फ बरतन करने होते हैं इसलिये बहुत अच्छी तरह से तैयार होकर आती। इश्क़ मौहब्बत, प्यार व्यार के गीत गुनगुनाते हुए काम करती। ये बदलाव मेरी सलाह के बाद हुआ इसलिये मैं उसे देख कर खुश थी कि मेरी बात का इस पर असर हुआ है।
   ब्यूटी काम पर क्यों नहीं आ रही? दूसरी कामवालियों से पूछती पर किसी को कुछ नहीं पता था या वे जानबूझ कर मुझसे कुछ छिपा रहीं थीं। आज बाहर से आते ही उत्कर्शिणी ने मुझे बताया कि उसने अभी अभी सुन्दरता ( ब्यूटी को वह सुन्दरता कहती है) को देखा है। मैंने उसे कहा ,’’जल्दी जा, उसे बुला कर ला।’’ ब्यूटी को लेकर वह आ गई।
   उसके आते ही मैंने उस पर प्रश्न दागा,’’क्यों री तूं इतने दिन से काम पर क्यों नहीं आई? न ही कोई ख़बर भेजी।" वह बोली, ’’दीदी जी, मैं आपका काम नहीं करेगी।’’मैंने मन में सोचा कि पैसे बढ़वाने के लिए नाटक कर रही है। जो कहेगी मैं बढ़ा दूंगी। इतनी ईमानदार, अच्छी कामवाली भला कहीं मिलती है!! न न न । फिर भी मैंने पूछा,’’मेरे घर का काम क्यों नहीं करेगी? बता तो जरा।’’उसने जवाब दिया,’’मेरी बेटियों ने मना किया है। वे कहती हैं, आप मेरेको गलत बात सिखाती हो।’’मैंने पूछा,’’मैंने तुझे क्या गलत सिखाया?’’उसने जवाब दिया,’’ आप मुझे शादी बनाने को बोली न!! मैंने कहा,’’हां तो!!’’ उसने जवाब दिया,’’ मेरे सामने वाली खोली का आदमी, मुझे देख कर खुश होता, मैं उसे देख कर खश होती।’’अब मुझे उसके अन्दर आये चेंज़ का कारण समझ आ गया। मैंने उतावलेपन से पूछा,’’फिर,
 फिर क्या हुआ!’’
  वह बोली,’’ फिर क्या?’’उसके बीबी बच्चों ने मिल कर मुझे खूब पीटा। आज पूरे 15 दिन बाद काम पर आई हूँ।’’
  मैं गुस्से से बोली, ’’तूँ क्यों बीबी, बच्चे वाले से रिश्ता जोड़ने लगी।’’वह कहने लगी,’’खाता कमाता न देखती! वह रोज, दारु पीता है, मीट खाता है। कमाता है ,तभी तो खाता पीता है।’’मैंने जवाब दिया, तो खाता कमाता पति, उसकी बीबी तेरे लिए भला क्यों छोड़ेगी?’’ पर ब्यूटी मेरा काम छोड़ कर चली गई। मैं नई मेड ढूँढ रही हूँ। इस सिचूवूेशन में जैसे वेदपाठी के मुँह से संस्कृत का श्लोक निकलता है। वैसे ही मेरे मुँह से सड़क साहित्य निकला। ट्रक के पीछे लिखी एक इबारत याद आई, ’’नेकी कर और जूते खा, मैंने भी खायें हैं, तूँ भी खा।’’तब से सोचे जा रही हूं, मैं ऐसी क्यों हूं!!         

2 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

सही है नेकी खाने वाले के जूते पड़ते हैं परन्तु नेकी मत छोड़ना

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad