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Friday, 31 July 2020

शौकीन बंदर नीलम भागी Shoukeen Bander Neelam Bhagi



    


मैं बाल फैलाए अपने  स्कूल वैन का इंतजार कर रही थी। कामवालियों ने देखते ही मुझे कहा,’’दीदी बाल बाँध लो।’’ यह सुनते ही मुझे गुस्सा आ गया। कितनी मेहनत से मैंने बाल सैट किए थे। मैं बाल खुले रखूं या बंधन में रखूं, कैसा मैं हेयरस्टाइल बनाउँ, यह मुझे मेड बतायेंगी!! मैं कुछ बोलती, उससे पहले वे बोलीं,’’ बंदर न, आपकी जुएँ बिनने आ जायेगा।’’ सुनकर मुझे घिन आई। भला जुएँ और मेरे बालों में!! न न न। इतने में उत्कर्षिनी ने एक मोटे से बंदर की ओर इशारा किया, जो उस समय धोबी की प्रेस की राख को चूरन की तरह चाट रहा था। वह बोली,’’एक दिन वह बाल धोकर, बैठी धूप में  सूखा रहीं थी। उन्हें बालों में कुछ अजीब सा लगा। इतने में शाम्भवी आई, वो मुझ को इशारा करे, डर से उसके मुहँ से आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि पीछे बैठा बंदर उसके सिर से जूएँ ढूँढ रहा था, जो उसे मिलनी नहीं थी। वे हिली डुली नहीं। उन्हें दहशत हो रही थी कि जूँ न मिलने पर वह उन्हें थप्पड़ न मार दे।’ शाम्भवी ने चौकीदार को बुलाया, उसने लाठी की मदद से बंदर को भगाया।’’ कई दिन बाद मैं अपने सैकेण्ड फ्लोर पर गई। वहाँ लगा बड़ा कूलर खिड़की से हटा हुआ था। बुरी आशंका से अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बड़ी हिम्मत करके अंदर गई। अंदर सबकुछ ठीक था। बस बंदर की जगह जगह पौटी पड़ी थी।
बंदरों का ग्रुप उत्पात मचाने आता है। हम देखते ही सावधान हो जाते हैं। मसलन दवाजे खिड़कियाँ बंद कर लेते हैं। ये इकलौता बंदर अपने ग्रुप से अलग है। सुबह नौ से पहले शाम को पाँच बजे के बाद आता है क्योंकि पहले लंगूर वाला नौ से पाँच आता था। पता नहीं इसे समय कैसे पता चलता है!! इसके शौक निराले हैं। जैसे फालतू कुत्ते इस पर भौंकते हैं। इस पर कोई असर नहीं होता। जब वे भौंकना बंद कर देते हैं तो पीछे से जाकर किसी कुत्ते की पूंछ खींच कर भाग जाता हैं।  लेकिन पालतू नस्ल दार बंधे कुत्तों को ये खूब चिढ़ाता है। सुबह स्कूली बच्चे, वैन और स्कूल बस के प्वाइंट पर खड़े होते हैं। देर होने पर नाश्ते का परांठा, सैंडविच उनके हाथ में होता है। बंदर उन्हें धमकाकर झपट लेता है। फिर बच्चों के सामने बैठ कर खाता है। स्कूल की छुट्टी के दिन वह गमलों से पौधे निकालकर जमीन पर रख देता हैं। 
कल इस शौकीन बंदर ने मेरे दस साल पुराने बौंसाई ट्रे से निकाल कर जमीन पर रख दिए। फिर पता नहीं क्या सोच कर, उनको जमीन से उठा कर ट्रे में ढूंस दिए। मैं उसे भगाने लगी तो भागने से पहले उन्हें लिटा दिया। अब तो आने वाला समय बतायेगा कि मेरे बौंसाई बचेंगे या मरेंगे।
एक कबाड़ पॉट में मैंने मनी प्लांट लगाकर दीवार पर रखा हुआ था। बंदर को पता नहीं क्या शरारत सूझी उसने पूरा जोर लगा कर उस पॉट को नीचे फेंक दिया। जब रखती हूं वह नीचे फेंक देता है। अब मैंने उसकी जगह नीचे ही कर दी। बस वह पॉट दीवार की चौड़ाई के  साइज का है और उसमें से मनी  की शाखाएं निकलती हुई ऐसे लगती जैसे हाथी की सूंड है। चलो बंदर की मर्जी।




4 comments:

kulkarni said...

bahut bhadia hai , ati sundar

kulkarni said...

Lajaawab

Neelam Bhagi said...

Thanks 👍

Mukesh Kaushik said...

बहुत रोचक