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Tuesday 29 September 2020

घर की बेटी, तुलसी का पौधा और तुलसी विवाह नीलम भागी # Holy Basil









कुछ साल पहले राधा कृष्ण गर्ग जी ने मुझे तुलसी


विवाह का न्योता दिया कि दीदी देवउठनी एकादशी को हमारे घर में तुलसी जी की शादी है। बारात दोपहर 1बजे आएगी। मैंने सोचा किसी रिश्ते की लड़की तुलसी की शादी कर रहे होंगे क्योंकि इनके तो अतुल, अनुज और कपिल तीन बेटे हैं। पर यहां तो हमारे घर आंगन की शोभा तुलसी के पौधे की बेटी की तरह शादी थी

शादी में पहुंची तो बारात के स्वागत में सब गेट पर खड़े थे। सामने से बैंड बाजे के साथ जम कर नाचते बाराती आ रहे थे। दुल्हे सालिगराम को सजी हुई परात में विराजमान कर, उन्हें सिर पर रक्खा हुआ था। भगवान के बरातियों का श्रृद्धा नृत्य देखना, उसमें शामिल होकर भक्ति भाव से नाचना लोग अपना सौभाग्य समझ रहे थे। दुल्हिन थी, चमचमाते लाल दुप्पटा ओढ़े गमले में स्वस्थ घनी तुलसी जी। खाना पीना बेटी की शादी की तरह आगमन से उपस्थिति तक था। फेरे, कन्यादान और विदाई के बाद राधाकृष्ण जी बोले,’’तुलसी जी का कन्यादान करके अच्छा लग रहा है।’’ तुलसी के पवित्र पौधे को बेटी की तरह मानना पेड़ पौधों के प्रति संरक्षण ही तो दर्शाता है। मैं जब भी इनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में गई हूं। वहां सम्मान में पौधे ही मिलते हैं।    

हमारे घर की तुलसी सबसे पहले बच्चे को प्रकृति से जोड़ती है। मेरे लिए तुलसी, तुलसी है। चरणामृत में बहुत अच्छी लगती है इसलिए मुझे मिठी दहीं में तुलसी पत्ते, चाय में तुलसी बहुत पसंद है। किसी भी चटनी जिसमें प्याज, लहसून न हो, उसमें से थोड़ी चटनी अलग निकाल कर उसमें वन तुलसी (मरुवा) को पीस कर मिला देने से वह अलग फ्लेवर की चटनी बन जाती है। हमारे यहां ज्यादातर तुलसी जी का गमला, सब गमलों से अलग होता है। तभी तो हमारी महिलाएं वनस्पति विशेषज्ञ की तरह तुलसी जी का पत्ता देखते ही बता देतीं हैं ये राम तुलसी,


श्यामा तुलसी या कृष्ण तुलसी

, कपूर तुलसी

या नींबू तुलसी है। फिर अपने आप बोलेंगी कि घर में तो रामा या श्यामा तुलसी ही होती है। उत्कर्षिणी कुछ विदेशी खाने  बनाती है उसमें बेसिल लीफ यानि तुलसी बहुत जरुरी है।

 कोशिश करो तुलसी को मिट्टी के गमलों में उगाओ। मैंने तुलसी को सुन्दर चीनी मिट्टी के गमलों में  रक्खा पर मिट्टी के गमलों में उगी वह बहुत खुश लगी।


पहला पौधा मैंने जो तीन पहिए के ठेले पर छोटी सी बगिया सजा कर चलते हैं उनसे खरीदा और गमलों के बीच में रख दिया।
कुछ दिनों में उसमें मंजरी आई और काले काले दिल के आकर के बीज बने। सर्दी में पौधा सूख गया। सर्दी जाते ही सूखा पौधा तो हरा नहीं हुआ पर

आस पास के गमलों और मिट्टी में छोटे छोटे तुलसी के पौधे निकल आए। ये देख मैं बहुत खुश हुई कि इतने पौधे लगाउंगी कि मेरी कोई चाय तुलसी के बिना न बने। अब मैंने 70% मिट्टी, 20% रेत, 10% वर्मी कम्पोस्ट को मिला कर मिट्टी तैयार की। गमले के ड्रेनेज होल पर ठिकरा रक्खा ताकि फालतू पानी तो निकले पर मिट्टी न बह जाए। गमले में यह तैयार मिट्टी भर दी। शाम के समय पौधे को ध्यान से निकाला ताकि उसकी जड़े न टूटें। गमले की मिट्टी के बीच में गड्ढा कर दिया। उसमें छोटे तुलसी के पौधे को लगा दिया। आस पास से मिट्टी की उपरी सतह को इस तरह दबा दिया ताकि पौधा सीधा रहे और पानी दे कर दो दिन तक पेड़ की छाया में रक्खा। फिर धूप में रख दिया। तुलसी मच्छर  और जुकाम भगाने वाला पौधा है। महीने में एक बार वर्मी कम्पोस्ट डालती हूं और गुड़ाई करती हूं। मंजरी आने पर उसे कैंची से काट कर, चाय में डालती हूं। पौधा घना होता जाता है।          


Saturday 26 September 2020

ऑन लॉइन ढंग से लो.... फीस दे रहें हैं नीलम भागी On Line Class Neelam Bhagi


 

कोरोना महामारी का समय है। गीता से बात करने के लिए कॉल करती हूं, उसी समय उत्त्कर्षिणी धीरे से बोलेगी,’’उसकी ऑनलाइन क्लास चल रही है। ब्रेक में बात करना। ब्रेक का इंतजार करती हूं। अचानक एक प्रश्न उठा क्या सभी बच्चे ठीक से पढ़ते होंगे? मैंने बच्चों को पढ़ाया है, ज्यादातर के मां बाप अनपढ़ थे। पर सभी अपने बच्चों को इस भाव से स्कूल लाते थे कि वे खूब पढ़ें। कुछ बच्चे तो पढ़ने के बहुत शौकीन होते हैं और औसत बच्चों में शौक डालना पड़ता हैं। कुछ बहुत ही देर से समझतें हैं। टीचर अपनी कक्षा के सभी बच्चों को समझती है। उसके साथ वैसा ही व्यवहार करती हैै। मकसद होता है बच्चे पढ़ जाएं। उन्हें मोटीवेट करने के लिए किस्से कहानियां भी सुनाई जाती हैं।

 इस बारे में मैंने कुछ अघ्यापिकाओं से बात की। सभी बच्चों के परिवारों के लिए चिन्तित लगीं। वे बताने लगी कि हम तो घरों में पहुंच गए हैं। हम क्लास ले रहीं हैं जो पापा घर पर हैं वे बच्चे के साथ बैठ जाते हैं, लुंगी बनियान में और बच्चा भी चढ्ढी बनियान में पढ़ता हैं। पापा का ध्यान पूरा बच्चे पर होता है कि टीचर जो पढ़ा रही है, बेटा ध्यान से सुन रहा है या नहीं। जरा सा बच्चे का ध्यान इधर उधर गया नहीं। बाप चिल्लायेगा,’’हरामजादे शरम कर, टीचर देख रही है।’’कुछ बच्चे मस्ती करते हैं। सो जाते हैं। भाई बहन लड़ रहें हैं। बच्चा टीचर को सुन रहा है और मां अपने हाथ से खाना खिला रही है। रमा डांस टीचर है। उसने बताया कि मैं डांस करती हूं तो बच्चे मुझे देखते हुए मेरे साथ नाचते हैं। बच्चे के पापा वाइफ से कहेंगे,’’तूं भी मैडम की तरह कमर मटका पतली हो जायेगी। तेरी कौन सा फीस लग रही है।’’

कुछ हमें कहेंगे ऑन लाइन ढंग से लो फीस देते हैं। पर किसी ने भी ये बातें हंसते हुए नहीं कहीं क्योंकि वे जानतीं हैं ये फायर किए गए हैं जब तक हायर नहीं किए जायेंगे तब तक ऐसे ही करेंगे। बच्चे होम वर्क नहीं करते। कभी भी रात को भी फोन करके होम वर्क पूछेंगे।

सरकारी टीचर ने बताया कि 85 बच्चों की क्लास में 30-35 बच्चे ही क्लास ज्वाइन कर पाते हैं। कारण चार भाई बहन में एक ही मोबाइल है। कैमरा डैमेज है। स्क्रीन छोटी है। घर में कोई टैक्नोलॉजी सिखाने वाला नहीं है। पापा की नौकरी छूट गई है। मैमोरी एप नहीं है। वाई फाई की सुविधा नहीं है। डेटा र्काड पर निर्भर हैं। झोपड़ पट्टी में आस पास कोई गाली गलौच करे या लड़ाई झगड़ा  करे तो सब की आवाज आती है। जैसे बाप कहेगा,’’ बात कर लिये मैडम से क्या कह रही यू।’’ टीचर से मैंने पूछा,’’कैसे पढ़ती होंगी?’’ उन्होंने जवाब दिया कि स्पेस न होने से वे संकोच में रहतीं हैं। उनसे कहती हूं, विडियो और माइक ऑफ रक्खो, नही ंतो डेटा ज्यादा खर्च होगा। हम विडियो ऑडियो बना कर व्हाट्सअप कर देते हैं।’’ कुछ समय की बात है कोरोना जायेगा सब कुछ पहले की तरह हो जायेगा।          


Thursday 24 September 2020

सेम की फलियां आयरन मैग्नीशियम से भरपूर बेल बहुवर्षीय नीलम भागी Kidney Beans Neelam Bhagi


कुछ बातें मुझे बड़ी देर से समझ आईं। मसलन मैं के.वी. डोगरा लाइनस मेरठ में पढ़ती थी। हमारे साथ पढ़ने वाले ज्यादातर साथी सैनिको के बच्चे थे। सभी कैंट में एलॉट क्वार्टस में रहते थे। सबके घरों में किचन गार्डन था। मुझे नहीं याद कि मेरा कोई साथी ब्रैड,बटर,जैम या सैंडविच लंच में लाता था। सबका दो डब्बे के लंच बॉक्स में एक डब्बा सब्ज़ी का और एक परांठे का होता। सर्दी हो या गर्मी सब घास पर घेरा बना कर खाते थे। जब कोई अपनी सब्जी देख कर बोलता,’’आज भी सेम!! मैं तुरंत उससे अपनी सब्जी का डिब्बा बदल लेती। उस दिन लंच में टॉपिक होता कि जब पापा की साउथ में ट्रांसफर होती है तो वहां सेंजन का पेड़ मिलता है और नॉर्थ में आओ तो सेम की बेल जरुर मिलती है। दो तीन साल में ट्रांसफर होती रहती है किचन गार्डन सबको तैयार मिलता। क्योंकि जो भी परिवार रहने आता है वो किचन गार्डन में बड़े शौक से काम करता है। मेरे घर में बाजार से खरीदी सेम का स्वाद कभी वैसा नहीं होता जैसा मैं स्कूल में खाती थी। अलग राज्य के साथी, सबके बनाने में फर्क होता था इसलिए स्वाद भी अलग पर नमक सबका एक सा होेता था। जब मैं खाना बनाने लगी तो सेम मैंने जैसी खाई वैसी बनाई। सेम ऊपर नीचे से काट कर दोनो तरफ से देखती अगर धागे होते तोे उन्हें हटा देती फिर अच्छी तरह धोकर सूती कपड़े से पोंछ कर आधा इंच से कम टुकड़ों में काट कर, सरसों के तेल में हल्दी, मिर्च और पंचफोरन(सौंफ,कलौंजी, मेथी, जीरा, सरसों) के साथ छौंक देती स्वादानुसार नमक डाल कर अच्छे से मिला कर ढक कर आंच पर रख देती। पकने पर बारीक कटी हरी मिर्च डालकर उतार लेती हंू। 

सेम, आलू, मटर को हींग जीरे से छौंक कर हल्दी, मिर्च, धनिया पाउडर और स्वादानुसार नमक डालकर पकने पर गैस बंद करके गरम मसाला डाल कर ढक दतीे।

सादी सेम की सब्जी में गर्म तेल में जीरा भूनने पर कटा प्याज गोल्डन ब्राउन होने तक भूनती फिर हल्दी मिर्च डाल कऱ सेम डालती और स्वादानुसार नमकडाल कर मिला देती। पकने पर गैस बंद कर सौंफ और धनिया पाउडर डाल कर मिला देती। 

मेरी बनाई सेम परिवार को पसंद पर मुझे वो स्वाद नहीं आता। वो स्वाद तब समझ आया जब मेरी सेम की बेल से मैंने सेम तोड़ कर तुरंत आलू सेम बनाई। वही स्कूल का स्वाद पाया।

इसके लिए मैंने हाइब्रिड सेम के बीज लिए बड़े गमले में 70% मिट्टी 30% वर्मी कम्पोस्ट अच्छी तरह से मिला कर उसमें आधा इंच गहरे बीज बो दिए। सात दिन में अंकूरित हो गए। पच्चीस दिन की होने पर उसे पेड़ पर चढ़ा दिया। नियम से इसमें एक मुट्ठी खाद 15 दिन में डालती और पौष्टिक स्वाद सेम मार्च तक मिलीं और बेल सूखने लगी। 

मेरे सामने के घर में सेम की बेल है। जो घर से बाहर बरसाती नाली में अपने आप उग आई है। उस पर मेरा घ्यान पिछले साल गया। क्या देखती हूं!! दूसरी मंजिल की ग्रिल पर सेम के पत्ते हैं क्योंकि वहां उन्हें धूप मिलती है और पूरे तने पर जमीन से लेकर पहली मंजिल तक तने पर सेम, पत्तों की तरह लगी हुई थी।


मैंने तुरंत फोटो ली। मार्च के बाद बेल गायब हो गई।


आज फिर ध्यान गया तो फोटो ली। नाली से रस्सी जैसा तना दूसरी मंजिल तक गया है। वहां खूब सेम की पत्तियां हैं।

अक्टूबर नवम्बर में फलियां लगेंगी। इस बेल का तो उद्गम भी नहीं दिख रहा है।

उसे देख कर मैंने भी जमीन में सेम लगाई है। मेरी देखभाल से उम्मीद है कि यही बेल हर साल आयरन, मैग्निशियम से भरपूर सेम की फलियां देगी।   

        


Sunday 20 September 2020

लौकी, दूधी, घिया झटपट बनाना और उगाना!! नीलम भागी Bottle Gourd Lauki, doodhi, ghiya mere pasand ban gaye Neelam Bhagi


बी.एड में मेरी सहपाठिन उत्कर्षिणी गर्ल्स हॉस्टल में रहती थी। हॉस्टल में वो अपने घर मवाना गांव की लौकी की सब्जी़ बहुत मिस करती थी और मैं कभी लौकी की सब्जी़ खाती नहीं थी। उत्कर्षिणी के मुंह से लौकी की  सब्जी़ का मनपसन्द होना, मुझे बहुत हैरान करता था। मैं सोचने लगती कि जिसे मैं खाती नहीं वो किसी की मनपसंद डिश कैसे हो सकती है!! वो बताती,’’ उसके गांव में उपले रखने के लिए बिठौले होते हैं, उन पर लौकी की बेले चढ़ी रहती हैं, जिन पर हमेशा लौकियां लटकती रहतीं हैं। जब मैं शनिवार को घर जाती हूं तो मां लौकी, हल्दी, हरी मिर्च और नमक डाल कर चूल्हे पर चढ़ा देती है। चूल्हे में गिनती के उपले लगा कर, अपने घरेलू कामों में लग जाती है। जब मैं घर पहुंचती हूं तो घिया गर्म होती है। मुझे देखते ही मां उसमें ढेर सारा मक्खन और आंगन में लगी धनिया तोड़ कर डालती है और अच्छे से कलछी चला कर मिक्स करती है। मैं तो जाते ही लौकी खाती हूं, रोटी भी नहीं बनाने देती।’’ मैं मन में सोचती बिना छौंक के और वो भी लौकी!! उत्कर्षिणी आगे कहती और यहां हमारा कुक इतने नखरों से छौंक, मसालों से लौकी बनाता है। पर मवाना जैसा स्वाद नहीं आता है। मैंने जब नौएडा में शिफ्ट किया तब हमारे ब्लॉक में बहुत कम लोग थे। रहने वालों ने खाली घरों पर लौकी की बेलें चढ़ा रखी थी। पड़ोसन ने मुझे बेल से तोड़ कर लौकी दी और कहा इसे तुरंत बनाना और इसका स्वाद देखना। मुझे मवाना रैस्पी याद आ गई। मैंने लौकी को छिला, धोकर फिर काटा और सादा छौंक लगा कर कुकर में चढ़ा दिया। जब प्रैशर बन गया तो गैस कम से कम कर दी और सीटी नहीं बजने दी। पांच मिनट बाद गैस बंद कर दी। प्रैशर खत्म करने पर खोला स्वाद अनुसार बारीक कटी हरी मिर्च धनिया डाल कर कलछी चलाई। पानी और टमाटर तो लौकी में डालते नहीं। लाजवाब स्वाद। ताजी़ लौकी ने लौकी को मेरी पसंद बना दिया। लौकी उगाना और इसके तरह तरह के व्यंजन बनाना, मेरा शौक बन गया। 25 से 40 डिग्री तापमान में यह बहुत अच्छी उगती है। कंटेनर में उगाती हूं इसलिये बीज हाइब्रिड लेती हूं। बड़े गमले में 50%मिट्टी, 30% वर्मी कम्पोस्ट 20% रेत और थोड़ी सी नीम की खली मिला कर आधा इंच गहरे बीज बो दिए बीज बो दिये। सात से दस दिन में पौधे निकल जाते हैं।


इन्हें सहारे की और धूप की बहुत जरुरत होती है। 15 दिन बाद गुड़ाई करे और महीने में एक बार खाद डालें। 30 से 35 सेंटी मीटर की बेल होने पर आगे से एक इंच तोड़ दें। जिससे कई उपशाखाएं निकलेंगी। 25 दिन तक उन्हें भी आगे से कट कर दें। एक महीने तक  फूल आने लगते हैं। अब 15 दिन बाद खाद डालें। छोटे फल झड़ने पर नीम के तेल का छिड़काव करें। पौधों की बच्चों की तरह देखभाल करो। बहुत अच्छा लगता है। दो महीने बाद लौकी मिलनी शुरु हो जाती है। ताजी लौकी को कद्दृूृकस कर के नमक मिला कर थोड़ी देर रख कर निचोड़ लों। रस में चाट मसाला नींबू का रस और पौदीना मिला कर जूस पी लो।

जूस निकाली हुई लौकी में बारीक कटी प्याज, हरी मिर्च, धनिया पाउडर, अजवाइन, हींग और बेसन अच्छी मिला कर चख लें अगर नमक कम लगे तब मिलाएं। पतले लोग इसे गोल आकार देकर तल लें पकौड़े की तरह खा लें। चाहे घिया के कोफ्ते की सब्जी़ बना लें। 

मोटे लोग इसी बैटर को तलने की बजाय अप्पम के सांचे मंें लौकी अप्पम, दूधी अप्पम, घिया अप्पम बना कर खायें।         

सूप के लिए घिसी लौकी में नमक डाल कर प्रैशर कूकर में अच्छा प्रैशर आने पर, सीटी मत बजने दो गैस बंद कर दो। जब प्रैशर खत्म हो जाए तो पानी अलग कर लो। घिया के लच्छे फ्रिज में रख दो और जूस की तरह ही सूप में मसाले डाल कर इस्तेमाल करो। अब इन लच्छों का दो तरह से रायता बनाती हूं। 

1. लौकी के लच्छों को फेटे हुए दहीं में डाल कर, उसमें दहीं की मात्रा के अनुसार काला नमक मिला ले, लच्छे नमकीन पहले से हैं। बारीक कटा पौदीना, हरी मिर्च और भूना जीरा पाउडर डाल कर मिला लें। डाइट रायता तैयार।

2. फ्राइ पैन में थोड़ा देसी घी या कोई भी तेल लेकर उसमें सरसों चटका लें और कैंची से काट कर सूखी लाल मिर्च के टुकड़े डाल कर इस पर करी पत्ता डाल कर छौंक तैयार कर लें। लौकी के लच्छों को फेटे हुए दहीं में डाल कर, उसमें दहीं की मात्रा के अनुसार काला नमक मिला ले, लच्छे तो नमकीन हैं। उस पर ये छौंक डाल दें।   

  लौकी चना की दाल अजवाइन और सौंफ के पंजाबी तड़के वाली स्वाद का स्वाद लाजवाब होता है।

किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, या गोबर की खाद, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।


   


Friday 18 September 2020

गिलोय, गुडुची या अमृता नीलम भागी Giloy Neelam Bhagi


मेरी सहेली सुबह चटाई लेकर मुफ्त में लगने वाली योग की कक्षा, जो पार्क में लगती है, वहां जाती हैं। मुझे भी योग करने के फायदे समझाते हुए साथ चलने को कहती है। पर मैं रात को देर से सोती हूं और सुबह देर से उठती हूं इसलिये नहीं जाती। एक दिन वह चहकती हुई आई और बोली,’’अब तुम्हारा कोई बहाना नहीं चलेगा। योग सीखने वालों की संख्या बढ़ गई हैं इसलिए गुरू जी ने शाम को भी 5 से 6 बजे से योग कक्षा शुरू कर दी है। अब मैं शाम को तुम्हें लेकर ही जाउंगी। शाम को मैं चादर लेकर सहेली के साथ मुफ्त की योग कक्षा में गई। वहां अपनी चादर बिछा कर उस पर बैठ गई। गुरू जी की फिटनैस बहुत अच्छी थी। हेयरस्टाइल और दाढ़ी इस तरह थी कि उनका लुक आर्टिस्ट का लगता था। उनके आगे दातुन के साइज़ की गांठ वाली, अंगुली की मोटाई की भूरी राख जैसी कलमे सी पड़ीं थीं। उन्होंने   नए आने वालों का परिचय करवाया और पदमासन लगाना सिखाया जो मेरे जैसी मोटी के लिए लगाना बहुत मुश्किल हो रहा था। काफी कोशिश के बाद जब नहीं लगा तो उन्होंने सबके आगे प्रश्न उछाला,’’कोई मेरी उम्र बता सकता है?’’ 50 साल के गुरू जी को किसी ने भी 35 साल से कम और 40 से ज्यादा नहीं बताया। जैसे दिख रहे थे वैसे ही तो शिष्य बतायेंगे न। पर सब गलत। जब सब चुप हो गए तो इस टॉपिक को खत्म करने के मन से, मैंने कहा,’’आपकी उम्र 25 साल है, दो चार जो सफेद बाल झांक रहें हैं। ये तो आजकल टीन एज में ही हो जाते हैं।’’ सुन कर पहले गुरू जी मुस्कुराये फिर हाथ में वो कलम उठाई और बोले,’’ये सब योग और इस गिलोय के कारण हैं। इसे हम अमृता कहते हैं। वे तो उसके फायदे बताते जा रहे थे। सबसे बड़ा फायदा  शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। एक बेल की टहनी दिखाई, जिस पर पान जैसे पत्ते लगे थे। इसका जड़, तना और पत्तियां सभी काम आती हैं जिससे जूस काढ़ा बनाया जाता है।  जुलाई अगस्त में इसकी कलम जमीन या गमले में गाड़ दो तो दो हफ्ते से 21 दिन में यह फूट जाती हैं। इसको सर्पोट की जरूरत होती है। जिस पेड़ पर भी यह फैलती हैं उसके गुण भी ले लेती है। सबसे फायदेमंद नीम के पेड़ पर फैलने वाली होती है। उसे नीमगिलोय कहते हैं। ढेरो लाभ बताने के बाद मेरे मतलब का लाभ उन्होंने बाद में बताया कि इसके सेवन से वजन भी कम होता है। सब एक एक कलम लेकर जाना। जाते ही जमीन या गमले की मिट्टी में दबा देना। घर आते ही मैंने अमृता को जमीन में गाड़ दिया। सर्दी आने तक उसने तो मेरे घर में आने वाली, धूप का आना बंद कर दिया। 93 साल की अम्मा को धूप जरूर चाहिए। माली से जड़ छोड़ कर सारा कटवा दिया, कलम कटवा कर योग कक्षा में बांट दी। वो फिर जड़ से फूटने लगी तब मैंने निकलवा कर सामने पार्क में लगवा दी। न ये सूखती है न मरती है। मेरे पड़ोस में जिसकी अमृता करेले की बेल के साथ है


वो करेलागिलोय, करेले की बेल की तरह नाजुक है। जिसकी अमरूद पर फैली है उस अमरूदगिलोय ने उसको ढक लिया। न सूखती है न मरती है इसलिए अमृता कहलाती है। टहनी तोड़कर लगा दो गमले में वह भी उग  जाती है।


Thursday 17 September 2020

क़ायदे से उगाई मिर्च नीलम भागी Kaide se Ugai Mirch Neelam Bhagi


अखा(साबूत) लाल मिर्च का डब्बा खाली हुआ तो साफ करने से पहले देखा, उसमें कुछ मिर्च के बीज थे। डब्बे को कम्पोस्ट मिट्टी मिली थैली में झाड़ दिया। सात दिन बाद उसमें पांच पौधे मिर्च के निकल आये।

जब ये पौधे तीन से चार इंच के हो गए तो इन्हें बिना किसी तैयारी के किसी न किसी गमले में एडजस्ट करती रही। मसलन लहसून के गमले में ठूस दिया।

बिना मेहनत के ऐसे ही जो मिल गए थे न इसलिए। पर इन बेचारों ने निराश नहीं किया। समय से इनका जैसे जी किया ये बढ़़ते गए। कुछ दिन बाद सफेद फूल आए, कुछ हरी हरी मिर्च भी आईं।

तब मैंने अपनी सहेलियों को ज्ञान भी बघारा की सब कुछ छोड़ कर मिर्च लगाओ, कुछ नहीं करना और मिर्चें खाओ। कुछ दिन बाद मेरी पत्तियां मुड़ने लगीं, फूल गिरने लगे, पौधा रोगी हो गया। इलाज के बजाय, मैंने उसे जड़ से निकाल कर फैंक दिया बिना मेहनत के जो मिला था।

एक दिन हरी मिर्च घर में खत्म थी। पहले पौधे पर हमेशा चार छ लटकी रहतीं थी जब नहीं होती तो तोड़ लेती थी। 

  अब मुझे लगा कि मिर्च का पौधा घर में होना ही चाहिए। हाइब्रिड मिर्च बीज का पैकेट खरीदा। 50% मिट्टी, 40% कम्पोस्ट बाकी रेत और थोड़ी नीम की खली मिला कर, इस मिट्टी को सीडलिंग ट्रे में भर दिया और इसमें बीज छिड़क दिए। 20 से 25% ज्यादा ये सोच के डाले की कुछ खराब भी होंगे। फिर बीजों को ढकने के लिए इसी मिट्टी का उपर छिड़काव कर दिया और हल्के हाथ से पानी इस तरह दिया कि बीज ढके रहें। ट्रे को ऐसी जगह रखा जहां सीधी तेज धूप न हो और उसमें नमी रहे। सात दिन में अच्छे से अंकूरण हो गया। जब पौध 4’’ की हो गई। तो 14’’के गमले में ड्रेनेज होल पर ठीकरा रखकर किचन वेस्ट आधा भरकर, उस पर में 60% मिट्टी, 20% वर्मी कम्पोस्ट, 5% नीम खली, 15% बोन मील मिला कर  इस मिट्टी को मिला कर उसमें भर दिया। शाम के समय मिर्च की पौध को इसमें रोपित कर दिया। गमले को ऐसी जगह रखा जहां अच्छी धूप आती है। जब उपरी पर्त हल्की सूखने लगती तब पानी दिया। 6’’ का पौधा होने पर 1’’ऊपर से पौधे को हल्के हाथ से तोड़ दिया। अब इसमें से खूब उपशाखाएं फूटीं। 15 दिन के बाद गुड़ाई करती और महीने में एक बार वर्मी कम्पोस्ट डालती। पौध रोपण के 35 दिन बाद उपशाखाओं को भी ऊपर से एक इंच तोड़ दिया। इससे पेड़ घना झाड़ीदार हो गया और ज्यादा फूल तो फल भी ज्यादा।   


       
 मुफ्त में ग्रुप ग्रो बनाना https://youtu.be/RsfCymsbTDk 



  


Tuesday 15 September 2020

बैगन उगाना थ्री 3 G कटिंग से नीलम भागी Brinjal ugana Neelam Bhagi



एक छोटे परिवार में दो बैंगन के पौधों से ही काम चल जाता है। कम जगह में भी जहां धूप आती है ये उग जाते हैं। अब ये आपकी पसंद है कि गोल, लंबे, छोटे, हरे, बैंगनी या सफेद कैसे भी उगाने हैं? मुझे गोल र्भता बैंगन पसंद है लेकिन जब भी मैंने पौधे उगाए तो उनसे लंबे बैंगन ही मिले। खुद से उगाये हैं, ज़ाहिर है स्वाद में लाजवाब तो हैं ही। मैंने फ्लॉर शो के स्टॉल से कवर पर गोल बैंगन की तस्वीर देखकर हाइब्रिड बीज खरीदे। सीडलिंग ट्रे में मैंने 50 कोकोपिट, 30 वर्मी कम्पोस्ट और मिट्टी मिला कर भर दिया। उसमें एक एक बीज रख कर, मिट्टी से बस बीजों को ढक कर पानी छिड़क दिया। ऐसी जगह में रख दिया जहां सुबह शाम की हल्की धूप आये। सात दिन में अंकूरण हो गया। जब इसमें तीन चार पत्ते आ गए। तो रसोई के कचरे से आधे भरे 14’’ के गमलों में 50 मिट्टी, 30 वर्मी कम्पोस्ट, 10 कोकोपिट, 10रेत, एक मुठ्ठी नीम की खली और बोन मील मिला कर गमले को भर दिया। पानी के निकास का पूरा ध्यान रखा। पौध को निकाल कर शाम के समय इन गमलों में लगा दिया। और जमने पर गमलों को सीधी धूप में रख दिया। जब ये पौधा 6’’ का हो गया तो मेन ब्रांच को उपर से थोड़ा तोड़ दिया। नोचना या खीचना नहीं है। नहीं जो पौधा जड़ से उखड़ जाएगा या मुलायम जड़ खींचने से पौधा मर सकता है। अब इसकी साइड ब्रांच यानि उपशाखाएं फूट कर निकलेगीं। दो महीने के बाद उपशाखाओं को भी आगे से थोड़ा थोड़ा तोड़ दिया है जिससे और शाखाएं फूंटी। मतलब जितनी शाखाएं उतने फल और फूल। अब इसमें हर महीने गोबर की खाद डाली है। तीसरे महीने फूल आ गये। इसमें सेल्फ पॉलीनेशन भी होता है। फल को ज्यादा दिन न लगा रहने दिया। कैंची से बैंगन को शाखा से काटती रही। ज्यादा दिन तक फल को पेड़ से लगा रहने देनेे से बीज बढ़़ जाते हैं। तीन से चार महीने फल देने के बाद पत्तियां पीली पड़ने लग गईं। तब नीचे की टहनियां  छोड़ कर उपर की काट दीं। 6 महीने बाद ये फिर पहले की तरह फूट गई हैं। बैंगन बेड कोलेस्ट्रोल को कम करता है इसलिए मेरे घर में इसके पोधे हमेशा रहते हैं|


        


Monday 14 September 2020

ये मोह मोह की तोरई....... नीलम भागी Ye Moh Moh Ke Torai Neelam Bhagi






 अपने हाथ से उगाई सब्ज़ी से बहुत मोह हो जाता है। जैसे मेरे उगाये करले, मुझे कड़वे नहीं लगते। उन्हें मैं छिलती भी नहीं, बिना छीले बनाती हूं। बागवानी की शुरुवात तो मैंने गमले में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां उगाने से की थी। मेरे पास एक 20’’ का गमला था। पहली बार तोरई उगा रही थी इसलिये इसमें मैंने कोई प्रयोग नहीं किया था। 70%  मिट्टी में 30% गोबर की खाद और थोड़ी सी नीम की खली मिला कर, गमले के छेद पर ठिकरा इस तरह रखा कि फालतू पानी निकल जाए। फिर गमले में ये बनाई हुई मिट्टी भर दी। उसमें एक इंच गहरा अंगुली से गड्ढा  करके हाइब्रिड तोरई के बीज हल्के हाथ से अलग अलग 5 जगह दबा दिए और पानी छिड़क दिया। गमले को ऐसी जगह रखा, जहां कम से कम पांच घण्टे धूप आए। सात दिन बाद बीजों का अंकूरण हो गया। एक महीने बाद उसमें से धागे निकलने लगे तो मैंने ग्रिल से डोरी लटका दी और बेल के साथ छोटी सी डण्डी गाड़ दी और उससे डोरी लपेट दी। बेल उससे लिपट कर दीवार पर चढ़ गई। सफेद दीवार पर हरी बेले बहुत सुन्दर लग रहीं थीं। 

एक दिन मेरी बेलों से पत्ते गायब थे। हमारे ब्लॉक में पशु आ ही नहीं सकता र्गाड जो है। पार्क में बाइयां बतिया रहीं थीं। मैंने उनसे तोरई के पत्तों के पत्तों के बारे में तफतीश की।


उन्होंने बताया कि अमुक देश की कामवालियां लौकी, तोरी, कद्दू सबके पत्तों की सब्जी बना लेतीं हैं। जिस देश का उन्हों ने नाम लिया मैंने गार्ड से पता लगाया कि वे कौन से घरों में उस देशवालियां काम करती  थीं, पता चला कि वे पांच घरों में काम करतीं थी। मैं उसे मिली और उन्हें कहा कि तुम इस ब्लॉक में नई आई हो और मेरी बेलों से पत्ते गायब हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अब वे नहीं तोड़ेंगी। मैं पंद्रह दिन में उनकी गुड़ाई करती, खाद लगाती। जरा सा पत्तें में छेद देखते ही, नीम के तेल का स्प्रे करती। दो महीने दस दिन बाद उसमें पीले फूल आ गये। साथ ही तरह तरह के कीट, मधुमक्खियां आने लगी। मेल फीमेल दोनों तरह के फूल मैं देखती। तोरियां भी लगने लगी। पहली बार दो बेलों से बहुूत प्यारी सात तोरियां उतारीं। 

 इन तोरियों को धोकर जब मैं छील रही थी तो इनके मुलायम छिलके भी मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे। मैंने छिलके रख लिए। सब्जी़ जैसे तोरी की बनाती हूं बनाई। प्रेशर कूकर में प्रेशर बनने पर आंच बिल्कुल धीमी कर दी। पांच मिनट के बाद गैस बंद कर दी। पै्रशर खत्म होने पर खोला। तोरई में तो पानी डालते ही नहीं हैं। ये मोह से उगाई तोरई की तो मैंने भाप भी कूकर की सीटी से नहीं निकलने दी। वो भी ग्रेवी में  बदल गई। अच्छी तरह कलछी चलाई। छिलकों में मैंने काट कर दो प्याज डाले, स्वादनुसार नमक, अजवाइन और सौंफ पाउडर डाल कर मिक्सी में बारीक पीस लिया और परात में निकाल लिया। इसमें आटा डालती जा रही थी और जैसा पूरी के लिए लगाते हैं वैसा सख्त लगाया। क्योंकि नमक के कारण ताजी मोह की तोरी और प्याज पानी छोड़ेंगे। इसलिए पानी बिल्कुल नहीं डाला। हरी हरी फूली फूली मोह से उगाईं ताजी तोरियों के छिलकों की पूरियों के साथ तोरी की सब्जी का साथ, बहुत ही लाजवाब था। बाजार से खरीदी तोरी के छिलके तो कम्पोस्ट में जाते हैं। उनसे मोह जो नहीं होता। अब किचन वेस्ट के ऊपर तैयार की गई मिट्टी डालकर उगाती हूं।


   





Friday 11 September 2020

देख तमाशा लकड़ी का नीलम भागी Dekh Tamasha Lakadi Ka Neelam Bhagi





मेरठ में अर्थी के साथ महिला पुरुष दोनो जाते थे लेकिन मंदिर पर से महिलाएं घर लौट आतीं थीं और पुरुष अंतिम निवास तक साथ जाते थे।


जब मैं नौएडा आई तो यहां महिलाएं भी अंतिम निवास तक साथ जाती थीं। मैं भी गई। यहां मैंने पहली बार हमारे सोलह संस्कारों में आखिरी कर्मकांड जो मरने के बाद परिजनों द्वारा किया जाता है, वह देखा। वहां परिजन संस्कार में लगे रहते हैं। लोग मरने वाले की अच्छाइयां बखान करने में लगे रहते हैं। मैं चुपचाप बैठी अपने पूर्वजों को याद करती हूं फिर उठ कर शमशान घाट पर लिखी इबारतों को पढ़ती रहती हूं। यहां बड़ी विरक्ति सी होने लगती है। जब परिजनों को फूल चुगने का दिन समय बता दिया जाता है। तब सब के साथ लौट आती हूं। घर तक पहुंचते वही दिनचर्या शुरु हो जाती है। सर्दियों में मेरे बहुत विद्वान संबंधी का निधन हुआ। सब कुछ वैसे ही किया जा रहा था, जैसा मैं कई सालों से आखिरी कर्मकांड देखती आ रही हूं। बस एक फर्क था उनका दाह संस्कार, विद्युत शव दाह गृह में हुआ था। हमें कुछ देर इंतजार करना पड़ा क्योंकि इस पद्धति से दाह संस्कार हो रहे थे जबकि  आसपास चिताएं भी जल रहीं थीं। जब हमारे स्वर्गीय संबंधी के दाह का समय आया तो मैं भी हॉल में गई। विद्युत शव दाह गृह के द्वार पर अर्थी को रखा गया। महापंडित ने मंत्रोचार किया| सब कुछ चिता में दाह के कर्मकांड की तरह ही उनके पुत्र से करवाया गया। दरवाजा खुला और शव अंदर, दरवाजा बंद। हम सब समवेत स्वर में गायत्री मंत्र का जाप करने लगे और बाहर आ गए। उनके तेहरवीं तक सब संस्कार जैसे किये जाते हैं वैसे किये  गये| एक दिन गढ़मुक्तेश्वर गंगा स्नान को गये। वहां चिता जल रही थी, देखा मरने वाले के परिजन वहीं थे। जब बॉडी जल चुकी तो उन्होंने सब कुछ गंगा जी में बहा दिया। यहां तक की जिस रेत पर चिता रखी और जो लकड़ी कोयले में बदल गई वो भी बहा दी। और गंगा स्नान कर वे लौट गए। कुछ महीने पहले  मैं निगमबोध घाट पर किसी के अंतिम संस्कार में गई थी। खूब गर्मी थी चिताएं जल रही थीं।

इंतजार में मैं पीछे जाकर यमुना जी को देखने लगी।

कुछ लोग वहां भी संस्कार कर रहे थे। सब जगह यमुना जी का पानी नाले जैसा है।

मैं उतर कर किनारे पर गई। देखा वहां का पानी बिल्कुल साफ था!! जबकि आस पास गंदगी थी पर पानी साफ।

अब मैं  फिर सबके पास आकर बैठ गई। क्या देखती हूं मेरे सामने चिताएं जल रहीं हैं खूब गर्मी है कुछ लोग तो नाक पर कपड़ा रख  कर जा रहे हैं| मैंने वैसे ही पीछे मुड़ कर देखा पर पीछे इतनी बड़ी जगह खाली। साफ बड़ा शेड, शव रखने की ट्रे, ऊपर चिमनियां लगी हुई। पर बिल्कुल खाली। कोई शव दाह नहीं हो रहा था। वहां र्बोड लटक रहा था जिस पर लिखा था ’मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली’ ’मोक्षदा’ उपकरण का अधिकाधिक प्रचार पर्यावरण व वक्षरक्षण में निश्चित ही सहायक होगा।’ पढ कर मुझे कुछ समझ नहीं आया।

वहां खड़े एक सज्जन से मैंने र्बोड की ओर इशारा करके पूछा कि जो लिखा है इसका क्या मतलब है? उन्होंने जवाब दिया कि शव दाह में ढाई कुंतल(आठ मन से ज्यादा) लकड़ी,

चंदन की लकड़ी का चूरा, देसी घी सामर्थ्यानुसार, कुल सामान की संख्या लगभग 35 है ये सब सामान अंतिम संस्कार में लगता है। लेकिन मोक्षदा उपकरण से शायद 80 या 85 किलो लकड़ी से शवदाह हो जाता है। मैंने उनसे पूछा कि र्बोड पढ़ कर, उधर इतनी भीड़, इंतजार करते लोग!! इधर खाली देख कर, मैं आपसे र्बोड पर लिखे का मतलब समझने आ गई। क्या और लोग भी समझने आते हैं? जवाब में वे शमशान के गमगीन माहौल में भी मुस्कुरा दिए। उनकी मुस्कराहट से  मेरे दिमाग में यह प्रश्न खड़ा हो गया कि वे मुस्कुराए  क्यों?