कोई बात ऐसी बात होती है जो हमें जरुरत के समय बहुत काम आती है। हुआ यूं कि 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगने के बाद, मैं पहले दिन ही स्टोर पर गई। उसके बाद होम डिलीवरी से सामान आने लगा और मैं बिल्कुल भी घर से बाहर नहीं निकली। दिसम्बर में मेरे भानजे की शादी लोकल ही थी। उत्कर्षिणी ने कहा,’’ आप नहीं जाओगी।’’मैं नहीं गई। इन दिनों लिखने और पेड़ पौधे उगा कर ही, अपने हिस्से का वायु प्रदूषण कम करने में लगी रही और अखबार टी.वी. में कोरोना की खबरों पर ही ध्यान देने लगी। 26 जनवरी को मैं पहली बार उन कार्यक्रमों में गई, जहां जहां पैदल जा सकती थी। पूरे नियम कायदों का पालन करते हुए। मैंने महसूस किया कि लोग तो आ जा रहें हैं और मैं सड़क पर चलना भूल रही हूं। घर आते ही मैंने अंकुर को फोन पर बताया कि आज मैं 26 जनवरी मनाने गई थी। उसने सुनते ही कहा कि मैं आपको लेने आ रहा हूं। अदम्य शाश्वत भी आप से मिलने के लिए बहुत बेचैन हैं, अब यहां मना नहीं कर सकतीं। वैक्सीन लगने के बाद आप कहीं भी आना जाना। इतने दिनों बाद उनके घर गई वे भी बहुत खुश हुए। वहां से 2 दिन बाद लौटी। फिर मैं कहीं नहीं गई।
9 फरवरी को संजय वर्मा ने सुंदरकाण्ड के पाठ के आयोजन पर बुलाया था। इन दिनों कम लोगों को बुलाया जाता है इसलिए गई और मेरे घर से तो पैदल का रास्ता है। 26 जनवरी और अंकुर के घर जाने से कोरोना का हौवा थोड़ा कम हो गया था। यहां भी मास्क लगाये चली गई। सामने ही गगन सूरी खड़ा था। उसने देखते ही पैर छुए और बोला,’’दीदी आओ पण्डाल में बैठते हैं। अंदर बहुत लोग हैं। सोशल डिस्टैंसिंग दिमाग में आते ही मैं उसके साथ चल दी। एक मेज के चारों ओर उसकी कजिन बैठीं थी वहां उसने मेरे लिए कुर्सी लगवाई। वेटर कॉफी, कोल्ड्रिंक और स्नैक्स सर्व लगे। मेरे मना करने पर गगन पूछने लगा,’’दीदी आपको जो पसंद हो, मैं प्लेट लगवा कर लाता हूं।’’ मैंने धीरे से कहा,’’गगन 24 मार्च के बाद आज मैं पहली बार किसी आयोजन में आईं हूं, कोरोना के डर से न कहीं जाती, न बाहर का खाती।’’सुनते ही वह हंसते हुए बोला,’’दीदी मुझे और ये जितनी(कजिन की ओर इशारा करके) बैठीं हैं न इन सबको कोरोना हो चुका है।’’ वे शायद 4 या 5 थीं। सुनकर मुझे बड़ा अच्छा लगा कि 5 लोग तो कोरोना से जीत कर मेरे सामने बैठे हैं। मैंने पूछा,’’गगन ठीक कैसे हुआ?’’वह बोला,’’दीदी मम्मी जिस डॉक्टर से इलाज लेती थीं। वही अब हमारे फैमली डॉक्टर हैं। कुछ भी हो हम उन्हीं के पास जाते हैं। लॉकडाउन में उन्हें फोन किया। उन्होंने जैसे कहा वैसे किया। मैं तो कोरोना सुन कर डर गया था। उन्होंने कहा कि डरना नहीं है। घर में ही रहो, नारियल पानी पीना है। उनकी दवा नियम से खाई। ठीक हो गये। इतने में गगन की बेटी अशिंका आई। गगन ने मेरा परिचय करवाते हुए कहा,’’तूु पूछती है न मेरी राइटिंग इतनी सुंदर कैसे है? इन दीदी ने बनवाई थी।’’अब मेरा कोरोना का भूत उतर गया था। मैंने बहुत स्वाद से खाया। अगले दिन से मैं मास्क लगा कर, पर्स में सेनेटाइजर रख कर, आने जाने लगी। नीलम भागी क्रमशः
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