विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सुबह जल्दी ब्रेकफास्ट बनाने के लिए रात को तैयारी करने लगी तो देखा टमाटर नहीं थे। घर के पास ही स्टोर है जो सुबह 7.30 बजे से रात 9.30 नौ बजे तक खुला रहता है। अभी 9 ही बजे थे। मैं टमाटर लेने गई। बहुत बढ़िया टमाटर थे। मैंने उसमें से भी देख कर बहुत बढ़िया निकाले, काउण्टर पर बिल बनवाया 50रु किलो के हिसाब से पेमेंट किया। मेरा आाखिरी बिल था और स्टोर बंद होने लगा। मैं ये सोच कर खुशी से घर आ गई कि थोड़ा लेट हो जाती तो टमाटर नहीं मिलते। सुबह आठ बजे के बाद मैं स्टोर से दूध लेनेे गई तो हमेशा की तरह रात की बची फल सब्ज़ियां तोल तोल कर डम्प में डाली जा रहीें थीं। सुबह जो ताजी आईं उनको उस जगह सजा कर लगाया जा रहा था। दूध, दहीं पनीर आदि भी एक्सपायरी डेट के बाद डम्प में जा रहा था। और डम्प का ढेर लग जाता, जिसे कूड़ा उठाने वाले ले जाते। इसे देखने की हमें आदत सी हो गई थी। मैं भी सुबह ही दूध के साथ ही फल सब्जियां लेकर जाती हूं।
पर आज डम्प में रात वाले टमाटरों को देख कर मेरे दिमाग में प्रश्न उठ खड़े हुए। ये वही टमाटर थे जिनमें से मैंने रात को 50रू किलो के हिसाब से स्टोर बंद होने से पहले खरीदे थे। और घर जाकर फ्रिज में रख दिए। उनमें से 4 टमाटर मैंने सुबह काटे, उनमें कोई कमी नहीं थी। और अभी दो या तीन दिन और इस्तेमाल होंगे, कोई भी खराब नहीं होगा। ऐसे ही बाकि सब्ज़ियां जो भी रात में लेकर गया होगा। उसकी भी बढ़िया होंगी। लेकिन यहां पर वही फल सब्ज़ियां रात को शटर गिरते ही और सुबह शटर उठते ही डम्प में चली जाती हैं। यानि कूड़े में तब्दील हो जातीं हैं। यहां ज्यादातर लोग आफिस से आकर रात को ही अगले दिन की खरीदारी के लिए निकलते हैं। उनके घर में जाकर तो ये फल सब्ज़ियां कूड़ा नहीं होती। मंहगे दाम चुका कर ले जाते हैं। अगले दिन ब्रेकफास्ट, लंच में इस्तेमाल होती हैं और डिनर के लिए कांट के फ्रिज में रखी जाती हैं ताकि आफिस से आने के बाद सिर्फ पकाने का काम रहे। आज लगा खाने पीने की चीजों की इतनी बर्बादी्! दूध की थैलियां, क्रीम के टैट्रा पैक तो कोई वर्कर डम्प से उठा कर फालतू कुत्तों को डाल देता है। दुख तब होता है जब कागज़ पाॅलिथिन बिनने वाले बच्चे कई बार कुत्तों को दूध पीते देखते हैं और खाली थैली झट से अपने बोरे में डाल लेते हैं।
न जाने देश के कितने स्टोर्स में ऐसे ही खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती होगी। क्योंकि इनका मकसद है ग्राहकों को ताज़ा, फ्रेश देना। देश में कितने ही बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को मजबूर हैं। भूखे लोगों की बड़ी संख्या अकेले भारत में है।
लेकिन कम पढ़े लिखे फल सब्जी वाले भी मंडी से फ्रेश ही लाते हैं। सुबह अपने ठेले में ज्यादा से ज्यादा वैराइटी सजा कर सेक्टर्स में घूमते हैं। उस समय हाईरेट होता है। जितना मर्जी छांटो कोई रोक टोक नहीं करते। उनका मकसद अपनी लागत निकालना होता हैं। लागत निकलते ही अब जो भी बिकेगा वो उनका लाभ होता है। जैसे जैसे उनका माल छंटता जाता है और जगह बदलती जाती है तो रेट भी बदलता रहता है। ये प्राफिट जो है कम या ज्यादा चलता रहता है। पर कोई सब्जी़ फल बर्बाद नहीं होने देते। आखिर में औने पौने रेट में माल निपटा देते हैं। खाली करने में जो खाने लायक नहीं होती उसे आवारा पशु के आगे डाल आते हैं। और अगले दिन फिर ताजा माल लेने मंडी जाते हैं।
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