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Sunday, 16 May 2021

बदसूरत सन्नाटा ! ..... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 5 Neelam Bhagi

पिछले लॉकडाउन में हमारे ब्लॉक के स्क्वायर में सुबह शाम बुर्जुग मुंह पर मास्क लगा कर, आपस में एक मीटर से ज्यादा की दूरी रख कर सैर करते थे। तब उनको बतियाना भी ऊंची आवाज में पड़ता है ताकि उनकी आवाज लाइन में चौथे नम्बर पर पीछे चल रहे साथी को भी पहुंच जाये। बराबर चलेंगे तो किसी साथी, गाड़ी या पार्क की ग्रिल को टच कर सकते थे। हमेशा मेरी नींद उनकी बातों से खुल जाती थी क्योंकि मेरा कमरा गेट के पास है और खिड़की के साथ मेरा बैड है। अपने टाइम टेबल के अनुसार बच्चे साइकिल चलाते या सामने पार्क में खेलते। पार्क की हट में बैठ कर ब्लॉक के स्कूल कॉलिज जाने वाले, वहां बतियाते पर मास्क सबके लगा होता। पर इस कोरोना लहर में तो इस समय लॉकडाउन भी नहीं लगा था, वीकएंड पर कर्फ्यू लगता था पर अब हमेशा इतना सन्नाटा!! बद्सूरत सन्नाटा रहता है। खिड़की से जहां तक मेरी नज़र जाती थी, कोई दिखाई ही नहीं देता था। मौसम के बुखार तो कभी कभी होते ही रहते थे। ये कैसी बिमारी जिसमें रोगी का साथी मोबाइल और तन्हाई है। अब मैं कोरोना के बचाव के जो भी उपाय हैं बड़ी शिद्दत से करने लगी। जो काढ़ा दिया जाता उसे पीती ताकि मुझे कोरोना न हो। टैस्ट में मेरी रिर्पोट नैगिटिव आए और एकांतवास न करना पड़े। दिन में दो बार भाप ली और एक बार गरारे किए। गरारे करना बुखार में बहुत थकाऊ लग रहे थे इसलिए गर्मी में भी मैंने गरम पानी पीना शुरु कर दियां। कभी ओ. आर. एस. मिला सादा पानी लेती। रात ग्यारह बजे गेट खुला हेमू के डैन्टिस भइया आये। ऊपर जाकर मिल कर वे उसके पास में रहने वाले दोस्त संतोष के घर चले गए। मैंने चैन की सांस ली कि इसका कोई अपना आस पास तो है। मैंने अंजना को फोन पर उसके आने की सूचना दे दी। 92 साल की अम्मा दिन भर कमरों से बाहर घर में पेड़ों की छाया में बैठती लेटती हैं, आज वे बाहर नहीं दिखीं। वे कल तक इसी रुम में मेरे साथ थीं। मुझे उनकी बहुत फिक्र होने लगी। कर तो मैं कुछ सकती नहीं थी। मैं भी बुखार की गोली खाकर सो गई। आधी रात को एम्बूलैंस के हॉर्न से मेरी नींद टूटी, दिमाग में एकदम अम्मा आई, दिल की धड़कन बढ़ गई। एम्बूलैंस हमारे गेट के आगे से गुज़र कर, कुछ दूर जाकर किसी के गेट के आगे जाकर रुकी। और मैंने ट्वीट किया ’कर्फ्यू के कारण सड़के विरान हैं, ऐसे में क्या एम्बूलैंस का हॉर्न डर पैदा करने के लिए बजाया जा रहा है।’नींद तो चली गई और तरह तरह के विचार आने लगे। कोरोना कैसी बिमारी है? जिसमें मरीज़ जिनसे प्यार करता है उनसे स्वयं ही अलग होकर, अकेला बिमारी से लड़ता है। परिवार रोगी के लिए हर समय चिंतित रहता है। दिमाग में डिबेट चलने लगी। मेरा कोरोना टैस्ट कब होगा? जल्दी हो। फिर रिर्पोट पता नहीं कितने दिन में आयेगी? अगर कोरोना हुआ तो!! मैं तब क्या करुंगी? फिर अपने आप जवाब भी आने लगे कि क्या कर सकती हूं जो डॉक्टर कहेगा वो करुंगी। मैंने भी तो मैडिकल एंटरैंस टैस्ट की खूब तैयारी की थी। पर मैं मैरिट लिस्ट तो छोड़ो वेटिंग लिस्ट में भी नहीं थी। जिनका मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हुआ उन्होंने जी तोड़ मेहनत करके डिग्री ली। डॉक्टर के अनुसार चलना मेरा काम है वो मैं करुंगी। वैसे भी मैं बिमार होने पर डॉक्टर की लिखी दवा खाती हूं। कभी उस दवा के बारे में इंटरनेट में नहीं पढ़ती कि उसके क्या फायदे हैं और साइड इफैक्ट हैं।  नीलम भागी क्रमशः            


2 comments:

Unknown said...

आपकी रिकवरी की आपको बहुत बहुत बधाई हो। आपकी सलाह के लिए धन्यवाद।
सुरेंद्र मोहन हांडा

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार