हमारा घर फेसिंग पार्क है। सामने पार्क मेें दो आम के पेड़ हैं। आम का मौसम आते ही उन पर बौर आता है, साथ ही कोयल की कूक सुनाई देती है। आम से लदे पेड़ बहुत सुन्दर लगते हैं। मैंने भी घर के सामने पार्क में आम्रपाली नस्ल का आम का पौधा लगवाया। पानी देती उसकी देखभाल करती। पेड़ बड़ा हो रहा था। अब जिसके घर में भी दूर दूर तक पूजा होती पंडित जी पूजा के सामान के साथ आम के पत्ते लिखवाते, तो उन्हें मेरा छोटा पेड़ ही नज़र आता। पुजारी उसके पत्ते नोचने आ जाते। अगर मैं देख लेती तो तुरंत उन्हें हटाते हुए बड़े आम के पेड़ दिखा कर कहती कि उस पर चढ़ के जितने मर्जी पत्ते तोड़ो। ऐसे टोकते हुए मैंने अपना आम्रपाली अपनी लम्बाई तक बड़ा कर लिया। मेरी रात को देर से सोने और सुबह देर से उठने की आदत है। इसलिये कभी कभी पूजा वाले सुबह पत्ते तोड़ लेते। बड़े पेड़ पर चढ़ने की ज़हमत कौन उठाए। पर मेरा पेड़ किसी तरह बचा रहा। लगवाते समय मैंने इस समस्या के बारे में सोचा ही नहीं था। वर्ना मैं उसे गेट की सीध में लगवाती तो हमेशा उस पर निग़रानी रहती। अब वह घर की बाउण्ड्री वॉल के सामने हैं। इसलिए उसे देखने के लिए बाहर आना पड़ता है। जब दीवार के बराबर आम्रपाली होगा तब अन्दर से दिखाई देगा, फिर पत्ते तोड़ने वालों से बचाना ही नहीं पड़ेगा। जैसे ही कोई तोड़ने आयेगा, तो हमें दिख जायेगा। मैं उसे बड़े आम के पेड़ दिखा कर कहूंगी कि पेड़ पर चढ़ो और पत्ते तोड़ो। इसे अभी बढ़ने दो। आम्रपाली की लम्बाई मेरे बराबर हो गई और तभी मैं कुछ समय के लिए मुम्बई गई। कुछ महीनों बाद लौटी तो पेड़ वहां था ही नहीं। मैंने आस पास पता लगाया तो पता चला कि चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना करते हैं तो उसमें आम के पत्तों की जरूरत होती है। बड़े पेड़ों पर कौन चढ़े! इसके पत्ते तो कोई बच्चा भी तोड़ सकता था इसलिये आपका आम्रपाली पूजा वालों ले नष्ट कर दिया है। मैंने सोच लिया कि इस बार फ्लॉवर शो से फिर लाउंगी और सही जगह पर लगाउंगी। पर कोरोना के कारण फ्लॉवर शो ही नहीं लगा। मेरे घर में बहुत बढ़िया आम आए तो मैंने उसकी गुठलियां घर की बाउंण्ड्री वॉल के साथ बो दी। आम के पौधे़ बहुत अच्छे से उग गए तो मैंने बारिश का मौसम देख कर माली से आम के पौधों को निकलवा कर सामने पार्क में सोलह पौधे लगवा दिए। ये सोच कर कि कुछ नष्ट भी हो सकते हैं। पौधों की किस्मत! बे मौसम चार दिन तक पानी बरसा। पौधे अच्छे से जम गए। मैं उन्हें पानी देती। जब उद्यान विभाग वाले घास के लिए ग्राउण्ड पानी से भरते तब तीन चार दिन पानी नहीं देना पड़ता। एक दिन पानी लेकर पार्क में गई, देखा 14 पौधे गायब! सिर्फ दो पौधे बचे हुए थे। वहां दो बाइयां खड़ी बतिया रहीं थीं। मैंने उनसे पूछा,’’यहां से पौधे किसने तोड़े हैं?’’उन्होंने जवाब दिया,’’जी हमें नहीं पता।’’मुझे एक दम याद आया कि आज पहला नवरात्र है। घट स्थापना के लिए बाइयों को कहा होगा कि आम के पत्ते ले आना। नौ दस पत्तों वाले आम के पौधे ही निकाल कर ले गए। दो पौधे बचे तो मैंने उनका चार महीने तक ध्यान रखा। एक बार पार्क में विभाग की ओर से पानी भरा गया था। सर्दी जा रही थी। आठ दिन तक पानी देने की जरूरत नहीं थी। जब पानी देने गई तो देखा बचे दोनों आम के पेड़ भी गायब! तफ़तीश करने पता चला कि जिनके घर बेटी जन्म पर श्री सत्यनारायण की कथा थी, वे आम के पौधे निकाल कर ले गए थे और पत्तों से बंदनवार बनाए थे।
2 comments:
आश्चर्य की बात है कि मेरी और आपकी जेबों से चुरा कर भगवान की आरती में डालना तो लोग बुरा मानते हैं परन्तु चोरी के फूल-पत्तों, यहाँ तक कि आम के पूरे पौधों, का पूजा के लिए उपयोग उन्हें लेशमात्र असहज नहीं करता, लज्जित करना तो दूर की बात रही. ईश्वर ऐसे भक्तों को सद्बुद्धि दे!
हार्दिक धन्यवाद कानन जयसवाल जी
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