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Saturday, 31 July 2021

थपकी देने की मशीन चाहिए!! नीलम भागी Baby Shusher Neelam Bhagi


उत्कर्षिनी ने अमेरिका से  वीडियो भेजा। उसकी 45 दिन की बेटी दित्या अकेली लेटी हुई है और उसके पास से ही shheeee की आवाज  आ रही है। मैं  हैरान! कि आवाज कहां से आ रही है। जब ध्यान दिया तो देखा, उसके कान के पास एक छोटा सा खिलौना जैसा रखा हुआ है। दित्या मुंह बनाकर कुछ ऑब्जर्व कर रही है। मुझे लगा कि वह सोच रही है कि आवाज उसके मम्मी पापा और गीता की नहीं है। 

वीडियो खत्म होते ही मैंने उत्कर्षिनी को कॉल लगाया। जवाब में उसने मुझे फिर एक वीडियो भेज दिया। इस बार Sheeeee मशीन दित्या के पेट के पास रखी हुई थी और उसकी sheeeee आवाज से दित्या की आंखें नींद में बंद हो रही थी, धीरे-धीरे जैसे मां गोदी में लेकर बच्चे को थपकाते हुए शीशीशी..... करती है और बच्चा सो जाता है और यह सो गई।

अब  बेटी ने मुझे चहकते हुए कॉल लगाई और कहने लगी  कि दित्या का जन्म  समय से पहले हो गया है, मेरा कमिटमेंट है। इसके जन्म के 21 दिन से मैं काम करने लग गई हूं। यह सोती रहती और मैं लेखन करती रहती हूं। जिन को समय दिया है वह मेरी डेट आने वाली है तो मुझे काम देना जरूरी है। पहले ये तो सोई रहती थी दिन में 17 घंटे। यहां बिस्तर ऐसा, जैसे मां की गोदी है। आज ये Sheeee मशीन सुला रही है। अब तो मेरा काम भी आसान हो जाएगा। एक बेबी को थपकी देने वाली मशीन भी बना ले तो कितना अच्छा हो!  मेरा काम भी हो जाएगा और मेरी बेटी भी खुश रहे। गीता को समर स्कूल में डाल दिया है। छुट्टी के बाद राजीव उसे स्पोर्ट्स के लिए ले जाते हैं और आकर वह हमारे साथ समय बिता करना दित्या के साथ सो जाती है।


बात खत्म हो गई। लेखन में खो जाने वाली मेरी बेटी अपनी दोनों छोटी बेटियों के साथ भी, समय पर काम देने का कमिटमेंट  पूरा कर रही है।  यह सुनकर मुझे अच्छा लगा और कोरोना वायरस पर गुस्सा भी आया वह इसलिए कि मैं चाहती हूं फिर भी बेटी की मदद नहीं कर सकती।
2 दिन बाद उत्कर्षिनी का फोन आया, बोली, "दित्या को पता नहीं क्या हो गया है? अपने बेड पर सो नहीं रही है। गोदी में ही सो रही हैं। बेड पर लिटाते ही रो रही है। कभी मैं गोदी में लेती हूं, कभी राजीव लेते हैं। कभी इसने तंग नहीं किया। अब देखो रात के 10:30 बज रहे हैं, अरे ये ऐसी है जैसे सोना ही नहीं है।"  मैंने पूछा," सुसु पॉटी कर रही है? ठीक से दूध पी रही है? खेल रही है?" उत्कर्षिणी ने जवाब दिया," सब कुछ ठीक से कर रही है पर कर, गोदी में ही रही है।" मैंने अपनी 92 साल की अम्मा से पूछा, सुन कर अम्मा ने जवाब दिया, मां के पेट से आए हुए इसे दिन ही कितने हुए हैं!  ए.सी में ठंड लगती हैं। गोदी मिलेगी तो मां की गर्मी मिलती है तो उसमें  खुश रहेगी।"  बेटी बोली," पहले तो यह सोती थी।" अम्मा बोली, "इसको कपड़े अच्छे से पहनाओ, इसको ठंड लग रही है।" उत्कर्षिनी ने जवाब दिया, " मां  कपड़े पूरे लपेटे हुए हैं बल्कि माथे में पसीना आ रहा है। हमें घबराहट हो रही है क्या करें ? समझ नहीं आ रहा है।" मैंने उत्कर्षिनी से कहा," बेटी घबरा मत, गोदी में तो शांत है न। देख ले थोड़ा, फिर डॉक्टर से सलाह करना।" ओ.के. जी, ठीक है फोन बंद हो गया। अब मुझे याद आया कि बेटी जब भी फोन करती है तो दित्या के बारे में बताती कि बड़ी शांत लड़की है। कई बार मेरी गोद में  होती है और मीटिंग और उसका दूध पीने का टाइम होता है तो मैं गोदी में  लिए मीटिंग एक एक घंटा कर लेती हूं ये सो लेती है पर कभी रोती नहीं है। इतनी अच्छी बच्ची,,! तो मुझे लगा यह अकेलेपन के कारण ना ऐसे कर रही हो फिर मैंने उत्कर्षिनी को वॉइस मैसेज किया और कहा कि इसके आसपास ही रहो। अगले दिन बेटी का वॉइस मैसेज आया मां अच्छी तरह से सो रही है। दूध भी जगा कर पिला रही हूं। फोटो भेजा। फोटो क्या है!! सोफे पर साथ में बेटी को लिटाया अपनी एक टांग को उससे टच किया हुआ है और गोदी में लैपटॉप रखे हुए लेखन कर रही है।

जब गीता आएगी तो इसके साथ सोएगी। तीनों मिलकर बारी बारी से दित्या को टच करते हुए रख रहे हैं। मैंने यह सुनकर  बेटी से पूछा,"बेटी थपकी वाली मशीन चाहिए!" उसने तपाक से जवाब दिया," नहीं मां, हमने भी तो हद कर दी थी। अपने कमिटमेंट के आगे कुछ सोचा ही नहीं। यह तो जब बहुत जरूरत हो तब इस्तेमाल करनी चाहिए। तुम्हारा काम भी हो गया और बच्चा भी संभल गया। इसको अपनी जगह नहीं देनी चाहिए। छोटा बच्चा बोल नहीं सकता पर महसूस तो करता है ना। अब दित्या ममां के साथ अखबार पढ़ती है।


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Tuesday, 27 July 2021

मुफ्त में खूबसूरत बुक शेल्फ नीलम भागीReduce, Re-use, Re-cycle! Neelam Bhagi

अदम्य रीडिंग करना सीख गया है। उसके लिए तस्वीरों वाली बड़े बड़े शब्दों में लिखी किताबें आतीं हैं। कोरोना के कारण ज्यादातर खरीदारी ऑनलाइन होती है। जिसके कारण गत्ते के डिब्बे बहुत हो जाते हैं। श्वेता की छुट्टी थी और बच्चों का नो स्क्रीन डे था यानि टी.वी. मोबाइल सब बंद रखना था। सिर्फ कॉल सुन या कर सकते थे। इसलिये दिन बहुत बड़ा हो गया था। बच्चों को व्यस्त भी रखना था। इसलिए श्वेता ने अदम्य की स्टोरी बुक्स रखने के लिए बुक शेल्फ बनाने की योजना बनाई। इसमें शाश्वत और अदम्य दोनों को शामिल किया। उनकी भी सलाह ली गई। दोनों ने अपना आइडिया दिया। गत्ते का एक बड़ा बॉक्स लिया और एक छोटा।


श्वेता ने अपना एक पुराना टॉप लिया।



शाश्वत ने बॉक्स की लम्बाई चौड़ाई नाप कर टॉप के टुकड़े काटे। अदम्य ने साइडों पर ग्लू लगाया। श्वेता ने उसपर कपड़ा चिपकाया। तीनों ने बहुत लगन से काम किया। मुझे देखने में ऐसा लग रहा था जैसे किसी बहुत बड़े प्रोजैक्ट पर काम किया जा रहा हो। बच्चों के लिए तो खै़र बहुत बड़ा काम था। श्वेता को देख कर मुझे हंसी आ रही थी जो बिल्कुल बच्चों की तरह गंभीरता से लगी हुई थी। हे गुगल करके बच्चे साथ में गाने भी अपनी पसंद के सुन रहे थे और हाथ भी चला रहे थे।

जैसे ही बुक शेल्फ तैयार हुई दोनों ने डांस किया। अदम्य ने अपनी सभी स्टोरी बुक उसमें ला कर लगाईं। ऊपर की सेल्फ का वजन नीचे की सेल्फ पर ना पड़े, इसके लिए श्वेता ने दो गत्तों के बीच में गुलू लगाकर उसको सेंटर में फिट कर दिया। अब बच्चों ने शैतानी बंद करके अपनी बनाई, नई बुक शेल्फ में रखी पढ़ी हुई किताबों को फिर से पढ़ना शुरु कर दिया।   


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Monday, 26 July 2021

वायु शोधक स्पाइडर प्लांट नीलम भागी

सुबह उठते ही शाश्वत ने उस मिट्टी के बर्तन को किचन के कचरे से उठाया, जिसमें रात को बिरयानी आई थी। उसने दीदी के आने का भी इंतजार नहीं किया। अपने आप उसे अच्छी तरह धो कर साफ किया और धूप में रख दिया। सूखने पर सिरैमिक पाउडर में ग्लू मिलाकर उसपर सफेद पेंट कर दिया। फिर उसे अपने मनपसंद रंगों से सजाया, उस पर सितारे चिपकाए। वह बेकार मिट्टी का बर्तन जो डस्टबिन में अब तक ठिकरों में तब्दील हो गया होता, शाश्वत की रचनात्मकता ने


उसे खूबसूरत प्लांटर बना दिया। जब उसे खुद को ठीक लगा तो सामने रख कर उस पर विचार करता रहा।

मैंने श्वेता अंकुर ने उसे कोई राय नहीं दी। श्वेता अंकुर तो छुट्टी होने के कारण गमलों पौधों में लगे हुए थे और मैं शाश्वत को विचारते हुए देख रही थी। वह मुस्कुराया उठा

और स्टूल पर चढ़ कर प्लांटर को फ्रिज पर रखा और उसे घूरता रहा।

फिर घूरना स्थगित करके, बालकोनी में गया। वहां से एक छोटे पॉट में तैयार किया गया, स्पाइडर प्लांट ला कर बिरयानी प्लांटर में रख दिया। स्पाइडर प्लांट उस प्लांटर में बहुत सुंदर लग रहा था।

अब शाश्वत मुझे समझाने लगा,’’नीनो ये इंडोर प्लांट है तभी तो पापा ने उसे बालकोनी के कोने में रखा है वहां धूप नहीं आती है। फ्रिज दरवाजे़ के सामने है यहां रोशनी खूब है पर धूप नहीं है। मेरे प्लांटर में ड्रेनेज़ होल नहीं है इसलिए मैं उसमें नहीं बो सकता क्योंकि फालतू पानी नहीं निकलेगा तो पौधा मर जायेगा। अब अगर  जरा भी फालतू पानी होगा तो बिरयानी प्लांटर में जायेगा वो मिट्टी का है और मिट्टी पानी को सोख लेगी।’’ मैं भी उसे बताने लगी।


ये हवा से कार्बन की अशुद्धियों को दूर करता है यानि प्राकृतिक वायुशोधक है। यह पौधा बेंजीन फॉर्मल्डिहाइड, कार्बनमोनोक्साइड और जाइलिन को सोख लेता है।

मदर गमले से प्लांट बाहर निकलते हैं तो तने में छोटे छोटे बल्ब की तरह पौधे आने लगते हैं तो उन्हें काट कर अंकुर ने नए पौधे बना लिए हैं। 

बालकोनी में भार ज्यादा न पड़े इसलिए नए गमले में पॉटिंग मिक्स में मिट्टी 50%, कोकोपिट 25%, वर्मी कम्पोस्ट या गोबर की खाद 25% सबको अच्छी तरह मिला कर डेªनेज़ होल पर ठिकरा रख कर इस पॉटिंग मिक्स को भर देते हैं। अब इसमें स्पाइडर प्लांट की कटिंग लगा दी। पानी दिया और पॉट को ऐसी जगह रखा, जहां सूरज की सीधी किरणें न पड़े पर रोशनी हो। कुछ ही दिनों में यह तेजी से पनपने वाला पौधा तैयार हो जाता है। ज्यादा पानी और देखभाल नहीं मांगता। गर्मियों में एक या दो बार खाद दो और सर्दी में जरुरत ही नहीं है। ज्यादा पानी से खराब हो जाता है। ब्राउन डैड पत्तियां काटते जाओ और इस आर्कषक स्पाइडर प्लांट से घर की शोभा बढ़ाओ।   कृपया मेरे लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए दाहिनी ओर follow ऊपर क्लिक करें और नीचे दिए बॉक्स में जाकर comment करें। हार्दिक धन्यवाद   


Sunday, 18 July 2021

बेटी के लिए योग्य वर!! नीलम भागी

फर्श की घिसाई के लिए हमारे यहां रामदीन बात करने आया था। उसने कुछ घरों के नम्बर बताये जहां उसने काम किया था और उसका कहना था कि सभी उसके काम से खुश हैं। उसने फिर कहा,’’आपके अपने पड़ोस के घर का, मेरी घिसाई का फर्श देख लो बिल्कुल शीशे की तरह चिकना है।’’ वाकई उनका फर्श बिल्कुल चमकता था। अब उसे स्क्वायर फुट के हिसाब से ठेका दे दिया था। उसने अपना काम शुरु कर दिया था। अभी उसने हमारे घर में एक ही घिसाई की थी। फर्श के दाने दिखाई देने लगे थे। पता चला पड़ोस की आंटी का फर्श पर पैर फिसला और उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई। अब वह बिस्तर पर हो गई थीं। हम डर गये कि हमारी अम्मा अगर फिसल गई तो!! हमने रामदीन से कहाकि हमें नहीं चिकना फर्श करवाना। जैसा है वैसा ही छोड़ दो। अब वो कहने लगा कि हमारे ठेका लेने के कारण उसने बड़ी बड़ी इमारतों के ठेके छोड़ें थे। वो काम पूरा करके देने को तैयार है लेकिन हमारी तरफ से मनाही है इसलिये वह पेमन्ट पूरी लेगा जो तय है। अब पैसों के कारण अम्मा के लिए रिस्क तो ले नहीं सकते थे। पहली बार घर बनवा रहे थे, अनुभव भी नहीं था। थोड़ा सा हिसाब किताब जानने वाला कम पढ़े लिख्ेा रामदीन ने नाप जोक करके कैल्कुलेटर से बिल दिया। भाई ने भी अपना हिसाब किया दोनों का एकसा हिसाब निकला। भाई पैसा लेने चला गया। रामदीन बैठ गया उसकी दो लेबर मशीन ले जाने के इंतजाम में लग गई। रामदीन ने बात शुरु की कि मन में नाराज़गी मत रखना। जब ऊपर बनवाओगे तो ठेका मुझे ही देना। मेरी लड़की की शादी है। मैंने लड़के को मोटरसाइकिल देने का बोला हुआ है। आपका काम पूरा करते ही गांव जाना था। अब आज ही चला जाउंगा। शादी के हिसाब में आपके घर का पैसा भी जोड़ा हुआ है। दहेज़ में मोटर साइकिल सुन कर मैंने उसे बीच में टोक कर पूछा,’’लड़का क्या करता है?’’उसने बताया कि उसकी बेटी के लिए दो रिश्ते आए। एक लड़का बी.ए. पास था और दूसरा आठवीं फेल है पर लेडिज़ कपड़ों पर गज़ब के डिजा़इन बना कर मशीन से कढ़ाई करता है। सलमें सितारे जड़ता है। सबने मुझे पागल कहा पर मैंने तो रिश्ता आठवीं फेल से किया है।’’मैंने जानने के लिए पूछा,’’तुमने क्या सोच कर ये रिश्ता किया?’’उसने जवाब दिया,’’वो कारीगर है। यहां भी आ गया तो कमा खा लेगा, गिरस्ती चला लेगा। मेरी अनपढ़ बेटी भी बिना कहीं गए, उसके काम में मदद कर सकती है। अगर यहां काम न मिला तो अनपढ़ होने के कारण मेरे साथ घिसाई के काम में लग जायेगा। मेरी दो घिसाई की मशीने किराए पर चलती हैं। पढ़ा लिखा तो नौकरी ढूंढता रहेगा। जब मिलेगी तभी करेगा न। अगर मैं घिसाई के काम में लगने को कहूंगा तो अपनी बेइज्ज़ती मानेगा।’’ कुछ देर सोचता रहा फिर बोला,’’ पढ़ा लिखा दामाद होगा तो मुझसे सीख नहीं लेगा कि मैं भी तो लेबर के साथ वैसे ही कपड़े बदल कर घिसाई करता हूं।’इतने में ’भाई ने पेमेंट लाकर उसे दी। वह खुशी खुशी चला गया और मैंने सबको उसके दामाद चुनाव की सोच सुनाई। आज आपके लिए जैसी सुनी थी वैसी लिख भी दी।    

         

   


Saturday, 17 July 2021

मजदूरी और मोबाइल स्वरोज़गार नीलम भागी

 


बड़ा संयुक्त परिवार है मुझे छोड़ कर सभी समय बद्ध व्यस्त हैं। इसलिये जब भी किसी को प्रतियोगी परीक्षा या अन्य कोई भी परीक्षा देने जाना हो तो मैं ही साथ जाती हूं। परीक्षार्थी परीक्षा देने चल देता है और मैं बाहर बैठी कोई किताब पढ़ने लग जाती हूं या किसी से बतियाने लग जाती हूं। सेंटर में प्रवेश के समय एक सीन हमेशा दिखाई देता है मसलन कोई प्रवेश पत्र, परिचयपत्र, आधार कार्ड आदि भूल आया या कुछ और। आसपास कोई मार्किट भी नहीं होती, वैसे भी सुबह सुबह कोई दुकान भी नहीं खुली होती। छात्र या प्रतियोगी को एक्जामिनेशन हॉल में नहीं जाने दिया जाता और घर भी दूर होता है। किसी के पास मोबाइल में इसकी फोटो होती है तो कोई घर से फोटो मोबाइल पर मंगवाता है। पर प्रिंट कहां से करवाए!! इस बार मैंने गौर किया कि सड़क पार पेड़ के नीचे एक तीन पहिए वाला साइकिल ठेला खड़ा रहता है और उसके आसपास बदहवास से कुछ लोग खड़े होते हैं। परीक्षा शुरु होने के बाद उसके ठेले के पास कोेई नहीं दिखता, तब वह गद्दी पर बैठ कर साइकिल ठेला चलाता हुआ चला जाता है। इस बार मुझे जानने की उत्सुकता जगी कि ठेले पर क्या होता है? ठेला हमेशा सेंटर से दूरी बना कर खड़ा होता है ताकि आने जाने वालों को परेशानी न हो। मैं भी सड़क पार कर देखने गई। देखकर हैरान रह गई। मजदूर टाइप लड़का, उसने ठेले पर लैपटॉप, प्रिंटर, इनर्वटर लगा रखा था। जिसे जो भी चाहिए उसका प्रिंट निकाल देता। उसका कम से कम बीस रू एक पेज प्रिंट का रेट था। पैसे देते समय सब के चेहरे पर एक भाव होता की काम हो गया। कोई कोई कहता दो रूपये के काम के तुम बीस रूपये ले रहे हो। वो कोई जवाब नहीं देता। क्योंकि थोड़े समय में ही उसे कमाना है। बहस में पड़ कर वह अपना नुकसान नहीं करता। सेंटर का गेट बंद होते ही वह बिल्कुल खाली हो गया। मैंने पूछा,’’तुम्हारी दुकान किधर है? वह बोला,’’जहां परीक्षा होती है उसके सेंटर के आगे एक्ज़ाम शुरू होने से पहले ठेला लगा लेता हूं। मैंने पूछा,’’परीक्षाएं तो रोज नहीं होतीं बाकि दिन क्या करते हो?’’उसने जवाब दिया,’’लेबर का काम करता हूं। पढ़ा लिखा हूं कोई कौशल तो है नहीं। मजदूरी में कौशल की जरुरत नहीं है। हां शाम को पाँच सौ रूपये मिल जाते हैं। पर इसमें कुछ ही समय में अच्छे पैसे बन जाते हैं। और हाथ पैर भी मार रहा हूं, कुछ बेहतर करने के लिए।’’ यह कह कर वह चल दिया मुझे लगा कि वह अपनी कहानी सुनाने में अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहता था।          


Friday, 16 July 2021

घड़े का ठंडा ठंडा कूल कूल पानी नीलम भागी Healing benefits of matka water. Neelam Bhagi


अंकुर के घर जाते ही छोटा सा अदम्य पानी का गिलास लेकर आया। पहला घूट भरते ही फ्रिज का चिल्ड पानी पीने की आदत होने के कारण ये पानी मुझे शीतल जल सा लगा। मैंने पूछा,’’पानी कहां से लाया है?’’ सुनते ही वह बोला,’’चलिए मेरे साथ आपको दिखाता हूं।’’ वह मेरा हाथ पकड़ कर किचन में ले गया। वहां उसने फूल पत्ती की चित्रकारी किए हुए मिट्टी के घड़े पर हाथ रख कर, मुझे समझाते हुए बताया,’’ये मेरे मम्मी पापा लाएं हैं। इसको घड़ा कहते हैं और यहां से पानी निकलता है।’’ उसने उसकी टोंटी खोल कर, गिलास भर कर पानी को उसमें से कैसे निकलते हैं, यह भी दिखाया।  मैंने भी बहुत ध्यान से समझा। इतने में शाश्वत ने आकर मुझसे पूछा,’’इसमें पानी ठंडा कैसे होता है?’’ नवीं क्लास में जैसा साइंस टीचर ने मुझे समझाया था, वैसा ही मैंे उसे समझाने लगी। घड़ा मिट्टी से बनता है। इसमें बहुत छोटे छेद होते हैं, इतने छोटे कि उनके आर पार नहीं देखा जा सकता है। पानी भरा होने के कारण बाहर से इसमें नमी रहती है। बाहरी सतह की नमी का, हवा के सम्पर्क में रहने से वाष्पन evaporation की क्रिया धीरे धीरे चलती रहती है। वाष्पन के लिए उष्मा अंदर के पानी से मिलती है। वाष्पन लगातार होता रहता है इसलिए इसका पानी ठंडा होता रहता है। गर्मी में हवा में नमी बहुत कम होती है इसलिए वाष्पन तेज होता है तो पानी ठंडा होता है। बरसात में हवा में नमी बहुत होती है तब पानी के तापमान में मामूली सा फर्क पड़ता है। क्योंकि वाष्पन बहुत धीरे होता है। इसलिए बरसात में घड़े का पानी तकरीबन रुम टैम्परेचर पर ही रहता है। 

घड़े का पानी ज्यादा ठंडा नहीं होने के कारण बच्चों का ठंडे पानी की बजह से गला खराब नहीं होता है और पानी में मिट्टी की सोंधी महक आती है। पर घड़े की सफाई पर बहुत ध्यान देना पड़ता है।      


Thursday, 15 July 2021

करोंदे के पेड़ पर आम!! नीलम भागी Mangoes on cranberry tree! Neelam Bhagi

कई सालों से हमारे यहां एक फल वाला भइया फल बेचने आता है। ठीक रेट पर अच्छे फल देता है इसलिए हम भी कभी किसी और से ट्राइ ही नहीं करते। रेगुलर है इसलिए दो चार दिन के लिए फ्रिज में भी भर कर नहीं रखते। जिस दिन उसने नहीं आना होता, वह एक दिन पहले हमें बता देता है। लेकिन गांव जाने से पहले वह कभी नहीं बता कर जाता। उसके जाते ही एक दो दिन बाद घर के आगे से गुजरने वाले फल के ठेलों में से ही, कोई भला सा फल वाला गेट के आगे खड़ा होकर ’फल लेलो’ की आवाज लगाता ही रहेगा। जब मैं चेहरे के आगे से अखबार हटा कर देखती हूं तो दूसरा फल वाला बोलता है कि आप जिससे फल लेती हो वो गांव गया है। यह सुनते ही मैं उससे फल ले लेती हूं। वो वाजिब दामों पर बहुत अच्छे फल देता है। अब मैं दूसरे से फल लेने लगती हूं। महीने बाद जब पहले वाला आता है तो जैसे ही गेट पर रुकता है, मैं कहती हूं,’’भइया फल ले लिए हैं।’’ वो पूछता है,’’किससे लिए?’’मैं जवाब देती हूं कि इतने सालों से तुम्हारा नाम नहीं पूछा, उसका पूछ के क्या करुंगी? दो चार दिन में शायद वह खुद ही पता लगा लेता है। फिर दूसरा वाला गेट पर नहीं रुकता और पहले वाला फल देने लगता है। मैं देर से सोती हूं और सुबह देर से जगती हूं। शुरु शुरु में वह कभी जल्दी आया तो मैंने उससे फल ही नहीं लिए। वो समझ गया इसलिए हमारे गेट पर लेट ही आता है। आज बरसात के कारण मैं ज्यादा देर तक सोती रही। मेड आई वोे हंसते हुए बोली,’’दीदी आपके करोंदे के पेड़ पर आम लगे हुए हैं।’’ मैंने उसे रूपए देकर कहा,’’जल्दी जाकर उसे बुला ला, अभी ज्यादा दूर नहीं गया होगा, ज्यादा दूर होगा तो फल खरीद लेना और इन करोंदे के पेड़ पर टंगे आमों के भी पैसे दे देना। ठेला लेकर उसका आना जाना बच जायेगा।’’ करोंदे के पेड़ पर आम लटका कर, वह मुझे बता गया है कि वह कितना रेगुलर है!! बरसात में भी अपने ग्राहकों को फल बेचने आया है। मैंने भी उसकी भावना का सम्मान करते हुए मेड को भेजा है, उससे फल खरीदने के लिए। अगर मेड को वो फल वाला नहीं मिला तो आज करोंदे के पेड़ के आमों से काम चला लेंगे। क्योंकि हमारे यहां दस बजे के बाद वेंडर का आना मना है और अब नौ बज चुके हैं। शायद ही कोई दूसरा आए।      


Tuesday, 13 July 2021

20% खाना सामाजिक एवं धार्मिक समारोह में फेंका जाता है नीलम भागी

 


हमारा देश उत्सवों और त्यौहारों का देश है। आए दिन विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा और  समितियों द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम के समापन पर प्रशाद वितरण किया जाता है और कभी-कभी भोजन, प्रशाद की भी व्यवस्था होती है। सभी सभ्य लोग होते हैं, वे उतना ही लेते हैं, जितना वे खा सकते हैं। पीने के पानी की व्यवस्था के पास ही, पहिये वाले बड़े-बड़े कूड़ेदान रख दिये जाते हैं । जिसमें श्रद्धालु भोजन के बाद अपनी डिस्पोजेबल प्लेट डालते हैं। देख कर बहुत दुख होता है जब कुछ लोग जरूरत से ज्यादा खाना ले लेते हैं और डस्टबिन की बजाय खाने से भरी प्लेंटे इधर उधर रख कर खाने के पण्डाल को गन्दा करते हैं।

धार्मिक कार्यक्रम के भण्डारे हों या किसी कार्यक्रम के समापन पर भोजन सब जगह बुफे ही लगाया जाता है ताकि खाने वाले अपनी मर्जी से उतना लें जितना वे खा सकते हैं और खाने की वेस्टेज़ न हो। जो बैठ कर खाना चाहते हैं उनके लिये वहां कुर्सी मेज़ भी लगी होती है। पर कुछ लोगो के कारण नज़ारा कुछ अलग ही होता है। वे बदग़मनी सी फैला देते हैं। पूड़ियों के पहाड़ अपनी मेज़ पर लगा लेते हैं। फिर जितना खाया जाता है खाते हैं बाकि जूठन से भरी हुई मेज़ छोड़ कर चल देते हैं। और मेरे जैसे लोग ये देख कर दुखी होते हैं।

मैं पहली बार नोएडा के आयप्पा मंदिर गई। कार्यक्रम के समापन पर भोजन प्रसाद की दो हॉल में व्यवस्था थी। श्रद्धालु ज्यादा थे। सब षांति से लाइन में लग गए। जैसे ही हॉल में गई वहां केले के पत्तों पर प्रसाद के सभी व्यंजन परोसे हुए थे। सब कुर्सियों पर बैठ गए। अपने आगे के पत्ते से भोजन करना शुरू कर दिया। परोसने वाले प्रत्येक लाइन में व्यंजन लेकर घूम रहे थे जिसे जो जितना चाहिए वे पत्ते पर परोस रहे थे। और मैं अपनी आदत से मजबूर खा भी रही थी और आस पास देख भी रही थी कि यहां भी लोग प्रषाद को जूठा तो नहीं छोड़ रहें हैं। पर ऐसा नहीं था। मेरे आस पास किसी के भी पत्ते पर जूठन नहीं थी। हर कोई खाने के बाद अपना पत्ता मोड़ देता था। यहां पूरी तरह से प्रसाद का सम्मान था। हॉल खाली होने पर फिर से केले के पत्तों पर व्यंजन परोसे जाने लगे। नीचे वाले हॉल में भी मैं देखने गई, श्रद्धालु प्रसाद का आनन्द उठा रहे थे। यहां देख कर बिल्कुल नहीं लगा की 20 प्रतिषत भोजन फेंका जाता होगा!!


Monday, 12 July 2021

टी. वी., मोबाइल के बिना जिंदगी नीलम भागी No Screen Day Neelam Bhagi

शाश्वत ने मुझसे पूछा,’’नीनो जब आप छोटी थीं, तब आपके मम्मी पापा भी आपको टी.वी. और मोबाइल आपकी मर्जी से नहीं देखने देते थे?’’मैंने जवाब दिया,’’तब मोबाइल नहीं, लैंडलाइन फोन होता था और ब्लैक एंड व्हाइट टी.वी था। जिसमें संडे को एक पिक्चर आती थी और बुद्धवार को आधे घण्टे का चित्रहार आता था।’’ये सुनते ही छोटे से अदम्य ने पूछा,’’आप पुअर थे, आपके पास इंटरनेट भी नहीं था!!’’जवाब में मैंने उसके मुंह पर हाथ फेर कर अपनी गोदी में बिठा लिया। शाश्वत का अगला प्रश्न,’’तब टाइम पास कैसे करते थे?’’मैंने बताया कि हमारी दादी का कहना था कि लड़कियों को खाली नहीं बैठना चाहिए इसलिए हम पढ़ने के साथ साथ सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, कुकिंग करते थे और समय निकाल कर किताबें पढ़ने का शौ़क़ पूरा करते थे। श्वेता काम करते हुए हमारी बातें सुन रही थी। इस शनिवार उसके बैंक की छुट्टी थी। सुबह उसने घोषणा कर दी कि आज नो स्क्रीन डे है। टी.वी., मोबाइल नहीं देखना, फोन सुन सकते हैं और गाने सुन सकते हैं। दिन तो बहुत बड़ा हो गया। जो सामने नहीं दिखता बच्चे उसकी जासूसी करने जाते कि वो छिप कर मोबाइल तो नहीं देख रहा है। बच्चों में एनर्जी बहुत ज्यादा होती है। वे शैतानियां कर रहे थे साथ ही, हे गुगल बोल के गाने सुन रहे थे। श्वेता उनके सामने फेंकने वाली प्लास्टिक की बोतलों से प्लांटर बनाने का सामान रख कर, उनसे सलाह मांगने लगी कि कैसे हम इन प्लास्टिक की बोतलों को रीयूज़ करके सुन्दर प्लांटर बना सकते हैं ताकि उसमें वाटर प्लांट लगा कर, एयर पॉल्यूशन कम करें। बच्चों को अपना आइडिया बताया। उन्होंने भी घ्यान से सुना। अब सिरैमिक पाउडर में ग्लू मिलाने का काम अदम्य करने लगा तो शाश्वत बोतल को पेंट करने लगा। एक बोतल पर पेंट होने पर श्वेता ने उस पर सिंपल पर बहुत प्यारा डिजाइन बना दिया, जिसे देख कर बच्चे बना सकते थे।


अब तो अदम्य और शाश्वत ने मोर्चा सम्भाल लिया। उन्हें तो खाने पीने, मोबाइल टी.वी किसी की याद भी नहीं रही। म्यूजिक सुनते हुए काम में मस्त। उन्होंने कबाड़ बोतलों को खूबसूरत प्लांटर में बदल दिया।




अब श्वेता ने उनमें छेद करके प्लास्टिक की मजबूत डोरी से बांध दिया और सब में आधा लीटर पानी भर दिया। अंकुर ने उनमें मनी प्लांट लगा कर लटका दिया। मजबूती का पूरा घ्यान रखते हुए, फिर भी ऐसी जगह लटकाया जहां कोई बैठता नहीं है। छोटे छोटे पौधे लगते ही ड्रॉइंगरूम अलग सा लगने लगा। और मुझे भी लगने लगा कि ’नो स्क्रीन डे सम्भव है।’           





Thursday, 8 July 2021

खाना बचाएं, पुण्य कमाएं नीलम भागी Clean your plate campaign and women Neelam Bhagi



सर्वज्ञा पहली बार होस्टल में गई तो रात को मैंने फोन पर उसके पहले दिन का अनुभव पूछा। उसने छूटते ही कहा,’’बुआ यहां लड़कियां खाना बहुत वेस्ट करती हैं। मैस में बुफे लगता है। हम खाना खा कर ही तो बड़े हुए हैं, हमें पता है कि हम कितना खाते हैं? उन्हें उतना ही लेना चाहिए। आपने हमें बचपन से सिखाया है ’खाओ मन भर, छोड़ो न कण भर’।’’मैंने जवाब दिया,’’लाडो तूं जूठा छोड़ने की गंदी आदत मत सीख जाना। कोशिश करना, वे भी जूठा न छोड़ें।’’उसे कह तो दिया पर मैं जानती हूं, कुछ लोगों में जूठा छोड़ने का रिवाज़ होता है। लेकिन मेरे परिवार में किसी को भी खाना बर्बाद करने की आदत नहीं है। मुझे याद आया, जब मैंने खाना बनाना शुरू किया तो मुझसे सब कुछ ज्यादा ही बनता था। पर रोटी फालतू नहीं बनती थी क्योंकि वह चूल्हे से सिक कर सीधे थाली में जाती थी। सब ताजा खाते थे इसलिए फालतू बनने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। गाय घर में हमेशा रहती थी जो दाल सब्ज़ी बचती, मैं उसकी सानी में डाल देती। दादी देखती पर कभी भी परिवार की जो भी लड़की खाना बनाना शुरू करती, उसकी किसी भी कमी पर तुरंत ज्ञान नहीं बांटती। फिर फुर्सत के समय पास में प्यार से लिटा कर बात शुरू करती। मसलन मुझे कहने लगी,’’तेरा बनाया खाना खाकर लगता ही नहीं कि तूने दो चार दिन से ही बनाना शुरू किया है। घर में किसी ने तुझे सिखाया भी नहीं। चिड़िया के बच्चे जैसे मां को उड़ता देख कर उड़ने लग जाते हैं न, ऐसे ही हमारे परिवार की लड़कियां, मां, दादी को खाना पकाते देख कर, पकाना सीख जाती हैं। बस जिस दिन तूं फालतू बनाना बंद कर देगी तो हमारे जैसी हो जायेगी।’’ मैं तुरंत बोली,’’दादी, फालतू कहां! वो तो गंगा की सानी में डाल देती हूं।’’ये सुन कर दादी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,’’बेटी तूं और गंगा मैदान में जाओ, गंगा भूखी होगी तो घास चर लेगी, पेड़ के पत्ते खा लेगी। तुझे भूख लगेगी तो तूं गंगा के चारे से पेट भर सकती है! नहीं न। हर जीव का अपना खाना होता है। हरेक के घर में गाय तो होती नहीं इसलिए फालतू खाना तो र्बबाद ही होगा न। हमें भी धीरे धीरे समझ आ गई थी। सारी जिंदगी रसोई में बीती है इसलिए कभी कोई खाने वाला बढ़ गया तो झटपट अपने लिए कुछ और बना लिया। बेटी खाने को बर्बाद होने से बचाया तो पुण्य कमाया। जो हमारा राशन बचेगा वो कहीं और काम आयेगा। मकई के एक दाने से एक पौधा निकलता है। उस पर भुट्टे लगते हैं। एक भुट्टे पर कितने दाने लगते हैं न!’’दादी की सीख दिमाग में बैठ गई की अन्न का एक-एक दाना कीमती होता है इसलिए कभी अन्न का एक दाना भी र्बबाद नहीं किया। खाने के सामान की लिस्ट बनती है। शैल्फ लाइफ देख कर सामान खरीदना चाहिए और ख़राब होने से पहले उपयोग करना चाहिए। फ्रिज और अल्मारियां खाने के सामान से तभी भर कर रखनी चाहिए अगर सब सामान उपयोग में आए या बाज़र घर से दूर हो। वरना पड़ा पड़ा खराब हो जाएगा तो फैंकना ही पड़ेगा। हमने भोजन का अनादर किया। समय रहते किसी को दे देते तो भोजन का अनादर नहीं होता। फल, सब्ज़ियां, डेयरी पदार्थ, मांस आदि अगर वाकिंग डिस्टैंस पर बिकते हैं तो इनसे फ्रिज नहीं भरना चाहिए। सामान खरीदते समय एक्सपायरी डेट देखकर खरीदें और समय से उपयोग करें।          

 

Tuesday, 6 July 2021

खाने की र्बबादी और महिलाएं !! नीलम भागीClean your plate---Reduce food wastage. Neelam Bhagi

बहुत यात्राएं करती हूं अक्सर मैंने राजधानी गाड़ी में देखा है कुछ महिलाएं खाना सर्व होते ही आसपास पूछतीं हैं कि किसी को चावल या रोटी चाहिए। जिसको जरुरत होती है वो ले लेता है। अगर कोई न लेने वाला हो तो वे रोटी या परांठे का पैकेट पर्स में रख लेतीं हैं और चावल खा लेतीं हैं। मजा़ल है जो उनकी नाश्ते या खाने की ट्रे में एक टुकड़ा भी जूठा पड़ा हो। जो भी फालतू होता है उसे निकाल कर अपने पर्स में रख लेतीं हैं। मैं ये देख कर मन ही मन उनकी सराहना करती हूं कि इन्होंने खाने को जूठा न छोड़ कर कचरे में जाने से बचाया है और ये कचरा तो पर्यावरण को ही दूषित करता है। डिनर के बाद जब सहयात्री बतियाते हैं तो मैं तारीफ़ करते हुए कहती हूं कि मुझे आपकी जूठा न छोड़ने की आदत बहुत अच्छी लगी।




ये सुनते ही उनके अब तक जवाब बहुत अच्छे मिले हैं। मसलन कुछ लोगों के लिए जूठा छोड़ना तमीज़ है। ग़वार लोग जूठा छोड़ कर ये जताना चाहते हैं कि वे बहुत खाते पीते घर के लोग हैं। और खा खाकर अघाए हुएं हैं। अगर वे थाली में कुछ छोड़ेंगे नहीं, तो दूसरों को लगेगा कि पता नहीं ये कब से भूखा है! नहीं जानती कि कैसे ये घटिया सोच इनकी खोपड़ी में जम गई है। सब को अपनी भूख पता होती है। फालतू खाना, खाने से पहले ही निकाल दो। ’उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में।’अब देखिए न, खाना बनाने में समय लगता है, पैसा लगता है और मेहनत लगती है। पर किसी की गलत सोच उसे कचरे में बदल देती है। ये कचरा पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है। हम वातानुकूलित डब्बे में सफ़र कर रहें हैं। ये जो हमने सूखा खाने का सामान निकाल कर रखा है। ये खराब तो होगा नहीं। जहां गाड़ी ज्यादा देर के लिए रुकेगी, गेट पर खड़े होते ही भिखारी आ जाते हैं उन्हें दे देगे। अगर किसी कारणवश नहीं दे पायी तो ये मेरे साथ घर जायेंगे। ( दिल्ली से मुंबई की गाड़ी थी) वह कुछ सोच कर कहने लगी,’’ वह वापी पर उतरेगी तब तक शायद नाश्ता सर्व नहीं होगा। घर जाते ही पैकेट में रोटी, परांठा जो भी है उसके तिकोने पीस काट कर, एयर फ्रायर में रख कर ऑन कर दूंगी। फ्रेश होकर आउंगी तब तक ये कुरकरे हो जायेंगे। कॉफी बना कर, इस नमकीन और फ्रीज़ से मनपसंद की डिप लेकर कुरकुरे रोटी के टुकड़े चिप्स की तरह मजे़ से खाउंगी।’’ अब टॉपिक बदला, बची हुई रोटियों से क्या क्या बन सकता है, इस पर चर्चा शुरु हो गई।

ये सुनकर एक सज्जन बोले,’’ये ताज़ी रोटी से भी तो बन सकता है क्योंकि मेरी पत्नी तो ताजा़ खाना उस समय बनाती है जब हमने खाना हो इसलिए कभी फालतू बनता ही नहीं है।’’ ये सुनते ही उनकी पत्नी ने जवाब दिया,’’दाल सब्ज़ी कभी ज्यादा हो जाती है तो अगर मुझे उसका अगले समय इस्तेमाल करना हो या उससे परांठे बनाने हों तो तुरंत ठंडा करके फ्रिज़ में रख देती हूं। वरना बाई, चौकीदार या प्रेसवाले को तुरंत दे देती हूं। कभी भी दो तीन दिन की बासी करके किसी को नहीं देती। बचपन से हमने सीखा है कि खाना भगवान का प्रसाद है और प्रसाद को फेंका नहीं जाता।’’            


Friday, 2 July 2021

आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाउं!! नीलम भागी

 






शाम को मैं अंकुर के घर गई। गर्मी में शाश्वत मेरे लिए ठंडा पानी लाया। अदम्य जो अभी फर्स्ट में आया है, उसने पूछा,’’नीनो आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाउं?’’उसका गंभीर चेहरा देखकर मुझे हंसी आ गई पर मैंने अपने पर कंट्रोल किया और कहा,’’हां, जरूर बनाओ, अरे वाह! मेरा बच्चा बनाएगा और मैं मजे से खाउंगी।’’ ये सुनते ही वह फुदकता हुआ चला गया। उसके जाते ही मैंने अंकुर से पूछा,’’ये बहुत छोटा है, गैस तो नहीं जलायेगा, चक्कू का इस्तेमाल तो नहीं करेगा!’’अंकुर हसंते हुए बोला,’’नहीं, आज इसके स्कूल की ऑनलाइन क्लास में बच्चों को ब्रेकफास्ट बनाना सिखाया है। जिसे इसने बड़ी लगन से सीखा। आज उस सैंडविच का नाम ही ब्रेकफास्ट हो गया है। वर्क फ्रॉम होम है। मैं आज किसी वजह से रूम सेे बाहर आता हूं तो पूछता है कि आपके लिए ब्रेकफास्ट बना कर लाउं।’’ मुझसे मिल कर, अब अंकुर तो जाकर अपने काम पर बैठ गया। अदम्य चेहरे से खुशी टपकाता हुआ, सैंडविच बनाकर लाया। मैंने खुशी से ताली बजाई और प्लेट उसके हाथ से ली। मैंने सैंडविच की बाइट ली, उसने साथ ही बनाने की विधि बतानी शुरू कर दी। साथ में मुझे समझाया कि नमक का बहुत ध्यान रखना है अगर मक्खन बाजार का नमक वाला है तो खीरा टमाटर पर नमक नहीं छिड़ना, अगर छिड़को तो बहुत कम। बटर घर का है यानि बिना नमक का, तब नमक स्प्रिंकल कर सकते हैं। मुझे ये सैंडविच बहुत स्वाद लगा क्योंकि इसमें इतने छोटे बच्चे की रचनात्मकता, खुशी जो मिली हुई थी। काम की अधिकता के कारण श्वेता देर से आई। जैसे ही डोर बैल बजी, अदम्य ने दरवाजा खोलते ही, श्वेता से पूछा,’’मम्मा आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाउं।’’श्वेता ने खुशी से हां कहा। सुनते ही वह बनाने दौड़ा। सैंडविच की तस्वीरें तो हम श्वेता को भेज ही चुके थे। अंकुर भी हमारे पास आ गया। श्वेता कहने लगी,’’ मैंने इतना खुश इसे पहले कभी नहीं देखा। आज तो इसे देख कर मेरी थकान उतर गई। गुड़िया से कहूंगी कि टमाटर, खीरा काट कर फ्रिज में रख दिया करे, जब भूख लगेगी तो ब्रेकफास्ट बना कर खा लेंगे। नहीं बनाएंगे तो खीरा टमाटर हम सलाद में खा लेंगे।’’ गुड़िया डिनर लगा रही थी। श्वेता ब्रेकफास्ट खा रही थी। अदम्य ब्रेकफास्ट बनाने की रेस्पी बता रहा था और मैं मन ही मन टीचर की सराहना कर रही थी, जिसने इतने छोटे बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार खाना बनाने की कला से परिचय करवाया।